कर्त्तव्य पालन पर निबन्ध |Essay on Duty in Hindi!

मानव को यथाशक्ति और आवश्यकतानुसार कार्य करना ही उसका कर्त्तव्य पालन कहलाता है । मानव जीवन कर्त्तव्यों का भण्डार है उसके कर्त्तव्य उसकी अवस्थानुसार छोटे और बड़े होते हैं । इनको पूर्ण करने से जीवन में उल्लास, आत्मिक शान्ति और यश मिलता है ।

बचपन में माता-पिता तथा परिजनों की आज्ञा मानना ही कर्त्तव्य कहलाता है । विद्यार्थी जीवन में गुरू की आज्ञा ही उसका कर्त्तव्य बन जाता है । युवावस्था में उसके कर्त्तव्य परिजनों, पड़ोसियों के अतिरिक्त राष्ट्र के प्रति भी हो जाते हैं । उसके कन्धों पर समाज और राष्ट्र की उन्नति का भार आ पड़ता है, उसे स्वयं या अन्य कृपालु व्यक्तियों के द्वारा अशिक्षितों के लिए विद्यालय, प्रौढ़ शिक्षालय,

समाज केन्द्र, रोगियों के लिए अस्पताल खुलवाने पड़ते हैं । उसे देश की कारीगरी, कला-कौशल और व्यापार की उन्नति करनी पड़ती है । उसका जीवन सदा त्याग, तपस्या और सेवा – भाव में लिप्त रहता है ।

जिस प्रकार प्रत्येक शासक का कर्त्तव्य अपने शासितों की रक्षा करना है, उसी प्रकार उनका कर्त्तव्य भी उसकी मंगल कामना करना है । शिक्षक का कर्त्तव्य अपने छात्रों के हृदय पर से अज्ञानता का आवरण हटाकर उन्हें आदर्शवादी बनाना है । यही सब मानव के कर्त्तव्य है । इनको पूर्ण करने के लिए उसे अनेक कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है । उसको प्राकृतिक शक्तियाँ अपने कर्त्तव्य का पालन करती हुई पूर्ण सहयोगी देती है ।

इस पर भी जो कर्त्तव्य के पथ से विचलित हो जाता है, उसका समाज में निरादर होता है और उसका अपयश सर्वत्र फैल जाता है जो मानव लज्जा, भय, निन्दा और विघ्नों की चिन्ता न करके अपने- अपने कर्त्तव्य पालन पर दृढ़ रहते हैं, वे अपने जीवन में सफल होते हैं ।

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कर्त्तव्य पालन करने वाले वायक्ति का अन्त: कारण स्वच्छ और सरल हो जाता है । वह साहसी और निर्भीक हो जाता है । उसके जीवन में उत्साह और आकांक्षाओं की लहरें किल्लोलें मारने लगती हैं । उसके शत्रु उससे कोसों दूर भाग जाते हैं ।

उसकी विघ्न बाधाएँ उसके मार्ग को छोड़ देती हैं । उसका सम्मान सर्वत्र होता है । वह महापुरुषों के रूप में पूजा जाता है । उसकी शक्ति पर लोगों को विश्वास होता है । पन्ना धाय ने अपने कर्त्तव्य को पूरा करने के लिए अपने एकमात्र पुत्र का बलिदान कर दिया था ।

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कर्त्तव्यपरायण महाराणा प्रताप ने अनेक कष्टों को सहन किया पर मुगलों के सामने नतमस्तक नहीं हुए । श्री राम ने कर्त्तव्यपरायणता से वशीभूत होकर गर्भवती सीता का परित्याग किया । लक्ष्मण ने भाई की आज्ञा को कर्त्तव्य समझकर पालन किया। राष्ट्रपिता गाँधी ने इसके पीछे अपने अमूल्य जीवन की आहुति दे दी ।

नेताजी ने इसके पीछे ही विदेश में जाकर अपने देश को आजाद कराने हेतु अनेकों युक्तियों से टक्करें मारीं और अपने जीवन को इस पर बलिदान कर दिया । इन सभी का नाम इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित ही नहीं अपितु प्रत्येक भारतीय की जिह्वा पर है ।

कर्त्तव्य पालन ही एक ऐसी वस्तु है जिसके द्वारा हम अवर्णनीय आनन्द को प्राप्त कर सकते हैं । इसके आनन्द से मस्त मानव मातृभूमि की रक्षा हेतु हर्षित मन से फाँसी के तख्ते पर लटक जाता है । उसकी अमरगाथा पुष्प – पराग के समान सर्वत्र फैल जाती है । अत: प्रत्येक मानव को कर्त्तव्यों का अवश्य पालन करना चाहिए ।

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