आदर्श विद्यार्थी पर निबंध | Essay on Ideal Student in Hindi!

आदर्श विद्यार्थी का अर्थ है- श्रेष्ठ आचरण करने वाला विद्यार्थी । वैसे तो मानव जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त कुछ न कुछ सीखता है परन्तु जीवन में विद्या प्राप्त करने की विशेष अवस्था को विद्यार्थी-जीवन कहते है । विद्या को नियमित रूप से प्राप्त करने वाला विद्यार्थी कहलाता है ।

विद्यार्थी का आदर्श विद्या-प्राप्ति है, किन्तु आदर्श विद्यार्थी अन्य विद्यार्थियों के लिए आदर्श होता है । आदर्श विद्यार्थी विद्या प्रेमी होता है । वह केवल पुस्तकों का अध्ययन ही नहीं करता अपितु मनन भी करता है । कक्षा में प्रथम श्रेणी प्राप्त करने के लिए आलस्य-रहित होकर स्वाध्याय करता है ।

आदर्श विद्यार्थी विद्या के प्रति कभी भी उदासीन नहीं होता । वह अपना पाठ नित्य स्मरण करता है । वह जिज्ञासु प्रवृत्ति का विद्यार्थी होता है और हर क्षण कुछ न कुछ सीखने के लिए तैयार रहता है । यदि उसे स्वयं नहीं आता तो वह अपने से छोटों से भी पूछने में अपना अपमान नहीं समझता ।

वह विद्यार्थी-जीवन के अमूल्य महत्व को ध्यान में रखकर विद्या-प्राप्ति के प्रति असावधानी नहीं बरतता । कठोर परिश्रम करके विद्या प्राप्त करना उसका एकमात्र लक्ष्य होता है क्योंकि यही विद्या उसे विनयशील बनाती है ।

आदर्श विद्यार्थी का यह अर्थ कदापि नहीं कि वह मात्र किताबी-कीड़ा बना रहे । उसे विद्याध्यन के साथ-साथ खेलकूद में भी भाग लेना चाहिए । ”स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है” इस बात को ध्यान में रखकर खेल के समय खेल और पढ़ाई के समय पढ़ना चाहिए ।

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”सादा जीवन उच्च विचार” के सिद्धान्तों का आदर्श विद्यार्थी को सदैव पालन करना चाहिए । उसे शरीर को सुन्दर बनाने वाले सजावटी वस्त्र और आभूषणों के उपयोग बचना चाहिए । क्योंकि यह सौन्दर्य प्रसाधन विद्यार्थी को अपनी ओर खींचते हैं जिससे उनका बालक मन विद्याध्ययन से दूर हो जाता है । उच्च विचार रखने वाला मन कलुषित हो जाता है ।

आदर्श विद्यार्थी का उद्देश्य होता है कि सदाचार और आदशवान् बनकर अपने अन्य सहपाठियों को अपने नैतिक गुणों द्वारा प्रभावित करना । वह अपने गुरुजनों और माता-पिता का सदैव सम्मान करता है । अपने सहपाठियों के प्रति प्रेम भाव रखता है और कष्ट में उनकी सहायता करता है ।

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घर के आवश्यक कार्यों में सहयोग देता है । सन्तुलित और पौष्टिक आहार ग्रहण करता है । सबसे मेल-मिलाप की भावना के कारण उसके शत्रु भी नहीं होते । वह नियम पूर्वक विद्यालय जाता है और अपना गृहकार्य भी पूर्ण करता है ।

आदर्श विद्यार्थी को अहंकार और क्रोध से दूर रहना चाहिए । परोपकारी बनकर नि:स्वार्थ भाव से दूसरों को सेवा करनी चाहिए । मधुर भाषी और सत्य-वक्ता होना चाहिए । महात्माओं के जीवन-चरित्र पढ़कर उन्हीं गुणों को आत्मसात करना चाहिए अर्थात् उनके जैसा बनने की कोशिश करनी चाहिए ।

आदर्श विद्यार्थी अपने आदर्श कार्यों और नैतिक आदर्शों के द्वारा सब के हृदय पर छा जाता है । वही राष्ट्र का भावी कर्णधार बनता है ।

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