आर्थिक कूटनीति का बढ़ता महत्व पर निबंध | Essay on Increasing Importance of Economic Diplomacy in Hindi!

आर्थिक कूटनीति वर्तमान समय में वैश्विक धरातल पर एक महत्वपूर्ण तत्व के रूप में उभरी है । वैश्वीकरण के प्रभाव के कारण विदेश नीति में राजनीतिक तत्वों के स्थान पर आर्थिक तत्वों का महत्व अत्यधिक बढ़ गया है ।

यही कारण है कि सभी देश अपनी आर्थिक कूटनीति का नए सिरे से निर्माण व संचालन कर रहे हैं । जैसा कि सर्वविदित है कि वैश्वीकरण एक बहुआयामी प्रक्रिया है । इसका अर्थ राष्ट्रों के मध्य व्यक्तियों, वस्तुओं, पूँजी, विचारों आदि के आदान-प्रदान में आई तेजी व उसकी बारम्बारता में होने वाली वृद्धि से है ।

राष्ट्रों के मध्य वस्तुओं, पूँजी व व्यक्तियों का आदान-प्रदान पहले भी होता था, लेकिन वैश्वीकरण के अन्तर्गत इस आदान-प्रदान की तीव्रता व बारम्बारता दोनों में वृद्धि हुई है । निजीकरण व उदारीकरण की धारणाएं भी वैश्वीकरण की पूरक व सहगामी धारणाएं हैं । निजीकरण में जहाँ आर्थिक प्रक्रियाओं में निजी क्षेत्र के बढते दायरे व भागीदारी से है, वहीं उदारीकरण के अन्तर्गत आर्थिक क्षेत्र में राज्य के नियन्त्रण को शिथिल या समाप्त किया जाता है ।

नई आर्थिक कूटनीति वैश्वीकरण, निजीकरण व उदारीकरण के परिणामस्वरूप अस्तित्व में आई । इसका तात्पर्य यह नहीं है कि इसके पूर्व आर्थिक कूटनीति का अस्तित्व नहीं था । तात्पर्य यह है कि वैश्वीकरण व आर्थिक प्रतियोगिता के कारण राष्ट्रों के सम्बन्धों में आर्थिक कूटनीति को अधिक प्रमुखता प्राप्त हुई है ।

पहले जहाँ आर्थिक कूटनीति राजनीतिक कूटनीति का अनुसरण करती थी, वर्तमान में आर्थिक कूटनीति को प्रमुखता प्राप्त हो गई है । इस तथ्य को राष्ट्रों के मध्य द्विपक्षीय व बहुपक्षीय सम्बन्धों की विषय-वस्तु से सिद्ध किया जा सकता है ।

प्रत्येक राष्ट्र वर्तमान समय में अपना व्यापार बढ़ाने, निवेश के नए अवसर खोजने, उचित तकनीकी के हस्तांतरण, ऊर्जा व खनिज संसाधनों को प्राप्त करने हेतु चिन्तित व प्रयासरत् है । इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए राष्ट्रों के मध्य आर्थिक प्रतियोगिता इस नई कूटनीति की महत्वपूर्ण विशेषता है ।

दूसरा, वर्तमान में आर्थिक कूटनीति राजनीतिक कूटनीति का अनुसरण नहीं करती वरन् उसका स्वतन्त्र अस्तित्व है । यहाँ तक कि राष्ट्रों के मध्य राजनीतिक मतभेद होते हुए भी उनके आर्थिक सम्बन्धों का विकास हो रहा है ।

उदाहरण के लिए, भारत व चीन के मध्य तमाम राजनीतिक मतभेद हैं । फिर भी दोनों के मध्य व्यापार सम्बन्धों का तेजी से विकास हुआ है । वर्ष 2010 से चीन भारत का सबसे बडा व्यापारिक साझीदार देश बन गया है ।

