ई श्रीधरन पर निबंध | Essay on E. Shridharan in Hindi language.

भारत ने जिन महान् व्यक्तियों के मार्गदर्शन एवं निर्देशन में दुनिया के विकसित देशों की कतार में खड़ा होने की योग्यता अर्जित की है, उन्हीं में से एक है- ई. श्रीधरन ।  आज दिल्ली मेट्रो रेल दिल्लीवासियों के जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुकी है ।

जिस तरह मुम्बई की लोकल ट्रेन वहाँ की जीवन-रेखा है, उसी तरह दिल्ली मेट्रो रेल भी दिल्लीवासियों के दिल को या गई है । मेट्रो को यह स्थान दिलाना अत्यन्त कठिन कार्य था, किन्तु श्रीधरन के निर्देशन में न केवल इसका निर्माण समय पर किया गया, बल्कि आज यह दिल्ली की शान के रूप में अपनी भूमिका भी बखूबी निभा रही है ।

भारत के भूतपूर्व चुनाव आयुक्त टीएन शेषन के सहपाठी रहे ई. श्रीधरन का पूरा नाम इलाट्टबलपिल श्रीधरन है, जिनका जन्म 12 जुलाई, 1932 को हुआ था । उनके परिवार का सम्बन्ध केरल के पलक्कड़ जिले में स्थित करूकपुथूर नामक स्थान से था ।

उन्होंने बेसेल इवांगेलिकल मिशन हायर सेकण्डरी स्कूल से शिक्षा प्राप्त करने के बाद विक्टोरिया कॉलेज, पालघाट से पढ़ाई की । उसके बाद उन्होंने गवर्नमेण्ट इंजीनियरिंग कॉलेज, काकीनाडा से इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त की ।

इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद वे कुछ दिनों तक कोझिकोड के पॉलिटेक्निक कॉलेज में सिविल इंजीनियरिंग के लेक्चरर भी रहे । उसके बाद वे भारतीय रेलवे की इंजीनियरिंग सेवा में नियुक्त हुए ।  वर्ष 1956 में दक्षिण रेलवे में असिस्टेण्ट इंजीनियर के रूप में उन्होंने अपने जीवन के पहले प्रोजेक्ट की शुरूआत की ।

श्रीधरन की असली परीक्षा तब शुरू हुई जब, वर्ष 1963 में पम्बन ब्रिज, जो रामेश्वरम् को तमिलनाडु की मुख्य भूमि से जोड़ता था, के कुछ हिस्सों को एक बड़ी समुद्री लहर बहा ले गई । रेलवे ने ब्रिज की मरम्मत के लिए छ: महीने का लक्ष्य तय किया था, जबकि श्रीधरन के वरिष्ठ अधिकारी, जिनके निर्देशन में ब्रिज की मरम्मत होनी थी, ने इसकी अवधि घटाकर तीन महीने कर दी थी ।

श्रीधरन को इसके क्रियान्वयन की जिम्मेदारी सौंपी गई थी और यह ई. श्रीधरन की निपुणता का कमाल था कि ब्रिज को केवल 46 दिनों में ही ठीक कर लिया गया । इस उपलब्धि के लिए उन्हें ‘रेलवे मन्त्री अवार्ड’ से सम्मानित किया गया ।

श्रीधरन की इस कामयाबी ने भारत के तीन बड़े समुद्री तटों (मुम्बई, कारवर और मैंगलोर) को आपस में सीधे जोड़ा, इससे दक्षिण राज्यों से उत्तर की ओर सफर में 40% की कटौती हुई ।  वर्ष 1970 में उपमुख्य अभियन्ता के रूप में उन्हें भारत के प्रथम मेट्रो रेलवे कलकत्ता मेट्रो की योजना, परिकल्पना एवं क्रियान्वयन की जिम्मेदारी सौंपी गई ।

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उन्होंने वर्ष 1981 में भारत की सबसे बड़ी शिपयार्ड कम्पनी कोचीन के लिए भारत के पहले मर्चेण्ट वेसल, रानी पदमिनी का डिजाइन तैयार किया । जब कोचीन शिपयार्ड ने अपना प्रथम जलयान रानी पद्मिनी बनाया, उस समय श्रीधरन इसके अध्यक्ष सह-प्रबन्ध निदेशक थे ।

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वर्ष 1990 में वे भारतीय रेलवे से सेवानिवृत्त हुए । श्रीधरन का मानना है- सेवानिवृत्ति के बाद जीवन की शुरूआत होती है और उनके साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ ।  सरकार को उनकी सेवा की आवश्यकता पड़ी और एक परिश्रमी व्यक्ति के रूप में उनकी ख्याति को देखते हुए, उन्हें वर्ष 1990 में कॉन्ट्रेक्ट के आधार पर कोंकण रेलवे का सीएमडी नियुक्त कर दिया गया ।

उनके नेतृत्व एवं निर्देशन में कम्पनी ने इस कार्य को सात वर्षों में ही पूरा कर लिया । यह प्रोजेक्ट कई मायनों में अनूठा था । निर्माण-परिचालन-हस्तान्तरण के आधार पर किया गया भारत का यह पहला विशाल प्रोजेक्ट था एवं संगठन का स्वरूप भी भारतीय रेलवे के पारम्परिक रूप से अलग था ।

इस प्रोजेक्ट के अन्तर्गत 93 सुरंगों (जिनकी कुल लम्बाई 82 किमी थी) एवं 150 ब्रिजों का निर्माण भी शामिल था । ये सभी सुरंगें नरम जमीन के भीतर बनाई गई थी ।  कोंकण रेलमार्ग की पूरी लम्बाई 760 किमी है । सार्वजनिक क्षेत्र के इस प्रोजेक्ट का अपनी निर्धारित अवधि में बिलकुल सामान्य कीमत पर निर्मित होना एक उपलब्धि से कम नहीं था ।

