Here is a compilation of Essays on ‘Our School’ for Class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on ‘Our School’ especially written for Kids and Students in Hindi Language.

List of Essays on Our School (For Kids and Students)


Essay Contents:

  1. हमारा विद्यालय | Essay on Our School in Hindi Language
  2. प्रिय विद्द्यालय | Essay on My Favourite School for Students in Hindi Language
  3. विद्यालय में मेरा पहला दिन । Essay on My First Day at School for Kids in Hindi Language
  4. मेरे विद्यालय में पुरस्कार वितरण समारोह | Paragraph on My School’s Prize Distribution Ceremony for Kids in Hindi Language
  5. विद्यालय का वार्षिकोत्सव । Essay on Our School’s Annual Function for Students in Hindi Language

1. हमारा विद्यालय | Essay on Our School in Hindi Language

मैं डी.ए.वी. दयानन्द उच्च माध्यमिक विद्यालय में पढ़ता हूँ । यह चित्रगुप्त सड़क, नई दिल्ली पर अवस्थित है । हमारे विद्दालय की इमारत बहुत विशाल है । यह लाल पत्थरों एवं ईंटों की बनी है । इसमें 35 कमरे हैं । सभी कमरे हवादार है । सूर्य की रोशनी प्रत्येक कमरे को प्रकाशित करती है । इसमें एक पुस्तकालय भी है । जिसमें पुस्तकों का एक बड़ा भंडार है ।

हर प्रकार की पुस्तकें वहां उपलब्ध है; मनोरंजक भी एवं ज्ञान वर्द्धक भी । पुस्तकें हमारी सबसे अच्छी मित्र हैं । यह न केवल हमारे ज्ञान में वृद्धि करती हैं बल्कि हमारी बुद्धि एवं साधारण ज्ञान को भी बढ़ाती हैं । हमारे विद्यालय की प्रयोगशाला बहुत बड़ी है । इसमें हमारी आवश्यकता के सभी उपकरण एवं वैज्ञानिक साजो-सामान मौजूद हैं ।

हमारा विद्यालय छटी कक्षा से 12वीं कक्षा तक है । प्रत्येक कक्षा के चार विभाग हैं । विद्यालय में एक हजार लड़के हैं । यहा के स्टाफ में 45 कर्मचारी हैं । सभी कर्मचारी योग्य एवं कार्य कुशल हैं । हमारे प्रध्यापक एक प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं ।

वह विद्यार्थियों एव स्टाफ कर्मचारियों में भी लोकप्रिय हैं । वह बहुत अनुशासन प्रिय हैं । विद्यालय कार्यालय का काम एक क्लर्क एव खजांची की देख-रेख में होता है । सभी बहुत मेहनती हैं । विद्यालय में दो खेल के मैदान हैं ।

एक टेनिस के लिये प्रयोग होता है एवं दूसरा किक्रेट तथा अन्य खेलों के लिये प्रयोग होता है । हमारे विद्यालय में एक तरण-ताल भी है । हमारे विद्यालय की कन्टीन बहुत साफ सुथरी है । विद्यालय का बगीचा बहुत व्यवस्थित है जहाँ हर समय फूलों से लदे पौधे लगे रहते हैं । हम मध्यावकाश में वहाँ समय बिताते हैं ।

हमारा विद्यालय हर क्षेत्र में उन्नति कर रहा है । शैक्षिक क्षेत्र में इसका अच्छा नाम है । इसके विद्यार्थी बोर्ड की परीक्षाओं में पहले-दूसरे स्थानों पर आते हैं । खेल के क्षेत्र में भी यह प्रगति कर रहा है । यहां प्रतियोगितायें होती रहती हैं और हमारी टीम विजयी होती है ।

हमारे विद्यालय ने बहुत सी ट्राफी, शील्ड एवं मेडल जीते हैं । वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में भी हमारे विद्यार्थी अच्छे स्थान पर आते हैं । यह दिल्ली के अच्छे विद्यालयों में माना जाता है । हमें अपने विद्यालय पर गर्व है ।


2. प्रिय विद्द्यालय |Essay on My Favourite School for Students in Hindi Language

भूमिका:

