इक्कीसवीं शताब्दी की दुनिया | World in 21st Century!

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आज सर्वत्र ही 21 वीं शताब्दी चर्चा का विषय है । मानव जीवन का कोई भी पहलू क्यों न हो उसका जिक्र 21 वीं शताब्दी के सदर्भ में अवश्य हो रहा है । सैन्य मामलो से लेकर कृषि क्षेत्रों तक, खेलकूद से लेकर प्रौद्योगिकी तक हर और नई शताब्दी की चर्चा हो रही है।

स्व० राजीव गाँधी की अवधारणा थी कि 21 वीं शताब्दी मशीनीकरण की नहीं, अपितु एक नये मानव की नये मूल्यों के साथ जो ‘ सुपर मैन ‘ नहीं बल्कि ‘ उच्चतर प्रजातीय ‘ होगा, का परिवेश होना और आने वाली पीढ़ी विशेषकर युवा पीढ़ी, विलम्ब, मन्द गति एवं टालमटोल की प्रवृत्ति को बर्दाश्त नहीं करेगी ।

उम्मीद की जा रही है कि 21 वीं शताब्दी में नौकरशाही का रूप भी परिवर्तित होगा । नौकरशाही व्यवस्था में तब्दीली अपेक्षित है । असक्षम तथा अवरोध डालने वाले अधिकारी घास की तरह उखाड़ कर फेंक दिये जायेंगे।

21 वीं शताब्दी में एक और बदलाव आयेगा जिसके लिये कहा जा रहा है कि साम्प्रदायिकता का विष समाप्त हो जायेगा जिसके लिये आवश्यक होगा कि लोगों की साम्प्रदायिक बुराई से ऊपर उठने के लिये शिक्षित किया जाये । आवश्यक होगा कि साम्प्रदायिक भावनाओं को हर प्रकार से समाप्त करने की परिस्थितियां उत्पन्न की जायें । रेडियो और टेलीविजन के द्वारा एकीकरण की भावना विकसित की जायेगी ।

आज जहाँ भी देखो, जिधर भी देखो सर्वत्र 21 वीं शताब्दी की चर्चा है। चाहे वह देश का सैन्य मामला हो या फिर वाणिज्य का, हर ओर 21 वीं शताब्दी की स्थिति और आवश्यकताओं का न केवल आकलन हो रहा है बल्कि उसी के अनुरूप तैयारियों की जा रही हैं। मामला चाहे शिक्षा और क्रीड़ा जगत का हो या विमानन परिवहन और नौ परिवहन का चिन्ता इसी बात की प्रकट की जा रही है कि हम 21 वीं सदी में किस स्थिति में होंगे या किस स्थिति में हमें होना चाहिये । राजनीतिज्ञों की तिकड़मबाजी हो या अंतरिक्ष वैज्ञानिकों का शोधकार्य, सभी को फिक्र है कि संबंधित क्षेत्र का आगामी शताब्दी में स्वरूप कैसा होगा, स्थिति क्या होगी, संभावित समस्याएँ कौन-कौन-सी हो सकती है। अब भले ही क्षेत्र कोई-सा हो, विचार कैसे भी हों, यह तो एक वास्तविकता है ही कि हम एक नई शताब्दी में प्रवेश कर चुके हैं। जाहिर है जब हम इस वास्तविकता को नकार नहीं सकते तो इस संबंध में कुछ आशाएँ, कुछ आशंकाएँ तो मन में उठेंगी ही!

वैज्ञानिक परिदृश्य सजाया जा रहा है। 21 वीं शताब्दी के लिये अंतरिक्ष में पावर स्टेशन स्थापित होंगे और ऊर्जा की कमी नहीं होगी और यह भी कहा जा रहा है कि नाभिकीय इंधनों के संदर्भ में हमारी आत्मनिर्भरता हो जायेगी । किन्तु यह तो सब समय बतायेगा कि यह हमारा दिव्यस्वप्न है अथवा यथार्थ।

यह सत्य है कि 21 वीं सदी कम्प्युटर का दौर है । वर्तमान में अर्थ वाणिज्य एवं व्यापार के क्षेत्र मे अत्यन्त तीव्र गति से परिवर्तन होता जा रहा है जिससे विज्ञान और टेस्नोलॉजी के कारण विश्व के सभी देशों में प्रतिस्पर्द्धा बढ़ गयी है और कोई भी देश इस दौड़ में पिछड़ना नहीं चाहता । सच तो यह है कि विज्ञान एवं इलेक्ट्रानिकी के नवीन तन्त्र हमारी कमजोरी हो गये हैं, हम उन पर आश्रित हो गये हैं । आधुनिक टैकनोलाँजी में कम्प्यूटर का सहयोग एवं व्यवहार अनुदित बढ़ता जा रहा है । कम्प्यूटर न केवल कार्य में तीव्रता लाता है बल्कि परिशुद्धता तथा संगठनात्मक सुविधाएँ भी प्रदान करता है । दरअसल आज परिवर्तन की हवा पूरे विश्व मे बह रही है और एक खुले विश्व के निर्माण के लिये रास्ता खोल रही है। संचार तकनीक के क्षेत्र में हुई तरक्की से संगठित मानव जीवन में व्यापक परिवर्तन आया है । 21 वीं शताब्दी के लिये अमेरिकी संचार कंपनियाँ ‘ सूचना सुपर हाइवे ‘ यानि एक विशाल सूचना तंत्र बनाने की प्रक्रिया में लगी हैं जो कम्प्यूटर नेटवर्क के माध्यम से ग्राहकों और प्रयोगकर्ताओं के घर या कार्यालयों में महत्वपूर्ण सूचनाएँ एवं सेवाएँ, जैसे वीडियो इमेज, फोनकाल, अन्य क्षेत्र के महत्वपूर्ण कड़े आदि उपलब्ध कराएगा । हम शीघ्र ही ‘ टु-वे वीडियो सिस्टम ‘ और दूसरा ‘ नेटवर्क से जुड़े व्यक्तिगत कम्प्यूटर ‘ के साथ कार्यालय या घर बैठे ही विश्व के किसी भी कोने से सूचना का आदान-प्रदान कर सकेंगे तथा वीडियो माध्यम से द्विपक्षीय वार्तालाप कर सकेंगे ।

