पोटा (आतंकवाद निरोधक अध्यादेश) पर निबन्ध | Essay on POTA ( Prevention of Terrorism Ordinance ) in Hindi

पोटा कानून बनने के बाद से देश में आतंकवाद तथा उग्रवाद में वृद्धि ही हुई है । पोटा के राजनीतिक दुरुपयोग को लेकर काग्रेस सहित अन्य विरोधी दलों ने इसकी खिलाफत शुरू कर दी थी ।

यही कारण था कि राज्यसभा में सत्ता पक्ष इसे पास न करवा सका था । उस समय राज्यसभा में कुल 211 सांसद उपस्थित थे । इनमें से पोटा के समर्थन में केवल 98 सासदों ने ही अपना मत दिया । 113 ने इसके विरोध में अपने मत डाले ।

इसके बाद सत्तारुढ़ दलों ने संयुक्त अधिवेशन बुलाकर इसे पास करवा लिया । इसके पास होते ही उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने दावा किया था कि इसका मुख्य उद्देश्य सीमा पर से आतंकवाद की चुनौती का मुकाबला करना है ।

पिछले काफी समय से चर्चित आतंकवाद निरोधक अध्यादेश (पोटा) विधेयक 26 मार्च, 2002 को कानून बन ही गया । इस कानून को 1985 में लागू किये गये टाडा कानून की जगह पर लाया गया है । पोटा 16 अक्टूबर, 2001 को लागू किया गया था ।

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यह अध्यादेश इतिहास के पन्नों में दर्ज रहेगा क्योंकि इसे कानून बनाने की जगह लेने के लिए लाया गया विधेयक राज्य सभा के गिरने के बाद संसद के संयुक्त अधिवेशन में 26 मार्च 2002 को पेश किया गया जो पास हो गया ।

भारतीय संसद के इतिहास में यह तीसरा मौका था जब लोक सभा और राज्य सभा की संयुक्त बैठक बुलाई गयी । संसद के केन्द्रीय कक्ष में 26 मार्च को एक नया इतिहास कायम हुआ । करीब दस घंटे तक चले अट्‌ठाइस सांसदों के भाषणो के बाद संसद के दोनो सांसदो के साझा अधिवेशन में आतंकवादी निरोधी विवाद-स्पद विधेयक पोटा को कानूनी जामा पहनाया गया ।

पोटा के तहत ऐसी कोई भी कार्रवाई जिसमें हथियारों या विस्फोटकों का इस्तेमाल हुआ हो या फिर जिसमें किसी की मौत हो या फिर घायल हो जाय तो वह आतंकवादी कार्रवाई मानी जायेगी । पोटा के तहत गिरपतारी महज शक के आधार पर की जा सकती है ।

इसके तहत पुलिस को यह भी अधिकार है कि वह बिना वारन्ट के किसी की भी तलाशी ले सकती है । टेलीफोन तथा अन्य संचार सुविधाओं पर भी नजर रख सकती है । इसके अतिरिक्त अभियुक्तों के खिलाफ गवाही देने वालों की पहचान छिपायी जा सकती है ।

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आतंकवादियों से संबंध होने के संदेह में अभियुक्त का पासपोर्ट और यात्रा संबंधी कागजात राद्ध किये जा सकते हैं । आरोपी को तीन महीने तक अदालत में आरोप पत्र दाखिल किये बिना ही हिरासत में रखा जा सकता है और उसकी संपत्ति भी जब्त की जा सकती है ।

इसके अलावा पत्रकारों से संबंधित प्रावधानों में ढील दी गयी है । और आतंकवादियों से संबंध होने के संदेह में अभियुक्त की संपत्ति जब्त करने के लिए विशेष अदलत से अनुमति लेना आवश्यक कर दिया गया है । इस कानून के तहत जुर्म साबित होने पर कम से पाच साल और अधिक से अधिक मौत की सजा दी जा सकती है ।

आतंकवाद निरोधक अधिनियम (पोटा) के कथित दुरापयोग के आरोपों को देखते हुए केन्द्र सरकार ने 13 मार्च 2003 को एक उच्चस्तरीय समीक्षा समिति के गठन की घोषणा की । इसके अध्यक्ष पंजाब के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति अरुण सहरयार को बनाया गया है ।

इस समिति के औपचारिक गठन की घोषणा प्रधानमंत्री व गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने की । समिति का गठन पोटा के उपबंधों के आधार पर किया गया है । इस अवसर पर श्री आडवाणी ने बताया कि पोटा का कानून विशेष तौर से आतंकवादी गतिविधि रो निपटने के लिए बनाया गया है । इसकी धारा (3) की उपधारा (1) में आतंकवादी कार्रवाई और आतंकवादी को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है ।

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समय-समय पर इस कानून का इस्तेमाल ऐसे लोगों के खिलाफ किये जाने के मामले उठाये गये हैं जो इस कानून की परिधि में नहीं आते । समीक्षा समिति विभिन्न राज्यों द्वारा किये गये इस कानून के इस्तेमाल की व्यापक समीक्षा करेगी और इस कानून को लागू करने में आने वाली खामियों को दूर करने के उपाय सुझायेगी ताकि उसका दुरुपयोग सामान्य अपराधियों के खिलाफ न हो सके ।

इस कानून के तहत कोई भी अदालत केन्द्र सरकार या राज्य सरकार की पूर्व अनुमति के बिना ऐसे उपराध को संज्ञान में नहीं लेगी जिसमें पुलिस उपाधीक्षक से नीचे के पद के अधिकारी को जांच-पड़ताल का अधिकार नहीं होगा ।

साथ ही पोटा में यह भी प्रावधान है कि इस कानून के तहत गिरफ्तार व्यक्ति के इकबालिया बयान को सबूत तभी माना जायेगा जब वह पुलिस अधीक्षक से नीचे के रैंक के अधिकारी द्वारा दर्ज नहीं किया गया हो और उसे 48 घंटे के समय में मजिस्ट्रेट के सामने पेश न किया जाए ।

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तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता ने अपने राजनीतिक प्रतिद्वन्द्वी बाड़को को लिट्‌टे के समर्थन में भाषण देने के आरोप में पोटा के तहत गिरफ्तार करवाया है । जब यह मामला अदालत में पहुंचा तो पहले केन्द्र सरकार के वकीलों ने उनकी (वाईको की) पोटा के तहत गिरफ्तारी का समर्थन किया ।

बाद में उन्होने रंग बदलते हुए सरकारी कर्मचारियों के सिर दोष मढ़ दिया । उग्रवाद से सबसे ज्यादा प्रभावित जम्मू कश्मीर में सत्तारूढ़ पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के महासचिव एवं मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने तो अपने यहां पोटा का इस्तेमाल करने से ही मना कर दिया ।

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