मानव-प्राणी इस ससार में आकर कुछ न कुछ ज्ञानार्जन करता है । कोई भी मनुष्य जन्मजात विषय-कौशल नही होता, बल्कि इस भू-तल पर आकर ही किसी भी विषय में ज्ञान प्राप्त करता है । मानव जीवन को सभ्य बनाने में विद्यालय का सबसे बड़ा योगदान रहा है ।

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विद्यालय का शाब्दिक अर्थ होता है विद्या+आलय= विद्यालय, अर्थात् जहाँ विद्या का आवास हो उस स्थल को विद्यालय कह सकते हैं । मैं भी शिक्षा ग्रहण करने के लिए अपने प्रिय विद्यालय ‘शिक्षा निकेतन’ में जाता हूँ ।

विद्यालय का इतिहास:

हमारा विद्यालय 32 वर्ष प्राचीन है । इस विद्यालय के निर्माण हेतु एक बज्जर भूमि का सदुपयोग किया गया था । उस समय इस स्थल का विस्तृत रूप में शहरीकरण नहीं हुआ था किन्तु अब यह दिल्ली की घनी बस्ती के मध्य में स्थित है ।

इस सघनता के कारण यहाँ अत्याधिक संख्या में छात्र विद्यार्जन के लिए आते हैं । विद्यालय की प्रौढ़ता के कारण भी यह दिल्ली के प्रसिद्ध विद्यालयों में से एक है । हमारे विद्यालय के भूतपूर्व विद्यार्थी आज भी उच्च-पदों पर आसीन है । उनमें से कई विद्यार्थी विद्यालय के विभिन्न उत्सवों में आमंत्रित किये जाते हैं और वे उत्सव में आकर विद्यालय का सम्मान बढ़ाते है ।

विद्यालय की सरंचना:

हमारा विद्यालय प्रत्येक दृष्टि से परिपूर्ण है । हमारा विद्यालय दो मंजिले भवन के कारण एक सुन्दर इमारत की भाँति शोभायमान है । इसमें 45 कमरे हैं । जिनमें एक हॉल, एक प्रधानाचार्य कक्ष, दो शिक्षक कक्ष, एक दफ्तर के लिए कमरा, एक पुस्तकालय, तीन विज्ञान कक्ष तथा खेल-कूद की सामग्री के लिए एक अलग कमरे की व्यवस्था है ।

हमारे विद्यालय का एक सुन्दर बाग है जिसमे तरह-तरह के पुष्पो के पौधे व अन्य पेड़-पौधे इसके सौन्दर्य में हरियाली बिखेर देते हैं । विद्यालय भवन के पीछे विशाल रवेल का मैदान है जिसमे बॉली-बॉल नेट, फुटबाल व होंकी के लिए नेट तथा क्रिकेट की पिच बनाई हुई है । एक अलग कमरे में शतरंज व टेबल टेनिस की व्यवस्था की गई है ।

शिक्षक कक्ष में अध्यापक रिक्त समय में बैठकर मनोरजन व अपना अन्य कार्य करते है । शिक्षक-कक्ष के एक कमरे में प्रत्येक अध्यापक के लिए अलग-अलग अलमारियों की व्यवस्था की गई है तथा दूसरे कक्ष में दो बड़ी मेजें व कई-कुर्सियाँ रखी हुई हैं । प्रधानाचार्य-कक्ष में हमारे प्रधानाचार्य जी बैठते हैं और उनके कक्ष के बाहर एक चपरासी बैठा होता है ।

हमारे विद्यालय में एक प्रधानाचार्य महोदय, 35 शिक्षक, दो क्लर्क (लिपिक), एक चपरासी तथा चार चौकीदार हैं । ये सभी कर्मचारी प्रधानाचार्य की आज्ञानुसार कार्य करते हैं । विद्यालय का समुचित कार्य इन्हीं कर्मचारियों के कार्यचक्र में व्यवस्थित है । हमारे विद्यालय में रसायन, भौतिक व जीव विज्ञान के लिए अलग-अलग कक्ष बनाए गए है ।

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इनमे सबसे आकर्षित जीव विज्ञान-कक्ष है जिसमें विद्यार्थियों द्वारा बनाये हुए भिन्न-भिन्न प्रकार के जीव विज्ञान सम्बन्धित चित्र कक्ष की दीवारो पर लगाए गये है । विज्ञान-कक्ष के आगे एक परिपाटी में उन विद्यार्थियों के नाम अकित किए गए हैं जो विद्यालय में 10वीं कक्षा के विज्ञान विषय के अन्तर्गत प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हुए हैं जिससे विद्यार्थियों को प्रोत्साहन मिलता है ।

