नोबल पुरस्कार पर निबन्ध | Essay on Nobel Prize in Hindi

डाइनामाइट के आविष्कारक और उद्योगपति अल्फ्रेड नोबल जन्म 21 अक्टूबर, 1833 को स्टॉकहोम में हुआ था । इनके पिता इमानुएल नोबल इंजीनियर और आविष्कारक थे ।

अल्फ्रेड की मां का नाम एंड्रीएटा एहसेल्स था । नोबल महान आविष्कारक होने के साथ-साथ दृढ़-प्रतिज्ञ और सफल उद्योगपति भी थे । अल्फ्रेड के माता-पिता की आठ संतानें हुईं । इनमें से केवल तीन ही बचीं । अल्फ्रेड को उनके पिता ने अच्छी व उच्च स्तर की शिक्षा दिलाई ।

मात्र सत्रह वर्ष की आयु में ही अल्क्रेड स्वीडिश, रूसी, फ्रेंच, अंग्रेजी तथा जर्मन भाषा सीख चुका था । उसकी रुचि साहित्य कविता के साथ-साथ रसायन विज्ञान और भौतिकी में भी थी । अल्फ्रेड नोबल ने 1867 मे डानामाइट का इंग्लैड में पेटेंट प्राप्त किया । डाइनामाइट विकास मे उन्हें भारी क्षति उठानी पडी लेकिन दृढ़-प्रतिज्ञ अल्फ्रेड के आगे किसी की एक न चली ।

1864 में उनकी फैक्टरी मे विस्फोट होने के कारण उनके भाई समेत कई लोगों की मृत्यु हो गयी । विस्फोट के कारण फैक्टरी भी नष्ट हो गयी । कठिन परिश्रम और यातनाओं के कारण नोबल के पास अपनी निजी जीवन के लिए समय नहीं था ।

43 वर्ष की आयु में अल्फ्रेड ने समाचार-पत्र में विज्ञापन दिया कि उन्हें अपने घरेलू कार्यो और सचिव के तौर पर कार्य करने वाली विभिन्न भाषा का ज्ञान रखने वाली एक परिपक्व महिला चाहिए । इस विज्ञापन के आधार पर एक आस्ट्रियाई मूल की एक महिला अल्फ्रेड के मापदंडों पर खरी उतरी ।

उसका नाम काउंटेस बर्ध 43 वर्ष की आयु में अल्फ्रेड ने समाचार-पत्र में विज्ञापन दिया कि उन्हें अपने घरेलू कार्यों और सचिव के तौर पर कार्य करने वाली विभिन्न भाषा का ज्ञान रखने वाली एक परिपक्व महिला चाहिए । इस विज्ञापन के आधार पर एक आस्ट्रियाई मूल की एक महिला अल्फ्रेड के मापदंडों पर खरी उतरी ।

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उसका नाम काउंट्रेस बर्ध किस्की था । किस्की ने अल्फ्रेड से वापस आस्ट्रिया जाने की इच्छा जतायी । इसके बाद भी दोनों में मित्रता जारी रही । दोनों के मध्य पत्रों का आदान-प्रदान चलता रहा । किरकी हथियारों की दौड़ की विरोधी हो गयी । शांति आंदोलन की प्रवक्ता होने के साथ-साथ वह एक लेखक भी थी ।

उनकी प्रसिद्ध पुस्तक थी- ‘ले डाउन आर्म्स’ किस्की का प्रभाव नोबल पर भी पड़ा । यही कारण है कि नोबल ने अपनी वसीयत में शांति का बढ़ावा देने वाले को पुरस्कृत करने का प्रावधान रखा । वर्ष 1905 में किस्की को ही शांति का नोबल पुरस्कार भी मिला । नोबल की 1896 में इटली के सेन रेमो स्थान पर ब्रेन हेमरेज के कारण 10 दिसंबर को मृत्यु हो गयी ।

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उनकी मृत्यु के बाद जब उनकी वसीयत खोली गयी तो लोगों के आश्चर्य का ठिकाना न रहा । वसीयत में नोबल ने अपनी पूरी संपत्ति भौतिकी, रसायन, चिकित्सा विज्ञान, साहित्य और शांति के क्षेत्र में अग्रणी कार्य करने वालों को पुरस्कृत करने के लिए दान दे दी थी ।

नोबल द्वारा अपनी वसीयत में सारी संपत्ति दान में देने का उनके परिजनों ने विरोध भी किया लेकिन दो युवा इजीनियरों ने नोबल की वसीयत को अंजाम तक पहुंचाया । इनके नाम रगनर सोल्मैन और रूडोल्फ लिलिजेक्सिट थे । इन्होंने नोबल फाउंडेशन की स्थापना की ।

इस तरह पहला नोबल पुररकार 1901 में प्रदान किये गये । वर्ष 2001 तक भौतिकी के लिए 165, रसायन विज्ञान के लिए 138, चिकित्सा विज्ञान के लिये 175, साहित्य के लिए 98 तथा शांति के क्षेत्र में पहली बार बैंक ऑफ स्वीडन के नोबल की स्मृति मे यह पुर२कार प्रदान किया ।

