जब हमारी लॉटरी निकली (निबन्ध) | Essay on Winning lottery in Hindi!

मैं स्कूल से निकला ही था तभी, बाहर एक लड़के ने मुझे बताया कि हमारी लॉटरी निकल आई है । विश्वास नहीं हुआ दूसरे लड़के ने उसकी बात की पुष्टि की । मुझे याद आया कि लगभग दो माह पूर्व मेरे पिताजी लॉटरी की एक टिकट खरीद कर लाए थे । उन्होंने यह टिकट माताजी को संभाल कर रखने के लिए दी थी ।

माताजी का कहना था कि उनकी लॉटरी कहाँ निकलने वाली है । इसके अतिरिक्त वह लॉटरी को जुआ मानती थीं । पिताजी भी लॉटरी की टिकट नहीं खरीदते थे । उन्होंने बताया कि एक लॉटरी बेचने वाला टिकट बेचने का आग्रह करने लगा । पिताजी को दया आ गई और उन्होंने लॉटरी की टिकट खरीद ली । हमारी लॉटरी निकलने की खबर सुनकर मेरी खुशी का ठिकाना न रहा । मेरे पग शीघ्रता से घर की ओर बढ़ने लगे ।

हमारा छोटा सा शहर था । हमारी लॉटरी निकलने की खबर पूरे शहर में गर्म थी । रास्ते में मेरे जो भी परिचित मिल रहे थे मुझे वधाइयाँ दे रहे थे । कोई बड़ी दावत माँग रहा था तो कोई मिठाई । हम और हमारा परिवार चर्चा का विषय बने हुए थे । लोग मेरे पिताजी के बारे में बातें कर रहे थे । वे मेरे पिताजी की प्रशंसा कर रहे थे ।

उनका कहना था कि उन्होंने मेरे पिताजी जैसा, ईमानदार सत्यवादी तथा ऊँचे चरित्र का व्यक्ति नहीं देखा है । गलत ढंग से पैसा कमाने की ओर उन्होंने कभी ध्यान नहीं दिया । थोड़े में गुजारा किया तथा परोपकार के कार्यो में सदैव रुचि ली, लोगों का कहना था की मेरे पिताजी के परोपकार के कार्यों का फल उन्हें अंतत: यह मिला है की उनकी लॉटरी निकल आई है ।

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मैं घर पहुँचा । हमारे घर के बाहर लोगों की भीड़ जमा थी । पुरुष भी थे और महिलाएँ भी थीं । लोग हमारे माता जी तथा पिताजी को बधाई दे रहे थे । हमारे पिताजी बाजार से मिठाई खरीदकर ले आए थे ।जो भी बधाई देने आता माताजी उन्हें मिठाई देतीं । दस लाख का पहला इनाम हमारा निकला था इसलिए, यह शुभ सूचना लेकर लॉटरी बेचने वाला भी हमारे घर पहुँचा ।

पिताजी अपने काम पर जा चुके थे । माताजी ने उन्हें तुरन्त संदेश भेजा । वह उसी समय घर आ गए । माताजी ने लॉटरी बेचने वाले को चाय-पानी कराया । पिताजी ने उसे सौ रुपये इनाम में दिये । देखते ही देखते खबर सारे शहर में फैल गई । पिताजी का कोई शत्रु नहीं था । सभी मित्र थे । इसलिए हमारी लॉटरी निकलने से सभी प्रसन्न थे । किसी को भी ईर्ष्या नहीं हो रही थी ।

इसी तरह रात हो गई । लोगों का आना बंद हो गया । हम सारे परिवार के लोग बैठकर दस लाख रुपये इनाम की राशि के उपयोग के बारे में बात करने लगे । मेरा और दीदी का विचार था, कि सबके लिए ढेर सारे बढ़िया-बढ़िया कपड़े सिलवाए जायें और जल्दी से एक कार खरीद ली जाये । माताजी ने दस लाख का पहले ही हिसाब लगा लिया था ।

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उनका विचार था, कि चार लाख का तो रहने के लिए फ्लैट खरीद लिया जाए । दो लाख दीदी की शादी के लिए रखे जायें, सबके लिए अच्छे कपड़े सिलवाए जायें । घर के लिए अच्छा फर्नीचर तथा रंगीन टेलीविजन खरीदा जाए । ग्यारह हजार रुपये मंदिर को दान दिये जायें तथा एक लाख रुपया बचत में रखकर शेष पैसे के विकास पत्र खरीद लिये जायें ।

हमारा सारा घर माताजी ही चलाती है । उनके कार्य में पिताजी कभी हस्तक्षेप नहीं करते । उन्होंने माताजी का प्रस्ताव सुनकर कहा, कि लॉटरी के बाकी पैसों का जो चाहे कर लें किन्तु एक लाख की राशि शहर के सौ गरीब परिवारों में अवश्य बाँटी जाए । हमारी माताजी दानी तथा धर्मपरायण स्त्री हैं । वे पिताजी की बात को तुरन्त मान गई । हम उस रात सभी चैन की नींद सोए ।

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