Here is a compilation of Essays on ‘Inflation’ for Class 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on ‘Inflation’ especially written for School and College Students in Hindi Language.

List of Essays on Inflation in Hindi Language


Essay Contents:

  1. महंगाई या मुल्य-वृद्धि  | Essay on Inflation in Hindi Language
  2. महँगाई और मनुष्य । Paragraph on Inflation and Mankind for School Students in Hindi Language
  3. महंगाई और आम आदमी । Essay on Inflation and the Common Man for School Students in Hindi Language
  4. महँगाई की समस्या । Essay on the Problem of Inflation for College Students in Hindi Language
  5. मूल्य-वृद्धि की समस्या-महँगाई | Essay on Inflation for College Students in Hindi Language

1. महंगाई या मुल्य-वृद्धि  | Essay on Inflation in Hindi Language

प्रस्तावना:

स्वतंत्रता के बाद भारत धीरे-धीरे चहुँमुखी विकास कर रहा है । आज लगभग दैनिक उपयोग की सारी वस्तुओ का निर्माण अपने देश  में ही होता है । जिन वस्तुओ के लिए पहले हम दूसरी पर निर्भर रहते थे, अब उनका उत्पादन हमारे देश  में ही होता है । कृषि क्षेत्र में भी हमें आशातीत सफलता मिली है ।

आज देश में आधुनिक वैज्ञानिक ढंग से कृषि उत्पादन होता है । परन्तु हर क्षेत्र मे इतनी प्रगति के साथ हमारी वस्तुओ के मूल्य स्थिर नही हो पाते हैं । खाद्य पदार्थ, वस्त्र तथा अन्य वस्तुओ की कीमत दिन-प्रति-दिन इस प्रकार बढ़ती जा रही है कि वह उपभोक्ताओ की कमर तोड़ रही है ।

मूल्य-वृद्धि के कारण:

यद्यपि हमारे यहाँ लगभग सभी वस्तुओ का उत्पादन होता है, परन्तु उसका उत्पादन इतना नही हो पाता कि वह जनता को उचित मूल्य पर पूर्ण मात्रा में मिल सकें । उनकी पूर्ति की कमी से माँग बढ़ती है और माँग के बढ़ने से मूल्य का बढ़ना भी स्वाभाविक है ।

कभी-कभी किसी वस्तु की उत्पादन लागत इतनी बढ़ जाती है कि उपभोक्ता तक उसकी कीमत बहुत बढ जाती है, क्योकि उसके उत्पादन में सहायक सामग्रियो के लिए हमे विदेशो पर निर्भर रहना पड़ता है । कच्चे माल के लिए विदेशो की ओर ताकना पड़ता है । यातायात व्यय बढ़ जाता है जिससे सब ओर से उसकी उत्पादन लागत बढ़ जाती है ।

राष्ट्रीय भावना का अभाव:

आज मूल्य-वृद्धि का सबसे बड़ा कारण है उत्पादकों मे राष्ट्रीय भावना का अभाव । हमारा उद्योगपति राष्ट्रीय भावना से वस्तुओं का उत्पादन नहीं करता है ।

उसके अन्दर अधिक लाभ कमाने की भावना अधिक होती है इसके लिए चाहे उसको राष्ट्र व समाज का अहित भी करना पड़ जाए तो वह अपने लाभ के लिए राष्ट्रीय हितो की बलि कर देता है । यही कारण है कि आज देश में महंगाई बढ़ रही है और घटिया वस्तुओ के उत्पादन से विश्व बाजार में भारत की साख गिरती जा रही है ।

जनसंख्या में वृद्धि:

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देश में जनसंख्या वृद्धि के कारण भी महंगाई बढ़ती जा रही है । उत्पादन सीमित है, उपभोक्ता अधिक है । देश की खेतिहर भूमि सिकुड़ती जा रही है । जनसख्या की वृद्धि के कारण नगरी, शहरी का विस्तार होता जा रहा है । खेतिहर भूमि में मकान बन रहे हैं । जगलों का भी विस्तार किया जा रहा है ।