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तीसरा, परम्परागत आर्थिक कूटनीति में राजनीतिक कूटनीति के माध्यम से आर्थिक हितों की पूर्ति की जाती थी, परन्तु वर्तमान में आर्थिक कूटनीति के माध्यम से सामरिक व राजनीतिक हितों की पूर्ति की जा रही है ।

उदाहरण के लिए, भारत की ‘पूर्व की ओर देखो’ की नीति मुख्यत: वैश्वीकरण के युग में पूर्वी एशिया के प्रति एक आर्थिक कूटनीति के अतिरिक्त कुछ नहीं है । इसमें राजनीतिक व सैनिक तत्व अत्यन्त गौण हैं । आर्थिक कूटनीति की सफलता राजनीतिक व सामरिक उद्देश्यों की प्रगति में सहायक है ।

चौथा, आर्थिक कूटनीति की सफलता देश की आर्थिक स्थिति व नीतियों पर निर्भर करती है । वर्तमान में एक सफल आर्थिक कूटनीति के लिए आवश्यक है कि घरेलू स्तर पर सम्बन्धित आर्थिक नीतियों में भी संशोधन आवश्यकतानुसार किया है । भारत ने 1991 में घरेलू स्तर पर उदारीकरण की नीति को लागू किया तथा अपनी व्यापार, मौद्रिक, निवेश तथा वित्तीय नीतियों में तदनुसार संशोधन किया ।

इन संशोधनों के बिना भारत की आर्थिक कूटनीति की सफलता के उचित अवसर नहीं प्राप्त हो सकते थे । इस अर्थ में आर्थिक कूटनीति अन्तत: घरेलू आर्थिक नीतियों का ही वैश्विक स्तर पर विस्तार है । घरेलू व बाह्य आर्थिक नीतियों का सम्बन्ध वर्तमान युग में अधिक घनिष्ठ व स्पष्ट है ।

पाँचवाँ, उभरती हुई आर्थिक नीति राष्ट्रों की पारस्परिक आर्थिक अन्त-निर्भरता पर आधारित है । आज वैश्विक अर्थव्यवस्था से जुड़े बिना कोई राष्ट्र आर्थिक कूटनीति की सफलता की कल्पना नहीं कर सकता । इसी अन्त-निर्भरता के कारण आर्थिक कूटनीति के द्विपक्षीय आयामों के साथ-साथ बहुपक्षीय आयाम अधिक महत्वपूर्ण हो गए है ।

नई आर्थिक कूटनीति में बहुपक्षीय आयाम के कारण आर्थिक कूटनीति के नए बहुपक्षीय मंचो का सृजन हो रहा है । साथ ही पूर्व में स्थापित बहुपक्षीय मंचों का वर्तमान की आवश्यकताओं के अनुसार पुनर्निर्धारण किया जा रहा है ।

विश्व के 20 आर्थिक रूप से बड़े देशों ने वैश्विक आर्थिक प्रबन्ध के लिए G-20 समूह का गठन किया, वहीं पांच विकासशील व उभरती अर्थव्यवस्थाओं-भारत, चीन, रूस, ब्राजील तथा दक्षिण अफ्रीका ने ब्रिक्स (BRICS) का गठन किया है । विश्व के तीन बड़े विकासशील देशों-भारत, ब्राजील व दक्षिण अफ्रीका ने इब्सा (IBSA) का गठन किया है ।

ये संगठन इस तरह के केवल कुछ उदाहरण हैं तथा आर्थिक कूटनीति के संचालन के नए मंच हैं । बहुपक्षीय मंचों के साथ ही शिखर कूटनीति (Summit Diplomacy) भी आर्थिक कूटनीति के संचालन का एक महत्वपूर्ण माध्यम बन गया है । चूँकि शिखर सम्मेलनों में राष्ट्रों के शीर्ष नेता भाग लेते है । अत: निर्णयों को उच्च स्तर पर तुरन्त अन्तिम रूप दिया जा सकता है ।