इलेक्ट्रानिक सुपर हाइवे से व्यक्ति किसी भी पसंदीदा चीज जैसे फिल्म, खेल, किताबे, समाचार पत्र, यातायात एजेंट, डाटा बैंक, मित्र, रिश्तेदार आदि से बिना परिश्रम, घर बैठे रिमोट कंट्रोल या कम्प्यूटर का सिर्फ एक बटन दबा कर संपर्क कर सकते हैं ।

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परन्तु जहाँ एक ओर 21 वीं शताब्दी में हर क्षेत्र में विकास होने की आशा है, वहाँ ये भी निश्चित है कि इससे कई तरह की बीमारियाँ, बेरोजगारी बढ़ने तथा अपराध बढ़ने जैसी सामाजिक बीमारियाँ फैलेंगी । कृषि और पर्यावरण ऐसे क्षेत्र हैं जो अगली सदी के शुरुआती सालों में ही नई आपदा के रूप में सामने आने वाले हैं । आबादी का विस्तार जिस तेजी से बढ़ रहा है उसे देखते हुये जनाकिंकीविदों का कहना है कि यह सिलसिला 10 अरब की आबादी पर ही जाकर थमेगा । अभी विश्वकी आबादी 5 अरब, 80 करोड़ है । अगले 50 वर्षो में लगभग दोगुनी हो जाने वाली आबादी का पेट भरने के लिये कहाँ से आयेगा अन्न? सभी लक्षण इस बात के हैं कि बढ़ती आबादी के लिए आवास, परिवहन, रोजगार साधन आदि के लिये सुविधायें जुटाने के बाद कृषि के लिये जमीन की उपलब्धता आज से भी कम रह जायेगी। खेती के लिये वर्तमान समय में प्रयुक्त धरती वैसे भी थकती जा रही है इसके अतिरिक्त अधिक उपज के लिये अधिक पानी जुटाने की चुनौती होगी ।

पर्यावरण की रक्षा 21 वीं सदी में पूरे विश्व के लिये चुनौती है। जहाँ एक ओर हर वस्तु का आधुनिकीकरण हो रहा है, वहीं दूसरी ओर इन वस्तुओं को बनाने में प्रयुक्त होने वाली साधन किसी न किसी तरह पर्यावरण को हानि पहुँचा रहे हैं।

हाल ही में वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि हिन्द महासागर पर 3 किमी. मोटी तथा लाखों किमी. लम्बी धुंध है जोकि समुद्र पर छाई हुई है, जिसका कारण वायु प्रदूषण है। ये धुंध जहाँ एक ओर समुद्र पर पड़ने वाली सूर्य की किरणों को रोकती है वहीं ये धुंध अप्लीय वर्षा का कारण बन सकती है। इस तरह की चुनौतियाँ 21 वीं सदी में मुंह बाये खड़ी हैं ।

जिस तरह इस सदी में परमाणु अस्त्र बनाने वाले देशों की होड़ लगी है, लगता है 21 वीं सदी में अधिकतर सभी देशों के पास परमाणु व अणु बम होंगे जो कि विश्व अस्तित्व बनाये रखने के लिये भयंकर खतरा है। कोई भी देश इसका प्रयोग कभी भी किसी भी देश के खिलाफ कर सकता है क्योंकि बडे राष्ट्रों की अहम भावना और दूसरों को दबाने, अपमानित करने की उनकी अदम्य लालसा ही परमाणु युद्ध प्रारम्भ करने की प्रेरणा देने में सक्षम है, जिसका परिणाम मानव और मानव सभ्यता का विनाश ही होगा । इससे न केवल सृष्टि में मानवता का हास होगा, वरन् संस्कृति सभ्यता भी मिट जायेगी जो किसी देश की अस्मिता को बचाए रखने के लिए आवश्यक होती है ।

इस प्रकार 21 वीं सदी क्या रंग लाती है यह तो भविष्य ही बतायेगा। परन्तु हर व्यक्ति को इस पर गंभीर विचार करना चाहिये । कुछ दोषों को मनुष्य व्यक्तिगत रूप से हल करने का प्रयास कर सकता है जैसे जनसंख्या वृद्धि कम करने का प्रयास, आपसी द्वेष खत्म करने का प्रयास तथा प्रदूषण मुक्त विश्व का निर्माण करने का प्रयास करके भी कुछ दोषों को जो कि 21 वीं सदी में गंभीर रूप लेंगी, कम किया जा सकता है ।

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