युद्‌ध: कारण व परिणति पर निबंध | Essay on War : Causes and Consequences in Hindi!

युद्‌ध का इतिहास मानव सभ्यता के उदय के साथ ही प्रारंभ हो गया । युद्‌ध पहले भी होते थे और आज भी हो रहे हैं । यह सत्य है कि समय-समय पर कारक परिवर्तित होते रहे हैं । आदिकाल में जहाँ युद्‌ध जानवरों अथवा जमीन के लिए लड़े जाते थे वहीं आज के युग में युद्‌ध के तीन प्रमुख कारक पैसा, स्त्री एवं जमीन हैं ।

भारत में अंग्रेजी शासन से पूर्व देश छोटे-छोटे राज्यों में बँटा हुआ था । सभी राजा अपने राज्य की सीमाओं को बढ़ाने के लिए प्रयासरत रहते थे । युद्‌ध के द्‌वारा विजय से संपन्नता प्राप्त करना उनका प्रमुख उद्‌देश्य होत । था तथा साथ ही साथ पडोसी राज्यों में उनका वर्चस्व बढ़ता था जिसके परिणामस्वरूप छोटे राज्य स्वयं ही उनकी सत्ता स्वीकार कर लेते थे ।

नारी भी इतिहास के अनेक प्रमुख युद्‌धों का कारण बनी। उस समय में युद्‌ध द्‌वारा सुंदर स्त्री व राजकुमारी को विजयश्री में प्राप्त करना राजाओं की आन और शान समझा जाता था । आज के समय में युद्‌ध के स्वरूप में अनेक परिवर्तन आए हैं । राज्यों के मध्य छोटे-छोटे आपसी विवाद भी विशाल रूप ले लेते हैं । पूर्व में हुए दो विश्व युद्‌धों का यदि आकलन करें तो हम देखते हैं कि ऐसा नहीं था कि उन युद्‌धों को नहीं टाला जा सकता था । फिर भी ये युद्‌ध लड़े गए तथा इसके पश्चात् इसकी तांडव लीला को हम आज भी महसूस कर सकते हैं ।

प्राचीनकाल के युद्‌ध हों या फिर आधुनिक विश्व युद्‌ध, सभी छोटे कारणों से प्रारंभ होते हैं और बढ़ते-बढ़ते विशाल रूप ले लेते हैं । आज युद्‌ध केवल सेनाओं के बीच तक ही सीमित नहीं रह गए हैं अपितु ये पूर्ण मानव सभ्यता के लिए खतरा बन जाते हैं।

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इतिहास साक्षी है कि युद्‌धों में अनेक राज्यों ने न केवल जान-माल की क्षति उठायी है अपितु वहाँ की कला, संस्कृति व सभ्यता सभी नष्ट हो गए हैं । आधुनिक युद्‌धों में सैनिक ही नहीं अपितु अनेक बच्चे, औरतें, बूढ़े, जवान, नागरिक युद्‌ध का शिकार बनते हैं जिनका युद्‌ध से कोई लेना-देना नहीं होता है ।

आतंकवाद इन युद्‌धों का एक अन्य रूप है । कुछ स्वार्थी व असामाजिक तत्व असहाय बच्चों व नागरिकों को मारकर अपनी अनैतिक माँगों को पूरा करना चाहते हैं । भारत पिछले कई दशकों से आतंकवाद से निरंतर जूझ रहा है । अब तक न जाने कितने लोग इस आतंकवाद के शिकार हो चुके हैं । आतंकवाद को काबू में रखने के लिए सरकार को सुरक्षा के मद में काफी व्यय करना पड़ता है ।

इस तरह देश की अर्थव्यवस्था भी प्रभावित होती है । सन् 2001 में अमेरिका पर हुआ जबरदस्त हमला इसका ज्वलंत उदाहरण है जिसमें पल भर मैं हजारों लोग असमय काल के शिकार हो गए और सारे विश्व की अर्थव्यवस्था की नींव हिल गई थी ।

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युद्‌ध के कारण कुछ भी हों परंतु परिणाम सदैव एक-सा ही होता है । हजारों की संख्या में लोगों की जानें जाती हैं । कितने ही घर नष्ट हो जाते हैं । कितनी ही माताओं की गोद सूनी हो जाती है तथा कितनी ही नारियाँ विधवा का जीवन जीने के लिए बाध्य होती हैं । युद्‌ध राष्ट्रों को वर्षो पीछे धकेल देते हैं, उन्हें फिर नए सिरे से विकास के लिए संघर्ष करना पड़ता है ।

विश्व के राजनीतिज्ञों को इनका आकलन करना आवश्यक है । यदि वे इसके परिणामों को ध्यान में रखें तथा निजी स्वार्थपरता से ऊपर उठें तो संभव है कि युद्‌ध की विभीषिका से बचा जा सके । आपसी विवादों को यदि वे बातचीत से सुलझाने का प्रयास करें तो कितने ही बच्चे अनाथ होने से बच सकते हैं, साथ ही कितने ही घरों को नष्ट होने से बचाया जा सकता है ।

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