वैश्वीकरण के युग में विश्व व्यापार के प्रोत्साहन व नियमन के लिए ही वर्ष 1995 में विश्व व्यापार संगठन का गठन किया गया । इसके पूर्व कार्यरत् गैट व्यवस्था (GATT) को बदली हुई परिस्थितियों में उपयुक्त नहीं पाया गया । विश्व व्यापार संगठन द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार वार्ताओं का आयोजन किया जाता है । यह राष्ट्रों की आर्थिक कूटनीति का एक महत्वपूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय मंच है ।

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राष्ट्रों के मध्य पनपती आर्थिक अन्त-निर्भरता के द्वारा जहाँ आर्थिक कूटनीति को नए अवसर उपलब्ध होते हैं, वहीं इसका परिणाम यह है कि एक क्षेत्र या देश में आए आर्थिक संकट सम्पूर्ण वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रभावित करते हैं । वर्ष 2008 में आई वैश्विक आर्थिक मंदी ने सम्पूर्ण विश्व को प्रभावित किया है, जोकि देशों की आर्थिक कूटनीति के लिए एक चुनौती है ।

बहुपक्षीय आयामों की तरह ही राष्ट्र अपनी आर्थिक कूटनीति का संचालन करने हेतु नई संस्थाओं की स्थापना कर रहे हैं । विभिन्न प्रकार के संयुक्त आयोग, कार्यदल वार्षिक द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन आदि का प्रयोग आर्थिक कूटनीति का संचालन करने हेतु किया जाता है ।

कूटनीति का तात्पर्य बुद्धि व कौशल के प्रयोग द्वारा विदेश नीति के लक्ष्यों को प्राप्त करना है । आर्थिक कूटनीति का तात्पर्य विभिन्न आर्थिक साधनों के कुशलतापूर्वक व चातुर्यपूर्ण प्रयोग से राष्ट्र के आर्थिक, सामरिक व राजनीतिक हितों की पूर्ति है । आर्थिक कूटनीति के संचालन हेतु राष्ट्रों द्वारा विभिन्न साधनों का प्रयोग किया जाता है । वैश्वीकरण के युग में इन साधनों की प्रकृति में परिवर्तन हुआ है ।

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इन साधनों में व्यापार सबसे महत्वपूर्ण है । वर्तमान में विश्व व्यापार का नियमन राष्ट्रों द्वारा सहमत सिद्धान्तों के आधार पर विश्व व्यापार संघ द्वारा किया जाता है । वर्तमान प्रवृत्ति व्यापार के उदारीकरण की ओर है ।

फिर भी कुछ राष्ट्रों द्वारा अपने बाजारों व उद्योगों को बचाने के लिए संरक्षणवाद का सहारा लिया जाता है । राष्ट्रों के मध्य व्यापारिक प्रतियोगिता अत्यन्त तीव्र है । प्रत्येक राष्ट्र अपने व्यापार सम्बर्द्धन हेतु नए बाजारों को प्राप्त करने हेतु इच्छुक है ।

व्यापार के उदारीकरण की दिशा में वैश्वीकरण के युग में एक नई प्रवृत्ति द्विपक्षीय व बहुपक्षीय स्तर पर मुक्त व्यापार क्षेत्र या समझौतों की प्रवृत्ति है । मुक्त व्यापार समझौतों के अन्तर्गत सदस्य राष्ट्रों के मध्य व्यापार प्रतिबन्धों को शिथिल किया जाता है । व्यापारिक प्रतिबन्ध मुख्यत: दो प्रकार के होते हैं । प्रशुल्क तथा कोटा, मुक्त व्यापार समझौतों में इन प्रतिबन्धों को कम या समाप्त कर दिया जाता है ।

