काला धन पर दो निबंध | Read These Two Essays on Black Money in Hindi.

#Essay 1: काला धन पर निबन्ध | Essay on Black Money in Hindi!

वर्तमान समय में रुपए का मूल्य बहुत कम हो गया है अर्थात् रुपए की क्रयशक्ति का अत्यधिक ह्रास हुआ है । यदि सरकार के पास समुचित सोना सुरक्षित भंडार में न हो तो इसका अर्थ है कागजी मुद्रा में वृद्धि होना तथा मुद्रा के मूल्य में कमी होना ।

यही मुद्रास्फीति की स्थिति है । अन्य निर्णयकारी कारण पेपर मुद्रा के निर्णय तथा उपभोक्ता वस्तुओं के समुचित औसत तथा एक दूसरे के समान अनुपात में रहना है। इसके अतिरिक्त एक उत्तेजक कारण काले धन का अस्तित्व है जो एक समानान्तर अर्थ व्यवस्था को पैदा करता है तथा प्रत्यक्ष रूप से तीन कारणों को सम्मिलित रूप से पहुँचाता है ।

अत्यधिक व्यक्तिगत कर आय कर के रूप में, सम्पत्ति कर के रूप में, सम्पत्ति लाभ कर के रूप में तथा उपहार कर के रूप में लगाया जाता है, जिसके बारे में करविज्ञ इस बात का आश्वासन देते हैं कि इस प्रकार के आय-करदाता को अप्रत्यक्ष रूप से वित्तीय घेरे में ले लिया जाता है । अन्य कारण देश में विकास के कारण उपभोक्ता वस्तुओं तथा उत्पादक वस्तुओं में कमी होती है ।

काला अर्थात् गैर कानूनी धन जीवन का एक ध्रुव सत्य बन चुका है । यह एक अच्छी बात केवल तब तक ही है जब तक कि यह धन छिपे हुए खजानों तथा तालों में पड़ा रहता है तथा वितरण, प्रसारण से यह धन बाहर ही रहता है, क्योकि यह उस धन की मात्रा को कम कर देता है जोकि मूल्यों के साथ आँख मिचौली खेलता है ।

काले धन का व्यापार में प्रयोग न किया जाना तथा धन को केवल जोड़कर, छिपाकर रखना एक अच्छा आर्थिक विकास है, क्योंकि यह इस प्रकार धन की मात्रा में कमी करके मुद्रा स्फीति को नियंत्रण में रखता है । लेकिन जिस व्यक्ति के पास काला धन होता है वह उसका प्रयोग करना भी जानता है ।

वह जानता है कि जीवन छोटा है इसलिए जीवन के प्रत्येक क्षण को जिया जाना चाहिए । इसलिए वह अपने घर का विस्तार करता है, घर में बड़े शानो-शौकत एवं ऐय्याशी के साथ रहता है, शादी तथा अन्य उत्सवों पर धन पानी की तरह बहाता है अथवा सोना तथा ऐसे कीमती पत्थर, हीरे-जवाहरात खरीदता है, जिन्हें पास रखने में आसानी होती है ।

काले धन के स्वामी तथा नियन्त्रक काले धन को स्थानीय तथा संसदीय निर्वाचनों में व्यय करने के लिए बचा कर रखते हैं, इसे वह एक प्रकार से उम्मीदवार के ऊपर किया गया अर्थविनियोग समझते है जो बाद में उनके लिए लाभकारी सिद्ध होता है । वे इस बात से अच्छी तरह परिचित होते हैं कि यह अर्थविनियोग एक लम्बे समय का धन स्रोत संयोजन है और इसे वह उम्मीदवार पर उचित समय में प्रयोग करके उससे लाभ उठाते हैं ।

करगत आय से प्रत्यक्ष, स्पष्ट, उत्कृष्ट उपभोग सम्भव नही हैं और इस बात से सभी परिचित भी हैं । लेकिन काले धन को रोशनी, उत्सवों, भोजों पर खर्च करके, आयातित कारों को खरीद कर तथा घर का विस्तार करने के यह सब साधन काले धन को सफेद धन में परिवर्तित करने के तरीके हैं ।

