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जंगल का राजा: शेर  | Tiger in Hindi!

शेर की गति, उसका गठा हुआ सुन्दर शरीर, फुर्ती आदि विशेषताएं भारतीय और विदेशियों को इतनी अधिक पसन्द आईं कि उसे विज्ञापन उद्योग ने नाना रूपों में चित्रित किया है । कार, स्कूटर, ट्रक आदि की गति के विज्ञापनों में भी इसे प्रयुक्त किया जाता है । अपने इस प्यारे जीव के विषय में मनुष्य बहुत कम ज्ञान प्राप्त कर सका है ।

सिन्धु घाटी से प्राप्त मुद्राओं पर शेर को अनेक रूपों में चित्रित किया गया है । इससे ज्ञात होता है कि वह पाँच हजार साल पहले उस प्रदेश में शेर बहुत संख्या में पाए जाते थे । आज भी भारत सरकार बहादुरों को शेर-ऐ-पंजाब और शेर-ए-काश्मीर की उपाधि से विभूषित करती है ।

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स्वाभाविक रूप से मृत शेर जंगल में कम ही मिलते हैं । शेर के शरीर में चीचड़ चिपके रहते हैं जो उसका खून चूसते हैं, उनसे बचने के लिए वह मिट्‌टी में लोट लगाता है । शेर के तलवे अत्यन्त नाजुक होते हैं इसलिए वह तपती भूमि पर नहीं चलता । यदि कभी मजबूरी में उसे चलना पड़ जाए, तो उसके तलवों में छाले पड़ जाते हैं ।

शेर की अपसी लड़ाई मैं यदि लड़ते समय उसे घाव हो जाए और वह जीभ से साफ न कर सके तो उसमें सफद कीड़े हो जाते हैं और उसकी मृत्यु तक हो जाती है । शेर की आयु लगभग 25 साल की मानी जाती है । अच्छी देखभाल होने पर यह अधिक समय तक भी जीवित रहते हैं । सर्दियों में इसकी त्वचा अधिक सुन्दर हो जाती है, इसलिए शिकारी सदिर्यो में इसका शिकार करते हैं । नर सिंह मादा सिंह से अधिक बड़ा होता है । उसकी दहाड़ बहुत ऊँची होती है और देर तक कायम रहती है ।

शेरनी के बच्चे प्रारम्भ में उन्हें और असहाय होते हैं । इसलिए वह उन्हें अपना दूध पिलाती है और घर पर मांस लाकर देती है । बच्चों की त्वचा कोमल होती है । इसलिए शेरनी गरदन की कोमल त्वचा को मुंह में दबाकर उन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाती है ।

जिस प्रकार कुत्ता अपनी गली में शेर होता है उसी प्रकार शेर भी अपने इलाके में दूसरे शेर का नहीं आने देता । शेर जंगल में जानवरों का मांस खाना बेहद पसन्द करता है । यदि वह उसे न मिले तो वह भैंस आदि पशुओं को उठाकर ले जाता है । भूखा शेर गाँव के बेगुनाह लोगों को उठाकर ले जाता है । यदि उसे आदमी का खून लग जाए तो वह नरभक्षी हो जाता है और बार-बार उनकी हत्या करता है ।

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शेर पानी के अन्दर रहना बेहद पसन्द करता है । इसलिए गर्मी में उसका निवास किसी जोहड़ के निकट होता है । वह अच्छा तैराक भी है । पानी की धारा में मीलों तक तैर जाता है । प्राचीन राजा अपने मेहमानों को शेर के शिकार के लिए आमन्त्रित करते थे ।

भारत शेरों के लिए प्रसिद्ध रहा है । विदेशी मुद्रा कमारे के लिए इस खूबसूरत जानवर का शिकार किया जाता है । इसलिए दिन-प्रतिदिन इसकी मेंग्व्या में कमी आती गई । विदेशी घरों में शेर की खाल और सिर लटकाते है । लेकिन भारत में प्रचलन कम हैं । कारण है कि शेर की खाल महंगी होती है और घरों में मुर्दों की लाश लटकाना बुरा माना जाता है ।

सरकार द्वारा शेर के शिकार पर प्रतिबन्ध लगा दिए जाने के बाद भी शिकार तो होते रहे और खालें महँगी होती गई । इस समस्या का समाधान केन्द्रिय वन और पर्यावरण मन्त्रालय ने यह निकाला कि प्राप्त जानवरों की खालों, हाथी दांत आदि में आग लगा दी जाए जिससे यह दुबारा उपयोग में न आ सकें ।

18 अप्रैल, 1991 को केन्द्रीय वन और पर्यावरण राज्य मंत्री मेनका गाँधी ने प्रगति मैदान के निकट अठहत्तर लाख रूपये की जानवरों की खाल की होली जलाई । इनका मत था कि यह माल दुबारा तस्करों के हाथ नहीं लगेगा ।

लेकिन दूसरे लोगों का मत था कि इन खालों को म्यूजियम में रख दिया जाए । प्रत्येक जानवर से सम्बन्धित जानकारी को उसके नीचे लिख दिया जाए, जिससे आम नागरिकों को भी वन्य जीवों के बारे में जानकारी मिल सकें । इस प्रकार देश की दुर्लभ सम्पदा को खाक में मिलने से बचाया जा सकता है ।

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