प्रौढ़ शिक्षा पर अनुच्छेद | Paragraph on Adult Education in Hindi

प्रस्तावना:

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21 वर्ष या उससे अधिक आयु का व्यक्ति प्रौढ़ कहलाता है । अत: प्रौढ़ शिक्षा का अर्थ 21 वर्ष से अधिक आयु के प्रौढों को शिक्षा देना है ।

प्रौढ़ शिक्षा का प्रारम्भ:

इस बात को मानकर किया गया है कि कोई भी व्यक्ति तब तक पूरा सुखी नहीं हो सकता, जब तक कि उसे प्रारम्भिक शिक्षा का ज्ञान न हो । शिक्षा से बुद्धि का विकास होता है । ज्ञान-चक्षुओं के खुले बिना कोई व्यक्ति कैसे पूर्ण सुखी हो सकता है ।

बच्चों और प्रौढ़ों की शिक्षा का अन्तर:

बच्चों को पढ़ाने की कला और प्रौढों को शिक्षा देने की विधि में बहुत अन्तर होता है । बच्चे आमतोर पर पढ़ाई करने के अलावा और कुछ नहीं करते । उनका मुख्य काम स्कूल जाना और शिक्षा ग्रहण करना होता है । लेकिन प्रौढों को अधिकाँशत: रोटी-रोजी भी कमानी पड़ती है । अत: उनके मामले में शिक्षा का महत्त्व गौण होता है ।

निरक्षरता और अल्प-साक्षारता:

शिक्षा के लिए प्रौढों को प्रात: दो वर्गों में बाट दिया जाता है । एक वर्ग उन लोगों का होता है जो बिल्कुल निरक्षर अथवा अंगूठा छाप होते हैं और दूसरे वर्ग में वे लोग रखे जाते हैं, जिन्हे थोडा-बहुत अक्षर लान होता है ।

प्रौढ़ शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य भारत के हर व्यक्ति को साक्षर बनाकर उसे पढ़ने, लिखने और अंकगणित का व्यवहारिक ज्ञान प्रदान करना है । संसार के किसी भी प्रजातान्त्रिक देश में रहने वाले व्यक्ति के लिए इतना ज्ञान अनिवार्य होना चाहिए ।

इसका उद्देश्य:

प्रौढ़ शिक्षा का उद्देश्य निरक्षर व्यक्तियों तथा अल्प-साक्षर व्यक्तियों की पढ़ाई को आगे बढ़ाकर उन्हें ज्ञान के मार्ग पर बढ़ाना है । उन्हें नागरिक के रूप में उनके अधिकार और कर्त्तव्य बताये जाते हैं । उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे इस प्रकार प्राप्त ज्ञान को अपने उन साथियों के बीच भी प्रसारित करें, जो उनसे कम जानकारी रखते है ।

न्यनूतम सम्भावनाएं:

प्रौढ़ शिक्षा प्राप्त करने के बाद व्यक्ति से कम-से-कम इतनी आशा अवश्य की जाती है कि वह पत्र लिख और पढ़ सके, समाचारपत्र पढ़ सके और संसार की सामयिक घटनाओं से अवगत रहे ।

इंग्लैंड में प्रौढ़ शिक्षा का प्रारम्भ:

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प्रौढ़ शिक्षा का प्रारम्भ इंग्लैड में हुआ । प्रारम्भ मे इन स्कूलों में केवल रविवार अर्थात् छुट्‌टी के दिन ही कक्षायें लगती थी । बाद में इनमे प्रतिदिन पढ़ाई होने लगी ।

भारत में प्रौढ़ शिक्षा का श्रीगणेश:

भारत में प्रौढ़ शिक्षा का शुभारम्भ समाज सेवी संस्थाओं द्वारा मुम्बई में किया गया था । यह काम रात्रि स्कूलों में किया जाता था । ज्यों-ज्यों इनमें शिक्षार्थियों की संख्या बढ़ती गई, अधिकाधिक स्कूल खोले जाने लगे और प्रौढो की सुविधानुसार इनके समय में परिवर्तन भी किए गए ।

निःशुल्क शिक्षा:

साधारणतौर पर प्रौढ़ शिक्षा का समूचा काम बिना किसी फीस के किया जाता है । इसे समाज-सेवा की भावना से किया जाता है । आज इसके महत्त्व को सभी ने स्वीकार कर लिया है । राज्य सरकारे प्रौढ़ पाठशाला को वित्तीय सहायता और सरक्षण देती हैं । केन्द्र सरकार ने भी बड़े पैमाने पर प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम के लिए राज्य सरकारसे को पर्याप्त धनराशि प्रदान की है ।

पुनीत कार्य:

प्रौढ़ शिक्षा बड़ा पुनीत कार्य है, जिसमें विद्यार्थी भी अपना सक्रिय योगदान दे सकते हैं । यह एक ऐसा कार्य है, जिसमें हर व्यक्ति अपने ज्ञान को ऐसे व्यक्ति को प्रदान कर सकता है, जो उससे कम जानता है ।

उपसंहार:

यह बड़े हर्ष का विषय है कि देश के विभिन्न भागों में प्रौढ़ शिक्षा को अधिकाधिक महत्त्व दिया जाने लगा है और नई-नई प्रौढ़ शिक्षा समितियाँ स्थापित हो रही हैं । वह दिन दूर नहीं दीखता जब भारत से निरक्षरता पूरे तौर पर समाप्त हो जायेगी ।

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