डब्ल्यू० टी० ओ०: सब्सिडी व भारतीय कृषि (WTO Subside and Indian Agriculture)!

भारत में योजनाबद्ध विकास के दौरान गरीब तबकों को राहत देने के लिए सब्सिडी का प्रावधान किया गया । स्वतंत्रता के आरम्भिक वर्षो में असंख्य जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने को अभिशप्त थी । लोगों को गरीबी रेखा से ऊपर उठाने के लिए गरीबी उन्मूलन और ग्रामीण विकास की ढेरों योजनाएं बनायी गई । किन्तु उचित क्रियान्वयन के अभाव में देशवासियों को इस समस्या से छुटकारा नहीं मिला । आजादी के इतने वर्षो बाद भी लगभग 1/3 जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन कर रही है ।

भारत में लोगों को राहत प्रदान करने के लिए अनेक प्रकर की सब्सिडी दी जाती है जिनमें खाद्य सब्सिडी, उर्वरक सब्सिडी, चीनी सब्सिडी, व्याज सब्सिडी, निर्यात सब्सिडी आदि मुख्य हैं। विगत् वर्षो में योजनाबद्ध विकास में सब्सिडी में भारी वृद्धि हुई है, जिसके कारण सरकार के राजस्व खर्च में भी भारी वृद्धि हो गयी । सब्सिडी प्रारम्भ में कम से शुरू होती है, किंतु धीरे-धीरे विकराल रूप धारण कर लेती है। राष्ट्रीय लोक वित्त एवं नीति संस्थान के अनुसार मुख्य तथा परोक्ष सब्सिडी से अर्थव्यवस्था पर लगभग 45,000 करोड़ रुपये का सालाना बोझ पड़ता है। आर्थिक उदारीकरण के लक्ष्यों में सब्सिडी में कटौती एक प्रमुख लक्ष्य था तथा विश्व व्यापार संगठन (डबल्यू. टी. ओ.) का सदस्य बनने के बाद भारत पर अमीर देशों द्वारा सब्सिडी में कटौती करने के लिए दबाव भी पड़ने लगा। इस क्रम में भारत सरकार द्वारा सब्सिडी में कटौती के कई बार प्रयास भी किए गए। भारत में कटौती का आधार अमेरिका तथा अन्य अमीर देशों द्वारा सब्सिडी में कटौती किया जाना रहा है।

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डब्ल्यू. टी. ओ. बनने के बाद अमेरिका तथा दूसरे अमीर देशों ने कृषि सब्सिडी में कमोबेश कटौती की है। लेकिन इसके बावजूद भी अधिकतर कृषि उत्पादों के अन्तर्राष्ट्रीय मूल्यों में भारी गिरावट आई है । फिर भी अमेरिकी किसानों ने अपना उत्पादन कम नहीं किया है। बाजार खोलने एवं सब्सिडी में कटौती करने के बावजूद अमेरिकी कृषि उत्पादों का विश्व में जोर बढ़ता जा रहा है, और भारत पिछड़ता जा रहा है। यहाँ यह प्रश्न विचारणीय है कि कृषि उत्पादों के मूल्य में गिरावट के बावजूद, अमेरिकी उत्पादन बढ़ता जा रहा है तथा अमेरिका ने सब्सिडी कम की है तथा उनमें और कमी करने को तैयार है । इस गुत्थी को समझने के लिए यह जानना आवश्यक है कि ‘ सब्सिडी की कटौती ‘ से अमेरिका का तात्पर्य क्या है ।

विश्व व्यापार संगठन के अन्तर्गत सब्सिडियों को दो श्रेणियों में बांटा गया है । एम्बर बॉक्स सब्सिडी तथा ब्लू एवं ग्रीन बॉक्स सब्सिडी । एम्बर बाक्स में घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहन देने वाली सब्सिडी आती है । सरकार यदि अपने किसानों को बिजली मुफ्त देती है तो इसे एम्बर बॉक्स सब्सिडी माना जायेगा । सस्ती बिजली मिलने से किसान की लगन कम हो जाती है और उसका उत्पादन पर सीधा प्रभाव पड़ता है । ब्लू एवं ग्रीन बॉक्स में उन सब्सिडियों को रखा गया जिनका उत्पादन पर सीधा प्रभाव नहीं पड़ता है; जैसे – अमेरिका में सरकार किसानों को कुछ रकम इसलिए देती है कि वे अपने खेत को परती छोड़ दें, जिसमें उत्पादन कम हो एवं बाजार स्थिर रहे। कृषि से सम्बधित बुनियादी संरचना में निवेश को भी इस श्रेणी में रखा गया है; जैसे -कृषि मंडी एवं नहर में निवेश ।