वर्ष 2001 मे शांति के लिए नोबल पुरस्कार नार्वे की राजधानी आस्लो में संयुक्त राष्ट्र और उसके महासचिव कोफी अन्नान को प्रदान किये गये । भौतिकी के क्षेत्र में यह पुरस्कार अमरीका के एरिक ए. कटनेल, जर्मनी के वोल्फगैग तथा अमरीका के कार्ल ई. बेमैन, रसायन क्षेत्र के लिए अमरीका के विलियम्स एस. कोल्स तथा के बैरी शर्पेश, जापान के रोपी नोयोरी को दिया गया ।

विश्व के सबसे बडे पुरस्कारों में से एक नोबल पुरस्कार अर्थशास्त्र के क्षेत्र में वर्ष 2002 के नोबल पुररकार से दो अर्थशास्त्रियों को नवाजा गया । इनमें अमरीका की प्रिंसटन विश्वविद्यालय के डेनियल कॉनमैन और इसी देश के जॉर्जमैसन विश्वविद्यालय के वेरनॉन एल. स्मिथ शामिल हैं ।

भौतिकी के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने के लिए इस बार तीन भौतिकविदों को सम्मानित किया गया । इनमें अमरीका की यूनीवर्सिटी आफ पेंसिलवेनिया के रेमंड डेविस और जापान की यूनीवर्सिटी आफ टोक्यो के मासातोशी कोशिबा को पुरस्कार

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राशि के आधे हिस्से से वाशिंगटन में एसोसिएटेड यूनीवर्सिटी के रिकार्डो गियाकोन्नी को सम्मानित किया गया । इन तीनों भौतिकविदों ने बेहद छोटे उपकरणों की मदद से सूर्य, सितारों, आकाश गंगाओं और सुपर नोवी जैसी ब्रह्मांड की विशालतम चीजों के बारे में हमारी समझ बढ़ाने में मदद की है ।

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1980 में जापान में माशातोशी कोशिबा ने भी एक खान के अंदर एक और डिटेक्टर पानी की टंकी बनायी जो न्यूट्रिनोज पानी के अणुओं के नाभिक से प्रतिक्रिया कर इलैक्ट्रान मुक्त करते हैं । जिनकी पहचान टंकी के चारों ओर फोटोमल्टीप्लायर्स लगाकर की जा सकती है । 1987 में कोशिबा ने अपने डिटेक्टर से सुपरनोवा विस्फोट से उत्पन्न न्यूट्रिनोज को पहचानने में सफल रहे और सुपरंनोवा से निकले न्यूट्रिनोज को डिटेक्ट करने वाले वह पहले वैज्ञानिक बनें ।

1960 में ही सिडनी ब्रेनर ने साबित कर दिया था कि कोशिका विभाजन और अंगों के विकास के पीछे के मैकेनिज्म को समझने के लिए सी एलेगैस कृमि एक आदर्श एक्सपेरीमेंटल माडल जीव हैं । सल्सटन ने नेमाटोड (कृमि) के नर्वस सिस्टम के एक हिस्से के विकास पर शोध किया और यह खोज की कि नर्वस सिस्टम के विकसित होने के साथ ही कुछ कोशिकाएं हमेशा एक तय प्रोग्राम के तहत खुद को खत्म कर देती हैं । सल्सटन ने महसूस किया कि कोशिकाओं की यह आत्महत्या कृमि की विकास अवस्था के दौरान उसके अंगों के विकसित करने में मुख्य भूमिका निभाती है ।

वर्ष 2001 में शांति के लिए नोबल पुरस्कार नार्वे की राजधानी आस्लों में संयुक्त राष्ट्र और उसके महासचिव कोफी अन्नान को प्रदान किये गये । भौतिकी के क्षेत्र में यह पुरस्कार अमरीका के एरिक ए. कटनेल, जर्मनी के वोल्फगैग तथा अमरीका के कार्ल ई. बेमैन, रसायन क्षेत्र के लिए अमरीका के विलियम्स एस. कोल्स तथा के बैरी शर्पेश, जापान के रोपी नोयोरी को, चिकित्सा क्षेत्र के लिए अमरीका के लेलैंड एच. हार्टेल, ब्रिटेन के आर. टिमोथी हंट पाल एमनस तथा साहित्य के क्षेत्र में ब्रिटेन के वी.एस. नायपाल, अर्थशास्त्र के लिए अमरीका के जॉर्ज ए. एकरलाफ, ए. माइकल स्पेंस, जोजफ ई. स्टिग्लिट्‌ज को दिया गया ।

वर्ष 2002 का साहित्य नोबल पुरस्कार हंगरी के साहित्यकार इमरे केरतेज को दिया गय है । उन्होंने अपने लेखन के जरिये नाजियों के बर्बर अत्याचारों की दासता का वर्णन करते हुए मानव के सुकोमल अनुभवों को कायम रखा । गत वर्ष का नोबल पुरस्कार भारतीय मूल के ब्रिटिश लेखक बी.एस. नायपाल को दिया गया था ।

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