नरेन्द्र मोदी पर निबंध | Essay on Narendra Modi in Hindi language. 

भारतीय लोकतन्त्र के इतिहास में वर्ष 2014 के आम चुनाव बहुत खास हैं । इससे पूर्व के आम चुनाव शायद ही इससे अधिक दिलचस्प रहे हों । यह किस्सा है उस सपने का जो 21वीं सदी का भारत देख रहा है ।

यह सपना है- एक खुशहाल और ताकतवर देश होने का, जो आर्थिक रूप से भी समृद्ध हो । यही सपना पहली बार 66% से अधिक मतदाताओं को मतदान केन्द्रों तक खींच लाया और वह भी सिर्फ ‘एक’ नाम के सहारे ।  किसी एक व्यक्ति को लेकर ऐसी दीवानगी और जादू पहले कभी नहीं देखा गया और वह व्यक्ति हैं- भारत के पन्द्रहवें प्रधानमन्त्री के रूप में पदभार सम्भाल चुके ‘नरेन्द्र मोदी’ ।

भारतीय लोकतन्त्र ने इतनी उम्मीदें इससे पहले कभी किसी पार्टी या व्यक्ति से नहीं की । दुनिया के सबसे बड़े लोकतान्त्रिक देश को उसके पन्द्रहवें प्रधानमन्त्री के रूप में श्री नरेन्द्र दामोदरदास (नरेन्द्र मोदी) का मिलना कई मायनों में बहुत खास है ।

नरेन्द्र मोदी का जन्म 17 सितम्बर, 1950 को गुजरात के मेहसाणा जिले के एक छोटे से गाँव वडनगर में आर्थिक रूप से पिछड़े हुए परिवार में हुआ । गरीबी रेखा से थोड़ा ऊपर जिन्दगी गुजारने वाले मोदी के पिता दामोदरदास और माता हीराबेन ने कभी इसकी कल्पना भी नहीं की होगी कि एक दिन उनका यह बेटा देश का प्रधानमन्त्री बनेगा ।

औसत दर्जे के छात्र नरेन्द्र मोदी की वाद-विवाद, नाटक प्रतियोगिता व अभिनय में बेहद रुचि थी । पढ़ाई के साथ-साथ मोदी ने आठ वर्ष की आयु से ही रेलवे स्टेशन पर अपने पिताजी की चाय की दुकान पर हाथ बँटाना आरम्भ कर दिया था ।  उसी समय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ गुजरात में अपने पाँव पसार रहा था, तभी मोदी ने संघ की शाखा में जाना शुरू कर दिया ।

एक प्रकार से यहाँ मोदी के भावी राजनीतिक जीवन की नींव तैयार होने लगी ।  17 वर्ष की आयु में मोदी ने सन्यासी बनने की चाहत में घर और पढ़ाई छोड़ दी । करीब दो साल तक हिमालय के अलग-अलग मठों में घूमने के बाद मोदी घर लौट आए और पुन: संघ से जुड़ गए ।

संघ के नेता लक्ष्मणराव ईनामदार (वकील साहब) ने उनका राजनीतिक मार्गदर्शन किया और उन्हें आगे पढ़ने के लिए प्रेरित किया । वर्ष 1973 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में प्रचारक के रूप में अपना कैरियर शुरू करने वाले मोदी ने अपनी प्रतिभा और मेहनत के बल पर वर्ष 1987 में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) में जगह बना ली ।

इसके बाद मोदी ने पार्टी में अनेक जिम्मेदारियों को सफलतापूर्वक निभाते हुए निरन्तर अपना कद बढ़ाया । इसी का परिणाम है कि मोदी वर्ष 2001 में गुजरात के मुख्यमन्त्री बनने के बाद मई, 2014 तक इस पद पर बने रहे ।

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नरेन्द्र मोदी के राजनीतिक कैरियर में वर्ष 2002 बहुत महत्वपूर्ण है । इस वर्ष गुजरात में साम्प्रदायिक दंगे भड़क उठे, जिनमें 2,000 से अधिक लोग मारे गए और कई हजार व्यक्ति घायल हुए । इन दंगों ने मोदी की छवि को दागदार बना दिया । मोदी सरकार न केवल दंगों को प्रभावी ढंग से न रोक पाने के लिए आलोचना का शिकार हुई, बल्कि उस पर दंगों को भड़काने का आरोप भी लगाया गया ।

