आधुनिक युग में भारतीय नारी के आदर्श | Essay on The Model Before the Indian Woman In the Modern Era in Hindi!

स्त्री और पुरुष जीवन-रथ के दो पहिए हैं । वे परस्पर पूरक के रूप में जीवन को सार्थक करते हैं । प्रकृति ने स्त्री-पुरुष के रूप और स्वभाव के निर्माण में वैसे ही तत्त्वों का प्रयोग किया है इसके अलावा दूसरे जीवधारियों और मनुष्य में अंतर केवल विवेक-बुद्धि का है ।

इस विवेक के अधार पर ही स्त्री-पुरुष के कार्य भी समाज में अलग-अलग निर्धारित किए गए हैं । आक्रांताओं के आने पर भारतीय समाज का ढाँचा अवश्य शिथिल हुआ था । इतना ही नहीं बल्कि इस पर विश्व की अनेक सभ्यताओं, रहन-सहन, वेशभूषा, धर्म-कर्म, जाति-पाँति और आचार-व्यवहार का प्रभाव पड़ने के कारण भारत की वास्तविक स्थिति का पता लगाना भी कठिन हो गया था ।

भारत का ग्रामीण समाज रूढ़ि-परंपराओं से चिपका हुआ है । यहाँ की नारी का परदे में तथा अनेक बंधनों में दम घुट रहा है । शिक्षा भी उसके लिए वर्ज्य है । दूसरी तरास नगरों के नागरिक पाश्चात्य देशों के अंधानुकरण को ही श्रेयस्कर मानते हैं ।

इस देश की प्रकृति में पला भारतीय सादा वेशभूषा में ही शोभा पाता है । वह बाह्य व्यवहारों में अत्यंत उदार होता है । उसमें आस्तिकता तथा आध्यात्मिकता की भावना अत्यंत प्रबल रहती है । यहाँ पति-पत्नी का रिश्ता आजीवन अथवा जन्म-जन्मांतर का माना जाता है । ये सब भारतीय आदर्शों के मूल तत्त्व हैं ।

वर्तमान भारतीय नारी को मध्ययुगीन नारियों की तरह परदे में, सामाजिक बंधनों में और शिक्षा से वंचित नहीं रखा जा सकता । उसी तरह उड़ती तितली बनना भी उसे शोभा नहीं देता है । शील और लज्जा भारतीय नारी के आभूषण हैं । परिवार-गठन और उसका पोषण उसका सहज दायित्व होता है ।

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उसकी व्यवहार-कुशलता अपने स्वामी की पूरक होती है । वह स्वच्छंद अथवा अराजक संस्कारों से परे रहती है । उसका विश्व-विज्ञान अपनी भाषा व संस्कृति से उसे वंचित नहीं रख सकता है । वह गृहलक्ष्मी बनकर ही अपने परिवार और देश का अधिक कल्याण कर सकती है, न कि ‘मेम साहब’ बनकर ।

यही भारतीय नारी का सही आदर्श हो सकता है । इस संबंध में महात्मा गांधी के विचार द्रष्टव्य हैं- ”नारी त्याग की मूर्ति है । जब वह कोई काम शुद्ध और सही भावना से करती है तब पहाड़ों को भी हिला देती है । मैंने स्त्री को त्याग और बलिदान की भावना का अवतार मानकर उसकी पूजा की है ।”

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गृहस्थाश्रम-धर्म के पालन में भारतीय नारी पूर्ण सहयोग करके परिवार को आनंद और सुख-शांति प्रदान करती है । वह गृहस्थाश्रम ही नहीं अपितु वानप्रस्थ में भी पुरुष का साथ देती है । मातृगृह और ससुराल की उसकी जिंदगी त्याग व सेवा की यात्रा है । इस गुरुतर कार्य के लिए वह शैशव से ही अपने को तैयार कर लेती है । नारी के संसर्ग में पुरुष का सांसारिक जीवन स्वर्ग बन जाता है । वही नारी यदि कुलटा निकल गई तो पुरुष का जीवन नारकीय बन जाता है ।

ऐसे में उस पुरुष को चाहिए कि वह वैसी नारी को त्यागकर अपनी सुख-शांति लौटा ले । आधुनिक भारतीय नारी का यह आदर्श उसके समक्ष न रहे तो उसका जीवन बिना पतवार की नाव के समान भव-सागर में डोलता रहेगा । अभाव और तृष्णा से पीड़ित उसका भैतिक जीवन आत्म-सुख से सदा वंचित रहता है ।

यही स्थिति परिवार-च्युत पुरुष की भी है । परिवार की आधारशिला स्त्री के त्याग पर टिकी है । पुरुष के लिए वह अभिकाम्य है । आधुनिक भारतीय स्त्री का आदर्श इससे भिन्न नहीं हो सकता है । आज भी उसके आदर्श हैं- सेवा, पारिवारिक एकता को दृढ़ करना, शिक्षित बनकर आनेवाली पीढ़ी को योग्य बनाना, अपने स्नेह और ममता से स्वर्ग को धरती पर उतारना ।

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