Here is an essay on the Indian prison system especially written for school and college students in Hindi language.

भारतीय व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण अंग भारतीय जेल व्यवस्था भी है जिन्हें कारागार या सुधार गृह भी कहा जाता है वैसे जेल व्यवस्था को यदि भारतीय परिस्थितियों के सन्दर्भ में देखा जाये तो यह दो प्रकार की दिखायी देती है । एक तो साधारण जेल और दूसरी विशेष जेल ।

साधारण जेल से तात्पर्य ऐसी जेल से है जो आम कैदियों के लिए होती है और विशेष जेल से तात्पर्य ऐसी जेल से है जो कुख्यात अपराधियों, राजनीतिक अपराधियो के लिए उपलब्ध करायी जाती है और जिसके बदले में जेलर महोदय को भी अच्छी सुविधायें उपलब्ध करायी जाती हैं ।

भारतीय कानून के अनुसार भी दो प्रकार के कारावास का प्रावधान है एक साधारण कारावास और दूसरा सक्षम कारावास । लेकिन कानून में प्रावधानित कारावासों और वास्तविक कारावासों में अत्यधिक अन्तर है । वास्तव में कारावास तो केवल साधारण अपराधियों के लिए है विशेष श्रेणी के अपराधियों के लिए कारागार तो सुरक्षित आराम गृह और पुलिस व दूसरे गैंगो से बचने का सुरक्षित स्थान ।

भारत में बडे अपराधी मुठभेड़ से बचने और दूसरे गैंग का सफाया करने के लिए जेल जाते हैं ताकि अपनी सुरक्षा सुनिश्चित हो सके यही कारण है कि भारत के बड़े से बड़े गैंग चलाने वाले अपराधी जब आराम करना चाहते हैं या जब पुलिस का जो जेलर अपराधियों के साथ अच्छा तालमेल बिठा लेते हैं वे तो अपराधियों के कृपा पात्र बनकर अच्छी खासी कमाई कर लेते हैं और जो जेलर अपने सिद्धान्त, वसूल, मूल्यों की दुहाई देते हैं और ऐसे अपराधियों के साथ तालमेल नहीं बिठा पाते वे या तो किसी अन्य जेल में स्थानान्तरित करा दिये जाते हैं या फिर माफियाओं के क्रोध का शिकार हो जाते हैं । भारत में तो जेल केवल आम अपराधी के लिए ही जेल है माफियाओं के लिए तो जेल गैंग चलाने का अड्‌डा है ।

भारतीय जेलों में आम अपराधी से मिलने के लिए पर्ची बनवाना, हाथ पर मौहर लगवाना आदि कई औपचारिकताओं से गुजरना पड़ता है । उसमें भी एक या दो व्यक्ति ही मुलाकात कर सकते हैं और खाने की व्यवस्था आम अपराधी को कैदियों की जैसी ही होती है ।

रोटी जली हुई या कम पकी हुई, दाल में दाल के दाने कम पानी अधिक दिखाई देता है साथ ही आम कैदी को मेस में खाना बनवाना, बर्तन साफ कराना व अन्य साफ-सफाई यहां तक कि शौचालय आदि की सफाई भी आम कैदियों द्वारा की जाती है और यदि विशेष कैदियों की सुविधाओं का वर्णन किया जाये तो किसी मेहमान की मेहमान नवाजी से भी अधिक होती है ।

सबसे पहले तो हाई प्रोफाईल कैदी जैल की बैरंगों में रहने के स्थान पर जेल के अस्पताल में आराम फरमाते हैं । रंगीन टी.वी., फ्रिज, कूलर यहां तक कि ए.सी. की भी सुविधा का लाभ उठाते हैं । इनके अलावा मोबाईल फोन की सुविधा भी जेलर महोदय द्वारा ही उपलब्ध करायी जाती है और ऐसे महानुभाव जेल के खाने के स्थान पर होटल का खाना खाते हैं । ताजा फल भी उनकी सेहत को दुरुस्त रखने के लिए जेलर महोदय द्वारा ही उपलब्ध कराये जाते हैं ।

यहां तक कि अपने गैंग के लोगों से मिलने के लिए एक या दो व्यक्ति नहीं पूरा गैंग ही लगभग श्रीमान जी से दिशा निर्देश प्राप्त करने हेतू जेल में आता जाता रहता है लेकिन जेलर साहब श्रीमान जी की मेहमान नवाजी में कोई कमी नहीं आने देते ।