आर्थिक कूटनीति का दूसरा महत्वपूर्ण साधन निवेश है । पूँजी निवेश यद्यपि पूर्व में भी आर्थिक कूटनीति का साधन रहा है, लेकिन वैश्वीकरण के युग में राष्ट्रों द्वारा पूँजी निवेश को उदार बनाया गया है । अत: सरकारी व निजी पूँजी निवेश दोनों में तीव्र वृद्धि हो रही है । तीसरा महत्वपूर्ण साधन विकास सहायता है । विकसित देशों तथा अग्रिम विकासशील देशों द्वारा गरीब देशों को विभिन्न प्रकार की विकास सहायता दी जाती है, जोकि आर्थिक कूटनीति का अहम् हिस्सा है ।

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यह उल्लेखनीय है कि विकसित देश विकास सहायता को विभिन्न विकास कार्यक्रमों के साथ जोड़कर देते हैं । विश्व में इस समय 48 अल्पविकसित देश है जिन्हें प्रतिवर्ष विकास सहायता के रूप में धनराशि प्राप्त होती है । यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि जहाँ भारत यूरोपीय देशों व जापान से विकास सहायता प्राप्त करता है, वहीं भारत एशिया व अफ्रीका के अल्पविकसित देशों को विकास सहायता प्रदान करता है ।

ऋण तथा क्रेडिट लाइन्स भी आर्थिक कूटनीति का महत्वपूर्ण साधन है । ऋण द्विपक्षीय आधार पर अथवा बहुपक्षीय आधार पर अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं अथवा क्षेत्रीय

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वित्तीय संस्थाओं से प्राप्त किए जाते हैं । विकास सहायता की भाँति ऋणों को भी विभिन्न कार्यक्रमों के साथ जोड़कर अथवा अपना सामान क्रय करने हेतु दूसरे देशों को दिया जाता है । भारत आसान शर्तों पर अल्प-विकसित देशों को क्रेडिट लाइन्स की सुविधा प्रदान करता है ।

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तकनीकी स्थानान्तरण भी आर्थिक कूटनीति का एक प्रमुख साधन है । प्रत्येक राष्ट्र विभिन्न राष्ट्रों से अपने लिए उपयुक्त तकनीकी को हासिल करना चाहता है । तकनीकी का हस्तांतरण राष्ट्रों के मध्य विभिन्न तरीकों से होता है । संयुक्त उत्पादन, स्वतन्त्र रूप से अथवा प्रशिक्षण व शोध में सहयोग के माध्यम से तकनीकी का स्थानान्तरण किया जाता है । तकनीकी के हस्तांतरण में बौद्धिक सम्पदा अधिकारों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है ।

अन्य देशों की भाँति वैश्वीकरण के युग में भारत की भी आर्थिक कूटनीति में बदलाव आया है । भारत ने 1991 में घरेलू स्तर पर उदारीकरण व निजीकरण की नीतियों को लागू किया । इस उदारीकरण से भारत को वैश्विक अर्थव्यवस्था से जुड़ने का अवसर प्राप्त हुआ ।

भारत ने द्विपक्षीय व बहुपक्षीय दोनों स्तरों पर अपनी आर्थिक कूटनीति का सफलतापूर्वक प्रयोग किया है । उदारीकरण के कारण भारत की आर्थिक कूटनीति में महत्वपूर्ण बदलाव यह आया है कि भारत दूसरे देशों में निजी व सरकारी पूँजी निवेश करने वाला देश बन गया है तथा आर्थिक विकास सहायता प्राप्त करने के साथ-साथ भारत स्वयं गरीब देशों को आर्थिक सहायता प्रदान कर रहा है ।

पुन: विकास कार्यक्रमों में मानव संसाधनों के विकास पर जोर तथा दक्षिण-दक्षिण सहयोग भारत की आर्थिक कूटनीति की महत्वपूर्ण विशेषता है । निष्कर्षत: हम कह सकते हैं कि वर्तमान समय में विश्व स्तर पर आर्थिक कूटनीति का महत्व तेजी से बढ़ता जा रहा है, जिसकी निकट भविष्य में और तेज होने की पूरी संभावना है ।

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