नियंत्रित स्वतंत्रता ही निरंकुशता की जननी है (निबन्ध) | Essay on When Liberty Becomes License, Dictatorship is Near in Hindi!

विश्व के इतिहास में स्वतंत्रता और शासन के मध्य संघर्ष की प्रक्रिया निरन्तर चलती रही है । प्राचीन समय में यह संग्राम विभिन्न विजयों तथा शासन के मध्य चलता रहा है । उस समय स्वतंत्रता का अर्थ राजनैतिक शासकों के दमनचक्र के विरुद्ध प्राप्त हुई सुरक्षा से लिया जाता था ।

कुछ को छोड़कर अधिकांश प्राचीन शासक प्रजा के विरोधी समझे जाते थे । समाज के कमजोर वर्ग को शासन के कठोर चंगुल से बचाने के लिए कुछ व्यक्ति संघर्ष करते थे । शासक और कमजोर जनता के बीच के संघर्ष को समाप्त करने के लिए सुरक्षा के दृढ़ कवच की आवश्यकता को महसूस किया जाता था ।

आधुनिक युग के मनुष्य का उद्देष्य जनता के ऊपर युग के मनुष्य का उद्देश्य शासकों की शक्ति को सीमित करना है और इस सीमा को स्वतंत्रता कहा जा सकता है । लेकिन जब ये सीमाएं न्यायसंगत हो अर्थात नियमित स्वतंत्रता का यह अर्थ कदापि नहीं है कि इससे तानाशाही का जन्म होगा ।

सामान्यत: कुछ सुविधाएं जिन्हें राजनैतिक स्वतंत्रता और अधिकार कहते हैं प्रदान करके लोगों से कहा जाता है कि वे स्वतंत्र हैं । जॉन स्टुअर्ट मिल के अनुसार स्वतंत्रता या अधिकार प्राप्त करके सरकार को जनता पर अत्याचार नहीं करने चाहिए, यदि वह दमन करती हैं, तो उसके दमन के विरोध में विद्रोहों को न्यायसंगत घोषित कर देना चाहिए । संवैधानिक नियंत्रण की स्थापना भी होनी चाहिए जिसके अंतर्गत जनता का समर्थन प्राप्त करने के लिए सरकार द्वारा योग्य नीतियों का निर्माण आता है ।

हाल के वर्षो में बहुत से देशों की सरकारों को नागरिकों के मूल अधिकारों और स्वतंत्रता पर ध्यान केन्द्रित करने के लिए विवश होना पड़ रहा है । पिछली दो शताब्दियों से जिन देशों में संविधान का निर्माण हुआ है, उनमें नागरिकों के मूलभूत अधिकारों पर बहुत अधिक ध्यान दिया गया है, जिसका आदर करने के लिए सरकार प्रतिबद्ध है ।

18वीं शताब्दी में प्रजातांत्रिक लहर चल पड़ी । इससे इस मान्यता का असर मिटने लगा कि ईश्वर ने ही शासक वर्ग को शासन का अधिकार दिया है । उन्हें प्रजातंत्र की इस विशेषता ने आकर्षित किया कि कार्य को ठीक ढंग से चलाने में असमर्थ सरकार को बदलने की शक्ति उन्हीं के पास है । इससे शक्ति के दुरुपयोग पर रोक लगी । आधुनिक विचारधारा के प्रसार से प्राचीन राजनैतिक अवधारणाएं समाप्त हो गई ।

एक निश्चित अवधि की सरकार के कारण कुछ लोगों के मन में यह विचार पनपने लगा कि शक्ति को सीमित करने की ओर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है । जनता के हित का ध्यान न देने वाली सरकार के लिए तो यह सार्थक है लेकिन हित जनता के हित पर निर्भर है । शासन को व्यवस्थित और सुचारू रूप से चलाने पर ही अगली बार उन्हें जनता का समर्थन प्राप्त होगा ।

जनता ने विश्वसनीय नेताओं को अपने समर्थन की शक्ति प्रदान की । उसके पीछे आम धारणा यही थी कि वे भी शासन का एक हिस्सा हैं । धीरे-धीरे विश्व के विभिन्न देशों में प्रजातांत्रिक गणतंत्र की स्थापना हुई । जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों की जिम्मेदार सरकार की शासन प्रणाली का उदय हुआ । इसमें शासक दल के कार्य जनमत पर आधारित होते हैं ।