हमारे विद्यालय में खेल-सामग्री विद्यालय के सभी छात्रों के लिए उपलब्ध है, इसीलिए हमारे विद्यालय के खिलाड़ी दिल्ली विद्यालय वर्ग के खिलाड़ियों में अग्रणीय हैं ।

कार्य प्रणाली:

हमारे विद्यालय में प्रतिदिन ईश्वर की वन्दना फिर उसके बाद राष्ट्रीय गान गाया जाता है, जिसमें विद्यालय के सभी जन उपस्थित होते हैं । प्रार्थना सभा में ही हमारी उपस्थिति की गणना की जाती है । प्रत्येक शनिवार को प्रार्थना सभा में बाल सभा का आयोजन किया जाता है जिसकी अवधि केवल एक घण्टा होती है ।

अलग-अलग कक्षा वर्ग के लिए अलग-अलग कमरे दिये जाते है जिनमें आठ पीरियडों में पढ़ाई होती है । बीच में आधे घण्टे के लिए भोजन व खेलने के लिए समय निर्धारित होता है । प्रधानाचार्य-कक्ष के आगे एक सूचना-पट्ट होता है, जिसमें विभिन्न प्रकार की सूचनाएँ, लेख व समाचार लिखे जाते हैं ।

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हमारे विद्यालय में वर्ष में तीन उत्सवो का आयोजन बड़ी धूम-धाम से किया जाता है । जिसमें स्वतन्त्रता दिवस (14 अगस्त को), गुरु दिवस 5 सितम्बर को व विद्यालय के वार्षिकोत्सव का आयोजन किया जाता है । इनमे उच्च पदो के अधिकारी एवं जो विद्यालय के भूतपूर्व छात्र रह चुके हैं, वे भी आते है ।

हमारे विद्यालय में विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है जो केवल हमारे विद्यालय के छात्रों के अन्तर्गत ही आयोजित होती हैं, जिसके फलस्वरूप हमारे विद्यालय के छात्र दिल्ली विद्यालयों के छात्रों की सम्मिलित प्रतियोगिताओं में विजय प्राप्त करते है ।

इस समय हमारा विद्यालय वाद-विवाद प्रतियोगित, नाटक प्रतियोगिताओं में दिल्ली में प्रथम स्थान और चित्रकला प्रतियोगिता, लेखनी व संगीत प्रतियोगिता में द्वितीय स्थान पर है । हमारे विद्यालय के खिलाड़ी भारतीय जूनियर खेल टीम में भी चुने जाते हैं एवं दिल्ली की ओर से अन्य राज्यों में खेलने के लिए जाते हैं । हमारे विद्यालय का परीक्षा फल प्रतिवर्ष 98 प्रतिशत आता है ।

हमारा कर्त्तव्य:

हमारा विद्यालय हमारा विद्या मन्दिर है । जिस प्रकार भक्त लोगों के लिए मन्दिर व पूजा-स्थल पवित्र स्थान है, उसी प्रकार एक विद्याथीं के लिए उसका विद्यालय एक पावन स्थल है । इस पावन मन्दिर के भगवान् हैं- हमारे गुरुजन जो हमारे अज्ञान के अन्धकार को दूर कर हमारे दिलों में ज्ञान का प्रकाश फैला देते है । इसलिए हमे अपने गुरुजनों का हार्दिक सम्मान करना चाहिए ।

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उनकी आज्ञा के अनुसार अपने शिक्षण कार्य का सम्पादन करना चाहिए । हमे अपने विद्यालय के सभी नियमों का श्रद्धा के साथ पालन करना चाहिए । विद्यालय की सम्पत्ति की अपनी व्यक्तिगत सम्पत्ति की तरह रक्षा करनी चाहिए । विद्यालरा व वहाँ की साज सामग्रियों के प्रति अपने घर की तरह ममता रखनी चाहिए ।