जिससे कृषि उत्पादन मे स्वाभाविक रूप से कमी हो रही है । खाद्य पदार्थो के लिए हमे विदेशों पर निर्भर रहना पड़ता है । विदेशो से वस्तुओ के आयात का भार उपभोक्ताओं पर ही पड़ता है फलत:  महंगाई  बढ़ने लगती है । दोष-पूर्ण वितरण प्रणाली-हमारे यहाँ वस्तुओं की वितरण प्रणाली भी दोष-पूर्ण है ।

इस समय वितरण की द्वैध प्रणाली प्रचलित है, सरकारी व व्यक्तिगत । एक ही वस्तु का वितरण सरकार व व्यापारियों द्वारा अपने-अपने ढंग से होता है । एक वस्तु सरकारी गोदामों में सड़ रही है, उसी वस्तु की जनता में अधिक माँग होने के कारण व्यापारी लूट मचाते हैं ।

कभी-कभी सरकारी वितरण में घटिया वस्तु बिकती है जिसे उपभोक्ता को उसी वस्तु के लिए अधिक कीमत पर व्यक्तिगत व्यापारी के चुगल में फंसना पड़ता है । सरकारी तत्र इतना अधिक भ्रष्ट हो चुका है कि वह व्यापारियों से मिलकर मूल्य वृद्धि में उसे सहयोग देते हैं । उनमे अपने देश, अपने समाज, अपनी वस्तु की भावना ही समाप्त हो चुकी है ।

मूल्य-मृद्धि के परिणाम:

भ्रष्टाचार को महगाई की जननी कहना अतिशयोक्ति नहीं है । महंगाई के कई दुष्परिणाम होते है । महंगाई से देश में गरीबी, भुखमरी, घूसखोरी को बढ़ावा मिलता है । महंगाई से देश की अर्थव्यवस्था गड़बड़ा जाती है । इसका सबसे अधिक शिकार होता है गरीब वर्ग ।

समाज में चोरी, डाके व ठगी आदि में वद्धि होती है । महंगाई से भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है । महंगाइ से समाज का नैतिक पतन होता है । मूल्य-वृद्धि होने से कन्दोल, राशन, कोटा, परमिट आदि लागू होते हैं । उनके वितरण में सरकारी तंत्र में भ्रष्टाचार बढ़ता है ।

मूल्य-वृद्धि रोकने के उपाय:

हमारा देश कृषि प्रधान देश है । इसलिए मूल्य-वृद्धि रोकने के लिए अधिक उपज पैदा करने के सा धन जुटाये जाए । किसानो को आधुनिक वैज्ञानिक साधनो के द्वारा खेती करनी चाहिये । इसके लिए कृषि वैज्ञानिकों को आगे आना चाहिये । कृषि पर आधारित सभी उद्योगो में किसानो को प्राथमिकता दी जानी चाहिये ।

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कृषि-सम्बन्धी वस्तुओ के अधिक उत्पादन से मूल्य में स्पष्ट गिरावट आ जायेगी । उद्योगपतियो, नेताओ, व्यापारियों ,  व्येपारियों में राष्ट्रीय भावना का जब तक विकास नहीं होता तब तक अन्य सारे उपाय निष्फल सिद्ध हो सकते है । राष्ट्रीय भावना के अभाव में भष्टाचार बढ़ता है ।

भ्रष्टाचार महंगाई की जननी है । इसलिए नैतिक शिक्षा का विकास कर हर नागरिक मे राष्ट्रीय भावना पैदा की जाए । जब हर व्यक्ति समाज, राष्ट्र व वस्तुओ के प्रति अपनत्व रखेगा तो उसमे छल, कपट, बेईमानी   नहीं  आ पायेगी ।

उपसंहार:

हमारे देश में प्रजातंत्र है । महंगाई के विरुद्ध जनता द्वारा आवाज उठाने का उसको पूरा अधिकार है । इसलिए हमारी जनप्रिय सरकार महगाई रोकने के लिए हर संभव प्रयास करती है । नये-नये उद्योगों को प्रोत्साहन दे रही है । जब किसी वस्तु का अभाव होता है तो उपभोक्ताओ में उस वस्तु के प्रति संग्रह की भावना बढ़ती है ।

