मृदा पर निबंध! Read this Essay on Soil: Meaning and Formation in Hindi Language for School and College Students.

Essay on Soil


Essay Contents:

  1. मिट्‌टी का अर्थ  (Meaning of Soil)
  2. जीवित मिट्‌टी (Living Soil)
  3. मिट्‌टी के नमूनों को एकत्र करना (Collection of Soil Sample)
  4. मिट्‌टी की बनावट  (Formation of Soil)
  5. मिट्‌टी के खनिज घटक (Mineral Ingredients of Soil)
  6. मिट्‌टी की बनावट एवं छिद्रिलता (पोरोसिटी) (Texture and Porosity of Soil)
  7. मिट्‌टी की उर्वरता (Soil Fertility)
  8. मिट्‌टी के प्रकार (Types of Soil)
  9. मिट्‌टी की संरचना (Soil Structure)
  10. मिट्‌टी की पारगम्यता तथा पानी रखने की क्षमता (Permeability and Ability of Soil to Keep Water)

Essay # 1. मिट्‌टी का अर्थ (Meaning of Soil):

सबसे सरल अर्थ में मिट्‌टी को विभिन्न रासायनिक घटकी के मिश्रण के रूप में देखा जा सकता है । एक भूगर्भशास्त्री के लिए मिट्‌टी अवक्रमिक शिला है जो कुछ सीमा तक रासायनिक रूप से परिवर्तित की गई है तथा जिसमें कुछ अन्य पदार्थ मिल गए हैं । रसायनशास्त्री इसे ज्यादा उदार दृष्टिकोण से देखते हैं व इसे एक निष्क्रिय किन्तु अधिक सक्रीय पदार्थ मानते है ।

बर्झिलियस के अनुसार- “मिट्‌टी प्रकृति की एक रासायनिक प्रयोगशाला है जिसके अंत:करण में विभिन्न रासायनिक अपघटन तथा संश्लेषणात्मक प्रतिक्रियाएं गुप्त रूप से चलती रहती हैं ।”

जीवशास्त्री भी मिट्‌टी को प्रकृति का एक अजीवित अवयव मानते है । फिर भी वे इसे अन्य पारिस्थितिक कारकों के साथ अंत:क्रिया कर जीवन-सहायक भूमिका के रूप में देखते हैं ।

इस प्रकार समग्र दृष्टिकोण से देखें तो मिट्‌टी पदार्थ की एक पतली सतह है जो पृथ्वी की सतह पर फैली हुई है तथा पौधों व प्राणियों को विकसित होने के लिए ठोस आधार प्रदान करती है । यह पौधों को जमने हेतु भेदनीय ठोस आधार प्रदान कर उनके जीवन में एक विशेष भूमिका निभाती है । यह पानी तथा अन्य पौष्टिक तत्वों के भंडारण का कार्य भी करती हैं जो पौधों के विकास हेतु बहुत आवश्यक होते हैं तथा बढ़ते हुए पौधों के अपशिष्ट पदार्थों को भी आत्मसात करती है ।

यह एक रोचक तथ्य है कि मिट्‌टी की बनावट तथा उसके संरक्षण में पौधों की भी भूमिका होती है । पौधों की जड़ें शिलाओं के विघटन में उन्हें ढीला करने में मिट्‌टी की गहरी सतह तक पानी व वायु ले जाने में सहायक होती हैं । पौधे मिट्‌टी में खाद मिलाकर तथा उसकी सतह को एक संरक्षण परत प्रदान करतें हैं जो वर्षा तथा हवा से मिट्‌टी के कटाव को रोकती है और मिट्‌टी को जीवन प्रक्रिया के लिए उपयुक्त बनाते हैं ।

मिट्‌टी के वर्णन को निश्चित करना:

(a) गड्ढे के अंदर:

ADVERTISEMENTS:

(i) एक ऐसा खुला सपाट क्षेत्र चुनिए जहां लंबे समय तक कोई गतिविधि न हुई हो । बड़े पेड़ों से दूर तथा मोटी जड़ों से मुक्त एक स्थान पर निशान लगा लें । उस स्थान के ऊपरी सतह को हल्का झाड़कर वहां से डंठल तथा अन्य कोई बड़ा मलबा हो तो उसे हटा दें ।

(ii) एक गड्ढा खोदिए जिसकी कम से कम एक दीवार सीधी रखें । उसे जितना गहरा बना सकें बनाइए व्यावहारिक लोग उसे 6 फीट की गहराई तक ले जाते है । विभिन्न गहराइयों से खोदी गई मिट्‌टी को अलग-अलग रखें ।