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उनको केवल जेल के दरवाजे पर श्रीमान जी का नाम मात्र बताना होता है उसके बाद वो क्या उपहार अपने आका को लेकर आते हैं उनकी भी जांच करना जेल प्रशासन उचित नहीं समझता क्योकि ऐसा करना श्रीमान जी की शान में गुस्ताकी होगा ।

जो श्रीमान जी बिल्कुल भी बर्दास्त नहीं कर सकते क्योंकि अपनी व अपने गैंग के लोगों की सुविधा हेतु ही तो जेलर साहब को ऊंचे स्तर पर सुविधा शुल्क दिया जाता है ऐसे श्रीमान जी अपने ऊंचे गैंग या ताल्लुकात के बल पर अपनी सियासत जेल में नहीं बल्कि धन बल के सहारे भारतीय जेल व्यवस्था को खरीदकर अपने ऐशोआराम को अपने व्यवसाय को बिना किसी रूकावट के चलाते रहते हैं । जिनमें सहयोगी की भूमिका निभाता है ।

भारतीय जेल प्रशासन जो उनको वी॰आई॰पी॰ कैदी के तमगें से नवाजते हैं । इस प्रकार की व्यवस्था भारतीय जेलों की है जो कैदियों को भी श्रेणियों में बांटकर अपनी व्यवस्था को आगे बढ़ाते हैं । भारतीय जेल व्यवस्था विश्व की अनोखी जेल व्यवस्था है यहां पर गृहस्थ जीवन का पालन करने वाले कैदी भी मिल जाते हैं । जो जेलर साहब के आर्शीवाद से अपना गृहस्थ जीवन जी रहे हैं । मानों वे किसी जेल के कैदी नहीं बल्कि कोई शरणार्थी हों ।

भारतीय जेल व्यवस्था केवल आम अपराधी को ही कैदी की श्रेणी में रखती हैं उनको ही कैदी को मिलने वाली कैद का एहशास भारतीय जेल व्यवस्था कराती है अन्यथा तो भारतीय जेल केवल माफियाओं के अड्‌डे हैं जो जेलर के रहमोंकरम से भारतीय व्यवस्था को घातक बीमारी से ग्रसित कर रहे हैं । अर्थात भारतीय व्यवस्था में गम्भीर छिद्र कर अपनी पैंठ बनाने का कार्य कर रहे हैं ।

भारतीय कैदी विश्व की किसी भी अन्य देश के कैदियों की संख्या से अधिक हैं । हो सकता है कि जितनी किसी देश की आबादी हो उससे अधिक आबादी तो भारतीय जेलों में भारतीय नागरिकों की मेहनत की कमाई का एक बड़ा भाग जेलों के आर्थिक बजट के रूप में खर्च करा रहे हैं । जेलों में इतनी घनी आबादी है कि एक अन्य देश की आबादी भी कम पड़ जायेगी ।

भारतीय कैदियों के भी कई प्रकार हैं जैसे सजायाफ्ता कैदी, विचाराधीन कैदी, भारतीय जेलों में अव्यवस्था पैदा करने का कार्य करते हैं विचाराधीन कैदी जो संक्षिप्त समय के लिए जेलों में आते हैं और अपने ऐशोआराम के साथ ही भारतीय जेलों की व्यवस्था को अपनी व्यक्तिगत व्यवस्था के रूप में चलवाते हैं दूसरे अन्य प्रकार के कैदी होते हैं मौसमी कैदी, मौसमी कैदी से मेरा तात्पर्य उन कैदियों से है जो केवल मौसम की मार से बचने के लिए जेलों में जाते हैं ।

ये कैदी विशेष कर सर्दियों में इस नियम का पालन करते हैं कि जब मौसम अधिक ठंडा हो जाता है और असहनीय ठंड का सामना करना मुश्किल हो जाता है तो ये मौसमी कैदी छोटे-छोटे अपराध करके जेलों की ओर प्रस्थान करते हैं और अपना घर जेल को ही बनाकर सर्दी के मौसम में ठंड से छुटकारा पाते हैं ।

कम से कम जेल में जाकर कम्बल आदि तो मिलता है ही साथ ही भरपेट खाना भी मिल ही जाता है ऐसे अपराधी जेलों में मौसम बदलने के साथ ही बाहर आने की जुगत लगाते हैं । कुछ इस प्रकार भारतीय जेलों की व्यवस्था चल रही है ।

