आदर्श विद्यार्थी पर निबंध | Essay on Ideal Student in Hindi!

विद्‌यार्थी जीवन को मनुष्य के जीवन की आधारशिला कहा जाता है । इस समय वह जिन गुणों व अवगुणों को अपनाता है वही आगे चलकर चरित्र का निर्माण करते हैं । अत: विद्‌यार्थी जीवन सभी के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है ।

एक आदर्श विद्‌यार्थी वह है जो परिश्रम और लगन से अध्ययन करता है तथा सद्‌गुणों को अपनाकर स्वयं का ही नहीं अपितु अपने माँ-बाप व विद्‌यालय का नाम ऊँचा करता है । वह अपने पीछे ऐसे उदाहरण छोड़ जाता है जो अन्य विद्‌यार्थियों के लिए अनुकरणीय बन जाते हैं ।

एक आदर्श विद्‌यार्थी सदैव पुस्तकों को ही अपना सबसे अच्छा मित्र समझता है । वह पूरी लगन और परिश्रम से उन पुस्तकों का अध्ययन करता है जो जीवन निर्माण के लिए अत्यंत उपयोगी हैं । इन उपयोगी पुस्तकों में उसके विषय की पुस्तकों के अतिरिक्त वे पुस्तकें भी हो सकती हैं जिनमें सामान्य ज्ञान आधुनिक जगत की नवीनतम जानकारियाँ तथा अन्य उपयोगी बातें भो होती हैं ।

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एक आदर्श विद्‌यार्थी सदैव परिश्रम को ही पूरा महत्व देता है । वह परिश्रम को ही सफलता की कुंजी मानता है क्योंकि प्रसिद्‌ध उक्ति है:

”उद्‌यमेन ही सिद्‌धयंति कार्याणि न मनोरथे,

न हि सुप्तस्य सिहंस्य प्रविशंति मुखे मृगा: ।

आदर्श विद्‌यार्थी अपने अध्यापक अथवा गुरुजनों का पूर्ण आदर करता है । वह उनके हर आदेश का पालन करता है । अध्यापक उसे जो भी पढ़ने अथव याद करने के लिए कहते हैं वह उसे ध्यानपूर्वक पढ़ता है ।

कक्षा में जब भी अध्यापक पढ़ाते हैं तब वह उसे ध्यानपूर्वक सुनता है । वह सदैव यह मानकर चलता है कि वह गुरु से ही संपूर्ण ज्ञान प्राप्त कर सकता है । गुरुजनों के अतिरिक्त वह अपने माता-पिता की इच्छाओं एवं निर्देशों के अनुसार ही कार्य करता है ।

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किसी भी विद्‌यार्थी के लिए पुस्तक ज्ञान आवश्यक है परंतु मात्र पुस्तकों के अध्ययन से ही सर्वांगीण विकास नहीं हो सकता है । अत: एक आदर्श विद्‌यार्थी पढ़ाई के साथ खेल-कूद व अन्य कार्यकलापों को भी उतना ही महत्व देता है । खेल-कूद व व्यायाम आदि भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इनके बिना शरीर में सुचारू रूप से रक्त संचार संभव नहीं है । इसका सीधा संबंध मस्तिष्क के विकास से है ।

खेलकूद के अतिरिक्त अन्य सांस्कृतिक कार्यकलापों, वाद-विवाद प्रतियोगिताओं तथा विभिन्न प्रतिस्पर्धाओं में भाग लेने से उसमें एक नया उत्साह तथा नई विचारधारा विकसित होती है जो उसके चरित्र व व्यक्तित्व के विकास में सहायक होती है ।

एक आदर्श विद्‌यार्थी नैतिकता, सत्य व उच्च आदर्शों पर पूर्ण आस्था रखता है । वह प्रतिस्पर्धा को उचित मानता है परंतु परस्पर ईर्ष्या व द्‌वेष भाव से सदैव दूर रहता है । अपने से कमजोर छात्रों की सहायता में वह सदैव आगे रहता है तथा उन्हें भी परिश्रम व लगन से अध्ययन करने हेतु प्रेरित करता है ।

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अपने सहपाठियों के प्रति बह सदैव दोस्ताना संबंध रखता है । इसके अतिरिक्त उसे स्वयं पर पूर्ण विश्वास होता है । वह अपनी योग्यताओं व क्षमताओं को समझता है तथा अपनी कमियों के प्रति हीन भावना रखने के बजाय उन्हें दूर करने का प्रयास करता है ।

सारांशत: वह विद्‌यार्थी जो कुसंगति से अपने आपको दूर रखते हुए सद्‌गुणों को निरंतर अपनाने की चेष्टा करता है तथा गुरुजनों का पूर्ण आदर करते हुए भविष्य की ओर अग्रसर होता है वही एक आदर्श विद्‌यार्थी है । उसके वचन और कर्म, दूसरों के साथ उसका व्यवहार, उसकी वाणी हमेशा यथायोग्य होनी चाहिए ताकि जीवन की छोटी-छोटी उलझनें उसका रास्ता न रोक सकें ।

क्योंकि किसी भी विद्‌यार्थी का जब लक्ष्य बड़ा होता है तो उसमें एक नवीन उत्साह की भावना संचरित होती रहती है:

“काक चेष्टा बकोध्यानम् श्वान निद्रा तथैव च ।

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अल्पाहारी गृहत्यागी विद्‌यार्थी पंच लक्षणम्) ।।”

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