(iii) खोदी गई मिट्‌टी को उसके रंग, डलों व खुरदरेपन आदि की दृष्टि से उसका परीक्षण करें । गड्ढे की दीवार पर विभिन्न परतों को देखने का प्रयास करें । क्या आप विभिन्न परतों जैसे कचरे की परत, खाद बहुल परत, सीधी ऊपरी परत, घनी अवमृदा आदि की पहचान कर सकते हैं । प्रत्येक परत की मोटाई को नोट करें व उस क्षेत्र की मिटटी का वर्णन तैयार करें ।

(b) मिट्‌टी निकालने वाले पाइप के साथ:

दलदली क्षेत्र की मिट्‌टी के बनावट का परीक्षण करने हेतु एक और विधि अपनाई जा सकती है ।

(i) एक टिन का सिलेण्डर लें जिसके दोनों सिरे खुले हों । इसके लिए टेलकम पाउडर का खाली गोल टिन भी उपयोग किया जा सकता है अथवा कलईदार लोहे (टिन) की पतली चादर को गोल मोड़कर वेल्डिंग करके लंबी पाइप बनाई जा सकती है । जल-मल व्यवस्था में उपयोग में आने वाले ठोस पीवीसी पाइप का भी उपयोग किया जा सकता है । इस पाईप के निचले सिरे को धारदार बनाकर अथवा उसमें छोटे-छोटे दांते बनाकर उसे अधिक गहराई के मिट्‌टी के नमूने एकत्र करने के योग्य बनाया जा सकता है ।

(ii) पाइप के अंदर के भाग में तेल अथवा ग्रीज लगाएं तथा इसे नरम जमीन पर दबाए । यदि पाइप को झुकाकर दबाएंगे तो उसे थोड़ी कड़ी जमीन काटने में मदद होगी । इसे जहां तक संभव हो सके, नीचे जाने दे । उसे हर दिशा में हिलाए तथा सीधे ऊपर उठा लें पाइप मिट्‌टी के साथ ऊपर आना चाहिए ।

(iii) पाइप के अंदर मिट्‌टी के कॉलम को किसी समस्तरी सतह पर धीरे से धकेल कर निकाल लें । पाइप की दीवारों को धीरे-धीरे ठोंककर अथवा अन्दर की मिट्‌टी को थोड़ा सुखाकर निकालेंगे तो कालम आसानी से निकल आएगा ।

(iv) विभिन्न क्षेत्र की मिट्‌टी के कॉलमों का परीक्षण करें । इन्हें सुखाकर स्थाई रिकॉर्ड के रूप में रखा जा सकता है ।


Essay # 2. जीवित मिट्‌टी (Living Soil):

ADVERTISEMENTS:

यदि हम मिट्‌टी की ऊपरी परत को ध्यान से देखे तो हम पाएंगे कि यह अनेक प्रकार के जीवों का निवास स्थान है । ये जीव आपस में मिट्‌टी के जीवित व मृत पौधों के पदार्थों से तथा स्वयं मिट्‌टी से अंत: क्रिया करते हैं, जिस कारण मिट्‌टी में रहने वाले जीवों को मिट्‌टी का ही एक अभिन्न भाग माना जाता है तथा मिट्‌टी को एक प्रमुख पारितंत्र माना जाता है जो अकार्बनिक, कार्बनिक तथा जीवित संसार के बीच कड़ी के रूप में कार्य करती है ।

यदि हम थोड़ी सी मिट्‌टी लें और ध्यान से देखें तो हम पाएंगे कि यह मुख्यत: खनिज कणों से बनी है । हम पाएंगे कि इसमें थोड़ी मात्रा में कार्बनिक तत्व भी होते हैं जो सड़े हुए पौधों व प्राणियों के अवशेषों से आते हैं । मिट्‌टी में हवा व पानी भी विद्यमान रहते हैं जो कणों के बीच के रिक्त स्थानों में रहते हैं । बहुत कम मात्रा में पानी रासायनिक रूप में अकार्बनिक घटकों के साथ जुड़ा होता है जैसा कि पूर्व में बताया गया है विभिन्न प्रकार के जीवन्त जीव अधिकांश मिट्टियों में पाए जाते हैं । इनमें से कुछ जीवाणु, फफूंद, प्रोटोजोआ, कीट तथा अनके सूक्ष्म प्राणी होते हैं जिनके बारे में हम पूर्व में पढ़ चुके हैं ।


Essay # 3. मिट्‌टी के नमूनों को एकत्र करना (Collection of Soil Sample):