यह प्रवृत्ति महंगाई बढाने में सहायक होती है इसलिए जनता को अधिक वस्तुओं का संग्रह  नहीं करना चाहिये । महंगाई को दूर करने में सरकार के साथ सहयोग करना चाहिये । अभाव-ग्रस्त  वस्तुओं को बेकार, बर्बाद नहीं करना चाहिये । महगाई को एक राष्ट्रीय समस्या समझ कर समाधान ढूंढना चाहिये ।


2. महँगाई और मनुष्य । Paragraph on Inflation and Mankind for School Students in Hindi Language

प्रत्येक स्थिति या अवस्था के दो पक्ष होते हैं: आंतरिक एवं बाह्य । बाह्य स्थिति को सुधारना मनुष्य के लिए किसी प्रकार से कठिन कार्य नहीं है । कृत्रिम को यथार्थ का भ्रम बनाकर उसका विकल्प प्रस्तुत किया जा सकता है । किंतु आतरिक स्थिति को दृढ़ एवं प्रतिबद्धता के साथ किए गए उपायों से ही सुधारा जा सकता है ।

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आज हमारे देश की बाह्य स्थिति उसकी कागजी नीतियों प्रस्तावों और सिद्धांतों के चलते चाहे कितनी भी अच्छी क्यों न हो लेकिन उसकी आतरिक स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए केवल यह कहना ही काफी होगा कि उसे फुर्सत नहीं है ।

जहाँ सैकड़ों टन अनाज का भारत से निर्यात सिर्फ लाभार्जन के उद्‌देश्य से किया जाता है उसी देश में आज भी लोग भूख और कुपोषण से मर जाते हैं । नौकरियों के अभाव और आय का कोई स्थायी स्रोत न होने के कारण जहाँ लोग अपने जीवन की न्यूनतम जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष करते हैं उस देश में दैनिक उपयोग की चीजों की कीमतें आसमान को छूती हैं ।

इस संदर्भ में सबसे बड़ी विडंबना यह है कि सरकार न तो इस समस्या के कारणों को तलाश पाती हैं और न ही समय रहते इनका समाधान ही खोज पाती है । इन्हीं के चलते आत्महत्या निराशा कुंठा पारिवारिक कलह, शारीरिक कुपोषण की समस्याओं का जन्म होता है जिससे मनुष्य का जीवन निरंतर दुष्कर बनता जाता है ।

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यह एक व्यावहारिक तथ्य है कि जैसे-जैसे उत्पादन में वृद्धि होती है, वैसे-वैसे वस्तु का मूल्य कम होता जाता है । लेकिन सरकारी आकड़ों में निरंतर उत्पादन वृद्धि के संकेत मिलने के बावजूद वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में निरंतर वृद्धि होती जा रही है ।

अर्थशास्त्री निरंतर इस बात के दावे  करते हैं कि किसी वस्तु का उत्पादन इतने प्रतिशत बढ़ा, उतने प्रतिशत बढ़ा । लेकिन जब हम उन वस्तुओं को खरीदने के लिए बाजार में जाते हैं तब या तो हमें वह वस्तु ही नहीं मिलती या फिर उसकी कीमतें आवश्यकता से बहुत अधिक है ।

अब प्रश्न यह उठता है कि इस अव्यवस्था का क्या कारण है ? क्या सरकारी कड़े झूठे हैं ? हम आर्थिक रूप से अग्रगामी हैं या पूर्वगामी ? इनका जवाब ‘न’ रहेगा, क्योंकि न तो सरकारी कड़े झूठे हैं और न ही हम आर्थिक रूप से पूर्वगामी हैं । लेकिन इसके पीछे, इस अव्यवस्था के पीछे, मनुष्य की स्वार्थलिप्सा काम कर रही है ।