मोदी पर चारों ओर से मुख्यमन्त्री पद से इस्तीफा देने का दबाव बनने लगा, तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी मोदी को ‘राजधर्म’ का निर्वाह करने की नसीहत दी, लेकिन मोदी गुजरात के मुख्यमन्त्री पद पर बने रहे । वर्ष 2002 के दंगों ने मोदी के व्यक्तित्व को बदलकर रख दिया ।

अब तक हिन्दुत्ववादी छवि को लेकर आगे बढ़ने वाले मोदी ने गुजरात दंगों के बाद अपना सारा ध्यान आर्थिक विकास पर केन्द्रित कर दिया, जिसका परिणाम यह हुआ कि उनके नेतृत्व में वर्ष 2012-13 तक आते-आते गुजरात ‘राज्य’ के स्थान पर ‘ब्राण्ड’ बन गया ओर मोदी के ‘गुजरात विकास मॉडल’ की गूँज हर कहीं सुनाई देने लगी ।

मोदी को इसी ‘विकास पुरुष’ की छवि ने उन्हें वर्ष 2014 के आम चुनावों में विजय दिलवाकर प्रधानमन्त्री के पद तक पहुँचा दिया । तेली जैसी पिछड़ी हुई जाति का एक चाय बेचने वाला लड़का भारत का प्रधानमन्त्री बने, यह बेमिसाल है ।

वे अकेले ऐसे प्रधानमन्त्री हैं, जो इतनी गरीबी से उठे हैं । श्री एच डी देवगौड़ा के बाद प्रधानमन्त्री पद पर पहुँचने वाले मोदी दूसरे ओबीसी लीडर हैं और ऐसे पहले सिटिंग मुख्यमन्त्री हैं, जिन्हें इस पद के लिए चुने जाने का अवसर मिला है ।

नरेन्द्र मोदी अपनी प्रतिभा, मेहनत और नेतृत्व क्षमता के कारण ही इस मुकाम तक पहुँचे हैं । मोदी की खुद की ‘यूनिवर्सिटी’ ने हमेशा उन्हें तैयार रहना सिखाया है । रातों को जागकर बे अलग-अलग मुद्दों पर अपने भाषण स्वयं तैयार करते थे ।

वास्तव में, मोदी व्यक्तिगत रूप से बहुत मेहनती व्यक्ति हैं । सबसे अहम् बात यह है कि वह खुद से बने इनसान हैं, इसलिए उनकी सफलता की कहानी सुनकर शायर इकबाल की निम्न पंक्तियाँ स्वतः ही याद आ जाती हैं-

‘खुद को कर बुलन्द इतना की हर तकदीर से पहले

खुदा बन्दे से खुद पूछे बता तेरी रजा क्या’ है ?

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आजाद भारत में जन्मे पहले प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी सही मायनों में ‘युवा भारत’ के ‘युवा प्रधानमन्त्री’ हैं । स्कूली दिनों में नाटकों में भाग लेने के शौकीन मोदी वक्त के साथ कदम मिलाकर चलने वालों में से हैं । यही वजह है कि भारत जैसे देश में जहाँ तमाम राजनीतिक दल प्रौद्योगिकी से दूरी रखने में विश्वास रखते है, वहीं मोदी कम्प्यूटर एवं इण्टरनेट प्रौद्योगिकी का जमकर प्रयोग करते हैं ।

उन्होंने चुनाव प्रचार में भी सूचना प्रौद्योगिकी का भरपूर इस्तेमाल करते हुए जनता के एक बड़े वर्ग तक अपनी पहुँच बनाई है । वे जनता से जुड़ने के लिए सोशल नेटवर्किग का सहारा लेते हैं । नागरिकों से ‘लाइव चैट’ करने वाले पहले भारतीय राजनेता होने का गौरव भी मोदी को ही मिला है । वे सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट ‘ट्विटर’ पर सदैव सक्रिय रहते हैं ।