विभिन्न उद्देश्यों के लिए मिट्‌टी के नमूने एकत्र करने हेतु विभिन्न विधियां अपनाई जाती हैं । इन विधियों में जो एक प्रमुख विविधता होती है, वह है गहराई जहां से मिट्‌टी के नमूने को एकत्र किया जाता है । यहां हमारे कार्य के लिए हम विभिन्न स्थानों से मिट्‌टी के ऊपरी सतह के नमूने एकत्र करेंगे ।

(i) एक छोटे से जमीन के टुकड़े को अंकित कर लें तथा वहां से बड़ा अथवा खुला मलबा हटा लें ।

ADVERTISEMENTS:

(ii) पत्तियों कचरे तथा ठोस खाद वाली परत को तब तक खुरच दें जब तक सही मिट्‌टी की कड़क सतह न आ जाए । खुरची हुई सामग्री को एक प्लास्टिक की थैली में रख दें तथा उसमें कोई जीवित जीव को देखने हेतु उसका परीक्षण करें जैसा कि पहले वर्णित किया गया है ।

(iii) 15 से.मी. तक गड्ढे को खोदें तथा खोदी गई मिट्‌टी को अच्छी तरह मिलाकर लगभग एक किलोग्राम मिट्‌टी निकालकर उसे परीक्षण हेतु अलग से रख दें । खोदते तथा मिट्‌टी को मिलाते समय यह नोट करें कि मिट्‌टी खुले कणों वाली है, आसानी से टूटने वाले डलों के रूप में है अथवा कड़े ढेलों के रूप में हैं । यदि मिट्‌टी नम है तो उसके चिपचिपेपन को नोट करें ।

(iv) मिट्‌टी को किसी साफ कठोर सतह पर बिछा दें तथा उस पर एक लोहे के पाइप को घुमाकर उसके डले तोड़ दें । खुली मिट्‌टी को किसी छायादार स्थान पर सूखने हेतु रख दें ।

(v) मिट्‌टी के नमूने को मच्छरदानी के कपड़े के एक टुकड़े से अथवा किसी छननी से जिसके छिद्र 1-2 मि.मी. के हों, छान लें । छननी में बचे हुए बड़े पदार्थ को फेंक दे तथा छने हुए बारीक पदार्थ को और परीक्षण हेतु रख दें ।

ADVERTISEMENTS:

(vi) विभिन्न स्थानों जैसे बगीचे, नदी के किनारे, चारागाह आदि से एकत्र किए गए मिट्‌टी के नमूनों को उपरोक्त विधि द्वारा अलग करके छान लें । छनी हुई मिट्‌टी के प्रत्येक नमूने की एक दूसरे से तुलना करें व उनमें पाई जाने वाली विविधता को नोट करें ।


Essay # 4. मिट्‌टी की बनावट  (Formation of Soil):

(i) एक लंबी बरनी या बोतल ले जिसका मुंह कार्क/ढक्कन से कसा हुआ हो तथा जिसकी दीवारें चिकनी हों । 500 मि.मी. की रसोईघर में काम आने वाली बरनी, जैम की बोतल अथवा लंबी शरबत की बोतल से भी काम चल सकता है ।

(ii) बोतल की एक चौड़ाई क्षमता तक उसे उपरोक्त प्रकार से एकत्र की गई मिट्‌टी से भर दें व उसमें शीर्ष तक पानी रख दें ।

(iii) बोतल को बंद कर अच्छे से हिलाकर मिट्‌टी को ऊपर की ओर नीचे कर पानी में परिक्षिप्त होने तक अच्छी तरह हिलाए । कुछ घंटों के लिए बोतल को स्तरीय सतह पर रखे रहने दें ।

ADVERTISEMENTS:

(iv) पानी की सतह में बैठी मिट्‌टी को ध्यान से देखें । आप देखेंगे मिट्‌टी में विभिन्न परतें बन गई हैं । कुछ बारीक मिटटी के तत्व पानी में तैर रहे होंगे । कुछ तत्व पानी की सतह पर तैर रहे होंगे ।

मिटटी के कणों का आकार तथा प्रत्येक परत का रंग भिन्न होगा । अलग-अलग नमूनों में जमी हुई मिटटी की परत की चौड़ाई भिन्न होगी जो उस मिटटी की बनावट को दर्शाती है ।

यह अवसादन की प्रक्रिया मिट्‌टी के मूल घटकों को प्रभावी रूप से अलग कर देती है तथा हमें किसी नमूने में उसके सापेक्ष अनुपात का पता लग जाता है । इन मूल घटकों को उनके कणों के आकार के अनुसार वर्गीकृत किया जाता है ।


Essay # 5. मिट्‌टी के खनिज घटक (Mineral Ingredients of Soil):

