कर्त्तव्य पर अनुच्छेद | Paragraph on Duty in Hindi

प्रस्तावना:

कर्त्तव्य का शब्दकोशीय अर्थ ‘करने योग्य’ है । अत: कर्त्तव्य ऐसे कार्यों को कहा जाता है, जिन्हें करने की हम सबसे अपेक्षा की जाती है । अपने कर्त्तव्यों का भली-भाँति निर्वाह करने वाला व्यक्ति समाज में आदर पाता है, जबकि कर्त्तव्यों की अवहेलना करने वाले व्यक्ति को घृणा की नजर से देखा जाता है और कभी-कभी वह राज्य और समाज की सजा का पात्र भी बनता है ।

विभिन्न प्रकार के कर्त्तव्य:

कर्त्तव्यों को अनेक भागों में बांटा जा सकता है । सबसे पहला और महत्त्वपूर्ण कर्त्तव्य स्वयं अपने प्रति होता है । अपने प्रति कर्त्तव्य का अर्थ अपने शरीर, मन और मस्तिष्क को स्वस्थ और बलवान रखना है । जब तक हमारा अपना शरीर ही स्वस्थ नहीं होगा, तब तक हम अन्य किसी प्रकार का कर्त्तव्य पालन करने के लायक ही नहीं रहेंगे ।

अत: बचपन से ही अच्छी आदतों को डालना हमारा पहला कर्त्तव्य है । ठीक समय पर उठना और सोना, शरीर और वातावरण की सफाई रखना, ताजा स्वास्थ्यवर्धक भोजन करना, ध्यान से पढ़ना-लिखना आदि ऐसे ही अनेक कर्त्तव्य निगाए जा सकते है ।

हमारा दूसरा कर्त्तव्य मां-बाप तथा परिवार के प्रति होता है । हमे अपने मां-बाप तथा बड़ों आदर करना चाहिए और उनका कहना मानना चाहिए । अपने भाई-बहनों से प्यार करना चाहिए । स्कूल में अनुशासित जीवन बिताना तथा अध्यापकों को आइघ मानना भी हमारे पुनीत कर्त्तव्य हैं ।

समाज की सेवा करना हमारा अन्य महत्चपूर्ण कर्त्तव्य है । दूसरो के व्यापक हित के लिए अपने सकीर्ण स्वार्थ का त्याग हमारा कर्त्तव्य है । सच्चरित्रता और ईमानदारी ऐसे गुण है, जो हमारा मस्तक गर्व से ऊँचा रखते हैं ।

देश और मानवता के प्रति भी हमारे कर्त्तव्य होते हैं । देश के कानूनों को मानना और देशहित के लिए अपना सबक-कुछ बलिदान कर देना हम सबका पुनीत कर्त्तव्य है । इसी प्रकार मानवता के कल्याण के लिए त्याग भी आवश्यक है ।

हमारे समूचे कर्त्तव्य संकेन्द्रित वृत्तों की भाँति होते है । इसमें केन्द्र का सबसे छोटा और महत्वपूर्ण वृत्त हमारे अपने प्रति कर्त्तव्यों का द्योतक होता है और सबसे बड़ा बाहरी वृत मानवता के प्रति कर्त्तव्यों को निरूपित करता है । इनके बीच में परिवार, समाज और देश के प्रति कर्त्तव्य आते हैं ।

अधिकार और कर्त्तव्य का संबंध:

ADVERTISEMENTS:

कर्त्तव्य के पालन से ही अधिकार प्राप्त होते हैं । ऊपर से देखने पर अधिकार और कर्त्तव्य एकदम भिन्न दीखते हैं, पर वास्तव में ऐसा नहीं है । ये एक ही सिक्के के दो पहलू हैं ।

ADVERTISEMENTS:

ये एक-दूसरे के पूरक होते हैं । एक व्यक्ति का अधिकार दूसरे व्यक्ति का कर्त्तव्य होता है । कर्त्तव्यों का पालन किए बिना अधिकारो की माग करना उचित नहीं है । सच तो यह है कि सामाजिक कर्त्तव्य निभाकर ही हमें अपने अधिकार मिलते हैं ।

कर्त्तव्यों के बीच कोई टकराव नहीं होना चाहिए:

हमें कभी-कभी समझ पड़ता है कि हमारे कर्त्तव्यों के बीच टकराव की स्थिति आ गई है । यह सही नहीं है । हमारे विभिन्न कर्त्तव्यो के बीच किसी प्रकार का टकराव संभव नहीं है । हमें अपने प्रति इस प्रकार कर्त्तव्य निभाना चाहिए, जिससे परिवार के हितों को हानि न पहुँचे ।

इसी प्रकार परिवार के प्रति कर्त्तव्यों से देश और समाज को हानि नहीं पहुँचनी चाहिए । हमें अपने कर्त्तव्यों का इस प्रकार पालन करना चाहिए, जिससे समाज और देश का हित हो सके । परिवार के हित के लिए निजी हितों का त्याग, नगर के हित के लिए परिवार के हितो का बलिदान, देश के हितों की रक्षा के लिए नगर के हितों का त्याग ही सका कर्त्तव्यपालन है । देशभक्ति का उद्देश्य भी समय रूप से मानवता का कल्याण और उत्थान होना चाहिए ।

उपसंहार:

अपने कर्त्तव्यों का पालन करते समय हमें किसी प्रकार का घमण्ड नहीं दिखाना चाहिए और अपने मन मे किसी पर अहसान करने की भावना पैदा नहीं होनी चाहिए । हम जो भी सेवा या त्याग करें, उसे अपना कर्त्तव्यपालन समझ कर करना चाहिए । कर्त्तव्यपालन ही हमारे समक्ष सबसे बडा आदर्श होना चाहिये ।

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