इससे एक ओर हमारा नैतिक उत्थान होता है और दूसरी ओर विद्यालय की सुरक्षा होती है । आजकल ऐसी प्रवृत्ति बढ़ रही है कि विद्यालयो में तोड़-फोड़ का काम मामूली बात हो गयी है, इसलिए हमे इस प्रवृत्ति को पूर्णत: समाप्त करना होगा ।

उपसंहार:

विद्यालय एक सार्वजनिक सम्पत्ति है । यह हमारी राष्ट्रीय निधि है, इसलिए विद्यार्थी इसकी सुरक्षा के प्रति सदैव जागरूक रहे, । विद्यालय केवल पुस्तकीय ज्ञान का माध्यम नहीं है, अपितु ज्ञान प्राप्ति के लिए हर प्रकार के अवसर वहाँ पर उपलब्ध होते हैं । विद्यालय बालकों को खेल-कूद, सास्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेने का अवसर देता है ।

उन विषयों के मार्ग दर्शन के लिए शिक्षक होते है इसलिए विद्यार्थी को अपने विद्या मन्दिर से पूरा लाभ उठाना चाहिए । जो बालक इन अवसरों को चूक जाते हैं वे फिर इन सुनहरे क्षणों को पाने से वचित रहते है । विद्यालय से हमे हर प्रकार के ज्ञान का प्रकाश मिलता है ।


3. विद्यालय में मेरा पहला दिन । Essay on My First Day at School for Kids in Hindi Language

विद्यालय में मेरा पहला दिन आषाढ़ के प्रथम मेघ के समान सुखद, रसगुल्लों के समान मधुर और भोजन में अवांछति चिपरी मिर्च के समान कुछ तीक्षाता लिये रहा । कुछ सहपाठियों का चहेता बना तो कुछ को लगा आँख की किरकिरी, कहाँ से टपक पड़ी यह बला ।

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मैं आत्मविश्वासपूर्वक कक्षा में प्रविष्ट हुआ और एक खाली डैस्क पर पुस्तकें रखकर प्रार्थनास्थल की ओर चल पड़ा । मुझे यह तो पता था कि प्रार्थना में पंक्तियाँ कक्षानुसार बनती हैं, पर मेरी कक्षा की कौन-सी पंक्ति है, यह जानकारी मुझे न थी, इसलिए मैं अपनी ही कक्षा के एक छात्र के पीछे-पीछे जाकर पंक्ति में खड़ा हो गया ।

प्रार्थना के पश्चात् विद्यार्थी अपनी-अपनी श्रेष्ठ श्रेणियों में गए । मैं भी कक्षा में जाकर अपने स्थान पर बैठ गया । प्रथम पीरियड शुरू हुआ । अंग्रेजी के अध्यापक आए । ‘क्लास स्टैण्ड’ हुई, बैठी । अंग्रेजी के अध्यापक ने ग्रीष्मावकाश के काम के बारे में जानकारी ली । एक विद्यार्थी को कापियाँ इकट्‌ठी करने को कहा ।

जब वह विद्यार्थी मेरे पास आया तो मैंने हाथ हिला दिया । उसने वहीं से कहा, ‘सर, यह कापी नहीं दे रहा है ।’ शिक्षक ने डांटते हुए पूछा तो मैंने बताया कि ‘मैं आज ही विद्यालय में प्रविष्ट हुआ हूँ, इसलिए मुझे काम का पता नहीं था ।’

इंग्लिश सर का गुस्सा झाग की तरह बैठ गया । तब प्यार से पूछा, ‘पहले कहाँ पढ़ते थे ?’ मैंने बताया कि मैं केन्द्रीय विद्यालय, भोपाल का छात्र हूँ । पिताजी की बदली होने के कारण दिल्ली आया हूँ । अध्यापक महोदय का दूसरा सवाल था-होशियार हो या कमजोर ? मेरा उत्तर था, ‘मैं पढ़ाई में तो अच्छा हूँ ही, शरीर से भी बलवान हूँ ।

मेरे इस उत्तर से सारी कक्षा ने मुझे ऐसे घूरकर देखा, मानो मैं चिड़ियाघर का कोई विचित्र प्राणी हूँ । यथा समय घंटी बजती रही । पीरियड बदलते रहे । शिक्षक आते-जाते रहे । अन्तिम पीरियड आ गया । अध्यापिका आईं । स्थूल शरीर था उनका । टुनटुन की चर्बी भी शायद इन्होंने चुरा ली थी ।

आंखें ऐसी मोटी और डरावनी कि डांट मारे तो छात्र-छात्राएँ काँप उठें । सुन्दर इतनी कि रेखा और माधुरी भी लज्जित हो जायें । वे आईं, क्लास का ‘स्टैंड अप, सिट डाउन’ हुआ । उन्होंने पहला प्रश्न किया, ‘कौन है वह लड़का जो आज ही कक्षा में आया है ?’