नैतिक-मूल्यों के क्षरण ने मनुष्य के ‘अहम्’ को प्रभावशाली बना दिया है । मनुष्य आज अपने-आपको पूर्णत: स्वतंत्र समझने लगा है । जहाँ एक ओर राशन की दुकानों पर लंबी-लंबी कतार लगी रहती हैं और एक सीमा तक उसका भी खर्च वहन करने में असमर्थ रहती हैं वहीं दूसरी और काले धन से चोर बाजारी से मुनाफाखोर लोग उत्पादन का एक बड़ा हिस्सा खरीदकर बाजार के लिए अव्यवस्था पैदा करते हैं ।

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इन मुनाफाखोरों में जहाँ निजी-पूँजीपतियों की बहुसंख्या है तो वहीं दूसरी ओर सरकार के विभिन्न उपक्रम भी जाने-अनजाने में इस दिशा में ‘उल्लेखनीय’ भूमिका निभाते हैं । इनके लिए मुनाफा ही प्रधान है समाज के बहु-संख्यक वर्ग का कुपोषण या लाचारी नहीं ।

स्वयं सरकारी क्षेत्र की अनेक नीतियाँ गैर-उत्पादक मदों या अनुत्पादक मदों पर भारी खर्च करती हैं जिससे बहुत-सी चीजों-वस्तुओं की कीमतें प्रभावित होती है और समाज में अव्यवस्था फैल जाती है । इसके अलावा देश के विभिन्न भागों में नियम से अकाल बाढ़ एवं अन्य प्राकृतिक आपदाओं का प्रकोप पड़ता है ।

इनका स्थायी इलाज न कराकर सरकार अल्पकालिक-उपाय करके स्थिति को संभालने की कोशिश करती है। अल्पकालिक-उपायों पर एक बड़ी धन-राशि को व्यय किया जाता है जिसका असर प्रत्यक्ष रूप से वस्तुओं की कीमतों पर पड़ता है ।

वर्तमान समय में मूल्य-वृद्धि की समस्या को रोकना है तो ठोस उपाय किए जाने चाहिए । इसके लिए जनता के भीतर उन सभी भावनाओं का समावेश कराना होगा जिसमें नैतिकता रूपी मूल्य समाहित होते हैं । लेकिन इससे समाज के बहुत थोड़े-से वर्ग का ही हृदय-परिवर्तन संभव है ।

इसका समूल विनाश करने के लिए तो भ्रष्टाचार मिलावट और कालाबाजारी करने वालों पर शासक वर्ग का कठोर नियंत्रण होना चाहिए । साथ ही कठोर दंडों का भी प्रावधान होना चाहिए ताकि भय के चलते समाज से इन समस्याओं को हटाया जा सके ।

लेकिन देखा यह जा रहा है कि सरकार मूल्य-वृद्धि को रोकने के जो उपाय कर रही है, उन्हें पूरी ईमानदारी से कार्यरूप प्रदान नहीं किया जा रहा है । कालाबाजारी घूसखोरी प्रत्यक्षत: हमारे सामने रहती हैं । गोदामों में सैकड़ों टन अनाज हर साल सड़कर बेकार हो जाता है किंतु इस बात को आम जनता से छिपाया जाता है ।

इससे यही स्पष्ट होता है कि प्रशासन स्वयं सुखभोग में इतना लिप्त है कि उसे जनता की परेशानियों-कठिनाईयों से कुछ लेना-देना नहीं है । समस्याओं का समाधान समय रहते करने की आवश्यकता है क्योंकि बिना अपने प्रयत्नों को गति प्रदान किए इनसे उबरा नहीं जा सकता ।

मूल्य-वृद्धि के संदर्भ में जनता को भी अपने हितों को लेकर जागरूक होना पड़ेगा और सरकार से अपने अधिकारों की मांग करनी पड़ेगी, लेकिन इस कार्य को करने में जनता अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा अपने जीवन की न्यूनतम जरूरतों को पूरा करने में लगा दे, उससे यह उम्मीद करना अपने-आप में ही बेमानी है । समाज के केवल यही अग्रणी तत्व ही भावी अराजकता को सार्थक परिवर्तन की ओर ले जा सकते हैं ।


3. महंगाई और आम आदमी । Essay on Inflation and the Common Man for School Students in Hindi Language

