मुक्त विश्वविद्यालय-लाभ एवं हानियाँ पर निबन्ध | Essay on Open University : Pros and Cons in Hindi!

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सन् 1969 में जब इंग्लैंड में प्रथम मुक्त विश्वविद्यालय की स्थापना हुई थी, तब इसकी बहुत चर्चा हुई थी । विश्वविद्यालय से पहले ‘मुक्त’ विशेषण के लिए कई प्रकार के तर्क दिए गए थे ।

इस विश्वविद्यालय को बहुत से नाम दिए गए थे – ‘ बिना दीवारों का विश्वविद्यालय ‘ ‘ टेलीविजन विश्वविद्यालय ‘ ‘ हवा में विश्वविद्यालय ‘ आदि । अंत में खुला अथवा मुक्त विश्वविद्यालय नाम स्वीकार्य हुआ । कई वर्षो के बाद यह इंग्लैंड का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय बन गया है, जिसमें 1,00,000 से भी अधिक विद्यार्थी पढ़ते हैं ।

यह लगभग 62,000 स्नातक उपाधियाँ प्रदान कर चुका है । लगभग 5,000 उपाधियाँ प्रत्येक वर्ष दी जाती है । भारत सहित कई देशों ने पत्राचार द्वारा शिक्षा तकनीक को सराहा और स्वीकार किया है । इंग्लैंड में पारम्परिक शिक्षा के विकल्प के रूप में मुक्त विश्वविद्यालय की स्थापना हुई, लेकिन आज दोनों ही प्रकार की शिक्षा प्रणालियाँ देश में शिक्षा के प्रसार की महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं । भारत में 19 नवम्बर, 1985 को इंदिरा गांधी मुक्त विश्वविद्यालय की स्थापना से देश में शिक्षा के क्षेत्र में नवीन अध्याय का शुभारंभ हुआ ।

इस स्वायत्त संस्था की स्थापना सितम्बर, 1985 में संसद के अधिनियम द्वारा हुई । इस विश्वविद्यालय के प्रथम उपकुलपति प्रो. रामा रेड्‌डी के अनुसार यह किसी भी उम्र के, किसी भी व्यक्ति को, किसी भी स्थान पर, किसी भी साधन द्वारा शिक्षा प्रदान करता है । इसका उद्देश्य ”उच्च शिक्षा में लचीलापन, गुणवत्ता और सुगमता लाना हैं ।”

मुक्त विश्वविद्यालय के प्रवेश द्वारा सभी के लिए खुले हैं, इसके लिए केवल निश्चित स्तर से संबंधित परीक्षा में सफल होना पड़ता है । अन्य विश्वविद्यालयों में भी प्रवेश प्राप्ति का तरीका यही है लेकिन इंदिरा गांधी मुक्त विश्वविद्यालय के मापदण्ड में लचीलापन हैं, इसमें प्रवेश प्राप्ति के लिए किसी प्रकार के प्रमाण पत्रों की आवश्यकता नहीं होती । खुलेपन से तात्पर्य व्यर्थता से नहीं हैं ।

हमारे यहां अशिक्षा की दर ब्रिटेन से कहीं अधिक है । मात्र प्रवेश प्राप्ति ही अशिक्षा का समाधान नहीं है । इसलिए भारत में यह उतना ही ‘मुक्त’ होना चाहि, जितने से इसकी सार्थकता बनी रहे । इसका एक मापदण्ड यह होना चाहिए कि विद्यार्थी मानसिक रूप से परिपक्व और योग्य हो । ऐसा मापदंड पश्चिमी देशों में लागू नहीं किया जा सकता, जहाँ विद्यालयी शिक्षा अनिवार्य हैं ।

किसी भी शिक्षा प्रणाली में प्रवेशप्राप्ति के कुछ निश्चित मापदंड होते हैं । परम्परागत शिक्षा संस्थानों और मुक्त विश्वविद्यालय में प्रवेशप्राप्ति का अधारभूत अंतर यह है कि मुक्त विश्वविद्यालय में प्रवेश प्राप्ति के लिए शैक्षणिक योग्यता की आवश्यकता नहीं होती हैं । इसमें प्रवेश पाने के लिए विद्यार्थी को विद्यालय अथवा विश्वविद्यालय में बहुत से वर्ष लगाने की आवश्यकता नहीं होती हैं ।

मुक्त विश्वविद्यालय की विशिष्टता यह है कि इसमें शिक्षा प्राप्ति के तरीके में मुक्तता हैं । पारम्परिक विश्वविद्यालयों में सीमित संख्या में विद्यार्थियों को एक कक्षा में पढ़ाकर शिक्षा दी जाती है । इसके अपवादस्वरूप मुक्त विश्वविद्यालय में लिखित सामग्री के साथ-साथ रेडियों, टेलीविजन, अन्य संचार-सेवाओं के माध्यम से शिक्षा प्रदान की जाती है । इस प्रकार की शिक्षा के प्रति रुचि रखने वाले सभी व्यक्ति यहाँ प्रवेश कर सकते है ।

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यह विश्वविद्यालय एक बड़ी संख्या के वर्ग को शिक्षा प्रदान करने और देश में शिक्षा के प्रसार का महत्वपूर्ण कार्य निभा रहा है । इसका मूल उद्देश्य शिक्षा को जीविका की आवश्यकताओं से जोड़ना है । जो व्यक्ति किसी कारणवश शिक्षा प्राप्त करने में असमर्थ थे, उन्हें यह शिक्षा प्रदान कराता है ।

यह प्रत्येक श्रेणी से संबंधित शहरी और ग्रामीण, युवा और वृ, गृहिणी, स्व-उद्यमी आदि के लिए सामान्य और विस्तृत शिक्षा की दीर्घ-कालिक और लघु-कालिक योजना को प्रोस्तुत करता है । प्रो. रामा रेड्‌डी के अनुसार इसका मुख्य लक्ष्य शिक्षा को कक्षा के सीमित दायरे से स्वतंत्र करना है ।

यह विश्वविद्यालय आधुनिक तकनीकों और बहुस्रोतीय साधनों के माध्यम से सर्टिफिकेट, डिप्लोमा, स्नातक और स्नातकोत्तर उपाधियाँ आदि प्रदान करता है । यह शोध की सुविधा भी प्रदान करता हैं । इसके केन्द्र देश के विभिन्न विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में स्थापित हैं यहाँ प्रयोगशाला, पुस्तकालय, रेडियो, टेलीविजन आदि की सुविधाएं प्रदान की जाती है ।

इन शिक्षा केन्द्रों में परस्पर संबंध स्थापित करने के लिए स्थानीय केन्द्रों को खोला जा रहा है । इस विश्वविद्यालय की उपयोगिता को देखते हुए भारत में इस योजना को फलने-फूलने के अवसर दिए जा रहे हैं । मुक्त विश्वविद्यालय द्वारा शिक्षा की प्रणाली अधिक खर्चीली नही है और साथ ही यह पिछड़े इलाकों तक आराम से पहुँच सकती है क्योंकि मूलत: यह पत्राचार पर आधारित होती है और संचार की सुविधाओं का लाभ भी उठाया जा सकता है ।

इस तरीकें से यह पूरे भारत में शिक्षा प्रसार का साधन बना हुआ है । निर्धन और पिछड़े लोगों को शिक्षा प्रदान करने का यह सफलतम उपाय है । इसके माध्यम से शिक्षा देश के समस्त भागों तक पहुँच जाएगी ।