प्रगति का मूल्य पर निबन्ध | Essay on Value of Progress in Hindi!

प्रगति अमूल्य है। वस्तुत: आज का मानव प्रगति की ही उपज है । आज से हजारों वर्ष पहले मानव का रूप, रंग आकार बिल्कुल भिन्न था । यह जीने की कला से भी अनभिज्ञ था ।

दिमाग होते हुए भी इसके उपयोग से बेखबर था । इसे केवल भोजन और आवास की चिन्ता होती थी । भोजन को पकाने का भी ज्ञान नहीं था । धीरे-धीरे मानव की आवश्यकताएँ बढ़ने लगीं और वह अनजाने में ही अपने खानाबदोश जीवन से स्थायी जीवन की ओर अग्रसर हुआ ।

स्थायी निवास के कारण इसने कई समस्याओं का समाधान किया और दुरूह जीवन बेहतर होता चला गया । इसी प्रक्रिया का नाम प्रगति है । मानव का वर्तमान स्वरूप उसकी कई पीढ़ियों की सतत प्रगति का परिणाम है । प्रगति के आरंभिक दिनों में कंटकाकीर्ण पथ पर चलने का आदि मानव आज पृथ्वी से दूर चन्द्रमा तक पहुँच गया है । प्रकृति की कृपा पर निर्भर यह मानव आज अजेय हो गया है । सम्पूर्ण प्रकृति, कृपा को आज अपनी अंगुली पर नचाने वाला यह मानव प्रगति के मूल्य को समझ चुका है ।

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जिजीविषा और जिज्ञासा ही प्रगति का मूलमंत्र है । कहा जाता है “स्वास्थ्य ही धन है।’’ प्राचीन समय में स्वास्थ्यरक्षक दवाइयों का अभाव था । गंभीर बीमारियाँ लाइलाज थी । किन्तु आज चिकित्सा-विज्ञान इतनी प्रगति कर चुका है कि हर बीमारी के लिए संजीवनी के समान दवाइयाँ उपलब्ध हैं । मानव को सभी बीमारियों एवं महामारियों पर अधिकार प्राप्त करके अपनी नदियों के किनारे बसना पड़ा था । उस समय उसे भूमिगत जल और इसे बाहर निकालने का ज्ञान नही था ।

आज मोटर के माध्यम से घर-घर पेय जल उपलब्ध है । रात के अंधेरे और आँधी, तूफान, वर्षा, धूप, ठंड, गर्मी जैसी प्राकृतिक आपदाओं में जीने को मजबूर मानव विद्युत एवं आलीशान भवन में रहकर प्रकृति की अजेय शक्ति पर विजय हासिल कर चुका है । विश्व के एक कोने से दूसरे कोने तक जाने के लिए मोटरगाड़ी, बसें, रेलगाड़ी और वायुयानों का आविष्कार प्रगति का ही प्रतिफल है ।

जनसंख्या विस्फोट संपूर्ण विश्व के लिए सिरदर्द बना हुआ है । इतनी विशाल जनसंख्या को भोजन उपलब्ध कराना मानव धर्म है । भोजन की उपलब्धता खाद्यान्न उत्पादन पर निर्भर करती है । कृषि क्षेत्र में बीजों उर्वरकों और उन्नत प्रौद्योगिकी ने अभूतपूर्व क्रांति ला दी है । प्रति हेक्टेयर उत्पादन क्षमता में काफी वृद्धि हो गई है । सूखा पड़ने के कारण फसलें नष्ट नहीं होती है । समुद्र और नदी की अथाह जलराशि को बांध के रूप में बांधकर विद्युत उत्पादन किया जाता है ।

इस विद्युत से सिंचाई सुविधा प्राप्त होती है । अत्यधिक उत्पादन को संरक्षित रखने के लिए बड़े-बड़े शीतगृह बनाए गए हैं जिससे खाद्यान्न नष्ट नहीं होता है । आपातकालीन स्थितियों से निबटने के लिए विश्व के किसी भी कोने में हर प्रकार की सुविधाएँ दुतगति से मुहैया करवायी जा सकती हैं ।

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मानव ने विज्ञान का उपयोग अपने हित में किया है तथा इसी के सहारे वह सभ्यता के सोपान लांघते चला गया । सारे पहलुओं पर विचार करने के बाद यह स्पष्ट होता है कि प्रगति और प्रगतिशील प्रावृति ने मानव को जीने की नई दिशा प्रदान की है ।

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