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जब भी विमुद्रीकरण की बात उठाई जाती है तब बहुत से जमाखोरों को इन समाचारों की जानकारी समय से पहले ही लग जाती है और फिर से मुद्रास्फीति का एक नया चक्र प्रारंभ हो जाता है । आज हमारे देश में काले धन के रूप में संचित बहुमूल्य वस्तुएं, सोना बहुमूल्य हीरे-जवाहरात, ऐश्वर्य पूर्ण सुविधाओं से सम्पन्न घर आदि पाए जाते है । आवश्यक रूप से कुछ सीमा तक व्यापक मुद्रास्फीति का कारण अवरोधक के भयवश वितरित मुद्रा है तथापि अत्यधिक रूप से यह वित्त मंत्रालय के द्वारा मुद्रा संचालन, प्रसारण में बढ़ोतरी के कारण होता है ।

यदि प्रत्यक्ष करों का बोझ कम कर दिया जाए तो काले धन के संग्रह में स्वयंमेव कमी आ जाएगी । इसके साथ ही वस्तुओं का उत्पादन विभिन्न अवरोधों को समाप्त करने के परिणाम स्वरूप बढ़ेगा । ये तभी संभव है जब हम अपनी प्रत्येक नियंत्रित वस्तुओं के दोहरे मूल्य स्तर को समाप्त कर देंगे ।

सामान्य रूप से उन उत्प्रेरणाओं को समाप्त किए बिना काले धन की बुराईयों के बारे में अवगत करना, केवल समय का नाश भी होगा । काले धन के जमाखोरों को दिखाए गए, डर तथा अन्य निर्देश केवल उत्तरोत्तर मुद्रास्फीति में परिणत हो जाएंगे ।

इस बुराई को नियंत्रित करने के लिए, काले धन के जमाखोरों को एक प्रकार से प्रतिफल क्षतिपूर्ति ऋण देकर छिपी हुई मुद्रा को दोबारा से बैंक में डालकर मुद्रा-स्फीति को बढ़ाने की अपेक्षा अर्थव्यवस्था में सकारात्मक साधन के रूप में प्रयोग किया जा सकता है ।


#Essay 2: काला धन पर निबंध | Essay on Black Money in Hindi

काला धन, जिसे अंग्रेजी में ‘ब्लेक मनी’ कहा जाता है, ऐसा धन होता है, जो व्यावहारिक रूप से आयकर विभाग की नजर से छुपा हुआ होता है । इस धन का लेखा-जोखा सरकारी कहो में कहीं नहीं होता । यह बड़े-बड़े व्यापारियों, राजनेताओं, अधिकारियों, माफियाओं एवं हवाला कारोबारियों का अघोषित धन होता है ।

काला धन किसी भी अर्थव्यवस्था के विकास में बाधक होता है, क्योंकि यह एक समानान्तर अर्थव्यवस्था को जन्म देने में पूर्णतः सक्षम होता है । ‘अपनी जिस आय पर कोई व्यक्ति समुचित आयकर का भुगतान नहीं करता है, उतना धन व्यक्ति का काला धन हो जाता है ।’

इस तरह, काला धन वैध एवं अवैध दोनों प्रकार के आय स्रोतों से प्राप्त किया जा सकता है । चूंकि आय के अधिकांश बैध स्रोत राज्य को ज्ञात होते है अतः उन पर आयकर ले लिया जाता है, किन्तु अवैध स्रोतों से अर्जित आय का लेखा-जोखा रख पाना एवं उस पर कर लगा पाना सम्भव नहीं होता ।

इसलिए काले धन का मुख्य स्रोत अवैध आय के स्रोत ही होते है । इस आय को छुपाने के लिए लोग ऐसे देशों का रुख करते है, जहाँ आय, कर मुक्त हो । सिंगापुर, मॉरिशस, जर्मनी सहित स्विट्जरलैण्ड आदि ऐसे ही देशों के उदाहरण हैं । स्विस बैंकों में भारतीयों द्वारा काला धन छुपाए जाने की जब-तब भर्त्सना होती रहती है ।

