वर्षा ऋतु | Essay on Rainy Season in Hindi!

जुलाई का प्रथम सप्ताह था और रात के लगभग १० बजे थे । हम लोग दिन भर की तपन से ऊबे हुए अपने घर की खुली छत पर अपनी-अपनी चारपाइयों पर लेटे आपस में बातें कर रहे थे ।

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थोड़ी ही देर में नींद आ गई । नींद अचानक उस समय खुली, जब हम लोगों के शरीर पर ठंडे पानी की दो-तीन बड़ी-बड़ी बुँदे पड़ी । और लोग तो सोते रहे, किंतु मैं चटपट उठकर अपनी चारपाई पर बैठ गया । ऊपर देखा तो आकाश काले काले बादलों से घिरा हुआ था और बिजली कौंध रही थी ।

वर्षा होने में किसी प्रकार के शक की गुंजाइश नहीं थी । इसलिए मैंने सबको जगाकर सावधान कर दिया और जब तक वे लोग अपना बिछौना समेटकर नीचे जाने की तैयारी करते तब तक वर्षा ने ऐसा जोर मारा कि आधे घंटे तक रुकने का नाम न लिया । हम सव लोग वारिश में तरबतर हो गए थे ।

ग्रीष्म ऋतु के पश्चात् वर्षा का आगमन सुखद और आनंददायक होता ही है । वर्षा होने पर धूप की तपन कम हो जाती है, लू नहीं चलती, हवा में तरावट आ जाती है, धरती की प्यास बुझ जाती है, सूखे तालाब और पोखरे जल से भर जाते हैं, मुरझाए पेड़-पौधों को नया जीवन मिल जाता है और हरे पेड़-पौधे नहा-धोकर मस्ती में झूमने लगते हैं ।

दो-तीन बार अच्छी वर्षा होने से नदियों के पेटे भी जल से भर जाते हैं और वे लहराने लगती हैं । इस प्रकार सारी प्रकृति वर्षा का शीतल जल पाकर प्रफुल्लित हो उठती है । बिजली की कड़क और बादलों के गर्जन के साथ-साथ पपीहे की पुकार, झींगुरों की झनकार, मेढकों की टर्र-टर्र, मोरों का नृत्य आदि सब इतना मोहक दृश्य उपस्थित कर देते हैं कि एक क्षण में ही ग्रीष्म की उदासी हवा हो जाती है ।

वर्षा ऋतु में पर्वतीय दृश्य तो अत्यंत मनोमुग्धकारी होता है । दूर तक फैला हुआ हरा-भरा मस्ती से झूमता वन-प्रदेश, उद्‌दाम यौवन की उमंग में झर-झर झरते पहाड़ी झरने, उनसे उठती हुई दुग्ध-धवल फुहारें तथा उनमें अठखेलियाँ करनेवाली रंग-बिरंगी मछलियाँ, कल-कल निनाद करती सरिताएँ, शीतल पवन का स्पर्श पाकर आनंद-विभोर ऊँचे-ऊँचे वृक्ष एवं उनकी शाखाओं पर प्रकृति के प्रशस्ति-गीत गाते भाँति-भाँति के पक्षी और घने वृक्षों की छाया में विचरण करनेवाले वन्य-पशु एक अनिर्वचनीय सौंदर्य की सृष्टि करते हैं ।

इस सौंदर्य को देखने के लिए जब सैलानियों की टोलियाँ वहाँ पहुँच जाती हैं तब जंगल में मंगल का समाँ बँध जाता है । ‘घिरि आई रे बदरिया सावन की, सावन की मनभावन की’ मधुर ध्वनि से सारा पर्वत-प्रांतर गूँज उठता है ।

वर्षा सब ऋतुओं की रानी है । वसंत ऋतुओं का राजा है । प्रकृति पर दोनों अपने-अपने ढंग से शामन करते हैं । वर्षा रानी अपने शासन-काल में अपने नारी-स्वभाव और मातृत्व के अनुकूल जड़-चेतन का कष्ट दूर कर उनके भरण-पोषण की व्यवस्था करती है । अपने वात्सल्य-रस से वह खेतों को अभिसिंचित कर उन्हें हरा-भरा बना देती है । उसी की ममतामयी कुपा से खेत अन्न के रूप में सोना उगलते हैं ।

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किसान उसके प्यारे पुत्र हैं । वह अपने पुत्रों की आशाओं को फलीभूत करती है और उनका घर अन्न से भर देती है । उसका आगमन जन-कल्याण का सूचक है । वह न आए तो अकाल पड़ जाता है, महामारी फैल जाती है और हजारोंलाखों जावन विना अन्न-जल के तड़प-तड़पकर मर जाते हैं ।

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वर्षा रानी आती है- अपने साथ अपनी प्रजा के लिए भरण-पोषण की सामग्री लेकर । ऋतुराज वसंत की तरह वह अपनी प्रजा का मात्र मनोरंजन ही नहीं करती, वह उसके वर्तमान और भविष्य की सुख-सुविधा का भी प्रोयोजन करती है । उसके लिए एक आध्यात्मिक संदेश भी लेकर आती है । रक्षाबंधन, नागपंचमी, हलषष्ठी, हरतालिका व्रत, संतान सप्तमी व्रत आदि उसके सौभाग्य व्रत हैं ।

योगेश्वर श्रीकृष्ण का जन्म उसी के काल में हुआ था । उसी के काल में विद्यालयों के बंद द्वार नए-पुराने छात्रों के लिए खुल जाते हैं । इस प्रकार वह आषाढ़ मास से भाद्रपद तक फैले अपने शासन-काल में अपनी प्रजा के लिए सबकुछ कर जाती है ।

वर्षा रानी जहाँ अपने शासन-काल में अपनी प्रजा को हर तरह से संतुष्ट करने की सफल चेष्टा करती है वहाँ वह अपने क्षणिक रोष से अपनी प्रजा का भारी अकल्याण भी कर बैठती है । लगातार घनघोर वर्षा से ग्रामों के कच्चे घर-धराशायी हो जाते हैं । पोखरे और तालाब जल-पूरित हो अपनी सीमा का उल्लंघन कर ग्रामों को नष्ट कर देते हैं ।

खेतों में लहलहाती फसल चौपट हो जाती है । आने-जाने के मार्ग बंद हो जाते हैं और सारा दृश्य एक सागर का रूप धारण कर लेता है । नदियों में बाढ़ आने से उनके तट पर बसे गाँव-के-गाँव बह जाते हैं और हजारों ग्रामीण तथा उनके पशु अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं यह दुश्य अत्यंत भयानक होता है ।

खेतों में खड़ी फसल उजड़ जाने से अकाल पड़ जाता है, लोग भूखों मरने लगते हैं; किंतु वर्षा रानी के उपकारों की संख्या इतनी अधिक है कि उनकी तुलना में उनके इन अपकारों की कोई विशेष चिंता नहीं करता । समय धीरे-धीरे पीड़ित प्रजा का घाव भर देता है और प्रजा फिर उत्साह व हर्ष से अपनी रानी का स्वागत कर आनंद-विभोर हो उठती है ।

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