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कल्याणकारी राज्य, समाजवाद और साम्यवाद के आगमन से सभी राष्ट्रों में जनता की शक्ति औद दृढ़ हो गई । एकतंत्र के समर्थक मतों जैसे जमींदारी प्रथा, पूंजीवाद को भयंकर आघात का सामना करना पड़ा । इसमें व्यक्तिगत हित को नहीं सम्पूर्ण देश, सम्पूर्ण राष्ट्र के हित को ध्यान में रखा जाता है ।

जमींदारों और पूँजीपतियों द्वारा साधारण जनता के जो अधिकार सीमित कर दिए गए थे उनको पुन: बहाल किया गया । दासता, धनी वर्ग के शोषण से मुक्ति मिलने के कारण उनके रहन-सहन के ढंग में परिवर्तन आ गया । प्रजातांत्रिक शासन प्रणाली का मुख्य उद्देश्य सभी नागरिकों के लिए समान अधिकार और कल्याण है । कानून के सम्मुख सभी समान है ।

साधारण जनता की स्थिति में सुधार के लिए कई योजनाएँ अथवा नीतियाँ निर्धारित की जाती हैं । इस प्रकार प्रजातंत्र में स्वतंत्रता की अनुमति आम व्यक्ति की सुविधा के लिए प्रदान की जाती है । समाज के विभिन्न वर्गो के विवाद से बचने के लिए कुछ मूल नियमों की स्थापना संविधान में की गई है, जिनका उद्देश्य नागरिक के कार्यो को नियंत्रण में रखना है ।

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प्रजातंत्र में चुनाव द्वारा अपने प्रतिनिधि चुनने के अधिकार के कारण जनता को प्रशासन में भागीदारी की महत्वपूर्ण शक्ति प्राप्त होती है । चुनावों के बाद सत्तारूढ़ दल को अधिक अधिकार प्राप्त होते हैं, ताकि वे स्वतंत्र रूप से प्रशासन को चला सकने में समर्थ हों ।

एक प्रकार से उनकी यह शक्ति सीमित भी होती है, क्योंकि उनके मन में आने वाले चुनावों तथा जनता एवं विरोधी दल की आलोचना का भय समाया रहता है । लेकिन पिछले कुछ दशकों से कार्यपालिका को शक्तियों में विशेष वृद्धि हुई थी । लगभग आधे विश्व में साम्यवादी शासन प्रणाली प्रचलित थी ।

शक्ति कुछ हाथों में केन्द्रित थी और वैयक्तिक स्तर की स्वतंत्रताओं में नियंत्रण के प्रयास सदैव जारी रहते थे । विश्व में साम्यवाद का उदय जनता की इच्छा के कारण ही हुआ था, क्योंकि जनता अपने जीवन स्तर की उन्नति के लिए भौतिक उपलब्धियों की दौड़ में शामिल होना चाहती थी ।

पर धीरे-धीरे स्वयं को मूल मानवीय अधिकारों से वंचित होता देखकर लोगों ने साम्यवादी शासन व्यवस्था के विरुद्ध भी आवाज उठानी शुरु कर दी । हाल के वर्षो में रूस से शुरु हुई पुनर्निमाण की लहर विश्व के अधिकांश साम्यवादी देशों को अपनी चपेट में ले चुकी है और लोगों ने फिर से प्रजातांत्रिक शासन व्यवस्था को चुना है । साम्यवादी शासन से उत्पन्न कई तानाशाही सरकारें उखाड़ फेंकी गई । इसे मानव मुक्ति-आंदोलनों की एक बहुत बड़ी जीत के रूप में देखा जाता है ।

समाजवादी देशों में जनता की स्वतंत्रता को देश के राजनैतिक और आर्थिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए मर्यादित किया जाता है । किसी व्यवसाय तथा उद्योग के क्षेत्र में व्यक्तिगत अधिकार सीमाबद्ध होता है । उद्योगपति कुछ निश्चित उद्योगों की स्थापना कर सकता है, देश की अर्थिक गतिविधियों का अधिकांश भाग शासन के हाथों में ही सुरक्षित रहता है ।

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यद्यपि इस क्षेत्र में निजी उद्योग भी कार्यरत हैं, लेकिन मुख्य भूमिका शासन की ही होती है । वैयक्तिक स्तर पर इतनी ही स्वतंत्रता प्रदान की जाती, जिसका अहितकर प्रभाव आम जनता पर न पड़े । समग्रत: समाजवादी शासन प्रणाली में नागरिक को निजी जिन्दगी में पर्याप्त स्वतंत्रता प्राप्त होती है । व्यक्ति और समाज के प्रभुत्व के ऊपर उचित नियंत्रण होता है ।

