विज्ञान: वरदान या अभिशाप पर निबंध | Essay on Science : Blessing or Curse in Hindi!

आधुनिक युग विज्ञान का युग है । जीवन के समस्त क्षेत्रों एवं विचारों की समस्त गति में विज्ञान आज पूर्ण रूप से समाहित है । विश्व का कोई ऐसा कोना शेष नहीं होगा जहाँ विज्ञान की पहुँच न हो ।

देश की दूरी नापने वाली रेलगाड़ी लें या फिर अंतरिक्ष पर विचरण करते वायुयानों को देखें अथवा ‘ई-मेल’ के जरिए मीलों दूर बैठे परिजनों से संपर्क साधते व्यक्ति को देखें सब में विज्ञान की उपस्थिति मौजूद है । ‘विज्ञान की देन’ अनगिनत है । विज्ञान के आविष्कारों ने संपूर्ण विश्व को समेट दिया है ।

वह दूरी जो कभी महीनों अथवा वर्षों में तय की जाती थी आज विज्ञान ने उसे कुछ मिनटों तथा घंटों में संभव कर दिखाया है । प्राचीनकाल में जो सुविधाएँ राज-परिवारों तक सीमित हुआ करती थीं आज उससे भी बेहतर सुविधाएँ जन साधारण तक उपलब्ध हैं । रेल, मोटर, कारें, जलयान, वायुयान, हेलीकॉप्टर आदि सभी यातायात के साधन विज्ञान की ही देन हैं ।

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मनुष्य ने ऐसे साधन विकसित कर लिए हैं जिससे वह अंतरिक्ष पर विचरण कर सकता है । वह चद्रमा पर पहुँचने में भी सक्षम हो चुका है तथा इसके पश्चात् वह अन्य ग्रहों पर भी पहुँचने की तैयारी कर रहा है । संचार एवं तकनीक में विज्ञान की खोजों ने मनुष्य के जीवन में क्रांति ला दी है ।

रेडियो, टेलीफोन, तार, फैक्स तथा ई-मेल आदि के माध्यम से मनुष्य पलक झपकते समाचार व सूचनाएँ मीलों दूर बैठे व्यक्ति को प्रसारित अथवा उसका आदान-प्रदान कर सकता है । ‘वीडियो कॉफ्रेंसिंग’ के माध्यम से लाखों मील दूर व्यक्ति से संपर्क कायम किया जा सकता है, साथ ही साथ उसकी तस्वीर भी पर्दे पर देखी जा सकती है । कंप्यूटर की खोज ने मनुष्य की कार्यक्षमता कई गुना बढ़ा दी है । अनेक दुष्कर लगने वाले कार्य अब सहज और सरल प्रतीत होते हैं ।

चिकित्सा व इंजीनियरिंग के क्षेत्र में भी विज्ञान की देन अद्‌वितीय है । नित नवीन अनुसंधानों के चलते अनेक महामारियों व असाध्य रोगों पर नियंत्रण संभव हो सका है । हृदय व मस्तिष्क के अनेक ऐसे जटिल रोगों का इलाज आज संभव हुआ है जो कभी पूर्णत: असाध्य समझे जाते थे । नगरों, महानगरों तथा ग्रामीण अंचलों की कायाकल्प हो रही है ।

हर जगह आधुनिक सुविधाओं; जैसे- बिजली, सड़क, पानी, टेलीफोन, इंटरनेट का जाल सा बिछ गया है । रेलमार्ग, वायुमार्ग तथा जलमार्ग के विकास से व्यापार और उद्‌योग यातायात आदि क्षेत्रों का आशातीत विकास हुआ है । नदी-नालों के ऊपर पुल बनाकर तथा पहाड़ों को काटकर दूर-दराज के इलाकों को भी परस्पर जोड़ दिया गया है ।

