कृषि बनाम सेवा क्षेत्र पर निबंध | Essay on Agriculture Versus Service Sector in Hindi!

अमेरिका, यूरोपीय यूनियन, भारत एवं ब्राजील के बीच डब्ल्यूटीओ वार्ता विफल हो चुकी है । मुद्दा कृषि का था । अमेरिका की माँग थी कि भारत कृषि उत्पादों को दिये जाने वाले संरक्षण को घटाए ।

हमारे वाणिज्य मंत्रालय के आकलन के अनुसार भारत कृषि को 40.8 फीसदी संरक्षण दे रहा है जबकि अमेरिका केवल 31.4 फीसदी । भारत द्वारा कृषि उत्पादों पर आयात कर कम करने से अमेरिकी किसान को सेब, बादाम, शराब आदि का बाजार मिलेगा ।

इसलिए अमेरिका मांग कर रहा है कि भारत अपने कृषि बाजार को आयातों के लिए खोले । इसके विपरीत भारत की मांग है कि अमेरिका अपने किसानों को दी जाने वाली सब्सिडी को कम करे । अमेरिकी किसान उत्पादन महँगा करते हैं फिर भी भारत में माल सस्ता बेचते है क्योंकि उन्हें भारी मात्रा में सब्सिडी मिल रही है । इस मुद्दे पर सहमति नहीं बनने के कारण वार्ता स्थगित कर दी गयी है ।

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कुछ भारतीय विद्वानों का मत है कि भारत को कृषि पर अड़ने के स्थान पर लचीला रुख अपनाना चाहिए । उनका कहना है हमारी कृषि विफल है । हमारी उत्पादन लागत ज्यादा आती है । यही कारण है कि हमें अपने किसानों को सस्ते आयातों से संरक्षण देना पड़ रहा है । यह सही है कि अमेरिकी किसान सब्सिडी के बल पर सस्ता माल बेच रहा है परतु दूसरे देश बिना सब्सिडी के हमसे सस्ता माल उत्पादित कर रहे हैं.

जैसे मलेशिया का पाम ऑयल सस्ता पड रहा है और हमारा सरसों एवं मूंगफली का तेल महंगा पड़ रहा है अत: हमें सेवा क्षेत्रों पर अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए । सेवा क्षेत्रों में हमारी स्थिति अबल है । हमारे इंजीनियर एवं वैज्ञानिक विश्व विजय कर रहे हैं । वार्ता होने के बाद कमलनाथ ने कहा कि अमेरिका द्वारा एचबी वीजा पर अधिक संख्या में भारतीय कर्मचारियों का प्रवेश देना जरूरी है ।

उन्होंने स्वीकार किया है कि केवल कृषि के आधार पर वार्ता को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता है । कहा जा सकता है कि हमारी कृषि की खस्ता हाल को देखते हुए हम इस मुद्दे पर नहीं जीत सकते हैं । हमारे लिए यह परिस्थिति हानिकारक है, क्योंकि वार्ता के विफल होने से हम सेवा क्षेत्र में आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं ।

मूल रूप से यह तर्क सही है । संपूर्ण उत्पादों के दीर्घकालीन मूल्य गिर रहे हैं और हमारे किसान आत्महत्या करने को विवश हैं । ऐसे में कृषि को प्रमुख मुद्दा बनाना डूबती नाव को बचाने जैसा है । दूसरी तरफ सेवा क्षेत्रों में हम ताकतवर हैं । हमारे देश में सेवा क्षेत्रों के विकास पर जोर दिया जाता है । यही कारण है कि आज हमारे इंजीनियर सफल हैं । अत: हमें कृषि में कुछ घाटा सहन करके सेवा क्षेत्रों में उभरते अवसरों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए । कृषि की डूबती नाव को छोड़ कर सेवा के हवाई जहाज पर सवारी करनी चाहिए ।

समस्या यह है कि देश की आय में कृषि का योगदान तेजी से घट रहा है । स्वतंत्रता के समय हमारी 90 फीसदी आय कृषि से आती थी । आज मात्र 15 फीसदी कृषि से आ रही है । परंतु इस 15 फीसदी पर 58 फीसदी जनता निर्भर है । कृषि की नाव डूब अवश्य रही है परंतु उस पर बड़ी संख्या में यात्री सवार हैं ।

