विकलांगों को कैसे मिले आर्थिक मुस्कुराहट पर निबंध | Essay on Economic Smile for Physical Disabled in Hindi!

ADVERTISEMENTS:

सरकारी नौकरियों के अवसरों में कमी के चलते निजी क्षेत्र में विकलांगों के लिए नौकरियों की संभावना बढ़ाने के मकसद से केंद्र सरकार ने निजी क्षेत्र में विकलांगों को हर साल एक लाख नौकरियां उपलब्ध कराने के उद्देश्य से 11वीं पंचवर्षीय योजना में 1800 करोड़ रूपये की एक योजना लागू करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी है ।

इस योजना के तहत निजी क्षेत्र को विकलांग व्यक्तियों को रोजगार देने के लिए प्रोत्साहित किया जायेगा, जिसके लिए नौकरी के पहले तीन साल तक कर्मचारी भविष्य निधि और कर्मचारी राज्य बीमा में नियोक्ता के अंशदान का भुगतान केंद्र सरकार करेगी ।

इसके पूर्व भी केंद्र सरकार ने सभी शीर्ष सिविल सेवाओं (गैर तकनीकी) को विकलांगों के लिए खोलने का आदेश देकर उन प्रतिभावान युवाओं को मौका दिया है, जो सिर्फ अपनी किसी शारीरिक अक्षमता के कारण इनसे वंचित थे । सरकार ने सिविल सेवा परीक्षा में आईएएस, आईपीएस और आईएफएस जैसी सेवा को संचालित करने वाले मंत्रालयों को भी हिदायत दी है कि वे इनमें विकलांगों के लिए तीन प्रतिशत आरक्षण सुनिश्चित रखें ।

जैसे-जैसे देश में उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण बढ़ रहा है वैसे-वैसे विकलांगों के जीवन में आर्थिक चुनौतियां बढ़ती जा रही है । देश की जनसंख्या के पांच प्रतिशत से भी अधिक लोग देखने, सुनने, बोलने और चलने-फिरने की बाधाओं के कारण विकलांगों की श्रेणी में आकर काम के मौकों की तलाश में चिंताग्रस्त हैं । ऐसे में काम की कोई भी नई संभावना विकलांगों के चेहरे पर मुस्कुराहट देते हुए दिखाई देती है ।

उल्लेखनीय है कि देश में पिछले डेढ़ दशक से विकलांगों के कल्याण के लिए जोरदार घोषणाएं की जा रही है । एशिया और प्रशान्त क्षेत्र में 1993-2002 के दशक को विकलांग दशक के रूप में मनाया गया । इस दशक को शुरू करने के अवसर पर बीजिंग में विकलांग व्यक्तियों को पूर्ण भागीदारी और समानता देने संबंधी सम्मेलन का आयोजन किया गया था । भारत ने इस सम्मेलन के बाद जारी घोषणा पर हस्ताक्षर किये थे ।

घोषणा के अनुपालन में विकलांग व्यक्ति (समान अवसर, अधिकारों का संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम 1995 बनाया गया और जिसे 2 फरवरी 1996 से लागू किया गया है । इसके तहत विकलांग व्यक्तियों के लिए प्रोत्साहन के अंतर्गत शिक्षा, रोजगार और व्यावसायिक प्रशिक्षण, बाधाओं से मुक्त वातावरण का निर्माण और विकलांगों के लिए पुनर्वास सेवाओं का प्रावधान और बेरोजगारी भत्ते देने जैसे आर्थिक सामाजिक सुरक्षा उपाय शामिल हैं ।

लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि अधिनियम का व्यावहारिक पालन नहीं हुआ है । सरकारी और सार्वजनिक क्षेत्र की हर स्तर की नौकरियों कों विकलांगों के तीन प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान कार्यान्वित होते हुए नहीं दिखाई दे रहा है ।

हाल ही में एक उच्चस्तरीय शोध अध्ययन के मुताबिक कार्य की योग्यता रखने वाले विकलांगों की कुल संख्या के एक प्रतिशत से भी कम को ही रोजगार मिल सका है । दूसरी ओर सिविल तथा राज्य सेवाओं में विकलांगों को भारी उपेक्षा का सामना करना पड़ रहा है ।

ADVERTISEMENTS:

ADVERTISEMENTS:

सिविल सेवा परीक्षा में उच्च प्राप्ताक के बावजूद उन्हें नीचे की पोजीशन की सेवा में रखा जाता है या नौकरी देने से ही मना कर दिया जाता है । स्थिति यह है कि सिविल सेवा को 26 शीर्ष सेवाओं में से सिर्फ सात में ही विकलांगों को नियुक्ति दी जाती रही है । विकलांगों को यह कहकर मना कर दिया जाता है कि वे इनके योग्य नहीं है ।

हमारे समाज में उपेक्षित विकलांग वर्ग के चेहरे पर आर्थिक मुस्कुराहट देने के लिए हमें कई बातों पर प्राथमिकता से ध्यान देना होगा । विकलांगों के प्रति समाज का संकीर्ण नजरिया बदलकर विकलांगों को स्वावलंबी बनाने की डगर पर आगे बढ़ाना होगा ।

हमारे महानगरों दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, लखनऊ व पुणे के साथ-साथ देश के अन्य प्रमुख शहरों में विकलांगों के लिए विशेष रूप से जो प्रशिक्षण केंद्र चलाए जा रहे हैं, उनके माध्यम से विकलांग युवाओं को रोजगार के काबिल बनाकर देश के विकास में उनकी भागीदारी सुनिश्चित की जा सकती है ।

ऐसे रोजगार प्रशिक्षण केंद्रों के बारे में अधिकांश विकलांग परिवारों को जानकारी दी जानी चाहिए । स्वरोजगार के परिप्रेक्ष्य में विकलांगों को यह भी बताया जाना चाहिए कि उनके लिए स्वरोजगार के मौकों की भी कोई कमी नहीं है । राष्ट्रीय विकलांग वित्त और विकास निगम (एनएचएफडीसी) विकलांग लोगों को स्वरोजगार के लिए धन उपलब्ध कराकर आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रोत्साहित करता है ।

पश्चिमी देशों में विकलांग वर्ग समाज का अटूट अंग है और अर्थव्यवस्था में समान रूप से सहभागी भी है । हमें विकलांगों को उपेक्षा की दृष्टि से देखने और आर्थिक रूप से अनुपयोगी समझने की सदियों पुरानी मान्यता को बदलकर बराबरी के आर्थिक साझेदार के रूप में उन्हें शामिल करना होगा ताकि वे जीवन का सामना पूरे हौसले, आत्मविश्वास के साथ कर सकें और अपने चेहरों पर आर्थिक मुस्कुराहट ला सकें ।

Home››Essays››