भारतीय नारी की त्रासदी पर निबंध | Essay on The Tragedy of Indian Woman in Hindi!

भारतीय नारी का जीवन इतिहास अनेक प्रकार के उतार-चढ़ावों से भरा हुआ है । वैदिक काल में नारी को देव-तुल्य समझा जाता था । उसे अत्यंत पूज्यनीय व श्रद्‌धामयी दृष्टि से देखा जाता था । परंतु कालांतर में भारतीय नारी की स्थिति निरंतर दयनीय होती गई ।

किसी देश अथवा राष्ट्र के निर्माण में नारी की भूमिका अत्यंत आवश्यक होती है । दूसरे शब्दों में, कोई भी राष्ट्र तब तक विकास की ओर अग्रसर नहीं हो सकता जब तक वह नारी को हेय दृष्टि से देखता है । जब तक नारी पुरुष समाज के लिए भोग-विलास के एक साधन मात्र के रूप में देखी जाएगी अथवा जब तक पुरुषों की प्रताड़ना व बर्बरता का शिकार बनी रहेगी तब तक देश अपने विकास के लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकता । आधुनिक जगत में नारी की स्थिति कुछ इसी प्रकार है ।

वैदिक काल में नारी श्रद्‌धा और विश्वास का प्रतीक समझी जाती थी । उसे देवों के तुल्य समझा जाता था । कालांतर में विदेशी आक्रमणों के उपरांत नारी की स्थिति में अभूतपूर्व परिवर्तन देखने को मिला । उसकी स्थिति निरंतर गिरती गई । मध्यकालीन इतिहास में मुगलों के आक्रमण के समय से ही उनकी सभ्यता का सघन प्रभाव यहाँ देखने को मिलने लगा ।

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नारी को पुरुष की सहभागिनी के रूप में नहीं अपितु उसे पुरुष की दासी के रूप में देखा जाने लगा । वह पुरुष समाज के लिए भोग-विलास का साधन मात्र रह गई । अनेक अवसरों पर प्रतिष्ठा का प्रतीक परदा प्रथा को मुगल शासकों के आक्रमण के समय ही व्यापकता मिली । धीरे-धीरे उसे अनेक रूपों में प्रताड़ित किया जाने लगा ।

आधुनिक जगत में भी भारतीय नारी की त्रासदी समाप्त नहीं हुई है । आज भी वह अनेक रूपों में प्रताड़ित की जा रही है अथवा एक त्रासदीपूर्ण जीवन व्यतीत कर रही है ।

तुलसीदास जी के एक दोहे के अनुसार:

ढोल, गँवार, शूद्र, पशु, नारी सकल ताड़ना के अधिकारी ।।

यही सभ्यता पूरे देश व समाज में व्याप्त है । पुरुषों की दहेज की माँग दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है । आए दिन दहेज के नाम पर नवविवाहिता या तो आत्महत्या के लिए बाध्य की जाती है या फिर उसे बर्बरतापूर्वक जिंदा जला दिया जाता है अथवा उसकी हत्या कर दी जाती है । इसके अतिरिक्त प्रतिदिन नारी के प्रति दुराचार व बलात्कार की घटनाएँ अखबारों की सुर्खियों में रहती हैं ।

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प्राचीन भारत में बाल-विवाह व सती-प्रथा जैसी कुरीतियाँ समाज में प्रचलित थीं, जिसके फलस्वरूप नारी को प्राय: नारकीय जीवन जीने के बाध्य होना पड़ता था अथवा उसे उसके दिवंगत पति के साथ जिंदा जला दिया जाता था । सरकार द्‌वारा कठोर कदमों व उपायों से सती-प्रथा पर पूर्णत: रोक लगा दी गई है परंतु दूर ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी कड़े नियमों के बावजूद बाल-विवाह जैसी कुरीतियों फल-फूल रही हैं ।

नारी को शिक्षा के अधिकार से सदैव ही वंचित रखा गया है । सदियों से हमारी आम सामाजिक धारणा यही रही है कि नारी का वास्तविक स्थान घर की चारदीवारी तक ही सीमित रहे । उसे कभी माँ, कभी पुत्री तो कभी पत्नी के रूप में देखा गया परंतु कभी भी उसके स्वतंत्र व्यक्तित्व को महत्ता नहीं दी गई । इसी का दुखद परिणाम यह है कि भारत की अधिकांश नारियाँ आज भी अशिक्षित हैं ।

हमारी सामाजिक परंपराएँ भारतीय नारी की त्रासदी के लिए सदैव उत्तरदायी रही हैं । अधिकांश धर्मग्रंथ, पुरुषों द्‌वारा ही लिखे गए हैं । समाज में जितने भी नियम-कानून बनाए गए वे सभी पुरुष समाज के निजी स्वार्थ से प्रेरित थे । नारी उत्थान के समक्ष पुरुष का अहं सदैव आड़े आता रहा है । सदियों से पुरुष की छाया बनकर रहने के कारण स्वयं नारी भी हीन भावना से ग्रसित है ।

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अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी, आँचल में है दूध और आँखों में पानी

अब इस स्थिति में सुधार तो हो रहा है मगर भारतीय नारी अभी भी कई प्रकार की सामाजिक प्रताड़ना के बीच जी रही है । उसे देश के सभी क्षेत्रों में समान अवसर प्राप्त नहीं है । वह कई वर्षों से राजनीति में अपना न्यूनतम स्थान प्राप्त करने के लिए लालायित है मगर पुरुष प्रधान राजनीतिक दल इसके लिए राजी नहीं हैं ।

विभिन्न आदिवासी व अन्य पुरातनपंथी समाजों में नारी को डायन या कुलटा कहकर उनका तिरस्कार किया जाता है अथवा यातनाएँ दी जाती हैं । कई समाजों में कन्या के जन्म होने पर शोक व्यक्त किया जाता है । स्वतंत्र भारत में भारतीय जनमानस की विचारधारा में क्रांतिकारी परिवर्तन देखने को मिले हैं ।

हमारे संविधान में भी नारी को पुरुष के बराबर ही स्थान दिया गया है । अनेक उच्च एवं महत्वपूर्ण पदों पर आसीन नारी बदलती विचारधारा का ही सुखद परिणाम है । शिक्षा के क्षेत्र में भी नारी की स्थिति में अभूतपूर्व सुधार देखने को मिला है । अधिकांश क्षेत्रों में नारी पुरुषों से काफी आगे निकल गई है ।

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सदियों की परंपराओं को कुछ दिन या महीनों में नहीं बदला जा सकता । इसके लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है । नारी की स्थिति में सुखद परिवर्तन निस्संदेह ही देश को विकास की ओर अग्रसित करेगा और हमारा देश विश्व के अग्रणी देशों में से एक होगा ।

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