केवल साधारण कैदी के लिए ही जेल है और उनको ही जेल नियमों का पालन करना सिखाया जाता है ये ही वास्तविक कैदी हैं ऐसे कैदियों को भारतीय जेलर भी अपने जेलर होने का एहसास समय-समय पर कराता रहता है जो इस साधारण कैदियों को वातावरण जेल में मिलता है उससे ये कैदी सुधरने के स्थान पर और अधिक कुख्यात बनते हैं ।

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जो अपराधी साधारण प्रकार का अपराध करते हैं और जेल चले जाते हैं । जेल में ये लोग बड़े अपराधियों के सम्पर्क में आते हैं उनसे अपराध जगत के सभी आवश्यक हथकंडे सीखकर अपराध की दुनिया को ही अपना संसार बना लेते हैं और स्वयं व्यवसायिक अपराधी बन अपराध करते रहते हैं और जब ऐसे अपराधी आदतन अपराधी बन जाते हैं ।

तो वे जेल को अपना घर तथा पुलिस को अपना सम्बन्धी समझने लगते हैं और ऐसे लोग सभ्य समाज के लिए बहुत बड़ा खतरा बन जाते हैं । ये व्यवसायीक रूप में अपराध करते हैं और यदि अपराध करते समय ये लोग पकड़े भी जाते हैं तो इनको कोई फर्क नहीं पड़ता ये लोग पकड़े जाने पर सहर्ष जेल चले जाते हैं तथा ऐसे वातावरण के ये लोग अभ्यस्थ हो जाते हैं ।

इनको जेल में सुधारात्मक वातावरण के स्थान पर निरोधात्मक वातावरण मिलता है जिससे ये लोग सुधरने के स्थान पर अपराध करने के अभ्यस्थ हो जाते हैं । भारतीय जेल व्यवस्था अपराधी को और अपराधी बनाती है जबकि जेल व्यवस्था सुधारात्मक प्रवृति की होनी चाहिए थी ।

भारतीय जेल व्यवस्था में दिल्ली की तिहाड़ जेल एक उदाहरण रहा है । जब देश की प्रथम महिला आई॰पी॰एस॰ अधिकारी मैडम किरनबेदी जी तिहाड़ जेल की अधीक्षक थीं उन्होने कैदियों को सुधारने के लिए जो कार्य किये वे अपने आप में मिशाल हैं उस समय तिहाड़ जेल एक तरह से सुधार गृह के रूप में पहचाना जाने लगा था ।

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मैडम किरनबेदी जी के समय में तिहाड़ जेल में कैदी पढाई करने लगे थे यहां तक कि कैदी खेल भी खेलते थे जिनमें कबड्‌डी, कुश्ती, दौड आदि खेलकर एक अपराधी अपने अपराध की दुनिया से पहले के समय में लौटकर अपनी पुरानी याद ताजा करता था पढाई करके वह अपना बीता समय याद कर अपराध की दुनिया से कई बार अलविदा कह गये कुछ अपराधी तिहाड़ जेल में जो उस समय आये वे पुन: तिहाड़ जेल न आ सके ।

क्योंकि वहां आकर जो वातावरण उनको मिला उसका प्रभाव यह रहा कि उन्होने अपराध से तौबा कर एक सच्चे नागरिक का जीवन जीना शुरू कर दिया । अन्यथा जेल के अन्दर जो वातावरण कैदियों को दिया जाता है उससे तो नये कैदी एक बार जेल जाने व अपराध करने के विषय में कई बार सोचने के उपरान्त अपराध से तौबाकर लेते हैं ।

जब उनको जेल में कुख्यात कैदियों के कपड़े धोना, बर्तन साफ करना उनकी मशाज करना आदि सब करना पड़ता है । एक तरह से कुख्यात कैदी छोटे-छोटे अपराधियों को अपना सेवक बनाकर जेलों में अपनी सियासत चलाते हैं जिनके विरूद्ध न तो कोई कार्यवाही जेल प्रशासन कर पाता है और न ही कैदी कुछ कर पाते हैं । ऐसी व्यवस्था छोटे कैदियों को तो सजा से भी बढ़कर होती है ।

जो कैदी उम्र कैद या अन्य बड़ी सजा काट रहे होते हैं तो उन्हें जेल व्यवस्था के अनुसार नम्बरदार कहते हैं । जो जेल में नये कैदियों विचाराधीन कैदियों को अनुशासित करने का कार्य करते हैं । साथ ही जेल व्यवस्था के अनुसार जेल प्रशासन का सहयोग कर कैदियों को नियंत्रित करने का कार्य करते हैं ।

