अब्राहम लिंकन पर निबंध | Essay on Abraham Lincoln in Hindi

जिन्दगी ने कर लिया स्वीकार अब तो पथ यही है ।

यह शिला पिघले न पिघले रास्ता नम हो चला है । ।

क्यों करूं आकाश से मनुहार, अब तो पथ यही है ।

यह पहाड़ी पांव क्या चढ़ते?

मेरे इरादों ने चढ़ी ।।

{दुष्यन्त कुमार}

1. प्रस्तावना:

अब्राहम लिंकन का सम्पूर्ण जीवन प्रत्येक मनुष्य को इसी बात की महान् प्रेरणा देता है कि प्रतिकूल परिस्थितियों में ही प्रतिभा से प्रसून प्रस्फुटित होते हैं । यदि दृढ़ संकल्प हो, अदम्य इच्छाशक्ति हो, कर्तव्य कर्म में ईमानदारी व निष्ठा हो, सच्ची लगन हो और महत्त्वाकांक्षा ऊंची हो, किन्तु सुविधा और आवश्यकताओं का अभाव लक्ष्य पूर्ति के मार्ग में उपस्थित हो, तो भी अपने लक्ष्य को जीवन में पाया जा सकता है । असफलताओं को सफलता में परिवर्तित करना, रास्ते के कांटों को फूल बनाना, यह तो स्वयं मनुष्य के हाथ में है ।

2. जीवन चित्रण:

अब्राहम लिंकन का जन्म सन् 1809 में नॉब क्रिक में अमेरिका के कंचुकी प्रान्त में हुआ था । उनके बचपन का नाम एब था । लिंकन के पिता थॉमस लिंकन एक निर्धन व्यक्ति थे । उनका परिवार बड़ा था । जीतोड़ मेहनत करने के बाद भी वे अपने परिवार की आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर पाते थे । वे अपने बच्चों के लिए अच्छा भोजन, अच्छे कपड़े तथा अच्छी किताबें नहीं जुटा पाते थे ।

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उनके पिता दयालु और परोपकार मनोवृत्ति के थे । अत: सभी पड़ोसी उनको चाहते थे । लिंकन के पिता को घोड़ों की नस्ल के बारे में अच्छी परख थी । जब भी उनके परिचितों को घोड़े खरीदने की इच्छा होती थी, वे थॉमस लिंकन की सहायता अवश्य लेते थे ।

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कुछ समय बाद लिंकन का परिवार पिजन क्रिक चला गया । वहां पर बालक अब्राहम ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा हेतु 11 वर्ष की अवस्था में विद्यालय में प्रवेश लिया । शेष सभी बच्चों की अवस्था प्रवेश के समय 6 वर्ष की थी । अब्राहम ने अपनी पढ़ाई अत्यन्त मेहनत व लगन से जारी रखी और वह जल्द ही अगली कक्षाओं में पहुंच गये । उनके मित्र खेलने में अधिक रुचि रखते थे, जबकि अब्राहम की पढ़ने व लिखने में अधिक रुचि रही थी ।

बचपन से ही उन्हें निर्धन परिवार का होने के कारण पढ़ाई के साथ-साथ अपने पिता के साथ काम पर जाना होता था । अब्राहम के पास कॉपी, पेंसिल, किताबों एवं लैम्प की भी व्यवस्था नहीं थी । वह रात को स्ट्रीट लैम्प की रोशनी में पढ़ा करते थे तथा पेंसिल की जगह कोयले का प्रयोग करते थे और कॉपी के स्थान पर लकड़ी पर लिखते थे ।

कुछ समय के लिए उन्हें अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी; क्योंकि अब्राहम और उनके पिता को खेत बढ़ाने के लिए पेड़ों को काटना पड़ता था और इस कार्य में देर शाम लौटना पड़ता था । किन्तु अब्राहम पढ़ने में इतनी थकान के बाद कोई आलस्य नहीं करते थे । वह पढ़ने के लिए किताबें अपने दोस्तों से लिया करते थे । अपने दोस्तों के साथ वह किसी ऊंचे टीले पर जा बैठते और तेज आवाज में उन्हें ऐसे सम्बोधित करते, मानो वे उनके नेता हों ।

अब्राहम के पिता को अपने बेटे का ऐसा करना पसन्द नहीं था । वे कहा करते थे- ”देखो, एब! ऐसा कर तुम अपना समय बर्बाद कर रहे हो । हम गरीब हैं और हमारा कार्यक्षेत्र यही है । हमारे लिए तुम्हारी यह सब बातें काम की नहीं हैं ।” इस पर अब्राहम कहते- ”मैं एक दिन अमेरिका का राष्ट्रपति अवश्य बनूंगा ।”