मौजूदा दौर में चीजों की बढ़ती कीमतों ने आम मेहनतकश आदमी की कमर ही तोड़ दी है । इस महंगाई ने आम आदमी के जीवन को बोझिल बना दिया है । अर्थशास्त्र के नियमानुसार महंगाई का प्रमुख कारण उपभोक्ता वस्तुओं का अभाव तथा मुद्रास्फीति है । जीवन के लिए आवश्यक वस्तुओं की कमी कई बातों पर निर्भर करती है ।

इनमें से कई तो दैवी होती हैं, जैसे- भारी वर्षा, हिमपात, अल्पवर्षा, अकाल, तूफान, फसलों को रोग लग जाना, विपरीत मौसम, ओले पड़ना आदि आदि । इसके अलावा कृत्रिम अथवा मानव द्वारा की गई काली करतूतों द्वारा भी जीवनोपयोगी वस्तुओं का कृत्रिम अभाव पैदा किया जाता है और फिर उन वस्तुओं को ज्यादा कीमत वसूल करके बेचा जाता है ।

इस प्रकार के काम आमतौर पर व्यापारियों द्वारा किए जाते हैं । वे किसी वस्तु विशेष की जमाखोरी करके बनावटी अभाव पैदा करते हैं और फिर उस वस्तु को जरूरतमंद के हाथों बेचकर मनमाने दाम वसूल करते हैं । महंगाई बढ़ने का एक बड़ा कारण और है कि भारत में उपभोक्ता संगठनों में सक्रियता नहीं है ।

इस देश में न तो ऐसा कोई प्रभावी संगठन है और यदि कभी एकाध आदमी आवाज भी उठाता है तो निर्णय में अनावश्यक देर हो जाती है । यदि हमने जनसंख्या वृद्धि को महंगाई का एक कारण नहीं बताया तो अन्याय  होगा ।

देश की आबादी निरंतर बढ़ती जा रही है । इसके सभी अंकुश कुंद हो चुके हैं । सरकार जोर-जबरदस्ती करने से कतराती है और इन्दिरा गांधी के अनुभव को याद कर लेती है । ऐसी दशा में जमीन को तो बढ़ाना मुश्किल है, दाम का बढ़ाना सान हो जाता है ।

मकानों के किराये में वृद्धि, खाद्य सामग्री के मूल्यों में वृद्धि, कपड़ों के दामों में वृद्धि, सरकार द्वारा उपलब्ध कराई जा रही सुविधाओं: बिजली, पानी, आवास, यातायात, रेल, हवाई जहाज आदि के दामों में वृद्धि का प्रकारान्तर से बहुत बड़ा कारण जनसंख्या में वृद्धि है । इस पर काबू पाने से हर सीमा तक कीमतों पर काबू पाया जा सकता है ।

भारत में महंगाई निरंतर बढ़ती जा रही है । सरकार द्वारा उत्पादित माल में तथा सरकारी उपक्रमों के उत्पादनों में वृद्धि अबाध गति से हो रही है । प्राइवेट सेक्टर के उत्पादनों की कीमतों पर प्रतिबंध लगाने तथा लाभ की सीमा तय करने में सरकार असमर्थ है । देश में भ्रष्टाचार बढ़ता जा रहा है जिसका भरपूर लाभ जमाखोर तथा मुनाफाखोर उठा रहे हैं ।

अर्थशास्त्री कहते हैं कि देश विकास की ओर अग्रसर होता है तो चीजों के भाव स्वत: बढ़ने शुरू हो जाते हैं । इस बात में कहां तक सच्चाई है, इसके जांचने का अधिकार तो अर्थशास्त्रियों को ही है किन्तु जहां तक व्यवहारिकता की बात है, कीमतों के बढ़ने के साथ-साथ उसी अनुपात में रोजगार के अवसरों एवं लोगों की आय में भी वृद्धि होनी चाहिए ।

सरकारी कर्मचारियों के लिए वेतन आयोग की सिफारिशों के अनुसार वेतन और भत्तों में हुई भारी वृद्धि का लाभ उठाकर उत्पादकों ने सभी प्रकार के उत्पादों की कीमतें काफी बढ़ा दीं । सरकार ने महंगाई पर अंकुश लगाने के जो भी प्रयास किए, उनका किसी भी क्षेत्र में कोई असर नहीं हुआ । आगे हालत क्या होगी कुछ कह पाना कठिन है ।