इस प्रकार विज्ञान की खोजों का यदि हम अवलोकन करें तो हम पाएँगे कि यह अनुपम एवं असीमित हैं । ईश्वर ने मनुष्य को दो हाथ प्रदान किए हैं परंतु विज्ञान की नित नवीन खोजों से उसने अपने लिए हजारों सहायक हाथों की कार्यक्षमता विकसित कर ली है । विज्ञान के आविष्कारों ने मानव जीवन के समस्त क्षेत्रों में अपनी गहरी पैठ बना ली है और अब वह उसके अभिन्न अंग बन गए हैं ।

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परंतु सिक्के के दो पहलुओं की भाँति विज्ञान का भी दूसरा पहलू है । यदि विज्ञान ने मानव कल्याण व उसकी समृद्धि के लिए अनगिनत साधन उपलब्ध कराए हैं, तो दूसरी ओर उसने मनुष्य के जीवन में नई मुश्किलें भी खड़ी कर दी हैं । मनुष्य में असंतोष की प्रवृत्ति तथा स्वार्थलोलुपता ने जहाँ एक ओर आकाश की ऊँचाई प्रदान की है वहीं दूसरी ओर उसे विनाश के कगार पर भी ला खड़ा किया है ।

लक्ष्य क्या ? उद्देश्य क्या ? क्या अर्थ ? यह नहीं यदि ज्ञात तो विज्ञान का श्रम व्यर्थ ।

आज विज्ञान ने असंख्य स्वचालित मशीनों को जन्म दिया है जो सैकड़ों, हजारों मनुष्यों की कार्यक्षमता रखती हैं । इससे विश्व के सम्मुख बेरोजगारी अथवा बेकारी की समस्या उत्पन्न हो गई है । विज्ञान ने मनुष्य के दैनिक जीवन से संबंधित अनेक आरामदायक वस्तुएँ व साधन उपलब्ध कराए हैं जिससे उसकी प्रवृत्ति में विलासिता व भौतिकता का समावेश हो गया है ।

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परिणामस्वरूप धर्म, सदाचार व अन्य नैतिक मूल्यों का ह्रास होता जा रहा है । विश्व में मशीनीकरण से पूँजीवाद को समर्थन मिला है जिसमें अमीर और गरीब के बीच का अंतर गहराता जाता है । उच्च एवं समृद्‌ध जीवन-यापन की मानव आकांक्षा से चोरी, दुराचार, भ्रष्टाचा, हत्या आदि की घटनाओं में निरंतर वृद्धि हो रही है ।

विकास की अंधी दौड़ से प्राकृतिक संतुलन खतरे में पड़ गया है । प्राकृतिक संसाधन धीरे-धीरे लुप्त होते जा रहे हैं । मोटर-गाड़ियों व कल-कारखानों से कहीं-कहीं प्रदूषण इस सीमा तक पहुँच गया है कि हमारा जीवन खतरे में पड़ गया है । मनुष्य की स्वार्थलोलुपता ने ऐसे हथियारों को जन्म दिया है जो पल भर में हजारों-लाखों लोगों को एक साथ खत्म कर सकते हैं ।

हाइड्रोजन व परमाणु बमों की खोज ने संपूर्ण मानव जाति को विनाश के कगार पर ला खड़ा किया है । विश्वयुद्‌ध के दौरान जापान के दो शहर हिरोशिमा तथा नागासाकी पर गिराए गए परमाणु बमों का कहर आज भी व्याप्त है ।

इस प्रकार वैज्ञानिक आविष्कार यदि मनुष्य के वरदान हैं तो उनका गलत दिशा में उपयोम संपूर्ण मानव जाति के लिए अभिशाप भी बन सकता है । हमें विज्ञान को सदा मानव हित में लगाना चाहिए क्योंकि आज दुनिया इतनी सिमट गई है कि हमारी ओर से उठाया गया प्रत्येक गलत कदम पूरी दुनिया को प्रभावित करेगा ।

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पृथ्वी पर जीवन का संकट जल, वायु आदि कई प्रकार के प्रदूषणों से ही नहीं है अपितु उन जननाशक हथियारों की मौजूदगी से भी है जिन्हें विभिन्न देश अपने तरकस में ब्रह्‌मास्त्र की भाँति रखे हुए हैं ।

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