बालक अब्राहम की योग्यता व प्रतिभा से पिजन क्रिक के सभी लोग परिचित थे । वह लोगों से अच्छी-अच्छी किताबें लेते और उसे पढ़कर कृतज्ञता सहित वापस कर देते थे और उस किताब के महत्त्वपूर्ण तथ्यों को नोट कर लेते थे तथा पढ़ी गयी किताब पर अच्छा-सा कवर भी लगा देते थे ।

एक बार की बात है । अब्राहम ने अपने किसी पड़ोसी से ”द लाइफ ऑफ जार्ज वाशिंगटन” नामक पुस्तक पढ़ने के लिए ली थी । उस किताब को पढ़ते-पढ़ते एक दिन वे अपने घर की खिड़की के पास छोड़ आये । आधी रात को जब बर्फबारी हुई, तो उसकी किताब का कवर पूरी तरह से भीग गया था । अब्राहम को किताब की ऐसी दशा देखकर अत्यन्त दुःख हुआ ।

ऐसी हालत में किताब लौटाते समय पड़ोसी से कहा कि वह तो उन्हें नयी किताब खरीदकर देना चाहता है, किन्तु उसके पास उतने पैसे नहीं हैं । वह धीरे-धीरे पैसे जमा कर किताब लौटा देगा । पड़ोसी ने उनकी इस भावना को देखकर उनसे किताब के मूल्य के एवज में मात्र 3 दिन काम करने हेतु कहा । 3 दिन तक अब्राहम ने मेहनत की । वह अपराधमुक्त महसूस कर रहे थे ।

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इस तरह अब्राहम लिंकन ने अपनी शिक्षा पूर्ण करने के उपरान्त सर्वप्रथम स्थानीय कौंसिल के पद हेतु चुनाव लड़े थे, जिसमें वह असफल रहे । उसके बाद उन्होंने कई चुनाव लड़े । चुनाव में हारने के बाद कोई और होता, तो उसने यह रास्ता छोड़ दिया होता, किन्तु अब्राहम तो थे धुन के पक्के । उन्होंने 1861 का चुनाव जिस पार्टी से लड़ा था, उसमें उन्हें जीत हासिल हुई और इस तरह वह बन गये मध्य अमेरिका के 16वें राष्ट्रपति ।

राष्ट्रपति के पद पर रहते हुए लिंकन ने प्रजातान्त्रिक व्यवस्था को शासन-प्रणाली की प्रक्रिया के रूप में अपनाया । प्रजातन्त्र के सम्बन्ध में उन्होंने अपना सर्वश्रेष्ठ विचार सम्पूर्ण विश्व को यह दिया- ”प्रजातन्त्र जनता का, जनता के लिए, जनता द्वारा चलाया गया शासन है ।” आज अमेरिका विश्व के सबसे बड़े लोकतान्त्रिक देशों में से एक है । वहां बिना किसी भेदभाव के विश्व के सभी लोगों को वहां के विकास प्रक्रिया में भागीदार होने का अवसर प्रदान किया जाता है ।

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इसके पूर्व अमेरिका में रंगभेद की नीति चलती थी । साथ ही नस्ल एवं रंग के भेदभाव के आधार पर दासप्रथा भी प्रचलित थी । लिंकन ने इस प्रथा का पुरजोर विरोध किया । उनकी इस लोकतान्त्रिक मानसिकता को वहां के रूढ़िग्रस्त अधिनायकवादी ताकतों ने कभी नहीं स्वीकारा ।

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वे 1861 से 1865 तक अमेरिका के राष्ट्रपति रहे । इस पद पर रहते हुए उन्होंने अमेरिका को एक शक्तिशाली, प्रजातान्त्रिक राष्ट्र होने की पहचान दी । उनके आदर्श थे-आज का काम कल पर मत डालो । क्या पता कल आये या न आये ।

यह मानकर चलो कि इस संसार में कभी-न-कभी सच्चा न्याय अवश्य मिलता है । इस बात पर विश्वास करके अपने कर्तव्य-करर्म पर लगे रहो । अपने देश का अच्छा नागरिक बनना हर देशवासी का कर्तव्य होना चाहिए । 1865 में जॉन बूथ नामक व्यक्ति ने उनकी हत्या कर दी ।

3. उपसंहार:

अब्राहम लिंकन एक अच्छे शासक ही नहीं, अपितु एक अच्छे व्यक्ति भी थे । आर्थिक अभाव और असफलता पाकर भी व्यक्ति किस तरह अपने लक्ष्य को पा सकता है, वे इसके जीवन्त प्रतीक थे । उन्होंने अपने राष्ट्र की एकता और संगठन शक्ति को बनाये रखने के लिए कोई समझौता नहीं किया ।

यहां तक कि उत्तर तथा दक्षिण अमेरिका को अपने जीते-जी कभी अलग नहीं होने दिया । अपने सिद्धान्तों पर अडिग रहकर अपने उच्चादर्शों से सन्देश देते हुए वे इस संसार को अलविदा कह गये।

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