सामाजिक कुरीतियाँ पर निबंध!

भारत विभिन्नताओं का देश है । यहाँ भिन्न-भिन्न जातियों, धर्मों व संप्रदायों के लोग निवास करते हैं जिनका रहन-सहन, पहनावा, बोलियाँ व मान्यताएँ भी परस्पर भिन्न हैं ।

भारत के उत्तरी कोने से दक्षिणी कोने तक भ्रमण करें तो निस्संदेह भिन्नताओं को देखते हुए यह विश्वास करना कठिन हो जाता है कि ये सब भारत के ही भू भाग हैं । यहाँ का धरातल कहीं पर्वतीय है तो कहीं सपाट, कहीं घने जंगल हैं तो कहीं पठार । भाषा की विविधता भी यहाँ देखने को मिलती है । कुछ प्रदेशों में हिंदी भाषी लोग अधिक हैं तो कुछ में अवधी या फिर मराठी भाषा प्रधान है ।

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कई प्रदेशों में अन्य क्षेत्रीय भाषा-भाषियों की प्रधानता है । उक्त सभी विभिन्नताएँ एक ओर जहाँ अनेकता में एकता के रंग बिखेरती हैं वहीं दूसरी ओर विभिन्न सामाजिक कुरीतियों को भी जन्म देती हैं । हमारी ये सामाजिक कुरीतियाँ कहीं पर प्रांतीयता की देन हैं तो कहीं भाषावाद, संप्रदाय या फिर जातिवाद की देन हैं ।

कहीं हिंदू लोग अपने संप्रदाय को ऊँचा रखने हेतु गोष्ठियाँ करते हैं, तो कहीं मुस्लिम या अन्य संप्रदाय के लोग अपना प्रचार-प्रसार करते दिखाई देते हैं । इन परिस्थितियों में जाने-अनजाने में जब किसी एक संप्रदाय के लोगों के अहं को ठेस पहुँचती है तब विरोधाभास की स्थिति उत्पन्न हो जाती है ।

इन परिस्थितियों में सामाजिक एकता खंडित होती प्रतीत होती है । फलस्वरूप दंगे-फसाद, झगड़े, मारकाट, चोरी आदि कुरीतियाँ पंख पसारने लगती हैं । इस प्रकार हम देखते हैं कि हमारी विभिन्नताएँ जो हमारी पहचान हैं वही अनेक प्रकार की सामाजिक कुरीतियों को जन्म देती हैं ।

अंधविश्वास व रूढ़िवादिता देश की प्रमुख सामाजिक समस्याओं में से हैं जिनके कारण जनमानस में अकर्मण्यता घर कर जाती है और वे भाग्यवादी हो जाते हैं और देश की प्रगति मै बाधक बनते हैं । ग्रामीण अंचलों में तो इसका पूर्ण प्रभाव है ही साथ-साथ शहरों व महानगरों में भी ऐसे लोगों की संख्या कम नहीं है ।

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कविवर रामधारी सिंह दिनकर की निम्नलिखित कविता पंक्तियों में इस स्थिति का स्पष्ट चित्रण है:

मन से कराहता मनुष्य पर ध्वंस बीच तन में नियुक्त उसे करती नियति है

नारी उत्पीड़न देश की एक ज्वलंत सामाजिक समस्या है । प्राचीन युग में जहाँ नारी को देवीतुल्य समझा जाता था वहीं आज नारी कभी दहेज के नाम पर तो कभी पुरुष के अहं की तृप्ति के लिए उनकी बर्बरता का शिकार हो रही है । आए दिन अखबार में नारी के प्रति दुराचार, अत्याचार, बलात्कार व दहेज के लिए जिंदा जला देने जैसे जघन्य अपराध सुर्खियों में दिखाई देते हैं ।

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आज हमारा देश विश्व के प्रमुख भ्रष्ट देशों में से गिना जाता है । भ्रष्टाचार हमारे देश की सबसे बड़ी सामाजिक समस्या है । काला धन, मँहगाई, घूसखोरी, चोर-बजारी सभी भ्रष्टाचार के ही रूप हैं । छोटे कर्मचारी से लेकर शीर्षस्थ पदों पर आसीन अधिकारी तथा देश के नेतागण सभी भ्रष्टाचार मैं लिप्त हैं । उनके असंतोष व स्वार्थ लोलुपता का कहीं अंत ही दिखाई नहीं पड़ता ।

देश ने औद्‌योगिक विकास की दृष्टि से विशेष प्रगति की है । विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में आज हम अग्रणी देशों में गिने जाते हैं परंतु यह हमारे लिए दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज भी छुआ-छूत, जातिवाद, भाई-भतीजावाद जैसी सामाजिक विषमताएँ पनप रही हैं । भारतीय राजनीति अभी भी इनसे प्रेरित है । हमारे नेतागण लोगों की इन्हीं कमजोरियों का लाभ उठाकर सत्ता पर विराजमान हो जाते हैं ।

हमारी सामाजिक कुरीतियाँ राष्ट्र के विकास की अवरोधक हैं । ये सामाजिक विषमताएँ तथा उनसे उत्पन्न कुरीतियाँ तब तक दूर नहीं की जा सकतीं जब तक कि हम उनके मूल कारणों तक नहीं पहुँचते व देश में व्याप्त अशिक्षा, निर्धनता तथा बढ़ती जनसंख्या को नियंत्रित नहीं कर लेते हैं ।

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चीन के बाद हमारा देश विश्व की सबसे बड़ी जनसंख्या वाला देश है जहाँ लगभग 40 प्रतिशत जनसंख्या आज भी गरीबी रेखा से नीचे जी रही है । इन लोगों को अपनी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अत्यधिक संघर्ष करना पड़ता है । लगभग इतने ही लोग ऐसे हैं जिन्हें अपना नाम भी लिखना नहीं आता है ।

इन सामाजिक कुरीतियों की जड़ें इतनी गहरी हैं कि इन्हें सामूहिक प्रयासों द्‌वारा ही दूर किया जा सकता है । केवल सरकार या प्रशासन इसे रोकने में सक्षम नहीं है । इसके लिए सभी संप्रदायों, धार्मिक संस्थानों तथा समाजसेवियों को एकजुट होकर प्रयास करना होगा । तभी देश में व्याप्त सामाजिक कुरीतियों से मुक्ति की कल्पना की जा सकती है ।

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