सायना नेहवाल पर निबंध! Here is an essay on ‘Saina Nehwal’ in Hindi language.

राष्ट्रमण्डल खेल वर्ष 2010 के अन्तिम दिन 14 अक्टूबर को भारत 37 स्वर्ण पदकों के साथ तीसरे स्थान पर था, किन्तु जिस महिला खिलाड़ी ने अन्तिम समय में देश के लिए 38वां स्वर्ण जीतकर भारत को इन खेलों के इतिहास में पहली बार पदक तालिका में दूसरा स्थान दिलाया, वह मशहूर बैडमिण्टन सितारा आज एक परिचित नाम बन चुका है ।

उस होनहार खिलाड़ी का नाम सायना नेहवाल है । सायना नेहवाल आज विश्वविख्यात बैडमिण्टन खिलाड़ियों में से एक है । वे ओलम्पिक खेलों में बैडमिण्टन प्रतिस्पर्द्धा के क्वार्टर फाइनल में पहुँचने वाली प्रथम भारतीय महिला एवं विश्व जूनियर बैडमिण्टन चैम्पियनशिप जीतने वाली प्रथम भारतीय खिलाड़ी हैं ।

जून, 2010 में मात्र 20 वर्ष की उम्र में बैडमिण्टन खिलाड़ियों की विश्व रैंकिंग में दूसरा स्थान प्राप्त कर सायना ने नट स्तर पर उल्लेखनीय ख्याति अर्जित की । उनकी इस उपलब्धि से प्रसन्न होकर तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभादेवी सिंह पाटिल, प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह और सोनिया गाँधी जैसे देश के शीर्षस्थ नेताओं ने उन्हें बधाई दी ।

सायना का जन्म 17 मार्च 1990 को हरियाणा के हिसार में हुआ था । सायना को बैडमिण्टन का खेल विरासत में मिला है । उनके पिता डॉ. हरवीर सिंह तथा माँ ऊषा रानी हरियाणा के बैडमिण्टन चैम्पियन रहे हैं । वर्तमान में डॉ. हरवीर सिंह हैदराबाद स्थित तिलहन अनुसन्धान निदेशालय में वैज्ञानिक हैं । हरवीर सिंह चाहते थे कि उनकी बेटी बड़ी होकर बैडमिण्टन का चमकता सितारा बने ।

पिता की इच्छाओं में ही सायना को अपना कैरियर भी नजर आया । लिहाजा, सायना ने दृढ़ निश्चय किया और वर्ष 1998 में हैदराबाद के लालबहादुर स्टेडियम से अपने बैडमिण्टन कैरियर की शुरूआत कर दी, जहाँ उन्हें बैडमिण्टन कोच नीनी प्रसाद से प्रोत्साहन मिला । सायना ने आठ वर्ष की उम्र से ही कठिन परिश्रम एवं सतत अभ्यास आरम्भ कर दिया था ।

उन्हें प्रतिदिन प्रशिक्षण के लिए 50 किमी की यात्रा करनी पड़ती थी । सायना ने द्रोणाचार्य पुरस्कार प्राप्त एसएम आरिफ से भी प्रशिक्षण प्राप्त किया है । बाद में विश्वविख्यात बैडमिण्टन खिलाड़ी पुलेला गोपीचन्द उनके कोच बने । सायना के अपने खेल करियर में ऊँचाई हासिल करने की शुरूआत तब हुई, जब उन्होंने वर्ष 2004 में राष्ट्रीय जूनियर चैम्पियनशिप का खिताब जीता ।

वर्ष 2005 में उन्होंने फिर यह प्रतियोगिता जीती । इसी वर्ष वे राष्ट्रीय सीनियर चैम्पियनशिप में रनर-अप भी रहीं ।  वर्ष 2006 तथा 2007 दोनों ही वर्षों में बे इसकी विजेता रहीं । इसके अतिरिक्त सायना की अन्य उपलब्धियों में वर्ष 2005 के अखिल भारतीय टूर्नामेण्ट तथा इसी वर्ष मुम्बई में आयोजित अखिल भारतीय सीनियर रैंकिंग टूर्नामेण्ट में विजय भी उल्लेखनीय हैं ।

वर्ष 2005 में गुवाहाटी (असोम) में आयोजित राष्ट्रीय खेलों में सायना ने शानदार जीत हासिल की । सायना के अन्तर्राष्ट्रीय करियर की शुरूआत वर्ष 2003 में इण्डियन सैटेलाइट टूर्नामेण्ट से हुई, जिसमें वे अन्तिम 16 खिलाड़ियों में से एक रहीं । वर्ष 2004 में वे सिंगापुर में आयोजित चीयर्स एशियन सैटेलाइट टूर्नामेण्ट के क्वार्टर फाइनल दौर में पहुँची ।

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इसी वर्ष इण्डियन सैटेलाइट टूर्नामेण्ट जीतकर सायना ने अपना पहला अन्तर्राष्ट्रीय पदक जीता । उन्होंने वर्ष 2006 में बिंगो बोनांजा फिलीपीन्स ओपन टाइटल तथा इण्डिया सैटेलाइट टूर्नामेण्ट, 2006 जीतकर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी सशक्त पहचान कायम की ।

