पोस्टकार्ड की आत्मकथा पर अनुच्छेद | Paragraph on An Autobiography of a Postcard in Hindi

प्रस्तावना:

ए मेरे प्यारे राहगीर, देखो मैं यही कूड़े की टोकरी में पड़ा अपने भाग्य को कोस रहा हू । अब कोई भी परवाह नहीं करता, क्योंकि मेरी जरूरत समाप्त हो गई है । इतना ही नहीं, मुझे आने वाली मुसीबतों से भी बड़ा डर लग रहा है ।

शायद मेरे बदन के टुकड़े-टुकड़े करके नाले में फेंक दिए जाये या फिर आग में जला कर मुझे भस्म कर दिया जाये, लेकिन पूरी तरह नष्ट होने से पहले मैं तुम्हें अपनी कहानी सुना देना चाहता हूँ । तुम मुझे एक दयावान व्यक्ति दिखाई देते हो, क्योंकि तुम पहले आदमी हो, जो मेरी पुकार सुनकर रुके हो कुछ देर रुक कर मेरी दर्दभरी कहानी सुनो । अरे तुमने मुझे अभी तक नहीं पहचाना । मैं तुम्हारा चिरपरिचित पोस्टकार्ड हूँ ।

मेरा जन्म और अस्तित्व:

मेरा जन्म कागज के एक बड़े कारखाने में कई वर्ष पहले हुआ था । मेरा आकार तब बहुत बड़ा था । अपने अनेक भाई-बहनों के साथ मुझे बडल में बाँध कर सरकार को बेच दिया गया । सरकार के कर्मचारियों ने मुझे ट्रक में लादकर एक सरकारी छापाखाने में पहुंचा दिया । कइ महीनों तक मुझे एक अंधेरे गोदाम में बद रखा गया । एक दिन गोदाम का दरवाजा खुला ।

रोशनी की किरणे देख मुझे बडा हर्ष हुआ । अब मुझे अन्य भाई-बहनों के साथ बड़ी-बड़ी मशीनों से गुजराना पड़ा, जहाँ हमारी कटाई-छंटाई हुई । इसके बाद मुझ पर छपाई की गई । तीन सिंहों वाले सरकारी चित्र को अंकित करके मेरी पीठ पर हिन्दी और अंग्रेजी में ‘केवल पता’ छापा गया और पते के लिए तीन लाइनें थीं ।

ADVERTISEMENTS:

पिन कोड के लिए अलग-से छोटी लाइन थी । मेरी पीठ के ठीक बीच में एक सीधी रेखा भी छापी गई । छापाखाने से निकाल कर 20-20 के बंडल, बनाये गये । एक अन्य अधिकारी ने जाँच की और फिर कागज की पट्टी से मुझे लपेट कर अलग रख दिया गया ।

मेरे ऊपर अनेक बंडल लाद दिये गये । भार से मैं पिसने लगा, लेकिन अपने नए रूप पर प्रसन्न भी था । ठाब बंडलों को उठाकर एक लोहे के मजबूत कमरे में हम सबको बन्द कर दिया गया ।

डाकखाने में पहुंचना:

कई महीनों तक मैं रंग रूप में बन्द रहा । एक दिन कई बण्डलों को निकाल कर एक बडे ट्रक में गिन कर बन्द कर दिया गया । उनमें से एक मैं भी था । ट्रैक रेल की यात्रा करके चेन्नई पहुंचा । वहीं के बड़े डाक घर में फिर हम सबको ट्रैक से निकाल कर गिना गया और एक लोहे की अल्मारी में बन्द कर दिया गया ।

धीरे-धीरे मेरे ऊपर का बोझ कम होता रहा । एक दिन मैं भी वही अपने भाई-बहनो के साथ निकाला गया और डाकखाने के टिकट बेचने वाले को सौंप दिया गया । उसने बड़े प्रेम से हम सबको गिना और धूल आदि झाड कर अपने छोटे से बक्से में रख लिया । बाहर की हवा मे मैं रोमांचित हो उठा ।