4. महँगाई की समस्या । Essay on the Problem of Inflation for College Students in Hindi Language

आज सारा देश महँगाई की समस्या से पीड़ित है । जिससे पूछिए वही कहता है कि महँगाई से हम बहुत दु:खी है, गुजारा नहीं होता है । चाहे कितना ही धन कमाकर लाएँ तब भी दिन नहीं कटते हैं । स्वतन्त्रता के पश्चात् प्रतिवर्ष महँगाई बढ़ती गई है और अब तो देश में महँगाई से हाहाकार मचा हुआ है ।

अब प्रश्न यह है कि महँगाई क्यों बढ़ती है ? इसके क्या-क्या मूल कारण है ? महँगाई के लिए सबसे प्रबल कारण युद्ध होते हैं । जब दो देशों में युद्ध छिड़ जाता है तब चीजों की आवश्यकता सैनिकों के लिए बढ़ जाती है । सरकार माल खरीदना आरम्भ कर देती है । ऐसी दशा में चीजों के दाम बढ़ जाते हैं ।

यातायात के साधनों की कमी के कारण भी चीजों की महँगाई हो जाती है । कई बार रेलें ठीक समय पर कोयला नहीं पहुँचाती तो नगरों में कोयले का मूल्य बढ़ जाता है । अनाज और वस्त्रों की भी यही स्थिति हो जाती है ।

हड़तालों से भी चीजों के मूल्य बढ़ जाते हैं । महँगाई बढ़ाने के लिए बड़े-बड़े पूँजीपति व्यापारी भी उत्तरदायी होते हैं । क्योंकि ये लोग अनेक प्रकार के पदार्थों का संग्रह कर लेते हैं । इसके बाद माल को बाहर बाजार में लाते ही नहीं है । इससे छोटे-छोटे व्यापारियों को माल मिलना बन्द हो जाता है ।

ऐसी दशा में बाजार में कीमतें चढ़ने लगती हैं । लोग तंग आ जाते हैं । चोरबाजारी और कालाबाजारी का रंग खूब जमने लगता है । सब ओर बेईमान व्यापारी चोरबाजारी से अपना हाथ रंगते हैं । धनी और धनी बन जाते हैं और गरीब जनता भूख से पीड़ित होकर मरती है, बढ़ती हुई महँगाई से पिसती है ।

महँगाई कभी-कभी वस्तुओं के उत्पादन न होने से भी बढ़ जाती है । क्योंकि कच्चा माल नहीं मिलता । ऐसी दशा में साधारण लोगों को दैनिक प्रयोग की साधारण चीजें भी महँगी मिलती हैं । आजकल देश में ऐसी ही दशा है । सरकार महँगाई भत्ता बढ़ाती हैं । व्यापारी कीमतें बढ़ा देते हैं । अब तो तीन बार सरकार रुपये की कीमत भी गिरा चुकी है, तब भी महँगाई कम नहीं हुई है ।

चीजों के दाम पूँजीपति व्यापारी कम ही नहीं होने देते हैं । संभवत: उनकी आँखों के सामने देश की अपेक्षा धन अधिक प्रिय है । पदार्थों के वितरण की व्यवस्था के दोष पूर्ण होने से भी देश में महँगाई बढ़ जाती

है । वस्तुओं के अधिक उपयोग से भी उनका मूल्य बढ़ जाता है और वितरण व्यवस्था बिगड़ जाती है, क्योंकि कई पदार्थों का उपयोग अधिक होता है और उत्पादन कम ।

वनस्पति घी और गाय-भैंस के घी की कीमतें इसीलिए बढ़ती जा रही हैं कि दूध की मूल्य वृद्धि हो जाती है । महँगाई के बढ़ने के प्रमुख कारण हमारे सामने आते हैं, सरकार की प्रत्येक योजना पर पर्याप्त व्यय हो रहा है, भ्रष्ट लोग मध्य में आकर सरकार के धन को हड़प जाते हैं और गरीब लोगों का पैसा मार लेते हैं ।