उनकी लोकप्रियता का अन्दाजा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि ट्‌विटर पर उनके 5 मिलियन से अधिक अनुयायी (फॉलोवर) हैं और वे विश्व के ऐसे चतुर्थ राजनेता हैं, जिनका ट्विटर पर सबसे अधिक अनुसरण (फॉलो) किया जाता है ।

इस सम्बन्ध में एक दिलचस्प और उल्लेखनीय बात यह भी है कि जापान के राष्ट्रपति शिंजो आबे ट्‌विटर पर सिर्फ तीन लोगों का अनुसरण करते हैं, जिनमें से मोदी एक हैं । इससे पता चलता है कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी मोदी एक अलग पहचान रखते हैं ।

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सूचना प्रौद्योगिकी का महत्व जानने वाले मोदी का इसके प्रति प्रेम उनके इस वक्तव्य से भी स्पष्ट झलकता है- “21वीं शताब्दी में जहाँ से सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी का दायरा बढ़ाने वाली ओप्टिक फाइबर केवल गुजरेगी, वहीं पर नगर बसाए जाएंगे ।”

जाहिर-सी बात है कि नरेन्द्र मोदी न केवल सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी से सक्रिय रूप से जुड़े हुए हैं, बल्कि आने बाले दिनों में इसका प्रसार करने के हिमायती भी हैं । उल्लेखनीय है कि मोदी हर क्षेत्र में प्रौद्योगिक विकास के समर्थक हैं ।

तमाम गतिरोधकों के बावजूद उन्होंने देश में बुलेट ट्रेन चलाने की स्वीकृति दे दी है । कृषि के क्षेत्र में भी उन्होंने ‘लैब दु लैण्ड’ (प्रयोगशाला से खेत तक) का नया नारा देकर और ‘कम जमीन और कम वक्त’ में कृषि उत्पादन को बढ़ाने में मदद के लिए वैज्ञानिक प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल पर बल दिया है ।

हरित और श्वेत क्रान्ति की तर्ज पर उन्होंने देश में मछली पालन के क्षेत्र में ‘नीली क्रान्ति’ का आह्वान किया है । इन सभी बातों से पता चलता है कि हर क्षेत्र में नरेन्द्र मोदी का मुख्य एजेण्डा सिर्फ-और-सिर्फ तरक्की है ।

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वे ‘सबका साथ, सबका विकास’ की विचारधारा के पक्षधर हैं । शायद यही कारण है कि भारत की जनता ने गुजरात दंगों को भुलाकर उन्हें प्रधानमन्त्री के पद के रूप में इतनी बड़ी जिम्मेदारी सौंपी है । यद्यपि हर सरकार अपने तरीके से देश के विकास के लिए कार्य करती है, किन्तु नरेन्द्र मोदी की सरकार से जनता की उम्मीदें बहुत ज्यादा हैं, क्योंकि भारत में सम्भवत: पहली बार कोई लोकसभा चुनाव जाति-पाँति तथा साम्प्रदायिकता जैसे मुद्दों को छोड़कर विकास के मुद्दे पर लड़ा गया और जीता गया, इसलिए जनता अपने नए प्रधानमन्त्री से यूपीए-2 के शासनकाल में आए ठहराव से मुक्ति पाने की अपेक्षा रखती है ।

‘लेस गवर्नमेण्ट, मोर गवर्नेंस’ और ‘नो रेड टेप, ओनली रेड कार्पेट’ पर जोर देने वाले मोदी को भी इसका आभास अवश्य होगा कि एक प्रधानमन्त्री के रूप में उनके सामने महँगाई, बेरोजगारी, आर्थिक घाटा, भ्रष्टाचार जैसी अनेक चुनौतियाँ हैं, जिनका समाधान उन्हें करना है ।

उनकी सरकार को तरक्की और खुशहाली के वादों पर खरा उतरना होगा, हालांकि अपने शपथ ग्रहण समारोह में सार्क देशों के प्रधानमन्त्रियों को आमन्त्रित कर, मन्त्रिमण्डल का आकार छोटा रखकर, नौकरशाही व्यवस्था में परिवर्तन की शुरूआत कर, मन्त्रियों को सौ दिवसीय योजना बनाकर उस पर अमल करने एवं भाई-भतीजावाद से दूर रहने का निर्देश देकर, सरकारी अधिकारियों को कार्यशैली सुधारने हेतु सुझाव देकर तथा स्वतन्त्रता दिवस पर लालकिले के प्राचीर पर दिए गए भाषण से उन्होंने यह संकेत दिया है कि जिन ‘अच्छे दिनों’ का वादा उन्होंने जनता से किया था, उन्हें लाने के लिए वे पूरी तरह से हरसम्भव प्रयास करेंगे ।