ऐसे में अन्ना हजारे की इन पंक्तियों पर हम सब देशवासियों को गम्भीरता से विचारने की आवश्यकता है- ”क्या यह लोकतन्त्र है ? सभी एक साथ पैसे बनाने आए हैं । मैं खुद को सौभाग्यशाली समझूँगा यदि मैं अपने समाज, अपने देशवासियों के लिए मरता हूँ ।”

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अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भारत के सन्दर्भ में काले धन से सम्बन्धित एक रिपोर्ट तैयार की है, जिसमें कहा गया है कि भारत में काले धन की समस्या देश एवं देश के बाहर की गैर-कानूनी गतिविधियों का परिणाम है ।

इस रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि एशिया की उभरती आर्थिक ताकत के रूप में भारत अहम् है, लेकिन उसे काले धन के कारण देश के भीतर एवं बाहर गैर-कानूनी गतिविधियों मादक पदार्थों के कारोबार, धोखाधड़ी, संगठित अपराध, मानव तस्करी, भ्रष्टाचार, नकली धन एवं अवैध धन वसूली जैसे कई प्रकार के आर्थिक एवं राजनीतिक खतरों का सामना करना पडेगा ।

ग्लोबल फाइनेंशियल इण्टीग्रिटी द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले एक दशक (2002-11) के दौरान भारत से 343.04 अरब डॉलर की राशि काले धन के रूप में देश से बाहर भेजी गई । इस सूची में चीन, रूस, मैक्सिको एवं मलेशिया जैसे देश भारत से भी आगे है ।

वाशिंगटन डी सी स्थित इस शोध एवं एडवोकेसी संगठन के अनुसार, वर्ष 2011 में विकासशील देशों द्वारा लगभग साढ़े नौ सौ अरब डॉलर का काला धन बाहर के देशों में भेजा गया । इस सूची में रूस और चीन के बाद भारत 84.93 अरब डॉलर राशि का काला धन बाहर भेजे जाने वाले देश के रूप में तीसरे स्थान पर है ।

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स्विट्‌जरलैण्ड और जर्मनी के अलावा संसार में ऐसे 69 ठिकाने और है, जहाँ काला धन जमा करने की आसान सुविधा है । इनमें से स्विटूजरलैण्ड सभी देशों की पहली पसन्द है, जहाँ खाताधारकों के नाम गोपनीय रखने सम्बन्धी कानून का सख्ती से पालन किया जाता है ।

यहाँ तक कि बैंकों के बहीखाते में खाताधारी का नाम न लिखकर सिर्फ कोड नम्बर लिखा जाता है । विदेशी बैंकों में जमा काले धन में सिर्फ कर चोरी का धन नहीं रहता, बल्कि भ्रष्टाचार से अर्जित काली कमाई भी उसमें सम्मिलित रहती है ।

दुनिया के बडे-बड़े राजनेताओं, नौकरशाहों, दलालों, व्यापारियों के साथ-साथ आतंकवादियों द्वारा भी खातों को गोपनीय रखने वाले इन बैंकों में काला धन जमा किया जाता है ।  गैर-कानूनी तरीके से विदेशों में जमा काला धन वापस लाने के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2003 में संकल्प पारित किया है, जिस पर भारत सहित 140 देशों के हस्ताक्षर है ।

इस संकल्प को लाकर देशों ने काला धन वसूलना भी प्रारम्भ कर दिया है । इस संकल्प पर भारत ने वर्ष 2005 में हस्ताक्षर किए है । दूर के अनुसार, संकल्प हस्ताक्षर किए बिना विदेशों में जमा धन की वापसी की कार्रवाई नहीं की जा सकती है । स्विट्जरलैण्ड सरकार की संसदीय समिति द्वारा भारत और स्विट्‌जरलैण्ड के बीच हुए समझौते को मंजूरी दे दी गई है, जो भारत के हित में है ।