आते ही पहला वार मुझ पर । मैं मौन भाव से खड़ा हो गया । क्या नाम है ? कहाँ रहते हो ? माता कहाँ की रहने वाली हैं ? पिता किस पद पर हैं ? आदि-आदि । मैं प्रत्येक प्रश्न का उत्तर अर्ध-मुस्कान से देता

रहा । जब पिता का पद सुना तो लगा जैसे भयंकर भूचाल आ गया हो । वे कांप-सी गईं । उनकी वाणी अवरुद्ध हो गई । पसीना छूटने लगा पर वे जल्दी ही सहज हो गईं और अध्यापन में प्रवृत हो गयी ।

घंटी बजी । वह इस बात का संकेत थी कि अब अपने-अपने घर जाओ । मैं विद्यालय से घर लौटा । मन प्रसन्न था । अपनी प्रतिभा का प्रथम प्रभाव अध्यापकों और सहपाठियों पर डाल चुका था । पर ‘टुनटुन’ की ‘पिताजी को नमस्ते’ मेरे हृदय को कचोट रही थी । सायंकाल पिताजी कार्यालय से लौटे । बातचीत में मेरे प्रथम दिन की कहानी पूछी तो मैंने सोल्लास सुना दी और डरते-डरते अध्यापिका का ‘नमस्कार’ भी दे दिया ।

पिताजी हँस पड़े, हँसते ही रहे । बाद में शान्त हुए तो बताया कि वे मेरे साथ पड़ती थीं और हम दोनों एक ही मौहल्ले में रहते थे । जवानी में वह बड़ी जौली (परिहास प्रिय) लड़की थी । तुम उन्हें मेरी ओर से घर आने का निमन्त्रण देना । यह सुनकर हरी मिर्च की तिक्तता चटपटे स्वाद में बदल गई और मन प्रसन्न हो गया ।


4. मेरे विद्यालय में पुरस्कार वितरण समारोह | Paragraph on My School’s Prize Distribution Ceremony for Kids in Hindi Language

किसी भी विद्यालय के सफल कार्य संचालन के लिये पुरस्कार वितरण एक महत्वपूर्ण समारोह है । इससे विद्यार्थियों में नये उत्साह का संचार होता है । विद्यार्थियों के अभिभावकों के साथ मजबूत सम्बन्ध स्थापित होता है । यह समारोह बहुत रोमांचक होता है । सभी को अवश्य ही इसमें सम्मिलित होना चाहिये ।

इस वर्ष पुरस्कार वितरण समारोह में अभिभावकों एवं अन्य आमन्त्रित अतिथियों से हॉल खचाखच भर गया था । यह पुरस्कार वितरण समारोह पन्द्रह जनवरी को सम्पन्न हुआ । शिक्षा विभाग के निदेशक समारोह के मुख्य अतिथि बने ।

समारोह ही तैयारियाँ एक माह पूर्व ही प्रारम्भ हो गयीं । विद्यालय की इमारत को रंग रोगन किया गया । जिस हॉल में समारोह होना था उसे चार्ट एवं तस्वीरों द्वारा सुन्दरता से सजाया गया । समारोह के दिन एक विशाल मंच पर सुन्दर मेज एवं कुर्सियां रखी गयी ।

छोटे बच्चों को बैठाने के लिये कालीन बिछाया गया एवं शेष हॉल में कुर्सियों लगा दी गयीं । आरम्भ की पक्तियाँ शिक्षक वर्ग एवं अतिथियों के लिये सुरक्षित रखी गयीं । समारोह चार बचे प्रारम्भ होना था एव हॉल पीने चार बजे ही पूर्णतय: भर गया ।

