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जनसंख्या: समस्या एवं समाधान पर निबंध | Essay on Population : Problems and Solution in Hindi!

हमारे देश में अनेकों जटिल समस्याएँ हैं जो देश के विकास में अवरोध उत्पन्न करती हैं । जनसंख्या वृदधि भी देश की इन्हीं जटिल समस्याओं में से एक है । संपूर्ण विश्व में चीन के पश्चात् भारत सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है ।

परंतु जिस गति से हमारी जनसंख्या बढ़ रही है उसे देखते हुए वह दिन दूर नहीं जब यह चीन से भी अधिक हो जाएगी । हमारी जनसंख्या वृदधि की दर का इसी से अनुमान लगाया जा सकता है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् मात्र पाँच दशकों में यह 33 करोड़ से 100 करोड़ के आँकड़े को पार कर गई ह ।

देश में जनसंख्या वृद्‌धि के अनेकों कारण हैं । सर्वप्रथम यहाँ की जलवायु प्रजनन के लिए अधिक अनुकूल है । इसके अतिरिक्त निर्धनता, अशिक्षा, रूढ़िवादिता तथा संकीर्ण विचार आदि भी जनसंख्या वृदधि के अन्य कारण हैं । देश में बाल-विवाह की परंपरा प्राचीन काल से थी जो आज भी गाँवों में विद्‌यमान है जिसके फलस्वरूप भी अधिक बच्चे पैदा हो जाते हैं ।

शिक्षा का अभाव भी जनसंख्या वृद्‌धि का एक प्रमुख कारण है । परिवार नियोजन के महत्व को अज्ञानतावश लोग समझ नहीं पाते हैं । इसके अतिरिक्त पुरुष समाज की प्रधानता होने के कारण लोग लड़के की चाह में कई संतानें उत्पन्न कर लेते हैं । परन्तु इसके पश्चात् उनका उचित भरण-पोषण करने की सामर्थ्य न होने पर निर्धनता व कष्टमय जीवन व्यतीत करते हैं ।

देश ने चिकित्सा के क्षेत्र में अपार सफलताएँ अर्जित की हैं जिसके फलस्वरूप जन्मदर की वृदधि के साथ ही साथ मृत्युदर में कमी आई है । कुष्ठ, तपेदिक व कैंसर जैसे असाध्य रोगों का इलाज संभव हुआ है जिसके कारण भी जनसंख्या अनियंत्रित गति से बढ़ रही है । इसके अतिरिक्त जनसंख्या में बढ़ोतरी का मूल कारण है अशिक्षा और निर्धनता ।

आँकड़े बताते हैं कि जिन राज्यों में शिक्षा-स्तर बढ़ा है और निर्धनता घटी है वहाँ जनसंख्या की वृद्‌धि दर में भी ह्रास हुआ है । बिहार, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश आदि प्रांतों में जनसंख्या वृद्‌धि दर सबसे अधिक है क्योंकि इन प्रांतों में समाज की धीमी तरक्की हुई है ।

देश में जनसंख्या वृद्‌धि की समस्या आज अत्यंत भयावह स्थिति में है जिसके फलस्वरूप देश को अनेक प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है । देश में उपलब्ध संसाधनों की तुलना में जनसंख्या अधिक होने का दुष्परिणाम यह है कि स्वतंत्रता के पाँच दशकों बाद भी लगभग 40 प्रतिशत जनसंख्या गरीबी रेखा के नीचे जीवन-यापन कर रही है ।

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इन लोगों को अपनी आम भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है । हमने निस्संदेह नाभिकीय शक्तियाँ हासिल कर ली हैं परंतु दुर्भाग्य की बात है कि आज भी करोड़ों लोग निरक्षर हैं । देश में बहुत से बच्चे कुपोषण के शिकार हैं जिससे अनुमान लगाया जा सकता है कि एक स्वस्थ भारत की हमारी परिकल्पना को साकार रूप देना कितना दुष्कर कार्य है ।

बढ़ती हुई जनसंख्या पर अंकुश लगाना देश के चहुमुखी त्रिकास के लिए अत्यंत आवश्यक है । यदि इस दिशा में सार्थक कदम नहीं उठाए गए तो वह दिन दूर नहीं जब स्थिति हमारे नियत्रंण से दूर हो जाएगी । सर्वप्रथम यह आवश्यक है कि हम परिवार-नियोजन के कार्यक्रमों को और विस्तृत रूप दें ।

जनसंख्या वृदधि की रोकथाम के लिए केवल प्रशासनिक स्तर पर ही नहीं अपितु सामाजिक, धार्मिक एवं व्यक्तिगत स्तर पर प्रयास आवश्यक हैं । सभी स्तरों पर इसकी रोकथाम के लिए जनमानस के प्रति जागृति अभियान छेड़ा जाना चाहिए ।

भारत सरकार ने विगत वर्षों में इस दिशा में अनेक कदम उठाए हैं परंतु इन्हें सार्थक बनाने के लिए और भी अधिक कठोर कदम उठाना आवश्यक है । देश के स्वर्णिम भविष्य के लिए हमें कुछ ऐसे निर्णय भी लेने चाहिए जो वर्तमान में भले ही अरुचिकर लगें परंतु दूरगामी परिणाम अवश्य ही सुखद हों – जैसे हमारे पड़ोसी देश चीन की भाँति एक परिवार में एक से अधिक बच्चे पर पाबंदी लगाई जा सकती है ।

अधिक बच्चे पैदा करने वालों का प्रशासनिक एवं सामाजिक स्तर पर बहिष्कार भी एक प्रभावी हल हो सकता है । यदि समय रहते इस दिशा में देशव्यापी जागरूकता उत्पन्न होती है तो निस्संदेह हम विश्व के अग्रणी देशों में अपना स्थान बना सकते हैं ।

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