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विश्व में आई आर्थिक मन्दी के बाद दुनिया के तमाम देशों के द्वारा विदेशों में जमा काला धन वापस लाने का सिलसिला शुरू किया गया । अमेरिका पर ओसामा-बिन-लादेन द्वारा किए गए 9/11 के हमले के बाद ही इस बात का खुलासा हुआ कि धन खातों को गोपनीय रखने वाले बैंकों में जमा करता था फलस्वरूप जर्मनी द्वारा काला धन जमा करने वाले खाताधारियों के नाम बताए जाने के लिए स्विट्जरलैण्ड पर दबाव बनाया गया ।

तत्पश्चात् झली, क्रास, अमेरिका, भारत एवं ब्रिटेन भी स्विट्जरलैण्ड पर काला धन जमा करने वालों के नाम बताने का दबाव बनाने लगे । अमेरिका की बराक ओबामा सरकार के दबाब में आकर वहाँ के यूबीए बैंक ने न सिर्फ काला धन जमा करने वाले 17 हजार अमेरिकियों के नामों की सूची जारी की, बल्कि उसने 78 करोड़ डॉलर राशि के काले धन की वापसी भी कर दी ।

इसी बैंक से सेवानिवृत्त हुए एक अधिकारी रूडोल्फ ऐल्मर ने विकिलीक्स के सम्पादक जूलियन असांजे को 2000 भारतीय खाताधारियों की सूची सौंपे जाने का दावा भी किया है । ऐसे में भारत में काले धन की वापसी की उम्मीद और भी बढ़ जाती है ।

एक अनुमान के अनुसार, देश का Rs.35 लाख करोड़ राशि का काला धन विदेशी बैंकों में जमा है, जिनमें जेनेवा स्थित एचएसबीसी बैंक के 782 खातों में Rs.3,000 करोड़ जमा होने की आशंका है । आयकर विभाग द्वारा एचएसबीसी बैंक के इन खाताधारियों के नाम उजागर किए जाने और जमा किया हुआ काला धन हाथ से चले जाने के डर से विश्व के अन्य देशों के साथ-साथ भारतीयों द्वारा भी विदेशी बैंकों में रखा धन चोरी-छिपे वापस लाया जा रहा है ।

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स्विस नेशनल बैंक के अनुसार, वर्ष 2011 में स्विस बैंकों में भारतीयों की जमा राशि Rs.14000 करोड़ थी, जो वर्ष 2012 में घटकर Rs.9,000 करोड़ रह गई है । देश के काले धन को सामने लाने के लिए अब तक भारत सरकार द्वारा कई प्रयास किए गए हैं ।

स्वतन्त्रता प्राप्ति के साथ ही आयकर जाँच आयोग का गठन किया गया, जिसके द्वारा Rs.30 करोड़ की कर वसूली सम्भव हुई । स्वैच्छिक आय प्रकटीकरण योजना के द्वारा भी बडी राशि के रूप में कर वसूली की गई रिसर्जेण्ट इण्डिया ब्राण्ड ने भी कर वसूली में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है ।

भारतीय द्वारा विदेशों में बडे स्तर पर जमा किए गए काले धन को बापस अपने देश में लाने के लिए बाबा रामदेव के द्वारा भी जोर-शोर से आवाज उठाई गई थी । उच्चतम न्यायालय द्वारा भी काले धन से जुढ़े खातों की जानकारी सार्वजनिक न किए जाने पर केन्द्र सरकार की कई बार खिंचाई की गई है ।

वर्ष 2014 में केन्द्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद काले धन पर नियन्त्रण हेतु उच्चतम न्यायालय के निर्देशानुसार स्पेशल इंवेस्टिगेशन टीम (SIT) का गठन किया गया । जस्टिस एम बी शाह को इसका अध्यक्ष बनाया गया । विशेष जाँच दल के गठन से विदेशी बैंकों में जमा काले धन की वापसी की नई आस जगी है ।

सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्टर टैक्सेज (सीबीडीटी) के अन्तर्गत कार्य कर रही जाँच एजेंसी ने स्विस बैंक द्वारा 100 भारतीयों के काले धन की सूची प्राप्त होने की बात कही है, हालाँकि अभी उनके नाम सार्वजनिक नहीं किए गए है । फरवरी, 2014 में स्विट्‌जरलैण्ड एवं भारत के विशेषज्ञ प्रतिनिधिमण्डल के बीच दिल्ली में एक बैठक हुई थी ।

फेडरल डिपार्टमेण्ट ऑफ फाइनेंस के प्रवक्ता नेबर्न ने कहा था कि दोनों देशों के बीच दोहरी कराधान बचाव सन्धि के अनुरूप सूचनाओं का आदान-प्रदान किया जाता है इधर भारत सरकार द्वारा दूसरे देशों के माध्यम से की जाने बाली कर चोरी पर लगाम लगाने एवं देश में विदेशी निवेश को बढ़ावा देने के लिए अमेरिक जगहों पर आयकर इकाइयाँ तैनात की गई हैं ।

मॉरिशस एवं सिंगापुर में ऐसी इकाइयाँ तैनात की गई हैं । मॉरिशस एवं सिंगापूर में ऐसी इकाइयां पहले से कार्यरत हैं, जिनके सकारात्मक परिणाम मिल रहे हैं । हमारी वर्तमान विदेश मन्त्री श्रीमती सुषमा स्वराज की वर्ष 2014 के अन्त में हुई मॉरिशस यात्रा के दौरान वहाँ के विदेश मन्त्री श्री अरविन बुलेल ने भरोसा दिलाया है कि उनका देश काले धन की जाँच कर रहे भारत के विशेष जाँच दल (SIT) की मदद करेगा ।

काले धन को लेकर दुनियाभर में स्विट्जरलैण्ड की कड़ी आलोचना होने एवं सभी देशों द्वारा दबाव डाले जाने के फलस्वरूप स्विस बैंकों ने अपने नियमों में परिवर्तन कर सिर्फ उन्हीं परिसम्पत्तियों को जमा रखने का निर्णय लिया है, जिनका कर चुका दिया गया हो ।

इसके साथ ही विदेशी राष्ट्रों को स्विस बैंकों में रखे काले धन की जाँच में सहयोग करने हेतु स्विट्जरलैण्ड की सरकार ने ऐसे संदिग्ध भारतीयों की सूची भी तैयार कर ली है, जिन्होंने स्विस बैंकों में काला धन जमा किया है और वह जल्द ही इसका ब्यौरा भारत सरकार से साझा करेगी ।

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इधर हाल में भारत सरकार ने उच्चतम न्यायालय को उन 18 व्यक्तियों के नामों की जानकारी दी है, जिन्होंने जर्मनी के लिस्टेसटीन बैंक में काला धन जमा कर रखा था । इसके साथ ही केन्द्र की वर्तमान भाजपा सरकार ने जेनेवा स्थित एचएसबीसी बैंक के 627 भारतीय खाताधारकों की सूची भी उच्चतम न्यायालय को सौंप दी है, जिनमें से 250 लोगों ने विदेशों में बैंक खाते होने की बात स्वीकार की है और 427 लोगों की पहचान भी कर ली गई है पर अभी उनके नामों का खुलासा नहीं किया गया है ।

नि:सन्देह यह काले धन से जुड़ी सफलता है । हमारे वर्तमान वित्त मन्त्री श्री अरुण जेटली का कहना है- ”सैरकार विभिन्न देशों के साथ हुई कुछ द्विपक्षीय कर सन्धियों पर पुनर्विचार कर रही है, जिनकी वजह से काला धन वापस लाने में अड़चन पैदा हो रही है ।”