प्रत्येक व्यक्ति समाज के बंधनों से बँधा हुआ है, और इसके बदले में समाज उसको सुरक्षा प्रदान करता है । समाज में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति के कार्य से अन्य पर बुरा असर नहीं पड़ना चाहिए । सामाजिक हित के लिए परिश्रम और त्याग की भावना पर बल दिया जाता है । चूँकि एक समाजवादी राज्य में जनता का हित सर्वोपरि होता है, इसलिए इसमें जनता का सहयोग भी आवश्यक होता है ।

किसी व्यक्ति के कार्य का प्रभाव समाज तथा अन्य व्यक्तियों पर पड़ता हैं, इसलिए उसके अनुचित कदम उठाने पर शासन उसे दंडित करता है । इस प्रकार समाजवाद में स्वतंत्रता में सीमाएँ लागू करके ही कल्याण के लक्ष्य को प्राप्त किया जाता है । समाजवादी राष्ट्र में दूसरों के हित में वृद्धि के लिए निस्वार्थ प्रयास की आवश्यकता होती है ।

समाजवादी देश में शिक्षा अनिवार्य आवश्यकता है, जबकि आत्म-सम्मान द्वितीय अनिवार्यता है । सारत: समाजवाद में समाज के हित वैयक्तिक हित की अपेक्षा अधिक श्रेष्ठ है । इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए लागू किए गए अधिकार और नागरिक नैतिकता पर शासन का नियंत्रण होता है ।

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समाजवाद और साम्यवाद का जो महत्व पहले था आज वह नहीं है । पर फिर भी इसके सकारात्मक प्रभावों को नकारा नहीं जा सकता है । इसकी असफलता का मूल कारण यह बताया जाता है कि पूंजीवाद ने साम्यवाद के गुणों को ग्रहण किया पर साम्यवाद पूंजीवाद का कट्‌टर विरोधी रहा । उसने उसमें से कुछ भी ग्रहण करने का प्रयत्न नहीं किया ।

अमेरिका जैसे खुली बाजार नीति वाले देश में भी साम्यवाद व्यवस्था का प्रभाव देखने को मिलता है । समस्त व्यापारिक कार्यो में सर्वोच्च निर्णय शासन का ही होता है । समाज से संबंधित नागरिक नैतिकता के संबंध में कानून बने हुए हैं । निस्संदेह इन देशों के नागरिकों का समाजवादी अथवा साम्यवादी देशों की अपेक्षा स्वतंत्रता से संबंधित अधिकार-क्षेत्र पर्याप्त विस्तृत है ।

तथापि उद्योग और व्यापार से संबंधित क्षेत्रों में उचित नियंत्रण स्थापित किया गया है । अमेरिका में द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद सुरक्षा व्यवस्था और अंतरिक्ष अनुसंधान की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सार्वजनिक क्षेत्रों का विलक्षण विस्तार हुआ है । अमेरिका में लगभग 45 प्रतिशत व्यक्ति सरकारी विभागों मे कार्य करते हैं । सार्वजनिक क्षेत्रों में कार्यरत शेष 55 प्रतिशत व्यक्तियों को श्रमिक कानूनों के माध्यम से पर्याप्त सुविधाएँ प्राप्त हैं ।

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वहाँ उद्योगपति अपने कर्मचारियों और मजदूरों को स्वास्थ्य, शिक्षा, आवास तथा अन्य अनिवार्य सुविधाएँ उपलब्ध कराते हैं । सरकार व्यापारिक संघों और मजदूर संघों से परामर्श करके कर्मचारियों की आय का निर्धारण भी करती है । इस प्रकार व्यावसायिक आदान-प्रदान और औद्योगिक संबंधों पर सरकार का प्रभाव होता है ।

वर्तमान स्थिति में विश्व की समस्त शासन प्रणालियों में व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर नियंत्रण किसी न किसी रूप में विद्यमान होना चाहिए । जबकि समाजवादी और साम्यवादी देशों में शासन के तानाशाही रूप में बदलने की प्रवृति रहती है । सभी प्रकार की शासन प्रणालियों में उचित प्रशासन और नियंत्रण की आवश्यकता होती है, जो इन विरोधी प्रवृतियों को रोकने में समर्थ हो ।

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