चिकनी मिट्‌टी, पंकगाद (सिल्ट) व रेत मिलकर मिट्‌टी के अकार्बनिक अथवा खनिज भाग बनाते हैं । ये सभी मिट्‌टी में मूल चट्टान के क्रमिक अवक्रमण के कारण आते हैं । ये अपने कणों के आकार तथा कुछ अन्य भौतिक व रासायनिक गुणों के कारण एक दूसरे से भिन्न होते हैं ।

अपने बड़े आकार के कारण रेत के कण नग्न आँख से देखे जा सकते हैं । ये रेत के कण वास्तव में चट्टान के टुकड़े होते हैं । इसलिए जब इन्हें हम उंगलियों से रगड़ते हैं तो खुरदरे लगते हैं । रेत के कण एक दूसरे से चिपकते नहीं हैं चाहे वह गीले ही क्यों न हों ।

चिकनी मिट्‌टी तथा पंकगाद के कण इतने सूक्ष्म होते हैं जिन्हें पृथक रूप में नग्न आँख से नहीं देखा जा सकता । सूखी हुई चिकनी मिट्‌टी तथा पंकगाद का पाउडर उंगलियों में लेने से चिकना लगता है । गीला होने पर केवल चिकनी मिट्‌टी (क्ले) ही चिपचिपी लगती है ।

चिकनी मिट्‌टी जिसके कण सबसे अधिक सूक्ष्म होते हैं, पानी मिलाने पर चिपचिपी हो जाती है । चिकनी मिट्‌टी को अनेक प्रकार के आकार दिए जा सकते हैं तथा सूखने पर यह कठोर हो जाती है । चिकनी मिट्‌टी के सूक्ष्मतम कण कोलॉइडी निलम्बन बनाते हैं ।

वर्षा ऋतु में पानी पारभासक से लेकर अपारदर्शी तथा, हल्का पीला या दूधिया लगता है । यह चिकनी मिट्‌टी के कारण ही होता है । इस गंदले पानी को कुछ स्कन्दक (कोऐगुलंट) पदार्थ जैसे फिटकरी अथवा कुछ वनस्पति पदार्थ जैसे मोरिंग के बीज मिलाकर साफ किया जा सकता है ।


Essay # 6. मिट्‌टी की बनावट एवं छिद्रिलता (पोरोसिटी) (Texture and Porosity of Soil):

मिट्‌टी की संरचना (Texture) मुख्यत: उसके अंदर के विभिन्न आकार के खनिज घटकी के अनुपात को परिलक्षित करती है । किन्तु मिट्‌टी में विभिन्न मात्रा में कार्बनिक पदार्थ भी होते हैं । इन कार्बनिक पदार्थों का अनुपात प्राय: कम ही रहता है- लगभग 5% से भी कम ।

किन्तु यह मिट्‌टी के अन्दर के कणों को प्रभावित करता है कि आपस में वह किस प्रकार एकत्र होंगें तथा एक दूसरे से कैसे जुड़े । ये मिट्टी के कणों का आकार व बंधन तथा उनके बीच के स्थान को निर्धारित करते हैं । दूसरे शब्दों में खनिज कण तथा कार्बनिक पदार्थ दोनों मिलकर मिटटी की बनावट निर्धारित करते हैं ।

मिट्‌टी के कणों के बीच का अंतराल मिट्‌टी की बनावट का महत्वपूर्ण भाग होता हैं । खुली हुई ऊपरी मिट्‌टी में मिट्‌टी के आकार का आधा स्थान या मिट्‌टी का द्रव्यमान का 25% मिट्‌टी की संरचना पानी से तथा दूसरा आधा भाग वायु से भरा होता है । इस पानी को प्राय मिट्‌टी का घोल कहते हैं क्योंकि इसमें विभिन्न प्रकार के लवण घुले होते हैं ।

इस प्रकार मिट्‌टी की समग्र बनावट हो सकती है- खनिज ढांचा (50-60%) कार्बनिक पदार्थ (10% तक) पानी (25-35%) तथा वायु (15-25%) । यह पौधों के विकास के लिए आदर्श स्थिति होती है क्योंकि जड़ी को आवश्यक सभी मूल पदार्थ मिट्‌टी से ही प्राप्त हो जाते हैं ।

किसी भी मिट्‌टी में पानी की मात्रा बाहरी आपूर्ति के अनुसार भिन्न हो सकती है । बाद के समय मिट्‌टी का संपूर्ण रन्ध्र-स्थान पानी द्वारा भर दिया जाता है तथा सश्वों में केवल वायु ही रहती है । दोनों ही प्रकार की स्थिति पौधों के विकास के लिए अच्छी नहीं रहती ।

मिट्‌टी में कितनी वायु है?