श्रीधरन के परिश्रम, प्रवीणता एवं प्रतिभा को पहचान मिली और वर्ष 2005 के मध्य में उन्हें दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन का प्रबन्ध निदेशक बनाया गया । उनके योग्य मार्गदर्शन में इसके प्रथम चरण के सभी निर्धारित खण्ड लक्षित तारीख से पहले एवं अनुमानित बजट से कम लागत में पूरे हो गए ।

ऐसा नहीं था कि यह कार्य बहुत आसानी से हो गया । दुनिया के कई मेट्रो रेलमार्गों का भ्रमण करने के बाद उन्होंने कुख्यात नौकरशाहों को इस परियोजना से दूर रखते हुए आने वाली हर बाधा को पार करने के लिए पेशेवर लोगों की एक प्रेरक टीम बनाई ।

अपने मार्गदर्शन में उन्होंने इस मेट्रो परियोजना के चार चरणों को सफलतापूर्वक पूरा किया । पहले वे वर्ष 2005 के अन्त में सेवानिवृत्त होने वाले थे, किन्तु दिल्ली मेट्रो के दूसरे चरण के निर्माण के अवलोकन के लिए उनका कार्यक्रम अगले तीन सालों के लिए बढ़ा दिया गया ।

जुलाई, 2009 में मेट्रो में निर्माण के दौरान हुआ एक हादसा, जिसमें पाँच लोगों की मृत्यु हो गई थी, की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए उन्होंने दिल्ली मेट्रो के अपने प्रबन्ध निदेशक के पद से त्यागपत्र देना चाहा, किन्तु उनका त्यागपत्र स्वीकार नहीं किया गया और उनसे अपने पद पर बने रहने की प्रार्थना की गई ।

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उनके निर्देशन एवं मार्गदर्शन में मेट्रो के चौथे चरण को पूरा करने के उद्देश्य से उनके कार्यकाल को चौथी बार विस्तारित किया गया । इस तरह 31 दिसम्बर, 2011 तक वे दिल्ली मेट्रो के निदेशक रहे । सेवानिवृत्ति के पश्चात् भी उन्हें कोच्चि, लखनऊ तथा जयपुर मेट्रो रेल का मुख्य सलाहकार नियुक्त किया गया है ।

श्रीधरन की अनूठी उपलब्धियों को पहचानते हुए मीडिया ने उन्हें ‘मेट्रो मैन’ उपनाम दिया । वर्ष 2001 में भारत सरकार ने उन्हें ‘पद्मश्री’ से अलंकृत किया । वर्ष 2002 में ‘टाइम्स ऑफ इण्डिया’ ने उन्हें ‘मैन ऑफ द ईयर’ घोषित किया ।  ‘टाइम’ पत्रिका ने उन्हें वर्ष 2003 में एशिया के नायकों की सूची में शामिल किया ।

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ऑल इण्डिया मैनेजमेण्ट एसोसिएशन ने उन्हें वर्ष 2003 में ‘पब्लिक सर्विस एक्सीलेंस’ से सम्मानित किया ।  वर्ष 2005 में उन्हें फ्रांस की सरकार ने ‘चेवालियर डे ला ए लेजिअन द ऑनर’ (नाइट ऑफ द लिजन ऑफ ऑनर) का सम्मान दिया । भारत सरकार ने उन्हें वर्ष 2008 में ‘पद्म विभूषण’ से अलंकृत किया ।

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राजस्थान टेक्नीकल यूनिवर्सिटी, कोटा ने वर्ष 2009 में उन्हें डी लिट् की उपाधि प्रदान की । वर्ष 2013 में उन्हें रोटरी इण्टरनेशनल फॉर सेक ऑफ ऑनर अवार्ड तथा जापान के राष्ट्रीय सम्मान ‘ऑर्डर ऑफ द राइजिंग सन-गोल्ड एण्ड सिल्वर स्टार’ से सम्मानित किया गया ।

नि:सन्देह ई. श्रीधरन हम सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत है । भ्रष्टाचार के खिलाफ वे सतत प्रयत्नशील रहे हैं । दिल्ली मेट्रो की निर्माण प्रक्रिया पर बात करते हुए उन्होंने एक बार कहा था- ”ठेकेदार प्रोजेक्ट पाने हेतु रिश्वत नहीं देने के लिए हमारे आभारी हैं ।”

इससे पता चलता है कि यदि दिल्ली मेट्रो का निर्माण कार्य सही समय के भीतर एवं लक्षित बजट से कम में हो सका था, तो उसके पीछे श्रीधरन द्वारा निर्मित भ्रष्टाचारमुक्त वातावरण का भी कम योगदान नहीं था । उन्होंने अपने कार्य से न केवल दिल्लीवासियों, बल्कि पूरे देशवासियों के मन में आशा एवं गर्व का संचार किया है ।

लोगों का मानना है कि दिल्ली में यदि ऐसे ही विकास कार्य हुए, तो वह दिन दूर नहीं जब आधुनिकता एवं प्रगति के मामले में मेट्रो महानगर दुनिया की अन्य राजधानियों को टक्कर देने में पूर्णत: सक्षम हो सकेगी । इसमें कोई सन्देह नहीं कि ई. श्रीधरन ने इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट को पूरा कर भारत को ऐसी अतिकुशल परिवहन सेवा दी है, जिस पर दिल्लीवासियों को ही नहीं पूरे देशवासियों को भी गर्व है ।

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