वास्तव में, स्विट्जरलैण्ड यह कहकर कि एचएसबीसी की सूची चुराई गई है, भारत को सहयोग करने से इनकार कर रहा है । नवम्बर, 2014 में जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान हमारे प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने काले धन के अस्तित्व और उसकी वापसी के मुद्दे को विश्व समुदाय के समक्ष जोरदार दग से उठाया था, फलस्वरूप समूह के देशों ने काले धन के मुद्दे पर भारत के रुख का समर्थन करते हुए कर सूचनाएँ देने एवं पारदर्शिता की जरूरत का अनुमोदन किया ।

इससे काले धन की वापसी की आस फिर से बढ गई है । ऐसा काला धन जो विदेशी बैंकों में जमा है अथवा जो विदेशी कारोबारों में लगा है, उसके कड़े तो सही-सही मिल सकते हैं, किन्तु जिन लोगों के पास ये घर, जमीन, बैंक लॉकर्स या तिजोरियों में बन्द पडा है, उसका अनुमान लगाना बेहद मुश्किल है ।

काले धन की समस्या के समाधान के लिए विभिन्न देशों के साथ दोहरी कराधान सन्धि के साथ-साथ विमुद्रीकरण की नीति को व्यवहार में लाना लाभप्रद हो सकता है । विमुद्रीकरण का अर्थ होता है-रुपये का पुनर्मुद्रण ।

जब अर्थव्यवस्था में काला धन बढ जाता है, तो इसे दूर करने के लिए सरकार द्वारा विमुद्रीकरण की नीति अपनाई जाती है । इसमें पुरानी मुद्रा के स्थान पर नई मुद्रा को प्रचलन में लाया जाता है, परिणामस्वरूप जिसके पास काला धन होता है, बह उसके बदले नई मुद्रा लेने का साहस नहीं कर पाता एवं काला धन स्वयं नष्ट हो जाता है ।

देश में काले धन की रोकथाम के लिए बड़े नोटों की जगह छोटे नोटों की व्यापक पैमाने पर छपाई की जानी चाहिए, क्योंकि बड़े नोटों की सुगमता के कारण यहाँ अधिकतर लेन-देन नगद में होता है, जिससे काले धन को बढ़ावा मिलता है ।

भारत के रिजर्व बैंक के गवर्नर श्री रघुराम राजन का कहना है- ”हमे इस बात पर ध्यान देने की जरूरत है कि विदेशों में काला धन जमा कराने को रोका कैसे जाए? हमें उच्च वर्ग को प्रोत्साहन देने हेतु कर दरों को नीचे लाना होगा ।

हमें स्रोत पर ही काले धन पर अंकुश लगाना चाहिए और ऐसे धन को दूसरे देशों में छिपाने को मुश्किल करना चाहिए । हमें प्रणाली में सुधार करने की जरूरत है और इस धन को पैन कार्ड या आधार कार्ड का इस्तेमाल अनिवार्य कर औपचारिक प्रणाली में लाया जाना चाहिए ।”

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प्रायः देखा जाता है कि काले धन को बाहर निकालना इसके मालिकों के प्रभाव के कारण ही सम्भव नहीं हो पाता । यदि आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों को कहीं भी निर्वाचित न किया जाए, तो भी काले धन को काफी हद तक बाहर लाया जा सकता है ।

इसके साथ-साथ काले धन पर नियन्त्रण के लिए करो की बसूली भी सही ढंग से की जानी अनिवार्य है । इसके लिए आयकर विभाग को नियमित रूप से व्यापारियों एवं राजनेताओं के विभिन्न ठिकानों पर छापा मारना होगा । देश की उन्नति एवं जनता के कल्याण हेतु काले धन की वसूली अत्यावश्यक है ।

आचार्य चाणक्य के कहे इन शब्दों को अपने जीवन में चरितार्थ कर हम अपने देश से काले धन की समस्या दूर कर सकते हैं-

”हमें पैसे कमाने के सही साधनों और पैसे खर्च करने के

सही तरीकों पर बार-बार विचार करना चाहिए ।”