(1) 500 मि.ली. क्षमता की चौड़े मुंह की एक प्लास्टिक की बरनी लें । उसमें एक कप पानी डालकर स्तर पर निशान लगा दें । एक कप और पानी डालकर दूसरा निशान लगा लें । बरनी को रिक्त कर सुखा लें ।

(2) बरनी में एक कप नमूने की मिट्‌टी डाल दीजिए व उसे थोड़ा हिलाएं जिससे मिट्‌टी समतल हो जाए उसे पहले निशान तक आना चाहिए । उसमें एक कप पानी मिलाए तथा एक लकड़ी से इसे हिला दें । पानी में हवा के बुलबुले उठते हुए दिखाई देंगे ।

(3) जब मिट्टी पानी में पूर्णत: मिल जाए तो पानी के स्तर को नोट कर लें । दो कप पानी के निशान से यह नया निशान कितना नीचे हैं, इसे नोट करें । यह अंतर मिट्‌टी के नमूने के अन्दर की स्थानापन्न होने वाली वायु की मात्रा को दर्शाता है । रेतीली मिट्टी तथा चिकनी मिट्टी की वायु की मात्रा की तुलना करें । यदि इस कार्य हेतु हम श्रेणीबद्ध मापन सिलेण्डर का उपयोग करें तो हम वायु की सही-सही मात्रा का पता लगा सकते हैं ।

मिट्‌टी में पानी होता है:

किसी पुराने टीन के डिब्बे में कुछ मिट्‌टी रखें तथा उसे किसी कांच की प्लेटसे पूर्णत ढक दें । टीन को हल्का सा गरम करें । मिट्‌टी से निकली हुई पानी की भाप कांच के ढक्कन पर जमी हुई दिख जाएगी ।

मिट्‌टी का गतिशील पानी:

किसी मिट्‌टी के अंदर पानी की मात्रा उसके परिवेश की स्थितियों के अनुसार बदल सकती है । मिट्‌टी के कणों के बीच से पानी के गुजरने की गति पारगम्यता (परमिअबिलिटी) तथा पानी की अधिकाधिक मात्रा जो मिट्‌टी अपने अंदर संचित रख सकती है (पानी रखने की क्षमता), ये मिट्‌टी के दो महत्वपूर्ण गुण हैं । मिट्‌टी के ये दोनों गुण मिट्‌टी के कणों के आकार व उसके रन्ध्र स्थान द्वारा निर्धारित होते हैं ।


Essay # 7. मिट्‌टी की उर्वरता (Soil Fertility):

मिट्‌टी की पौधों के विकास को भरण-पोषण देने की क्षमता सबसे अधिक महत्वपर्ण भूमिका होती है । मिट्‌टी का यह गुण-मिट्‌टी की उर्वरता और उसमें पाए जाने वाले कार्बनिक पदार्थों द्वारा नियंत्रित होता है । मिट्‌टी में विद्यमान घुलनशील खनिज लवण भी कुछ सीमा तक मिट्‌टी की उर्वरा शक्ति में योगदान देते हैं ।

जैसा कि हमने ऊपर देखा मिट्‌टी के कार्बनिक घटक पानी व वायु के साथ उसकी अंत:क्रियाओं को निर्धारित करते हैं । मिट्‌टी की संरचना परिवर्तन कर ये कार्बनिक पदार्थ मिट्‌टी को विभिन्न प्रकार के पौधों व फसलों हेतु उपयुक्त बनाते हैं मिट्टी के कार्बनिक पदार्थ पौधों के विकास के लिए आवश्यक पौष्टिक तत्वों को प्रत्यक्ष रूप से प्रदान कर उनकी सहायता करते है ।

इस प्रकार अपनी मृत्यु के बाद भी जीव, मिट्‌टी में नए जीवन को भरण-पोषण प्रदान करने की क्षमता में योगदान देते हैं । इसी कड़ी की भूमिका में मिट्‌टी जीवित संसार के सबसे महत्वपूर्ण घटक के रूप में स्वयं को सिद्ध करती है ।


Essay # 8. मिट्‌टी के प्रकार (Types of Soil):

एक गड्ढा खोदते हुए आपने देखा होगा कि विभिन्न गहराइयों की मिट्‌टी दिखने में तथा स्पर्श करने से भिन्न लगती है । हमें ऐसा लगता है कि विभिन्न परतें जिनमें प्रत्येक का रंग भिन्न होता है, गड्ढे की दीवारों पर एक के ऊपर एक रखी गई हैं जो एक दूसरे से भौतिक-रासायनिक तथा जैविक लक्षणों में भिन्न इन परतों की होती हैं, जिन्हें मृदा वैज्ञानिक संस्तर कहते हैं तथा वे उन्हें मानक पदनाम भी देते हैं । इन सभी संस्तरों को मिलाकर वे इसे मिटटी का वर्णन (सॉइल प्रोफाइल) कहते हैं ।