ग्राहक के साथ बेचा गया:

काउन्टर पर ग्राहक आते और मेरे साथियों को लेकर चले जाते । उसी दिन तीसरे पहर एक ग्राहक आया और उसने एक रुपया पचास पैसे दिये । काउन्टर क्लर्क के हाथ में आ गया । उसने मुझे उस ग्राहक के हाथ में पकड़ा दिया ।

ADVERTISEMENTS:

मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि वह व्यक्ति मेरा क्या करेगा 7 हाथ में मुझे लिए वह व्यक्ति एक दुकान पर पहुचा और उसने मुझे दुकान के मालिक को सौंप दिया । मैं अब भी अन्नान था कि मेरा भविष्य क्या होगा ।

गंतव्य स्थान की यात्रा:

दुकानदार ने एक कलम लेकर मेरी छाती पर कुछ लिखा और पलट कर उस पर पता लिख दिया । अब मुझे ज्ञात हुआ कि मुझे चेन्नई से दिल्ली जाना पडेगा । इतनी दूर की यात्रा मैं तुच्छ-सी वस्तु कैसे कर पाऊँगा मैं इसी पशोपश में था कि उसने फिर उसी व्यक्ति को मुझे पकड़ा दिया और लैटर बॉक्स में डाल दिया, जो लाल रंग से पुता हुआ था ।

यही अपने साथियों को देखकर मैं बड़ा हर्षित हुआ । जब मैंने उनसे हाल-चाल पूछा तो ज्ञात हुआ कि वे विभिन्न शहरों में जाने वाले थे । दिल्ली जाने वाले कुछ साथियों से मिलकर मेरा डर निकल गया । कुछ देर बाद एक आदमी ने वह बक्सा खोला और हम सबको एक थैले में भरकर स्टेशन ले आया ।

ADVERTISEMENTS:

वही हम सबको गंतव्य स्थानों के अनुसार अलग-अलग शैलों मे बन्द कर दिया गया । मैं जिस थैले में था उसमें सभी यात्री दिल्ली जाने वाले थे । कुछ देर बाद मुझे रेल के डिबे में सवार करवा दिया गया और दो दिन के बाद मैं दिल्ली पहुच गया ।

दिल्ली में ठीक व्यक्ति के पास पहुंचना:

दिल्ली पहुंचकर कई बार छंटाई हुई और अन्त में एक डाकियें के हाथ मुझे सौंप दिया गया । डाकिये ने लाकर मुझे उस व्यक्ति को सौंप दिया, जिसका मुझ पर नाम लिखा था । वह व्यक्ति मुझे देखकर बडा खुश हुआ । मुझे लगा कि अब मेरे दिन फिर गए हैं और मैं यही आराम की जिन्दगी बिताऊंगा ।

मुझ पर लिखे सन्देश को पढकर सारा परिवार बडा प्रसन्न हुआ, लेकिन थोड़ी ही देर बाद मुझे एक बेकार की वस्तु की भांति कमरे के एक कोने में पटक दिया गया । मुझ पर धूल पडती रही और किसी ने मुझ पर ध्यान नहीं दिया ।

उपसंहार:

प्रातःकाल झाड़ू से बुहार कर मुझे कचरे की टोकरी में डाल दिया गया । मेरा उपयोग शायद अब समाप्त हो गया था । तब से मैं यहीं पड़ा अपने भाग्य पर रो रहा हू और भविष्य के प्रति बड़ा आतंकित हूँ । मेरे प्यारे दोस्त ! यह संसार कितना स्वार्थी है ।

ADVERTISEMENTS:

अपना मतलब निकल जाने के बाद आदमी सारे अहसान भूल जाता है । क्या तुम मुझ पर दया करके मुझे भविष्य की गर्दिश से बचाओगे ? लो तुम भी मेरी करुण दास्तान सुनकर चल दिये । हे ईश्वर मुझे जल्दी ही उठा ले । मैं इस रचार्थी ससार से अब बिल्कुल ऊब गया हूँ ।

Home››Paragraphs››