विज्ञान: एक अभिशाप अथवा विज्ञान के दुरुपयोग पर निबंध | Essay on Science : A Curse or Abuse of Science in Hindi!

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विज्ञान की देन अद्‌वितीय है । प्रत्येक क्षेत्र में विज्ञान अनेक रूपों में मनुष्य के लिए वरदान सिद्‌ध हुआ है, यह सत्य है परंतु इसका दूसरा पहलू भी है । विज्ञान मनुष्य के लिए समस्या बन चुका है ।

आज उसके आविष्कार ही हमारे लिए अभिशाप बन गए हैं । विज्ञान की मदद से किए जाने वाले हमारे दैनिक कार्यो में कई ऐसी बातें जुड़ती चली गईं जिनके कारण धरातल के संपूर्ण जीव जगत् पर संकट के बादल मँडराने लगे। मनुष्यों ने अपना दैनिक जीवन तो सुलभ बना लिया परंतु आगामी पीढ़ी के लिए धरती एक समस्या सी बनती जा रही है ।

अत: ऐसे विचारों के लोगों की संख्या कम नहीं है जो विज्ञान को एक अभिशाप के रूप में देखते हैं । साथ-साथ हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि किसी भी वस्तु का दुरुपयोग हमारे लिए अभिशाप बन जाता है ।

विज्ञान के आविष्कारों ने औद्‌योगिक क्रांति को जन्म दिया जिसके फलस्वरूप आज नगरों में मशीनों व कल-कारखानों की संख्या अत्यधिक बढ़ गई है । गाँवों से लोग शहरों की ओर आ रहे हैं जिससे शहरों में आबादी दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है ।

अनेक क्षेत्रों में मनुष्य का कार्य मशीनों ने ले लिया है जिससे बेरोजगारी बढ़ रही है । आज प्रतिस्पर्धा के दौर में सामान्य व्यक्ति को अपनी मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए जमीन-आसमान एक करना पड़ रहा है ।

आज पूँजी मुख्य रूप से चंद लोगों के हाथों में सिमट गई है । लाभ का एक बड़ा हिस्सा, मिल-मालिकों व भ्रष्ट अधिकारियों के हाथों में जाता है । वहीं दूसरी ओर काम करने वाले लोगों तक उतना ही पहुँचता है जिससे वह अपनी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति ही कर पाता है ।

इसके फलस्वरूप पूरा समाज धनवान और निर्धन में विभाजित हो गया है । इन्हीं कारणों से संपूर्ण विश्व भी पूँजीपति व समाजवादी देशों में विभाजित हो गया है । अत: विज्ञान ने आज मनुष्य को मनुष्य से अलग कर दिया है ।

संपूर्ण विश्व के देश आज प्रगति के पथ पर एक-दूसरे से आगे निकलना चाहते हैं तथा सभी अपने को शक्ति-संपन्न देखना चाहते हैं । बारूद का आविष्कार इसी प्रतिस्पर्धा की देन है । नाना प्रकार के हथियार विकसित हो गए हैं ।

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रॉकेट, मिसाइल, बम, युद्‌ध में प्रयोग होने वाले जहाज तथा अनेक प्रकार के रासायनिक उपकरण मानव के विनाश के लिए तैयार हैं । हइड्रोजेन तथा परमाणु बम तो पूरी की पूरी मानव-सभ्यता को नष्ट करने की क्षमता रखते हैं । द्‌वितीय विश्व युद्‌ध में जापान के दो शहरों हिरोशिमा और नागासाकी पर गिराए गए बम इसका ज्वलंत उदाहरण हैं ।

विज्ञान के आविष्कारों से धार्मिक आस्था भी दिन पर दिन कमजोर पड़ती जा रही है। मनुष्य में असंतोष व स्वार्थ लोलुपता बढ़ती जा रही है जो किसी भी सभ्य मानव समाज के लिए शुभ संकेत नहीं है । मनुष्य की सफलता ही आज उसे विनाश की ओर ले जा रही है ।

बढ़ते प्रदूषण के कारण दिन-प्रतिदिन प्रकृति का असंतुलन बढ़ता जा रहा है । हमारी पृथ्वी का रक्षा कवच ‘ओजोन परत’ निरंतर इससे प्रभावित हो रहा है जो पृथ्वी पर संपूर्ण जीवन के लिए खतरा बन सकता है ।

विज्ञान ने यदि मनुष्य को चंद्रमा पर पहुँचाया है तो उसने उसे विनाश के गर्त पर भी ला खड़ा किया है । वास्तविक रूप में यदि इसका अवलोकन किया जाए तो हम देखते हैं कि इसकी शक्ति अपार है । यह मनुष्य के अपने विवेक पर है कि वह इसका प्रयोग किस प्रकार करता है ।

विज्ञान का समुचित दिशा में किया गया उपयोग उसके लिए वरदान सिद्‌ध हो सकता है वहीं दूसरी ओर इसका दुरुपयोग उसके लिए अभिशाप भी बन सकता है ।

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