सभी अतिथि विद्यार्थियों द्वारा किये गये प्रबन्ध से बहुत प्रभावित थे । एक किनारे मेज पर पुरस्कार एवं ट्राफियाँ सजाई गयीं थीं । अब हम सब मुख्य अतिथि के आने की प्रतिक्षा कर रहे थे । सही समय पर शिक्षा-निदेशक अपनी कार में वहाँ पहुँचे ।

स्टाफ के वरिष्ट सदस्यों एवं प्रिंसिपल द्वारा उनका गर्मजोशी से स्वागत किया गया । उनके सम्मान में विद्यालय के बैंड ने धुन बजायी । प्रिंसिपल ने उन्हें पुष्प-गुच्छ प्रदान किया । स्टाफ के अन्य सदस्यों ने उन्हें मालायें पहनायीं । मुख्य अतिथि के अपनी जगह लेते ही हॉल में शान्ति छा गयी ।

प्रिंसिपल ने मुख्य अतिथि के जीवन-परिचय से हमें संक्षेप में परिचित कराया । तत्पश्चात उन्होंने विद्यालय की वार्षिक रिर्पोट पढ़ कर विद्यालय की उपलब्धियां बतायीं । तत्पश्चात प्रिंसिपल महोदय ने मुख्य अतिथि से विद्यालय का वार्षिक अनुदान बढ़ाने का निवेदन किया जो विद्यार्थियों की बहुमुखी गतिविधियों में रुचि को देखते हुए बहुत कम था ।

प्रिंसिपल महोदय ने साहित्यिक क्लब के अध्यक्ष को सांस्कृतिक समारोह प्रारम्भ करने के निर्देश दिये । कुछ विद्यार्थियों ने देश-भक्ति के गीत गाये । देशभक्ति के एक नाटक का मंचन भी किया गया । दर्शकों ने समारोह में हिस्सा लेने वाले विद्यार्थियों की ताली बजाकर खुले दिल से प्रशसा की एवं उत्साहवर्धन किया ।

सभी भाग लेने वाले बच्चों ने अपनी भूमिका के लिये बहुत मेहनत की थी । कार्यक्रम का प्रस्तुतिकरण भी बहुत अच्छे ढँग से किया गया । लोकनृत्यों से समारोह के वातावरण में नयी जान सी आ गयी । मुख्य अतिथि ने बच्चों को पुरस्कार वितरित किये एवं उनसे हाथ मिलाया ।

शिक्षा निदेशक ने एक छोटा सा भाषण दिया जिसमें उन्होंने सभी बच्चों को बधाई दी एवं उनका उत्साहवर्धन किया ।

विद्यार्थियों द्वारा समारोह के दौरान अनुशासित व्यवहार करने के लिये भी उनकी प्रशंसा की । इसके पश्चात प्रिंसिपल ने मुख्य अतिथि का धन्यवाद दिया एव विदाई की । राष्ट्रगान के पश्चात् समारोह का समापन अगले दिन की छुट्टी की घोषणा के साथ हुआ ।


5. विद्यालय का वार्षिकोत्सव । Essay on My School’s Annual Function for Students in Hindi Language

हमारे समाज में जो स्थान धार्मिक त्यौहारों का है वही स्थान हमारे जीवन में राष्ट्रीय त्यौहारों का है । अध्ययन के दौरान मनाया जाने वाला उत्सव विद्यालय का वार्षिकोत्सव है । यह विद्यालय की उन्नति और प्रगति का परिचायक है । शिक्षक और छात्र दोनों के लिए यह पर्व हर्ष और उल्लास का है ।

हमारे विद्यालय का वार्षिकोत्सव विद्यालय की स्थापना दिवस पन्द्रह जनवरी को मनाया जाता है । हालांकि कुछ विद्यालय अपना वार्षिकोत्सव किसी पर्व या त्यौहार पर मनाते हैं । हमारे विद्यालय का वार्षिकोत्सव हमेशा पन्द्रह जनवरी को ही मनाया जाता है । इसकी तैयारी एक माह पूर्व से ही शुरू हो जाती है ।

