विज्ञान एवं आधुनिक युद्ध पर निबन्ध | Essay on Science and Modern Warfare in Hindi!

इक्कीसवीं शताब्दी विज्ञान और युद्ध का युग है । इस शताब्दी में शांति को स्थापित करने के हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं, फिर भी तीसरे विश्वयुद्ध के आसार का खौफ आज चारो ओर व्याप्त है ।

दो महायुद्धों में युद्ध के विनाश को और बढ़ाने में विज्ञान की महत्वपूर्ण भूमिका रही है । यह सच है कि ज्ञान शक्ति प्रदान करता है, शक्ति में मद होता है और सर्वमान शक्ति मानव को आसानी से पथभ्रष्ट कर देती है ।  आधुनिक विज्ञान ने मानव को अप्रतिम शक्ति प्रदान की है और उसे युद्ध की ओर अग्रसर कर विश्व के जीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया है ।

यह एक जटिल प्रश्न है कि क्या विज्ञान युद्ध की विभीषिका के लिए उत्तरदायी है अथवा युद्ध विज्ञान के विकास का कारण है । विश्व के युद्धों के इतिहास में रुचि रखने वाले कुछ लोगों का विचार है कि युद्ध ही सभ्यता के विकास का सूचक है ।

युद्ध से पुरानी सभ्यता नष्ट होती है और नई सभ्यता का विकास होता है । बर्टेड रसेल के अनुसार पाश्चात्य सभ्यता के विकास में युद्ध का महत्वपूर्ण योगदान रहा है । उन्होंने यह बताया है कि युद्ध की कला के माध्यम से सभ्यता के आरम्भिक रूप का विकास ग्रीक सभ्यता में हुआ ।

यूनानी दार्शनिकों का विचार है कि ज्ञान शक्ति है और शक्ति का अभिप्राय सभ्यता के विकास से है । सैनिक साम्राज्य के विचार पर आधारित रोम की सभ्यता ने यूनानी सभ्यता का स्थान लिया । आधुनिक सभ्यता यूनानी और रोम की सभ्यता का मिश्रित रूप है । यह सच है कि आधुनिक स्थितियों को उत्पन्न करने में विज्ञान के विकास का योगदान महत्वपूर्ण है ।

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बारूद के अविष्कार से पूर्व युद्ध के मुख्य हथियार तीर तथा तलवार थे । तब युद्ध में रक्तपात की सीमा सीमित होती थी, साथ ही उस समय युद्ध के कुछ नैतिक नियम होते थे । लेकिन बारूद के अविष्कार के वाद युद्ध ने जटिल, निर्मम और असभ्य रूप अपना लिया । बारूद के प्रयोग द्वारा रात में भी युद्ध और लंबी दूरी तक मार किया जाने लगा ।

यहाँ तक कि युद्ध केवल सेनाओं तक ही सीमित थे । नेपोलियन ने युद्ध को एक भयंकर रूप दिया उसने युद्ध में तेजी से मार करने वाले यंत्रों का प्रयोग किया । विज्ञान जगत में विभिन्न आविष्कारों ओर खोजों के कारण युद्ध की विभीषिका ने और अधिक घृणित रूप धारण कर लिया ।

प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान वायुयानों के प्रयोगों ने युद्ध की सीमा को समाप्त कर दिया । शत्रुओं की छावनियों में बम वर्षा करने के लिए उनका इस्तेमाल किया जाता था । इससे साथ के गांव, शहरों पर भी प्रभाव पड़ता था । गैस आदि, विशेषकर मस्टर्ड गैस, का प्रयोग किया जाने लगा जिसकी गर्मी से व्यक्ति जलकर मर जाता था, उसकी शक्ल पहचानने योग्य भी नही रह जाती या उन्हें पागल और मानसिक रूप से पंगु बना देती थी ।

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जर्मनी ने जीवाणु युद्ध की शुरूआत की जिसके कारण बड़ी संख्या में निर्दोष लोग महामारी फैलने से मर गए । शहरी इलाको में सुरंगे बिछाकर और बम वर्षा करके लोगों में भय और खौफ फैलाया जाता था । द्वितीय विश्वयुद्ध ने प्रथम युद्ध मे मारे गए लोगों की संख्या और विनाश के सभी कीर्तिमानों को तोड़ दिया ।

लंदन तथा अन्य ब्रिटिश शहरों पर जर्मन वायुयानो द्वारा रॉकेट बमों की वर्षा व हॉलैंड के तट पर बम वर्षा के घातक परिणाम हुए । ब्रिटिश और अमेरिकी वायुयानों ने भी जवाबी तौर पर जर्मन शहरों पर भारी और विध्वंसक बमों की वर्षा की । अंत में जापान के दो शहर हिरोशिमा और नागासाकी परमाणु बमों के गिरने से खंडहर में परिवर्तित हो गए ।