अमेरिका ने एम्बर बॉक्स सब्सिडियों में कुछ कटौती की है तथा उन्हें कुछ और कम करने को वह राजी है। अमेरिका ने यह प्रस्ताव दिया है कि हर देश अपने कुल कृषि उत्पादन के मूल्य के 5 प्रतिशत तक ही एम्बर बॉक्स सब्सिडी दे सके । परंतु ब्लू एवं ग्रीन बॉक्स सब्सिडी पर अमेरिका कोई प्रतिबंध लगाने को तैयार नहीं है। अमेरिका का कहना है कि इन सब्सिडियों का कृषि उत्पादन से सीधा सम्बंध न होने के कारण इन्हें समाज कल्याण के खर्च जैसा माना जाना चाहिए। भारत सरकार अमेरिका के इस प्रस्ताव से सहमत भी है। क्योंकि भारत भी एम्बर बॉक्स सब्सिडी कम करने के लिए दबाव बना रहा है। ग्रीन बॉक्स सब्सिडी कम करने पर जोर नहीं दे रहा है। विश्व व्यापार प्रतियोगिता में भारतीय कृषि उत्पादों के पिछड़ जाने का मुख्य कारण यही है।

ब्लू एवं ग्रीन बॉक्स सब्सिडी का कृषि उत्पादन पर परोक्ष प्रभाव बहुत गहरा होता है, जिसे हम नजरअंदाज कर रहे हैं।

ब्लू एवं ग्रीन बॉक्स सब्सिडी पूंजी व्यय से सम्बन्धित होती है। हर प्रकार के उत्पादन में दो तरह के व्यय आते है- पूंजीगत व्यय और चालू व्यय । किसान द्वारा मकान, ट्‌यूबवैल, ट्रैक्टर आदि पर किया गया व्यय पूंजी व्यय कहलाता है। उत्पादन बढ़ने-घटने के साथ इस व्यय में कोई कमी नहीं आती है। मजदूरी, खाद, बिजली आदि पर किया गया व्यय चालू व्यय कहलाता है। उत्पादन बढ़ने-घटने के साथ-साथ इस व्यय में भी परिवर्तन होता है। सरकार यदि मंडी बना दे अथवा नहर बना दे, अथवा भूमि संरक्षण के लिए मेढ्बंदी कर दे तो इससे किसान के पूंजी व्यय में कमी होती है।

अमीर देशों के संगठन आईसीडी के एक अध्ययन के अनुसार, अमीर देशों के हर किसान को औसतन एक वर्ष में दस लाख रुपये की पूंजी खर्च सब्सिडी मिलती है।

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अमीर देशों के किसानों को यह भारी रकम तभी मिलती है, जब उनके खेत एवं पशु उत्पादन के लिए तैयार रहते हैं। इस सब्सिडी को प्राप्त करने कि लिए आवश्यक होता है कि किसान अपने ट्‌यूबवेल, ट्रैक्टर एवं तारबंदी को सही हालत में रखें। मान लीजिए, गेहूं के उत्पादन में चार रुपये का पूंजी खर्च और चार रुपये का चालू खर्च आता है। अमेरिकी किसान का गेहूं यदि पांच रुपये किलो भी बिक जाता है, तो वह फायदे मे रहता है, क्योंकि उसे पर्याप्त सब्सिडी मिल जाती है।

