परोपकार पर निबन्ध | Essay on Benevolence in Hindi!

1. भूमिका:

एक प्रसिद्ध कहावत (A Famous Proverb) है- ‘परहित सरिस धर्म नहीं भाई, परपीड़ा सम नहीं अधमाई ।’ अर्थात् परोपकार से बढ्‌कर और कोई धर्म नहीं होता और दूसरों को पीड़ा (Pain) देने से बढकर और कोई अधर्म (Sin) नहीं है । परोपकार का अर्थ है अपनी शक्ति और आवश्यकता के अनुसार दूसरों की मदद करना । यानी भलाई का ऐसा कार्य जिसमें कुछ देने के बदले कुछ वापस लेने की इच्छा नहीं रहती है ।

2. विशेषता:

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भारतीय संस्कृति (Indian culture) में परोपकार का सदा विशेष स्थान रहा है । हमारे देश में बचपन से ही परोपकार की शिक्षा दी जाती है और यह बताया जाता है कि मनुष्य के जीवन का यह एक बड़ा धर्म है । इसके पक्ष में (In Favour of) “परोपकाराय फलन्ति वृक्षा :…” अर्थात् वृक्ष दूसरों के उपकार के लिए ही फल उत्पन्न करते हैं-जैसे उदाहरण (Example) देकर परोपकार का महत्त्व सिद्ध करने की कोशिश की गई है ।

फलदार वृक्ष अपने फल स्वयं नहीं खाते, बल्कि दूसरे प्राणियों की भूख मिटाने के लिए अर्पित कर दिया करते हैं । नदियाँ झील, सरोवर सभी दूसरे प्राणियों के काम आते हैं । यहाँ तक कि पशु-पक्षी भी अपना पेट भरने के साथ-साथ दूसरों का भी उपकार किया करते हैं ।

3. लाभ:

हमारा इतिहास (History) भी हमें यहीं बताता है कि दूसरों की रक्षा के लिए अनेक राजाओं ने अपना राज्य, धन सब कुछ दान में दे दिया । महाराज शिवि ने तो एक पक्षी की रक्षा के लिए अपने हाथों अपने अंग काटकर बाज (Hawk) को दान कर दिया था ।

अत: सच्चा मनुष्य वही है जो औरों के हित के लिए अपने-आपको अर्पित (To give to others) कर दे । जहाँ ऐसे परोपकार की भावना रखने वाले नागरिक होंगे, उसी देश में आपसी सहयोग रहेगा और देश भावनात्मक रूप से (Emotionally) मजबूत और स्थायी बनेगा । वही देश सदा सुखी-सम्पन्न (Prosperous) और स्वतंत्र (Independent) रह सकेगा ।

4. उपसंहार:

परोपकार करना केवल एक धार्मिक क्रिया (Religious Activity) ही नहीं, बल्कि प्रत्येक नागरिक (Citizen) का जरूरी कर्त्तव्य (Essential Duty) होना चाहिए ।

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