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इसके अलावा ये सजायाफ्ता कैदी अपनी आमदनी का रास्ता भी खोज निकालते हैं जिसका तरीका होता है नये कैदियों व विचाराधीन कैदियों को सुविधा उपलब्ध कराना । सुविधा भी ऐसी कि घर की याद ही न आये ।

एक उदाहरण से स्पष्ट होता है कि उम्रकैद की सजा काट रहा एक व्यक्ति जो पूर्व में पुलिस इंस्पेक्टर था उस समय जब वह इंस्पेक्टर था उसकी आमदनी लगभग बीस हजार रूपये थी उस पर एक व्यक्ति को झूठे एनकाउंटर में मारने का आरोप लगा । विवेचना हुई ।

विवेचना उपरान्त उक्त इंस्पेक्टर महोदय को दोषी पाया गया । न्यायालय द्वारा उम्रकैद की सजा सुनायी गई । उम्र कैद की सजा भुगतने के लिए जब इंस्पेक्टर महोदय जेल में दाखिल हुए तो काफी सदमा लगा और शर्म भी महसूस हुई चिन्ता भी हुई कि नौकरी तो चली गई अब बच्चों का पालन-पोषण कैसे होगा लेकिन जल्द ही इंस्पेक्टर महोदय का सदमा भी हट गया और शर्म भी । जब सुबह घोषित हो गया कि उक्त कैदी, कैदियो को नियंत्रित करने का कार्य करेगा ।

शर्म तो इसलिए थी कि जिन कैदियों को उन्होने पकड़कर जेल भेजा था या जिन कैदियों पर थर्ड डिग्री इस्तेमाल की गई थी वे कैदी अब इंस्पेक्टर महोदय के साथ भोजन करेंगे, साथ रहेंगे तो इंस्पेक्टर महोदय का सदमा शर्म और चिन्ता स्वाभाविक थी लेकिन कुछ ही दिनों में उनका सदमा शर्म और चिन्ता सब दूर हो गई ।

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इंस्पेक्टर महोदय अपने रूतबे के अनुसार तो नम्बरदार हो गये जो कैदियों को नियंत्रित करने का कार्य करते हैं बाकी तो कैदियों को छोटी-छोटी सुविधा उपलब्ध कराकर ये नम्बरदार जेल से ही अपने परिवार का पालन-पोषण अच्छे ढंग से करते हैं ।

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ये जेलों में जेलर साहब की कृपा से बीड़ी, गुटखा व सिगरेट आदि की चलती-फिरती दुकान चलाकर तीस-पैंतीस हजार रूपये प्रतिमाह घर भेजने का कार्य करते हैं । ये नये कैदियों से दस रूपये में बीड़ी व मुलाकात का समय बढ़ाने का सौ रूपये, गुटखा पांच रूपये व सिगरेट प्रति पीस पांच रूपये वसूल करते हैं ।

इसके अलावा मैस में खाना बनाने के कार्य से वंचित करने के लिए, अच्छा खाना उपलब्ध कराने का भी सुविधा शुल्क लिया जाता है । तभी तो नम्बरदार अपना व अपने परिवार का पालन-पोषण अच्छे ढंग से कर पाते है ।

भारतीय जेल व्यवस्था के यदि दूसरे पहलू पर गौर किया जाये तो चौकाने वाले तथ्य सामने आते हैं कि भारतीय जेलों में बंद देश के सबसे बड़े से बडे माफिया, डॉन जेल के अन्दर से ही अपनी समानान्तर सरकार चलाते हैं साथ ही जेल के अन्दर बैठकर अपने विरोधियों को एक-एक करके ठिकाने लगाते रहते हैं और स्वयं के जेल में होने के कारण विरोधियों की हत्या  में कोई नाम भी नहीं आता ।

यही कारण रहा है कि माफियाओं द्वारा कुछ हत्याएं तो जेल के अन्दर बैठकर ही करवायी जाती हैं । भारतीय जेल मुजरिमों व माफियाओं के लिए सर्वाधिक आराम गृह है तभी तो वर्तमान समय में जेलों में एक से बढ़कर एक कुख्यात अपराधी बैठा है जो जेल से अपने गैंगों को दिशा-निर्देश देते रहते हैं ।