सौभाग्य से अभी तक विश्व में परमाणु बमों के प्रयोग का दौर शुरू नहीं हुआ है । जापान में दो परमाणु बमों का प्रयोग इक्का-दुक्का घटना ही है । परमाणु बमों के अलावा आधुनिक युद्ध में इस्तेमाल किए जाने वाले हाइड्रोजन बम आदि भी इस ग्रह का पूर्ण विनाश कर सकते हैं । एक अमरीकी सेना विशेषज्ञ के अनुसार रूस का एक परमाण्विक आक्रमण, करोड़ो व्यक्तियों की मृत्यु का कारण हो सकता है ।

यह विभीषका कहाँ होगी इसका निर्णय हवा का प्रवाह करेगा । यदि हवा का प्रवाह दक्षिण-पूर्व की ओर होगा तो लक्ष्य सोवियत संघ होगा और जापान और सभवत: फिलीपिन भी इसके शिकंजे में आ सकते है । यदि हवा का रूख दूसरी ओर होगा तो पश्चिमी यूरोप इसका शिकार बन जाएगा ।

परमाण्विक युद्ध के रक्त-पात ने विश्व के बुद्धिजीवियों का ध्यान आकर्षित किया है । वैजानिकों ने भी इस बारे में सोचना शुरू कर दिया है कि विज्ञान के सभी साधनों का भ्रष्ट राजनीतिज्ञों के हाथों सौंपने तथा विज्ञान के विध्वंसक प्रयोगों की बजाय इनका मानवता और कल्याण के प्रयोग करना अधिक उपयोगी है ।

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मानव कल्याण में विज्ञान की अपनी महत्ता है । यदि विज्ञान मानवता के लिए ही घातक होगा, तो मानवता के साथ-साथ उसका अस्तित्व भी इस पृथ्वी पर नही रहेगा । उन्हें इस बात का ज्ञान हो गया है कि विज्ञान मानव के लिए है, विनाश के लिए नहीं । भारत अंतरराष्ट्रीय संबंधों को सुधारने के जो कार्य कर रहा है, उसका बड़ा भाग परमाणु शांति कायम करना है ।

विज्ञान मानव के जीवन में खुशियाँ भर सकता है, यदि स्वयं मानव इसका प्रयोग मृत्यु और विध्वंस के यंत्रों को एकत्रित करने में करे, तो इसमें विज्ञान का क्या दोष? यदि विज्ञान ने मृत्यु के घातक तरीकों का आविष्कार किया है तो दूसरी ओर इनसे बचाव के प्रभावी साधनों का भी आविष्कार किया है, जैसे गैस मास्क, टैंकों से बचाव के लिए टैंक भेदी तोपें और हवाई गोलाबारी के विरूद्ध विमान भेदी तोपें । इस बात का भी पता चला है कि हाइड्रोजन बम के प्रभाव को कम करने के उपायों का अविष्कार अमेरिकी वैज्ञानिकों ने कर लिया है ।

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विज्ञान नहीं बल्कि मानव के अंदर का पशु ही युद्ध के लिए उत्तरदायी है । एल्फ्रेड नोबेल ने बारूद का आविष्कार खानों में काम करने वाले तथा पहाड़ी क्षेत्रों में सड़के बनाने वाले श्रमिकों की सहायता के लिए किया था, लोगों और उनकी सम्पत्ति को उड़ाने के लिए नही । अत: यदि आधुनिक युद्ध के विनाशकारी रूप के लिए हम विज्ञान को दोषी ठहराते हैं, तो यह उसके प्रति अन्याय होगा ।

आज के परमाणु युग में राष्ट्रों के बीच के विवादो के निपटारे के लिए युद्ध कोई उपयोगी साधन नही रहा है, क्योंकि परमाणु बम ने लड़ाकू और गैर लड़ाकू, रणक्षेत्र और जनता बहुल क्षेत्र, विजेता और विजित जैसी प्राचीन वैध मान्यताओं को तिलांजलि दे दी है ।

युद्ध प्रक्रिया ने जनसंहार का रूप ले लिया है इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि ‘एक विश्व समुदाय’ के विकास के लिए काम किया जाए । जिसमें युद्ध निषिद्ध हो और हिंसा एक घृणित कार्य माना जाए । इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए यह परम आवश्यक है कि ‘आध्यात्मिक पुननिर्माण’ किया जाए ।

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