”प्रजातंत्र के सभी दोषों के बावजूद मैं उसे पसंद करता हूँ ” (निबन्ध) | Essay on “Democracy, With All Thy Faults I Love Thee” in Hindi!

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प्रजातांत्रिक शासन व्यवस्था में असंख्य कमियाँ और हानियां है । यह पूर्णत: दोषमुक्त नहीं हो सकती हैं । कई प्रकार के विधानों, संवैधानिक कार्य प्रणाली के होते हुए भी इसमें पूर्णत: कानून का शासन लागू नहीं होता । सत्ता मुट्‌ठीभर लोगों के हाथों में होती है, जो एक प्रकार की तानाशाही का ही सूचक है ।

यह बुरी सरकार के दोषों से मुक्त नहीं है । यह भी सच है कि प्रजातंत्र में अन्य शासन प्रणालियों की अपेक्षा दोष और बुराइयाँ कम हैं । अमरीकी स्वतंत्रता युद्ध के बाद यहाँ के वरिष्ठ नेताओं ने जनता के लिए, जनता द्वारा निर्मित जनता की सरकार के आदर्श को प्रस्तुत किया, जिसे सभी देशों ने स्वीकार किया ।

जार्ज बर्नाडशाँ के अनुसार, ”प्रजातंत्र एक सामाजिक व्यवस्था है, जिसका लक्ष्य जनता का यथासंभव अधिकतम कल्याण करना है न कि किसी एक वर्ग का ।” प्रजातंत्र की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि सम्मति और समानता के सिद्धांतों पर आधारित है ।

शक्ति नहीं अपितु स्वेच्छा ही राज्य का आधार है । प्रजातंत्र में सभी नागरिकों को कानून का संरक्षण प्राप्त है, उन्हीं की सहायता और सम्मति से सरकार शासन करती है । इस प्रकार प्रजातंत्र के सम्बन्ध में अरस्तु का मत कि कुछ लोग आज्ञा देने और अन्य मानने के लिए जन्म लेते हैं को नकारता है ।

यह इस मान्यता पर आधारित है कि सभी व्यक्ति चाहे अच्छे हों या बुरे शिक्षित हों या अशिक्षित, सभ्यता के विकास के लिए आवश्यक हैं । सभी को समानता की दृष्टि से देखना चाहिए । प्रजातंत्र शासक और शासनाधीन में विभाजन नहीं करता है । कुछ जागरूक लोग अपने बच्चों को समानता का पाठ पढ़ाते हैं, जो प्रजातांत्रिक प्रणाली के अनुरूप हैं ।

प्रजातंत्र नागरिकों से विचारों की परिपक्वता, निष्पक्षता, समायोजन के उत्साह की कामना करती है । किसी भी व्यक्ति की प्रतिभा का विकास समाज के बंधनों में घिर कर नहीं हो सकता । प्रजातंत्र आज की सभी शासन व्यवस्थाओं से बेहतर और औचित्यपूर्ण है । यह नागरिकों के व्यक्तित्व के विकास और आत्माभिव्यक्ति के लिए स्वस्थ वातावरण का निर्माण करता है ।

इसमें लोगों को शासन की आलोचना करने का अधिकार होता है । इसमें शासन के किसी कार्य के संबंध में स्पष्टीकरण माँगा जा सकता है, जो कि अन्य प्रकार की प्रणालियों में संभव नहीं हैं । इस कारण कई प्रकार के विवादों से यह शासन प्रणाली दूर हैं ।

प्रजातंत्र में प्रेस को पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त है इसके अतिरिक्त स्वतंत्र न्यायपालिका और विशेष मूल अधिकारों का विधान है । प्रजातंत्र में सर्वोच्च सत्ता संसद की हैं । यह जनता द्वारा चुने प्रतिनिधियों से मिलकर बनती है । संसद प्रजातांत्रिक व्यवस्था का सबसे महत्वपूर्ण अंग है ।

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स्वतंत्र संसद के बिना प्रजातंत्र संभव नहीं है । यह शासन व्यवस्था में निश्चित समय पर चुनावों का आयोजन किया जाता है । देश के शासन को सुचारू रूप से चलाने के लिए विरोधी दल सशक्त भूमिका अदा करते हैं । सरकार के नीतिविरोधी कार्यो की आलोचना के द्वारा विरोधी दल जनकल्याण के कार्यो में सराहनीय योगदान देते हैं ।

भारत में विशेष रूप से दिल्ली में राजनीतिक हस्तियों जैसे स्व. राजनारायण आदि के संबंध में टीका-टिप्पणी करना आम बात है । लेकिन प्रजातंत्र की रक्षा के लिए उन्होंने स्व. श्रीमती गांधी के विरुद्ध लोकसभा के चुनाव के संबंध में न्यायालय में मुकदमा दायर किया था जिसमें उन्हें विजय मिली थी ।

एक बार फिर 1977 में आपातकालीन स्थिति की समाप्ति के बाद जो आम चुनाव हुए उनमें उन्होंने श्रीमती गांधी को उन्हीं के चुनाव क्षेत्र में हराकर राजनैतिक इतिहास में नया अध्याय जोड़ा था । इस प्रकार की घटनाएं प्रजातंत्र में ही संभव है । चुनाव सत्तारूढ़ दल के वर्चस्व को चुनौती देते है और आम आदमी की महत्ता को सिद्ध करते हैं ।

प्रजातंत्र ही सर्वोच्च सत्ता से प्रश्न पूछने का अधिकार प्रदान करता है । न्यायालय और संसद दोनों में किसी कार्य के प्रति स्पष्टीकरण मांगा जा सकता है । प्रत्येक मंत्री संसद के प्रति जवाबदेह होता है । किसी अन्य शासन व्यवस्था में यह संभव नहीं हैं ।

अत: सब विचारों को ध्यान में रखकर यह कहा जा सकता है कि प्रजातंत्र अन्य सभी शासन प्रणालियों से श्रेष्ठ हैं । इसके अवगुणों – भ्रष्टाचार, जातीयता, अभावों, अवसरवादिता, भाई-भतीजावाद, दलबंदी, पक्षपात, दल-बदल आदि के बावजूद इसी के माध्यम से मानवजाति का विकास संभव है । मैं इसलिए प्रजातंत्र को पसंद करता हूँ क्योंकि इससे उत्तम शासन प्रणाली इस संसार में उपलब्ध नहीं ।

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