जनसंख्या वृद्धि के कारण भी महँगाई की समस्या ज्यादा उत्पन्न होती है । क्योंकि कमरतोड़ महँगाई के कारण मजदूर वेतन की माँग करते हैं । व्यापारी लोग दर प्रतिदर कीमतें बढ़ाते रहते हैं और फिर इसको देखकर सरकार भी अपनी दर बढ़ा देती है, बनावटी कमी, व्यापारी वर्ग की मुनाफाखोरी तथा जमाखोरी की प्रवृति भ्रष्टाचारी आदि सब इसके प्रमुख कारण हैं ।

जनता को चाहिए कि उसे जिन वस्तुओं की कीमतें बढ़ती हुई लगे, उन्हें खरीदे ही नहीं । जब खरीद कम होगी तो जमाखोर व्यापारी अपने आप ही चीजों की कीमत करेंगे । आवश्यकताओं को कम कर देने से वस्तुओं की कीमतें स्वत: ही कम हो जाती है ।

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सरकार को चाहिए कि दैनिक आवश्यकता वाली वस्तुओं की कीमतें कमी बढ़ने न दे और न ही इन वस्तुओं का उत्पादन ऐसे लोगों के हाथों में जाने दे, जिन्होंने कीमतें बढ़ाने की शपथ रखा रखी हो । तब ही देश में महँगाई कम हो सकती है और जनता को सुख की साँस लेने की अवसर आ सकता है । जब तक ऐसा नहीं होगा, महँगाई बढ़ती रहेगी और जनता दु:खी होकर विद्रोह करने के लिए तैयार हो जाएगी ।


5.  मूल्यवृद्धि की समस्यामहँगाई | Essay on Inflation for College Students in Hindi Language

वस्तुओं की कीमतों में निरन्तर वृद्धि से एक ऐसी चिन्ताजनक स्थिति उत्पन्न हो गयी है, जिसका विकल्प निकट भविष्य में दिखाई नहीं दे रहा है । स्वतन्त्रता से पूर्व हमारे देश में मूल्य-वृद्धि की इतनी भयावह स्थिति नहीं थी, जित्तनी आज हो गयी है । उस समय जो वस्तुओं की कीमतें थीं । वे सर्वसाधारण के लिए कोई दुःख का कारण नहीं था ।

सभी सहजता के साथ जीवन को आनन्दपूर्वक बिता रहे थे । यद्यपि उस समय भी वस्तुओं की मूल्य-वृद्धि हो रही थी । उससे जीवन-रथ को आगे बढ़ाने में कोई बाधा नहीं दिखाई देती थी । इसके विपरीत आज का जीवन-पथ तो वस्तुओं की कीमतों में लगातार वृद्धि होने से काँटों के समान चुभने वाला हो गया है ।

अब प्रश्न है कि आज वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि होने का कारण क्या है? वस्तुओं की कीमतें इतनी तीव्र गति से क्यों बढ़ रही हैं? अगर इन्हें रोकने के लिए प्रयास किया गया है, तो फिर ये कीमतें क्यों न रुक पा रही हैं? दिन-दूनी रात चौगुनी गति से इस मूल्य-वृद्धि के बढ़ने के आधार और कारण क्या है?

भारतवर्ष में वस्तुओं की बढ़ती हुई कीमतों के विषय में यह तथ्य स्पष्ट हो जाता है कि आजादी के बाद हमारे देश में कीमतों की बेशुमार वृद्धि हुई है । बार-बार सत्ता-परिवर्तन और दलों की विभिन्न सिद्धान्तवादी विचारधाराओं से अर्थव्यवस्था को कोई निश्चित दिशा नहीं मिली है ।

बार-बार सत्ता-परिवर्तन के कारण अर्थव्यवस्था पर बहुत अरार पड़ा है । जो भी दल सत्ता में आया, उसने अपनी-अपनी आर्थिक नीति की लागू किया । यों तो सभी सरकार ने मुद्रास्फीति पर काबू पाने का बराबर प्रयास किया । फिर भी अपेक्षित सफलता किसी भी सरकार को नहीं मिली ।