प्रस्तुत दृष्टान्त एक माफिया से सम्बन्धित हे जिसमें वह माफिया जब जेल से बाहर था तो उसकी आमदनी कम थी लेकिन जैसे ही वह जेल में चला जाता है तो उसकी आमदनी एकाएक बढ़ जाती है ।  वो भी कुछ इस तरह कि पीड़ित लोगों की समस्या का समाधान कर दिया गया है लेकिन होता बिल्कुल विपरीत है सरकार सोचती है कि माफिया तो सभी जेलों में हैं लेकिन इस देश के माफिया जेलों से ही प्रशासन व पुलिस व्यवस्था की पोल खोलते रहते हैं ।

कितने ही उदाहरण भारतीय व्यवस्था में मौजूद है जब एक गैंग के लीडर द्वारा दूसरे गैंग के लीड़र को बिना किसी चेतावनी के ठिकाने लगा दिया जाता है । इसलिए सभी तरह से सुरक्षित स्थान माफियाओं के लिए भारतीय जेल हैं जिनमें बड़े से बड़ा अपराध करके अपराधी छुप रहा है और भारतीय व्यवस्था उनको रोक पाने में असमर्थ असहाय महसूस कर रही है ।

भारतीय जेल देश के बड़े माफियों के लिए सदैव छुपने व गैंग चलाने का सुरक्षित स्थान बनता जा रहा है तभी तो भारतीय जेलों में बड़े से बड़े माफिया आराम से बैठकर अपने कारनामों को अंजाम देते हैं और भारतीय व्यवस्था इसमें सहयोगी की भूमिका में दिखायी देती है ।

भारतीय जेल व्यवस्था जहां गैंग चलाने की सुरक्षित जगह है तो दूसरी ओर अपने विरोधी गैंगों से निपटने के लिए या यूं कहिये विरोधी गैंगों से बचने के लिए सुरक्षित स्थान, गरीब और असहाय लोगों के लिए निःशुल्क आवास है तो सजायाफ्ता कैदी की आय का अच्छा खासा साधन, गरीब कैदी के लिए तो फिर भी जेल है और अमीर कैदियों के लिए तो जेल आज भी आरामगाह है ।

जेल के सभी नियम केवल गरीब कैदियों पर ही लागू होते हैं । अमीर कैदी या बाहुबली कैदी या धनबली कैदी के लिए भारतीय जेलों में कोई नियम कानून ही नहीं हैं । भारतीय जेलों के कानून नियम सब आम कैदियों के लिए ही हैं । विशेष कैदियों के लिए नहीं ।

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जहां तक देखा गया है कि भारतीय जेलों में कैदियों की भी श्रेणी हैं, भारतीय जेलों में खाने की भी श्रेणी हैं, भारतीय जेलों में रहने की भी श्रेणी हैं और तो और भारतीय जेलों में सजा की भी श्रेणी है ऐसे कैदी जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं वे सजा के तौर पर दौगुनी सजा काटते हैं ।

एक तो जेल की सजा है ही दूसरी सजा है दबंग व माफिया कैदियों की सेवादारी करने की सजा, जो सजा आर्थिक रूप से कमजोर कैदियों को जेल में भुगतनी ही पड़ती है । सही अर्थों में यदि देखा जाए तो जेल में सभी कैदी ही होते हैं ।

वे कैदी दबंग माफिया हो या आम कैदी जो दबंग माफिया कैदी के रूप में जेल में होते हैं । उनके परिजनों को तनिक भी यह एहसास नहीं होता है कि उनका कोई व्यक्ति जेल में है लेकिन दबंग माफिया या विशेष कैदी के स्थान पर आम कैदी जो जेल में होता है तो उसको तो जेल में रहने का एहसास होता ही है साथ ही उस आम कैदी के परिजनों को भी कैद का एहसास हो जाता है बल्कि अगर ये कहा जाये कि आम कैदी से अधिक कैद का एहसास उस आम कैदी के परिजनों को होता है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी ।

जब आम कैदी के परिजनों को उससे जेल में मुलाकात करने में ही पसीने छूट जाते हैं । कई स्तर पर गहन जांच पड़ताल से गुजरना पड़ता है घंटो तपती धूप में लाईन में लगना पड़ता है हाथ पर मोहर लगवाने के लिए लाइन में लगना पड़ता है ।

तो कहीं जेल में घुसने के लिए भी लाइन से गुजरना पड़ता है । कुछ इस तरह भारतीय जेल व्यवस्था में केवल आम कैदी को ही जेल है । दबंग माफिया या विशेष कैदी के लिए भारतीय जेल मात्र पिकनिक स्पाट से अधिक कुछ नही है ।

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