जिन छात्रों ने पीटी या परेड में भाग लेना होता है उन्हें कई दिन पूर्व से ही अभ्यास शुरू करा दिया जाता है । इसी प्रकार सांस्कृतिक कार्यक्रम के तहत किये जाने वाले नृत्य संगीत की तैयारी भी कई दिन पूर्व ही शुरू हो जाती है । स्कूल के प्रधानाचार्य से लेकर छात्र तक उत्सव की तैयारी में जुटे रहते हैं ।

पन्द्रह जनवरी को स्कूल का भवन दुल्हन की तरह सजा हुआ था । स्कूल के सभागार में आमंत्रित अतिथियों व शिक्षा अधिकारियों के बैठने के लिए मंच पर विशेष व्यवस्था की गई थी । छात्रों व उनके अभिभावकों के बैठने के लिए भी कुर्सियां लगी हुई थीं । प्रात: साढ़े नौ बजे झण्डारोहण के बाद उत्सव शुरू होना था । नौ बजते-बजते अतिथियों व अभिभावकों का आगमन शुरू हो गया ।

कुछ छात्र जिनकी ड्‌यूटी अतिथि सत्कार में लगी हुई थी वे आने वाले अतिथि को सम्मान सहित मुख्य द्वार से लाते और उन्हें सीट पर बिठाकर चले जाते । ठीक साढ़े नौ बजे वार्षिकोत्सव के मुख्य अतिथि शिक्षा मंत्री महोदय पधारे । एन. सी. सी. कैडिटों की परेड व स्कूली बैण्ड द्वारा उन्हें सलामी दी गई और उनका स्वागत किया गया । उनकी आगवानी स्कूल के प्रधानाचार्य ने की ।

शिक्षा मंत्री द्वारा झण्डारोहण करने के बाद वार्षिकोत्सव की शुरूआत हुई । सर्वप्रथम प्रधानाचार्य जी ने मुख्य अतिथि शिक्षा मंत्री सहित अन्य अतिथियों का फूलों की माला पहनाकर स्वागत किया । इसके बाद स्कूल की प्रबंधन समिति के अध्यक्ष ने विद्यालय की गत एक वर्ष की उपलब्धियों व कार्यकलापों का ब्यौरा रखा ।

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इसके बाद सरस्वती वन्दना से सांस्कृतिक कार्यक्रमों की शुरूआत हुई । स्कूली बच्चों द्वारा इस अवसर पर दो नाटकों का मंचन किया गया । जिनमें एक नाटक दहेज की बुराई को उजागर करने वाला था । और दूसरा नाटक एकता व भाईचारे को बढ़ावा देने वाला था ।

दोनों नाटक मंचित होने के बाद नृत्य व संगीत का कार्यक्रम शुरू हुआ । इसमें कुछ स्कूली बच्चों ने ऐसा समा बांधा कि अतिथि लोग बच्चों की प्रतिभा को देख दंग रह गये । हास्य कवि सम्मलेन में बाल कवियों द्वारा सुनाई गयी व्यंग्य रचनाओं में अपनी रचनाओं से उपस्थित लोगों को हंसा-हंसा कर लोगों के पेट में दर्द कर दिया ।

ये कार्यक्रम चलते-चलते शाम के चार बज गये थे । इसके बाद पीटी मार्च, ऊँची कूद, लम्बी दौड़ सहित कई खेलों का प्रदर्शन स्कूली छात्रों ने किया । कार्यक्रम के अंत में शिक्षा मंत्री ने वार्षिकोत्सव को लेकर स्कूल की प्रबंध समिति, प्रधानाचार्य तथा विद्यार्थियों की प्रशंसा की ।

उन्होंने प्रधानाचार्य को यह कहते हुए बधाई दी कि आपका स्कूल तो प्रतिभा का खजाना है । इसके बाद शिक्षा मंत्री सहित अन्य गणमान्य अतिथि द्वारा दसवीं और बारहवीं की बोर्ड परीक्षा में अच्छे अंक लाने वाले विद्यार्थियों को पुरस्कृत किया गया ।

इनके अलावा अन्य क्षेत्रों में उत्कृष्ट कार्य करने वाले विद्यार्थियों व शिक्षकों को भी सम्मानित किया गया । राष्ट्रगान के साथ वार्षिकोत्सव सम्पन्न हो गया । इसके बाद जलपान की व्यवस्था की गई थी । बच्चों ने जलपान किया और अपने-अपने घरों को लौट गये ।


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