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नाव को डूबने के पहले यात्रियों को हवाई जहाज में बैठाने की व्यवस्था करना जरूरी है । नये पक्के मकान के बन जाने के पहले लोग पुरानी झोपड़ी को नही छोडते हैं । इसलिए सेवा क्षेत्र में 3 करोड़ रोजगार उत्पन्न होने तक कृषि को नहीं त्यागा जा सकता है ।

यह भी निश्चित नहीं है कि इतनी बड़ी संख्या में सेवा क्षेत्रों में रोजगार उत्पन्न हो जायेंगे । साँफ्टवेयर, कॉल सेन्टर, संगीत, सम्पादन, अनुसंधान, अनुवाद, बैंक, बीमा, यातायात, पर्यटन आदि सेवाओं में रोजगार की संख्या सीमित दिखती है । इस विषय पर सरकार को शीघ्र गणित करनी चाहिए । देखना चाहिए कि 30 करोड़ कृषि श्रमिकों में से 20 करोड़ को किन सेवा क्षेत्रों में लगाया जा सकता है और इस परिवर्तन में कितना समय लगेगा । साथ-साथ इस बदलाव को हासिल करने के लिए शीघ्र कदम उठाने चाहिए ।

शिक्षा व्यवस्था को सरकारी अध्यापकों से हटाकर वाउचर बांटने चाहिए । देश के अधिकाधिक क्षेत्रों में निजी विद्यालय खुल चुके हैं, जो कि कम दाम पर अच्छी शिक्षा उपलब्ध करा रहे हैं । जो पैसा सरकारी अध्यापकों के वेतन में खर्च किया जा रहा है उसे छात्रों को सीधे देना चाहिए जिससे वे अपने पसंदीदा विद्यालय की फीस भर सकें । इससे ग्रामीण युवाओं के सेवा क्षेत्र में प्रवेश का आधार स्थापित होगा ।

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सड़क, बिजली, यातायात, टेलीफोन आदि की सुविधाएं कस्बों में ठीक करनी चाहिए । इन सुविधाओं को गांव में उपलब्ध कराने के प्रयास में कस्बे एवं शहर छूट जाते हैं, सेवा क्षेत्र का विकास कस्बों एवं शहरों में होगा, गांव में नहीं । इसलिए शहर एवं कस्बे को पहले एवं गांव को बाद में देखना चाहिए ।

पूर्व में देश में कैपिटल सब्सिडी योजना लागू थी । नये उद्योगों को स्थापित करने के लिए सरकार अनुदान देती थी । इसी प्रकार अनुदान सेवा क्षेत्र के विस्तार में लगेगा । तब तक हमें डब्ल्यूटीओ वार्ता को स्थगित रखना चाहिए । खबर है कि दूसरे विकासशील देशों का भारत पर दबाव है कि डब्ल्यूटीओ वार्ता को आगे बढ़ाएँ ।

इन देशों को समझना चाहिए कि अमेरिकी माँग के अनुरूप कृषि को शीघ्र खोलने से उनकी स्थिति बिगड़ेगी, क्योंकि खुले बाजार में कृषि उत्पादों के दाम तेजी से गिरेंगे । खुले बाजार का लाभ विकासशील देशों को अंतत: अपनी क्षमता से हासिल करना होगा ।

भारत की क्षमता सेवा क्षेत्र में है, चीन की मैन्यूफैक्चरिग में एवं सउदी अरब की तेल में । हर देश को अपनी उस क्षमता का विकास करना चाहिए जिसमें वह अग्रणी है । इस क्षमता के विकास में समय लगेगा । अत: वर्तमान में डब्ल्यूटीओ की वार्ता का स्थगित रहना ही अच्छा है ।

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जरूरत इस बात की है कि मिले समय का उपयोग अपनी क्षमता के विकास में लगाया जाये । दूसरे क्षेत्रों में क्षमता का विकास किये बिना कृषि को खोलने से कृषि की डूबती नैया पर सवार हमारे उ0 करोड़ लोग डूब जायेंगे ।

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