भारत के किसानों को ब्लू एवं ग्रीन बॉक्स सब्सिडी नहीं मिलती है। उसे अपनी जेब से मकान, ट्‌यूबवेल, ट्रैक्टर मजदूरी, खाद व बिजली का खर्च वहन करना पड़ता हैं। यदि विश्व बाजार में गेहूं का मूल्य पांच रुपये हो, तो भारतीय किसान पिट जाएगा। यदि भारत का किसान अमेरिकी किसान से कुशल हो और उसकी उत्पादन की कुल लागत छह रुपये आती हो, तब भी वह पिट जाएगा । यही कारण है कि डबल्यू.टि.ओं. के आने के बाद हमारे किसानों की हालत निरंतर बिगड़ती जा रही है। अमीर देशों के किसानों को पूंजी खर्च सरकार देती है। किसान को मकान, ट्‌यूबवेल एवं ट्रैक्टर खरीदने के लिए सब्सिडी मिलती है। उसे अपनी जेब से केवल मजदूरी खाद एवं बिजली पर खर्च करना पड़ता है।

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खुले व्यापार एवं प्रतिस्पर्द्धा का अर्थ यह हो गया है कि भारत का किसान पूंजी एवं चालू खर्च, दोनों वहन करे और अमेरिकी किसान से प्रतिस्पर्द्धा करे ।

दुःख की बात है कि भारत सरकार ब्लू एवं ग्रीन बॉक्स सब्सिडी को समाप्त करने की मांग पर जोर नहीं दे रही है।

वैसे भी भारत को किसानों का ब्लू एवं ग्रीन बाक्स जैसी कोई सब्सिडी मिलती ही नहीं है। भारत में दी जाने वाली कुल सब्सिडी में सबसे ज्यादा खाद्य सब्सिडी होती है।

खाद्य सब्सिडी में भारतीय खाद्य निगम केन्द्रीय पूल के लिए निर्धारित मूल्य पर खाद्यान्न खरीदता है। यह खाद्यान्न सरकार द्वारा नियत दरों पर निर्धानता रेखा से नीचे और रेखा से ऊपर रहने वाले परिवारों को आबंटित करने के वास्ते राज्यों को जारी किया जाता है। आर्थिक लागत और केन्द्रीय निर्गम मूल्य के बीच अन्तर की क्षतिपूर्ति निगम को खाद्य संबंधी आर्थिक सहायता के रूप में की जाती है। राज्यों के लिए नियत खाद्यानों की आर्थिक लागत और निर्गम मूल्य के बीच के अंतर को आर्थिक सहायता के रूप में राज्यों को दिया जाता है। भारतीय खाद्य निगम सरकार की ओर से कुल सब्सिडी में खाद्य सब्सिडी का बड़ा भाग है । वर्ष 2000-2001 के केन्द्रीय बजट में खाद्य सब्सिडी में बड़ी कटौती की गई । जिसका संसद में न केवल विरोधी पक्षों ने बल्कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के घटक दलों तक ने विरोध किया ।

खाद्य सब्सिडी गरीब तबकों को कम मूल्य पर खाद्यान्न मुहैया कराने के वास्ते दी जाती है, किन्तु गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे लोग उससे अपेक्षित रूप से लाभान्वित नहीं होते । इसी प्रकार उर्वरक सब्सिडी से गरीब किसान अपेक्षित लाभ प्राप्त नहीं कर सका है। विविध प्रकार की सब्सिडी से राजकोषीय घाटा तेजी से बढ़ा है। महंगाई बढ़ने से गरीबों की मुसीबतें और बढ़ी हैं। गरीब तबकों और सीमांत किसानों के हितों को दृष्टिगत रखते हुए खाद्य और उर्वरक सब्सिडी की आवश्यकता अभी बनी हुई है । सब्सिडी का लाभ जरूरतमंद लोगों को ही मिलना चाहिए। अर्थव्यवस्था पर प्रत्यक्ष सब्सिडी के साथ परोक्ष सब्सिडी का भी भारी बोझ है। परोक्ष सब्सिडी का 40 प्रतिशत सामाजिक सेवाओं पर तथा 60 प्रतिशत ऊर्जा, पेयजल, संचार परिवहन पर खर्च होता है। गैर-जरूरी सब्सिडी को कम करके अर्थव्यवस्था की दशा में सुधार किया जा सकता है। सब्सिडी में कटौती से राजकोषीय घाटा कम होगा । इससे मुद्रास्फीति को काबू में रखने में मदद मिलेगी, जिसका लाभ निश्चित रूप से गरीब तबकों तक पहुंचेगा ।

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