मिट्‌टी की प्रत्येक परत यानी संस्तरों की मोटाई व स्वरूप यानी साइल प्रोफाइल, प्रत्येक स्थान पर भिन्न-भिन्न होता है । फिर भी एक सामान्य चित्र जो भूमि की संरचना को समझने में उपयोगी होगा, खींचा जा सकता है ।

इस सामान्य चित्र में जो नीचे दर्शाया गया है मिट्‌टी वर्णन के चार विशिष्ट क्षेत्र होते हैं:

संस्तर A- ऊपरी सतह,

संस्तर B- अवमृदा (सब सॉइल),

संस्तर C- आंशिक रूप से अवक्रमित चट्टानें तथा

संस्तर D- अपरिवर्तित मूल चट्टान ।

ऊपरी सतह का प्रारंभ पौधों के अवशेषों तथा अन्य जैविक कचरे की पतली सतह से होता है । इस परत के नीचे की मिट्‌टी खाद (हयूमॅय) बहुल होने से इसका रंग गहरा होता है । यह परत तथा इसके ऊपर की कचरे की परत में अनेक सूक्ष्म प्राणी होते हैं । ऊपरी सतह के निचले भाग में अधिक जैविक पदार्थ नहीं होते किन्तु इसमें घुलनशील खनिज बहुत मात्रा में होते हैं ।

ऊपरी सतह के नीचे का क्षेत्र अवमृदा होती है जिसमें ऊपरी सतह के समान ही बारिक कण होते हैं । किन्तु ये कण बहुत सघन बसे होते हैं । इसमें कोई कार्बनिक पदार्थ नहीं होते तथा जीवन्त-जीव भी कम ही होते हैं । ऊपरी सतह के घुलनशील खनिज जो वर्षा के जल में घुलकर इस क्षेत्र में रिसकर आ जाते हैं, यहां आकर जमा हो जाते हैं ।

औसतन शिथिल ऊपरी सतह की गहराई 15 से.मी. होती है । किन्तु ये गहराई स्थान-स्थान पर भिन्न होती हैं । जीवन को आधार देने में सक्षम ऐसी विकसित मिट्‌टी के निर्माण की प्रक्रिया बहुत धीमी होती है । मूल चट्टान को ऊपरी सतह तक आने में 20,000 वर्ष लग सकते हैं । यदि इस मिट्‌टी पर वनस्पति का आवरण न हो तो यह वर्षा के पानी से बह सकती है अथवा तेज हवा से उड़कर नष्ट हो सकती है । यह क्रिया अतिशीघ्र हो सकती है ।


Essay # 9. मिट्‌टी की संरचना (Soil Structure):

विभिन्न प्रकार की मिट्टी में तीन खनिज घटक रेत, पंकगाद एवं चिकनी मिट्‌टी विभिन्न अनुपात में होते हैं । इन घटकों की सापेक्ष मात्रा पर ही मिट्‌टी के भौतिक लक्षण तथा अन्य गुण निर्भर करते हैं । मिट्‌टी का वह गुण जो इन घटकों के अनुपात द्वारा परिलक्षित होता है उसे ही मिट्‌टी की संरचना कहते हैं ।

इसी गुण के आधार पर मिट्‌टी को तीन समूहों में यानी संरचनात्मक वर्गों में बांटा जा सकता है जिन्हें रेत, दुमट तथा चिकनी मिट्‌टी कहा जाता है । रेतीली समूह की मिट्‌टी में 70% रेत के कण तथा 15% से कम चिकनी मिटटी के कण होते हैं ।

चिकनी मिट्टियों के समूह में 40% या इससे अधिक चिकनी मिट्‌टी के कण होते हैं । दुमट मिट्टी की संरचना में बहुत अधिक विविधता पाई जाती है । आदर्श दुमट मिट्‌टी में रेत, पंक, गाद व चिकनी मिट्‌टी, सभी समान मात्रा में दोनों के फायदे विद्यमान होते हैं । इसमें विशुद्ध प्रकार की मिट्टी में पाई जाने वाली हानियां भी नहीं होतीं ।

तीन मूल घटकों के विभिन्न संयोजनों से निर्मित मिट्‌टी के प्रकारों का वर्णन करने के लिए उन्हें कई उपविभागों में बांटा गया है तथा उन्हें विभिन्न नाम दिए गए हैं ।

