रेल यात्रा का वर्णन पर निबन्ध | Essay on Train Journey in Hindi!

मैंने अपने मित्र कमल के साथ दिसम्बर के अन्तिम सप्ताह में ‘ हिमपात ’ देखने का विचार बनाया । इसके लिए शिमला जाने का निश्चय किया । इस बार सर्दी भी कड़ाके की पड़ रही थी । उसने विगत दस वर्षों का रिकार्ड तोड़ दिया था ।

ठंड के कारण परिवार के लोगों ने बहुत रोकना चाहा पर हम भी धुन के पक्के थे । किसी की एक न सुनी । हमने सामान तैयार किया और स्टेशन की ओर चल दिए । स्टेशन पर विशेष चहल-पहल दिखाई दी । हम सरीखे बहुत से सैलानी दिखाई दे रहे थे । सर्दी के कारण सबके मुँह इंजन बने हुए थे । टी-स्टाल पर विशेष रौनक थी । लोग वहाँ पर खड़े गरम-गरम चाय का रसास्वादन कर रहे थे । हम दोनों ने भी वहाँ पहुँच कर चाय पी।

ट्रेन छूटने में अभी काफी समय था । कुली ने हमारा सामान ठीक तरह से लगा दिया। फिर भी डिब्बे में भीड़ का सामना करना पड़ा । सर्दी के मौसम में भी पसीने के कण माथे पर उभर आये थे । इस परेशानी के बावजूद मन में विशेष उल्लास था ।

निश्चित समय पर गार्ड ने हरी झण्डी दिखाई । ट्रेन चली और कुछ ही देर में वह अपनी सामान्य गति पकड़ गई । कुछ देर तक हमने गपशप की, फिर पलकें भारी होने लग गईं और हमने सुरक्षित बर्थ पर अपने बिस्तर लगा लिए । कम्बल ओढ़ कर हम दोनों लेट गए। कोई स्टेशन आने पर हम देख लेते ।

रेलगाड़ी अब तीव्र गति से मंजिल की ओर बड़ रही थी । तब पता नहीं हमें कब निद्रा देवी ने आ दबोचा । अगले दिन सुबह एक स्थान पर देखा कि बिजली के तारों के छोटे-छोटे चार बक्से अपने आप खिसकते जा रहे हैं।

पूछने पर पता चला कि, चण्डीगढ़ के सीमेण्ट कारखाने में ऑटोमैटिक क्रन्दन डारा पत्थर ढोये जा रहे हैं । कुछ देर बाद हम कालका जी पहुँच गए । डिब्बे से नीचे उतर कर ठंड से बचने के लिए गरम-गरम चाय पी । सामने काफी दूरी तक ऊँचे-ऊँचे काले पर्वत दिखाई दे रहे थे ।

ADVERTISEMENTS:

कालका जी से हमें शिमला जाने के लिए ट्रेन बदलनी पड़ी । उस ट्रेन के डिब्बे कुछ छोटे थे । हमारा सामान साथ के डिब्बे में रख दिया गया । उस पर नम्बर और हमारे नामों की पर्ची लगा दी गई । हमारी यह छोटी ट्रेन धीरे- धीरे ऊपर की ओर चढ़ रही थी । 30 मिनट बाद ही नीचे की ओर मैदान दिखाई देने लग गए । जिस समय ट्रेन पहाड़ियों पर गोल घूमती थी हमें इंजन के साथ वाले डिब्बे में बैठे हुए यात्री बिल्कुल साफ दिखाई देते थे ।

ADVERTISEMENTS:

धीरे – धीरे सोलन जैसे छोटे-छोटे स्टेशन आते रहे । एकदम गड़गड़ाहट हुइ । सब यात्री डर गए । रेल की बत्तियाँ जल गईं । पता चला वह सुरंग थी । इसी प्रकार की कई सुरंगें आईं । बाद में शिमला का स्टेशन आ गया । एक ओर यह स्टेशन था और दूसरी ओर खाइयाँ, पेड़ व पहाड़ बर्फ से ढँके थे ।

स्टेशन पर उतरते ही हमें ठंड लगने लगी । सूरज का कहीं नामोनिशान नहीं था । हमने गरम कपड़ों से अपने को लाद लिया । फिर कुली की पीठ पर सामान लदवा कर होटल की तलाश में निकले । आसपास के सभी होटल भरे हुए थे । बड़ी मुश्किल से एक होटल में 270 रुपये रोज पर एक कमरा मिला । एक सौ पच्चीस सीढ़ियाँ चढ़ते-चढ़ते हमारी साँस फूल गई । फिर भी ईश्वर को धन्यवाद दिया कि सिर ढकने को स्थान, तो मिला ।

कुछ देर आराम कर और भोजन आदि से निबट कर मालरोड़ पर घूमने के लिए निकले, वहाँ काफी चहल-पहल थी । अगले दो दिनों में जाखू मन्दिर, करोड़ा देवी, शल्पा देवी, संजोली, कुफरा, टूटी कड़ी, चिड़ियाघर, राजभवन और छोटा शिमला आदि घूमे । संध्या का समय हमारा ‘ रिज ‘ पर कटा ।

यहाँ पर घूमने में ठंड होते हुए भी ठंड महसूस नहीं हुई । नव वर्ष की तैयारी में शिमला दुल्हन की तरह सज उठा था । वहाँ से टैक्सी द्वारा दिल्ली लौट आए । हमारी यह छोटी-सी शिमला यात्रा चिरस्मरणीय रहेगी ।

Home››Journey››Train››