प्रथम पंचवर्षीय योजना में कृषि उत्पादन में अत्यधिक वृद्धि होने के कारण थोक कीमतों में 184 प्रतिशत कमी हुई । लेकिन इस योजना के अन्त में कीमतों का बढ़ना पुन: जारी हो गया । दूसरी पंचवर्षीय योजना के दौरान कीमतों का बढ़ना रुका नहीं और इनकी वृद्धि 30 प्रतिशत हो गई । तीसरी पंचवर्षीय योजना के अन्तर्गत खाद्यान्न की अत्यधिक वृद्धि के कारण कीमतों की वृद्धि दर लगभग स्थिर थी ।

लेकिन सन् 1962 में चीनी आक्रमण और सन् 1965 में पाकिस्तानी आक्रमण के फलस्वरूप युद्ध-खर्च के साथ-साध अन्य राज्यों में सूखा और बाढ़ की भयंकर स्थिति से खाद्यान्न में भारी कमी के कारण मूल्य दर बढ़ना शुरू हो गयी ।

इसी प्रकार से सन् 1971 में पाकिस्तानी आक्रमण के साथ लगभग एक करोड़ शरणार्थियों के पर्ची पाकिस्तान से आने के कारण सरकार को खर्च पूरा करने के लिए अतिरिक्त कर भी लगाने पड़े थे । इससे वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि दर करनी पड़ी । इस प्रकार समय-समय पर मूल्य स्थिरता के बाद मूल्य-वृद्धि इस देश की नियति वन गई है ।

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वस्तुओं की कीमतों में लगातार वृद्धि होने के कारण अनेक हैं । जनसंख्या का तीव्र गति से बढ़ने के कारण पूर्ति मांग के अनुसार नहीं बढ़ना, मुद्रपूर्ति का लगभग एक प्रतिशत वार्षिक दर से बढ़ते जाना और वस्तु का उत्पादन इस गति से न होने के साथ-साथ रोजगारों में वृद्धि, घाटे की वित्त-व्यवस्था, शहरीकरण की प्रवृत्ति काले धन का दुष्प्रभाव तथा उत्पादन में धीमी वृद्धि आदि के कारण कीमतों में वृद्धि हुई ।

यही नहीं देश में भ्रष्ट व्यवसायी और दोषपूर्ण वितरण व्यवस्था ने कीमतों में निरन्तर वृद्धि की है । कीमतों में निरन्तर वृद्धि के मुख्य कारणों में सर्वप्रथम एक यह भी कारण है कि विज्ञान की विभिन्न प्रकार की उपलब्धियों से आज मानव मन डोल गया है । वह विज्ञान के इस  अनोखे चमत्कार में आ गया है । इनके प्रति लालायित होकर आज मनुष्य में अपनी इच्छाओं को बेहिसाब चढ़ाना शुरू कर दिया है ।

फलत: वस्तु की माँग और पूर्ति उत्पादन से कहीं अधिक होने लगी है । इसलिए माँग की और खपत की तुलना में वस्तु उत्पादन की कमी देखते हुए वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि करने के सिवाय और कोई चारा नहीं रह जाता है । इस तरह महंगाई का दौर हमेशा होता ही रहता है ।

वस्तुओं की कीमतों के बढ़ने रो जीवन का अव्यवस्थित हो जाना स्वाभाविक है । आगे की कोई आर्थिक नीति तय करने में भारी अड़चन होती है । कीमतों की वृद्धि दर और कितनी और कब घट-बढ़ सकती है, इसकी जानकारी प्राप्त करना एक कठिन बात है ।

महंगाई बढ़ने से चारों और से जन-जीवन के अस्त-व्यस्त हो जाता है । इससे परस्पर विश्वास और निर्भरता की भावना समाप्त होकर कटुता का विष बीज बो देती है । अतएव वस्तुओं की बढ़ती हुई कीमतों को स्थिर करने के लिए कोई कारगर कदम उठाना चाहिए । इससे जीवन और समुन्नत और सम्पन्न हो सके ।


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