चिड़ियाघर का भ्रमण पर अनुच्छेद | Paragraph on A Visit to a Zoo in Hindi

प्रस्तावना:

चिड़ियाघर ऐसे स्थान को कहते हैं, जहाँ जीवित पशु पक्षी और जंगली जानवर अपने प्राकृतिक वातावरण में दर्शनीय रखे जाते हैं । चिडियाघर में पशुओं और पक्षियों को देख ऑखें जुडा जाती हैं । प्राकृतिक प्रेमियों के लिए तो यह विशेष आकर्षण स्थल होता है । बच्चों के लिए यह विशेष मनोरंजक और ज्ञानवर्धक होता है ।

कोलकाता का चिड़ियाघर:

मेरे मन में बहुत दिनो से किसी बड़े चिडियाघर के भ्रमण की लालसा थी । पिछले वर्ष मुझे अपने पिताजी के साथ कोलकाता जाने का सुअवसर मिल गया । कोलकाता पहुंचकर सबसे पहले मैंने चिडियाघर देखने की इच्छा प्रकट की । मेरे पिताजी मान गए और हम चिड़ियाघर देखने निकल पडे । चिड़ियाघर पहुंच कर हमने टिकट ली और चिड़ियाघर के भीतर प्रवेश किया ।

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कोलकता का चिडियाघर बड़ा विशाल है । यह कई एकड़ भूमि पर फैला हुआ है । चिडियाघर के चारों ओर ऊंचे लोहे के सीखचों की चाहरदीवारी है । बाहर से यह एक विशाल उद्यान-सा लगता है । चिड़ियाघर के अन्दर घुसते ही मुझे लगा जैसे हम एक दूसरी ही दुनिया में आ गए हैं ।

फाटक से भीतर घुसते ही उसमें एक बड़ा तालाब है । तालाब सफेद संगमरमर का बना हुआ है । इसमें लबालब पानी भरा था । इसमें हंस, बगुले, बत्तख जैसे पक्षी तैर रहे थे । लम्बी गर्दन और नुकीली लम्बी चोंचों वाले सारस एक टाँग पर किनारे खड़े थे । चिड़ियाघर में कई अन्य तालाब भी थे, जिनमे तरह-तरह की मछलियाँ, कछुए आदि थे ।

एक तालाब में कई मगरमच्छ और घडियाल थे । ऊदबिलाव और दरियाई घोड़े जैसे अन्य पानी के जीव जन्तु इन तालाबों में पाले गये थे । वे विभिन्न रगों के तथा अलग-अलग आकार के थे । उनमे से कुछ भारत मे पाये जाते है तथा कुछ विदेशों से मंगवाकर रखे गए थे ।

हिरण और बन्दर:

तालाबों के सामने घास के लम्बे-चौड़े मैदान थे । इनमें कुछ हिरण थे । हमारे निकट पहुंचने पर हिरण चौकड़ी भर कर भागने लगे । भागते हिरण देखकर मुझे बड़ा कौतुहल हुआ । कुछ आगे बढ़ने पर एक बड़े जंगल से घिरा बाड़ा दिखा । इनमें तरह-तरह के बन्दर और लंगूर थे । वे हाथों से डाल पकड़कर इधर-उधर कल्लोल कर रहे थे । मैंने उनकी ओर कुछ भुने चने और मूंगफलियाँ फेंकीं । वे बड़े चाव से उन्हें खाने लगे ।

पक्षी:

आगे बढ़ने पर हमें पक्षियों के बाड़े दिखे । बड़े-बड़े पिंजडों में ये रखे गये थे । तरह-तरह के बड़े-छोटे और रग-बिरंगे पक्षी देखकर मैं बड़ा आनन्दित हुआ । तरह-तरह के तोते, कबूतर, मोर, बाज, गिद्ध, चील, गौरेया आदि न जाने कितने प्रकार के पक्षी थे ।

हर किस्म के पक्षी अलग-अलग पिंजडों मे थे । मै अनेक पक्षियों के नाम नहीं जानता था । वे एक कोने से दूसरे कोने तक पिंजडों में उड़ते बड़े मोहक लग रहे थे । एक पिंजडे में सफेद कौवे को देखकर मुझे बड़ा अचम्भा हुआ ।

जंगली जानवर:

अब हम सिहो के बाडे के निकट पहुंचे । वे खुले स्थान में थे जिसके आगे लोहे के सखिंचे थे और उसके चारों ओर गहरी और चौड़ी खाई थी । जिसमें पानी भरा हुआ था । मुझे सिह की दहाड सुनकर बड़ा डर लगा । उस बाड़े में एक सिंह, एक सिंहनी व दो उनके बच्चे थे ।

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वे बड़े सूखार दिखाई देते थे । आगे बढ़ने पर हमे बंगाल के मशहूर चीतो का बाड़ा दिखा । चीतों के बदन पर काली और पीली धारियाँ थीं । इसके बाद हमे तेदुवे दिखाई दिये । उनके शरीर पर काले चकते थे । एक तेदुआ पेड़ की एक शाखा पर आराम से बैठा हमारी ओर देख रहा था ।

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थोड़ी दूर पर हमें भेडियें और लकड़बग्घे भी दिखे । कुछ दूरी पर एक बड़ा बाड़ा दिखा । पहली नजर में इसमें कोई जानवर नहीं दिखा, पर ध्यान से देखने पर हमने पाया उसमें दो गैंडे कीचड़ में खड़े कल्लोल कर रहे थे । सम्भवत: वे नर और मादा थे और एक-दूसरे को प्यार कर रहे थे ।

उनका एक-दूसरे पर थूथन से वार करना और कीचड़ उछालना बड़ा मोहक लग रहा था । आगे एक बाड़े में अनेक जबरे थे । उनकी चमकीली काली धारियां और माँसल देह बड़ी मनोहारी थी । कुछ दूर पर हमें शुतुरमुर्ग दिखाई दिए ।

साँप घर:

कोलकता के चिड़ियाघर में एक साँप घर भी है । सांपों को शीशो की दीवारों के बडे पिटारों में रखा गया है । अनेक प्रकार के छोटे-बडे साँप भी वहां थे । एक ऊगली से भी पतला लगभग डेढ़ फीट लम्बा एकदम हरा सौंप था ।

पूछने पर पता लगा कि वह बहुत ही जहरीला होता है । एक कुंआ बना हुआ था । उसमे दो अजगर पड़े थे । ये अजगर बहुत मोटे और लम्बे थे तथा दोनों एक-दूसरे से गुथे कुँडली मारे बैठे थे । ध्यान से देखने पर ही समझ में आया कि उसमें दो अजगर थे ।

उपसंहार:

हम लोगों ने चिड़ियाघर में पाँच से अधिक घटे बिता दिये । अभी तक हम सारा चिडियाघर नहीं देख पाये थे । इन अनेक प्रकार के पशु और पक्षियों की याद लिए हम वापस लौट पड़े ।

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