वर्ष 2007 में ऑल इंग्लैण्ड ओपन प्री क्वार्टर फाइनल राउण्ड में पहुँची, किन्तु यहाँ उन्हें विश्व की तीसरी वरीयता प्राप्त चीनी खिलाड़ी से शिकस्त झेलनी पड़ी । उनकी अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अन्य उपलब्धियों में मकाउ ओपन टूर्नामेण्ट (2007) तथा डच ओपन टूर्नामेण्ट (2007) के क्वार्टर फाइनल राउण्ड में पहुँचना शामिल है ।

वर्ष 2008 सायना के अन्तर्राष्ट्रीय करियर का टर्निंग प्वाइंट था । इस वर्ष उन्होंने ग्रां प्री गोल्ड टूर्नामेण्ट जीतकर लाइनिंग चाइना मास्टर्स सुपर सीरीज टूर्नामेण्ट में सेमीफाइनल दौर में पहुँचने में सफलता प्राप्त की ।  इसी वर्ष उन्होंने ओलम्पिक खेलों में अभूतपूर्व सफलता हासिल करते हुए भारतीय बैडमिण्टन के क्षेत्र में एक नया इतिहास रचा ।

वे विश्व की पाँचवीं वरीयता प्राप्त खिलाड़ी और टूर्नामेण्ट में चौथी वरीयता प्राप्त हाँगकाँग की बैग चेन को प्री क्वार्टर में हराकर ओलम्पिक के सेमीफाइनल में प्रवेश करने वाली प्रथम भारतीय बैडमिण्टन खिलाड़ी बनी ।  वर्ष 2009 में ही इण्डोनेशिया ओपन जीतकर वे बैडमिण्टन के सर्वाधिक प्रतिष्ठित खिताब सुपर सीरीज जीतने वाली न केवल प्रथम भारतीय महिला बनीं, बल्कि उन्होंने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी इस खेल में अपनी सशक्त पहचान बनाई ।

वर्ष 2010 में सायना ने उबेर कप फाइनल में अपने सभी मैच जीतकर महिला टीम का सफल नेतृत्व किया । वे ऑल इंग्लैण्ड सुपर श्रृंखला में पूर्व चैम्पियन टीना रासमुसेन को पराजित कर सेमीफाइनल में पहुँचने वाली प्रथम भारतीय महिला हैं ।

सायना ने योनेक्स सनराइज बैडमिण्टन एशिया चैम्पियन, 2010 के सेमीफाइनल में भी अपनी भागीदारी दर्ज कराई । उन्होंने इण्डिया ओपन ग्रां प्री गोल्ड प्रतिस्पर्द्धा, 2010 में मलेशिया के म्यू चू वांग को पराजित कर स्वर्णिम जीत हासिल की ।

वर्ष 2010 में उन्होंने चीनी खिलाड़ी त्सू यिंग ताई को हराकर सिंगापुर ओपन सीरीज खिताब जीता । सायना के करियर का सबसे शानदार पड़ाव 27 जून, 2010 को इण्डोनेशियन ओपन सुपर सीरीज में रहा, जिसमें उन्होंने सायका सातो को पराजित कर सीरीज अपने नाम की ।

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सायना की उपलब्धियों को देखते हुए उन्हें देश का सर्वोच्च खेल सम्मान ‘राजीव गाँधी खेल रत्न पुरस्कार’ (वर्ष 2009-10) प्रदान किया गया । उन्हें वर्ष 2009 में देश के चौथे सबसे बड़े नागरिक सम्मान ‘पद्मश्री’ से भी नवाजा गया था ।

वर्ष 2009 में ही उन्हें अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, उन्हें विश्व चैम्पियनशिप के लिए भारतीय बैडमिण्टन टीम का कप्तान नियुक्त किया गया है । लन्दन ओलम्पिक, 2012 में सायना ने इतिहास रचते हुए बैडमिण्टन की महिला एकल स्पर्द्धा में काँस्य पदक हासिल किया ।

बैडमिण्टन में ऐसा करने वाली वह भारत की पहली खिलाड़ी हैं । वर्ष 2012 में ही उन्होंने डेनमार्क और स्विस ओपन खिताब जीता । इससे पूर्व वर्ष 2011 में उन्होंने स्विस ओपन खिताब जीता ।  लन्दन ओलम्पिक, 2012 में सायना ने इतिहास रचते हुए बैडमिण्टन की महिला एकल स्पर्द्धा में काँस्य पदक हासिल किया । बैडमिण्टन में ऐसा करने वाली वह भारत की पहली खिलाड़ी हैं ।

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वर्ष 2012 में ही उन्होंने डेनमार्क और स्विस ओपन खिताब जीता ।  इससे पूर्व वर्ष 2011 में उन्होंने स्विस ओपन खिताब जीता । वर्ष 2014 में सायना ने उबेर कप (दिल्ली) में काँस्य पदक तथा इसी वर्ष फाइनल में स्पेन की कैरोलिना को हराकर 7,50,000 डॉलर की इनामी राशि की स्टार ऑस्ट्रेलियन सुपर सीरीज ट्रॉफी अपने नाम की ।

सायना की उपलब्धियों से न केवल उनके माता-पिता, बल्कि पूरा देश गौरवान्वित है । उनका सपना विश्व की नम्बर एक खिलाड़ी बनना है । उनकी लगन एवं परिश्रम को देखते हुए लगता है कि आने वाले वर्षों में उनका यह सपना अवश्य पूरा होगा ।

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