मुख्य वर्ग की संरचना से मिलते जुलते संयोजन के उपवर्गों के नाम जैसे- रेतीली चिकनी मिट्‌टी (सैन्डी क्ले), पंकगादी दुमट (सिल्टी लोम), दुमट मिट्‌टी रेतीली मिट्‌टी (लोमी सैन्ड) आदि दिए गए हैं । एक विशिष्ट त्रिकोणी नक्शे का उपयोग मिट्‌टी के वर्गों के बीच संबंधों तथा उनकी संरचना को दर्शाने हेतु किया जाता है ।

मिट्‌टी की संरचना का निर्धारण:

मृदा वैज्ञानिक सर्वप्रथम मिट्‌टी में से रेतीली तथा पंकगाद, चिकनी मिट्‌टी को अलग करने के लिए विशिष्ट आकार के छिद्रों वाली छन्नियों से मिट्‌टी को छानते हैं । फिर वे अवसादन के माध्यम से पंकगाद तथा चिकनी मिट्‌टी की मात्रा का अनुमान लगाते है तथा मिट्‌टी की समग्र संरचना की गणना करते हैं ।

फिर भी हम केवल छूने की विधि द्वारा मिट्‌टी की संरचना का अंदाजा लगा सकते हैं । यह विधि जिसमें अनुभव की आवश्यकता होती है, मृदा वैज्ञानिकों के लिए इस क्षेत्र में उपयोग हेतु अनुकूल है ।

छूने पर मिट्‌टी की संरचना का पता लगाना:

(1) अंगूठे व तर्जनी के बीच एक चिमटी सूखी मिट्‌टी के नमूने की उठाएं । उसे उंगलियों के पोरों के बीच रगड़े तथा वह कितनी चिकनी अथवा खुरदरी है इसे नोट करें । इस संवेदना की तुलना रेतीली तथा महीन चिकनी मिट्‌टी से करें ।

(2) मिट्टी के नमूने में पानी मिलाकर पुआ यानी गुंथा हुआ आटा बनाएं । उपरोक्तानुसार कुछ गीली मिट्‌टी को उंगलियों के बीच रगड़ें व होने वाली अनुभूति को नोट करें ।

(i) तर्जनी की सहायता से अंगूठे पर गीली मिट्‌टी का समान रूप से लेप करें । अंगूठे के ऊपर का लेप कैसा दिखता है ? क्या वह चिकना व चमकीला है ? क्या वह कणों वाला है ? क्या वह दोनों के बीच का हे ?

(ii) मिट्‌टी के लेप लगे अंगूठे व उंगली को जोर से मिलाए व फिर उन्हें धीरे-धीरे अलग करें । गीली मिट्‌टी चिपचिपी लगती है अथवा नहीं, इसे नोट करें ।

(3) मिट्‌टी के पुए का एक छोटा गोला बनाए तथा उसे जोर से दबाएं । क्या मिट्‌टी पतले व चिकने रिबन के रूप में बाहर निकलती है ? या कणों वाले रिबन के रूप में ? अथवा केवल टुकड़ों के रूप में ?

(4) मिट्‌टी के पुए से छोटे-छोटे गोले बनाएं । गीले गोलों का उंगलियों से दबाने पर क्या होता है ? क्या वे अपना आकार आसानी से खो देते हैं अथवा उनमें अच्छी लोच है? कितनी आसानी से ये गोले टूटकर बिखर जाते हैं?

ADVERTISEMENTS:

(i) सूखने पर क्या ये गोले उसी आकार में रहते हैं? सूखे गोले कितने कड़क होते हैं?

(ii) मिट्‌टी के प्रत्येक नमूने के रगड़ने की स्पर्शानुभूति तथा उसके रूप तथा अन्य अवलोकनों को नीचे दी गई तालिका से मिलान करें तो आपको उसकी संरचना के वर्ग का पता लग जाएगा ।

निम्न तालिका में विशुद्ध रेत या चिकनी मिट्‌टी के लक्षणों की सूची दी गई हैं । किसी भी मिट्‌टी की संरचना (Texture) का निर्धारण उसमें पाई जाने वाली रेत व चिकनी मिट्‌टी के अनुपात द्वारा निर्धारित होता है ।

एक आदर्श दुमट मिट्‌टी में उसके अन्दर की रेत व चिकनी मिट्‌टी के मध्य के लक्षण होते हैं । किन्तु जो घटक अधिक अनुपात में होता है उसी की ओर लक्षण झुक जाते हैं । इस प्रकार रेतीली दुमट मिट्‌टी रेत के समान अधिक होगी जबकि चिकनी-दुमट मिट्‌टी चिकनी मिट्‌टी के सदृश्य अधिक होगी ।


Essay # 10. मिट्‌टी की पारगम्यता तथा पानी रखने की क्षमता (Permeability and Ability of Soil to Keep Water):

