ग्रामोद्योग पर निबन्ध | Essay on Cottage Industries in Hindi!

ग्रामोद्योग का तात्पर्य ऐसी वस्तुओं के निर्माण से है, जिन्हें कम पूंजी में कम श्रम द्वारा छोटे पैमाने पर कम कर्मचारियों के साथ या बहुधा घर के सदस्यों द्वारा निर्मित किया जाए ।

एक समय था जब भारतीय घर और भारतीय गांव की कर्मठता का गुणगान, जो विभिन्न प्रकार के ग्रामोद्योग से संबंधित था और जिसमें से कुछ ने निर्मित वस्तु की उत्तमता और कलात्मक सुन्दरता के कारण देश विदेश में महान ख्याति अर्जित कर ली थी ।

लेकिन ब्रिटिश साम्राज्य के दौरान उनमें से काफी उद्योगों को विचारपूर्ण तरीकों से कुचल दिया गया । अमीर व्यक्तियों की सहयोग के अभाव में पड़ गए शिथिल या फिर मशीन निर्मित वस्तुओं की प्रतियोगिता में स्वयं को अक्षम महसूस करने लगे । ग्रामोद्योग का यह पतन गुप्त रूप में ग्रामीण भारत की आर्थिक स्थिरता के लिए हानिकारक सिद्ध हुआ ।

ग्रामोद्योग के उत्थान के लिए किसी अन्य देश की अपेक्षा भारतीय वातावरण और परिस्थितियाँ काफी अनुकूल हैं । ग्रामोद्योग पुनरुत्थान का तात्पर्य मध्ययुग में वापसी व आधुनिक सिद्धांतों का पूर्ण बहिष्कार नहीं है । यान्त्रिक आविष्कार बिजली की सहायता से कम परिश्रम और अधिक उत्पादन के परिचायक है ।

पूंजी, कच्चे माल और खपत की समस्या को राज्य सहायता और सहकारी व्यवस्था द्वारा दूर किया जा सकता है । ग्रामोद्योग में कुछ स्वाभाविक योग्यताएं विद्यमान हैं । ये कम पूंजी में चलते जा सकते है, स्त्री मजदूर की सही उपयोगिता और किसी व्यक्ति के खाली समय का उपयोग, आनुवंशिक उद्योग होने के कारण प्रशिक्षणार्थी को बिना कुछ खर्च किए सही प्रशिक्षण मिल जाता है आदि ।

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ग्रामोद्योग के कार्यो में खुशी मिलती है । कार्य को घर कै अनुकूल वातावरण में पूरा किया जाता है । यहाँ कोई त्यौरी चढ़ाने वाला स्वामी नहीं होता । इसमें कोई स्वामी शोषण नहीं करता है यह शोषण रहित होता है । चरित्र के नैतिक पतन की संभावना कम होता है । यहाँ इसमें व्यक्ति दासों का दास नही । उसे अपना कौशल और मौलिकता दिखाने का पूर्ण अवसर मिलता है ।

सुरक्षा की दृष्टि से ग्रामोद्योग परमावश्यक है बम-वर्षा व उनके विनाश से अस्त-व्यस्त आर्थिक ढाँचे को व्यवस्थित करने में केन्द्रीकृत भूमिका निभाते हैं । इस प्रकार एक पूर्ण व्यवस्थित ग्रामोद्योग द्वारा युद्ध की स्थिति में विदेशों से आयात की असुविधा होने पर भी काफी सहायता जुटाई जा सकती है ।

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भारत में बेरोजगारी की वर्तमान समस्या को दूर करने में भी इन ग्रामोद्योगों द्वारा महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जाती है । कृषि मजदूरों के खाली समय में सहायक व्यवसाय के रूप में इसके द्वारा उन्हें काफी सहायता मिल सकती है । उपरिलिखित विवरण ग्रामोद्योग के कुछ ऐसे लाभ तथा लक्ष्य हैं जो इस मशीनी युग में जीविकोपार्जन में सहायक सिद्ध हो सकते हैं ।

भारत में लोगों का एक ऐसा वर्ग भी है जो मशीन उत्पादित वस्तुओं की अपेक्षा ग्रामोद्योग द्वारा उत्पादित वस्तुओं को अधिक चाहता है । यहां तक कि विकसित औद्योगिक देश जैसे जापान, जर्मनी और रूस में ग्रामोद्योगों की एक श्रुंखला है । जापान में 40 प्रतिशत उद्योग ” घरेलू ” व्यवस्था के अंतर्गत चलाए जाते है । रूस में ” स्वामी लघु उद्योग उत्पादक ” व्यवस्था है ।

इनके महत्व पर विचार करने के उपरान्त इन्हें भारत की नौवीं पंचवर्षीय योजना में महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है । बड़े उद्योगों की अस्वस्थ प्रतिस्पर्धा नीति द्वारा इनको हानि नही पहुंचनी चाहिए । यह उगवश्यक है कि दोनों प्रकार के उद्योगों के कार्य क्षेत्र को प्रतिस्पर्धा नीति से अलग कर, परिपूरक दृष्टि से सर्वोपरि मानते हुए इनकी सीमा निर्धारित की जानी चाहिए, जिससे दोनों साथ-साथ पनप सकें ।