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नरेन्द्र मोदी ने लम्बे समय तक गुजरात के मुख्यमन्त्री का पद सम्भाला है, जिसमें उन्हें सफलता भी मिली है । उन्हें गुजरात रत्न, ई-रल, सर्वश्रेष्ठ मुख्यमन्त्री तथा एशियन एफडीआई पर्सनैलिटी ऑफ द ईयर के सम्मान से नवाजा जा चुका है ।

उन पर प्रधानमन्त्री बनने से पूर्व ही ‘Narendra Modi : The Man, The Times’ तथा ‘The Namo Story : A Political Life’ सहित पाँच पुस्तकें लिखी जा चुकी हैं । ऐसे सफल व्यक्ति की शख्सियत और इरादे जानने के लिए सारी दुनिया बेताब है ।

भारतीय जनता उनसे बदलाव और बेहतरी की आशा रखती है, लेकिन इन सबके लिए हमें उन्हें पर्याप्त समय देना होगा । आखिरकार सुखद परिवर्तन रातों-रात नहीं होता और अचानक होने बाले परिवर्तन लोकतन्त्र की गरिमा के अनुकूल होते भी नहीं ।

नरेन्द्र मोदी ने सितम्बर, 2014 में स्वच्छ भारत मिशन की शुरूआत की घोषणा की । मोदी के अनुसार, सफाई से सम्बन्धित गतिविधियाँ देशभर में प्रत्येक गाँव में होनी चाहिए । उन्होंने इस मिशन को सफल बनाने के लिए राज्य सरकारों के साथ मिलकर काम करने की आवश्यकता पर बल दिया ।

उन्होंने सरपंचों, सांसदों, विधायकों आदि सहित विभिन्न जनप्रतिनिधियों के लिए स्वच्छ भारत को कानूनी तौर पर स्थापित करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला 12 अक्टूबर को शुरू स्वच्छ भारत मिशन का उद्देश्य और लक्ष्य वर्ष 2019 तक स्वच्छ भारत बनाना है ।

प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने गाँवों के समग्र विकास के लिए 11 अक्टूबर, 2014 को सांसद ‘आदर्श ग्राम योजना’ की शुरूआत की । इस योजना के तहत सांसद प्रत्येक वर्ष 2019 तक तीन गाँवों में बुनियादी एवं संस्थागत ढाँचा विकसित करने की जिम्मेदारी उठाएँ, जिनमें से एक आदर्श गाँव को वर्ष 2016 तक विकसित किया जाना है ।

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इसके बाद पाँच ऐसे आदर्श (प्रत्येक वर्ष एक गाँव) का चयन किया जाएगा और अनेक विकास के काम को वर्ष 2024 तक पूरा किया जाएगा । नरेन्द्र मोदी एक ऐसे जननेता हैं, जो लोगों के कल्याण के लिए समर्पित हैं ।  उन्होंने थोड़े समय में यह सिद्ध कर दिया है कि भारत की विदेश नीति पहले की सरकार से एकदम भिन्न है तथा प्रधानमन्त्री मोदी इस विदेश नीति को नई दिशा दे रहे हैं, जो स्वागत योग्य है ।

वे एक ऐसे व्यक्ति हैं, जिनमें साहसी, संवेदनशील और दृढ़ निश्चयी व्यक्ति हैं और जिन्हें देश ने इस उम्मीद के साथ जनादेश दिया है कि वे भारत में नई ऊर्जा का संचार करेंगे और उसे विश्व का पथप्रदर्शक बनाएंगे । उन्होंने देशवासियों को सम्बोधित करते हुए कहा है-

“वक्त कम है जितना दम है लगा दो….

कुछ लोगों को मैं जगाता हूँ…

कुछ लोगों को तुम जगा दो….”

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