(1) प्लास्टिक का एक पारदर्शक ग्लास लें तथा एक गरम कील से उसकी पेंदी में कुछ छेद कर दें । ग्लास के अंदर ब्लॉटिंग पेपर का एक गोल टुकड़ा इस प्रकार रखें कि वह पेंदी को पूर्णत: ढंक ले । ग्लास को नमूने की मिट्‌टी से भर दें । ब्लाटिंग पेपर के कारण मिट्‌टी ग्लास की पेंदी से बाहर नहीं निकलेगी ।

(2) मिट्‌टी से भरे ग्लास को एक प्लेट पर रख दें व उसी ग्लास के बराबर एक ग्लास पानी प्लेट में डाल दें ।

(3) ब्लॉटिंग पेपर तथा मिट्‌टी से होता हुआ पानी ऊपर की ओर बढ़ेगा । मिट्‌टी का रंग गाढ़ा होने से यह पता लग जायेगा । कुछ समय बाद ग्लास के अंदर की मिट्‌टी समान रूप से गीली हो जाएगी व पानी शीर्ष तक पहुंच जाएगा ।

(4) यह प्रयोग मिट्‌टी के विभिन्न नमूनों से एक ही साथ करें तथा प्रत्येक ग्लास में पानी शीर्ष तक पहुंचने में लगने वाले समय को तथा मिट्‌टी के पूर्णरूप से गीली होने के बाद प्लेट में बचे हुए पानी की मात्रा को नोट कर लें ।

पानी के शीर्ष तक पहुंचने में लगने वाला समय मिट्टी के नमूने की पारगम्यता को दर्शाता है । जितनी जल्दी पानी शीर्ष पर पहुंचेगा, उतनी ही अधिक मिट्‌टी की पारगम्यता होगी । इसका यह भी अर्थ होगा कि मिट्‌टी पानी को तीव्रगति से बहने देगी । धीरे-धीरे बढ़ती पानी की रेखा पानी के धीमे बहाव व पानी के ठहराव के खतरे की ओर संकेत करेगी ।

ADVERTISEMENTS:

मिट्‌टी के पूर्णरूप से गीली होने के बाद जेट में बची हुई पानी की मात्रा यह बताएगी कि मिट्टी ने कितना पानी ग्रहण किया तथा कितना जमा किया । प्लेट में जितना कम पानी बचेगा, मिट्‌टी के नमूने की पानी ग्रहण करने की क्षमता उतनी ही अधिक होगी ।

यदि हम मिट्‌टी को भरने हेतु बहुत लंबे ग्लास लें तो हम देखेंगे कि एक विशिष्ट ऊंचाई पर आकर पानी रूक जाता है । विभिन्न प्रकार की मिट्‌टी के लिए यह ऊंचाई भिन्न होगी । यह हमें बताता है कि मिट्‌टी कितनी गहराई से पानी ऊपर खींचेगी । इसे उसकी केशिकत्व (कैपिलैटरी) कहते हैं ।

वास्तविक उपयोग में मिट्‌टी के केशिकत्व को निर्धारित करने के लिए 1 से 2  से.मी. व्यास के पारदर्शी पाइप का उपयोग करते हैं । पाइप के निचले सिरे में रूई भर देते हैं फिर उसे मिटटी से भर देते हैं । मिट्‌टी भरे हुए पाइप को उपयुक्ता सहारा देकर किसी पानी के बर्तन में रखा जा सकता है । जब पानी ऊपर बढना बन्द हो जाए तो अन्तिम स्तर को अथवा एक निश्चित समयावधि के बाद स्तर को नोट कर सकते हैं ।

इन गतिविधियों से हम यह देख सकते हैं कि रेतीली मिट्‌टी में पानी तेजी से ऊपर जाता है (अधिक पारगम्यता) किन्तु वह कम पानी सोखती है (कम पानी ग्रहण क्षमता) | यह इसलिए होता है क्योंकि इस मिट्‌टी के बड़े कण, बड़े रन्ध्र छोड़ते हैं किन्तु रन्ध्र-स्थान की कुल मात्रा कम होती है । दूसरी ओर चिकनी मिट्‌टी के कण छोटे होते हैं । इससे भी छोटे होते हैं किन्तु रन्ध्र-स्थान अधिक होता है ।

अंत: इस प्रकार की मिट्‌टी में पानी धीरे-धीरे बढ़ता है किन्तु उसके द्वारा अधिक पानी ग्रहण किया जाता है । रन्ध्र छोटे होने के कारण चिकनी मिटटी में के शिकत्व अधिक होता है तथा यह अधिक गहराई से पानी खींच सकती है ।


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