स्टीफन हॉकिंग पर निबंध | Essay on Stephen Hawking in Hindi language.

मन में दृढ़ संकल्प, प्रबल इच्छा शक्ति और दिल में हमेशा कुछ करने का जज्बा हो, तो पास आई मौत भी व्यक्ति के इरादे को डिगा नहीं सकती । ऐसा ही कर दिखाया ब्रिटेन के वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग ने, जो मात्र 21 वर्ष की अवस्था में ही मोटर न्यूरॉन नामक असाध्य बीमारी के शिकार हो गए थे, जिसमें धीरे-धीरे शरीर के सारे अंग शिथिल हो जाते हैं और अन्ततोगत्वा श्वास नली के अवरुद्ध होने के कारण व्यक्ति के जीवन का अन्त हो जाता है ।

इस जानलेवा बीमारी से ग्रस्त होने के पश्चात् चिकित्सकों ने कह रखा था कि अब हॉकिंग की जिन्दगी मुश्किल से दो वर्षों तक खिंच सकती है, किन्तु आशावादी विचारधारा से ओत-प्रोत, इच्छा शक्ति के धनी और मन में जीने की प्रबल उत्कण्ठा लिए स्टीफन हॉकिंग ने चिकित्सकों की बातों को सिरे से नकारते हुए कहा- ”मैं दो नहीं, बीस नहीं, पूरे 50 वर्षों तक जिन्दा रहूँगा ।”

और सचमुच बिल्कुल करीब आई मौत पर जीत दर्ज कर आज इस प्रतिभावान वैज्ञानिक ने 70 वर्ष की अवस्था पूर्ण कर ली है । वर्ष 2014 में अपने 70वें जन्मदिवस पर हॉकिंग ने कहा था- “मैं अभी जीना चाहता हूँ ।” स्टीफन हॉकिंग का पूरा नाम स्टीफन विलियम हॉकिंग है । इनका जन्म विश्व के महान् वैज्ञानिक गैलीलियों की मृत्यु के तीन सौ वर्ष बाद 8 जनवरी, 1942 को इंग्लैण्ड के ऑक्सफोर्ड शहर में हुआ ।

इनके पिता का नाम फ्रेंक और माता का नाम इसाबेल हॉकिंग था । हॉकिंग अपने पिता के द्वारा ग्रहण किए गए दत्तक पुत्र एवं अपनी दो बहनों से बड़े हैं । इनके पिता अपनी ही तरह इन्हें भी चिकित्सक बनाना चाहते थे, किन्तु इन्हें बचपन से ही गणित के सवाल हल करने में महारथ हासिल थी ।

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इनकी विलक्षण प्रतिभा से प्रभावित होकर लोग इन्हें ‘आइंस्टाइन’ कहकर सम्बोधित करते थे । हॉकिंग की प्रारम्भिक शिक्षा सेण्ट एलेबेंस स्कूल में और उसके बाद यूनिवर्सिटी कॉलेज, ऑक्सफोर्ड में हुई । वहाँ गणित विषय के अभान में उन्हें भौतिकी लेकर पढ़ाई करनी पड़ी ।

कैम्ब्रिज में शोध करने के दौरान भारतीय वैज्ञानिक ‘जयन्त नार्लीकर’ ने गणित से इनकी रुचि को ध्यान में रखते हुए इन्हें ‘कोस्मोलोजी’ विषय लेने की राय दी, जिसे इन्होंने सहर्ष स्वीकार लिया ।  उच्च शिक्षा प्राप्त करने के क्रम में 21 वर्ष की आयु में घर पर छुट्टियां मनाने के दौरान इन्हें एक अनजान बीमारी ने ग्रस्त कर लिया ।

मोटर न्यूरॉन नामक इस असाध्य रोग से जूझते हुए ही इन्होंने पी एच डी की मानद उपाधि प्राप्त की और जेन वाइल्ड के साथ प्रणय सूत्र में बँध गए ।  अब तक इनके शरीर का दायाँ हिस्सा निष्क्रिय हो चुका था । पी एच डी पूर्ण करने के पश्चात् धीरे-धीरे वैज्ञानिक के रूप में इनकी ख्याति पूरे विश्व में फैल गई, किन्तु समय बीतने के साथ-साथ इनका बायाँ भाग भी निष्क्रिय होता गया और हारकर इन्हें व्हील-चेयर का सहारा लेना पड़ा ।

बावजूद इसके इन्होंने अपने मस्तिष्क को कभी बीमार न होने दिया और विज्ञान की सेवा में जी-जान से जुटे रहे । इनका मानना भी है- बुद्धिमत्ता बदलाव के अनुकूल बनने की क्षमता है और इन्होंने इस उक्ति को चरितार्थ करके दिखाया ।

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वर्ष 1973 में खगोल विज्ञान संस्थान छोड़ने के पश्चात् हॉकिंग ने वर्ष 1979 से 2009 तक गणित के प्राध्यापक के रूप में अपनी सेवा दी । हॉकिंग ने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के व्यवहारिक गणित और सैद्धान्तिक भौतिकी विभाग में भी सक्रिय भूमिका निभाई ।

हॉकिंग को तीन बच्चों के पिता बनने का गौरव भी प्राप्त हुआ । वर्ष 1995 में पत्नी जेन वाइल्ड से इनका तलाक हो जाने के पश्चात् इलियाना मेसन के साथ इनकी दूसरी शादी हुई, किन्तु वर्ष 2006 में मेसन ने भी इन्हें तलाक दे दिया ।

स्टीफन हॉकिंग ने वर्ष 2007 में अन्तरिक्ष की यात्रा भी की । इनके द्वारा लिखी गई पुस्तक- “A Brief History of Time” की पूरे विश्व में सराहना हुई । इन्होंने ब्लैक होल और बिग बैंग के सिद्धान्तों को स्पष्ट करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया ।

इनका कहना है- “मुझे सबसे अधिक प्रसन्नता इस बात से है कि मैंने ब्रह्माण्ड को समझने में अपनी भूमिका निभाई है । मुझे गर्व होता है जब लोग बड़ी संख्या में विज्ञान के क्षेत्रों में मेरे द्वारा किए गए कार्यों को जानना चाहते हैं ।”

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स्टीफन हॉकिंग ने आइजक न्यूटन के सृष्टि की रचना में ईश्वर की भूमिका के उस सिद्धान्त को नकार दिया है, जिसमें इन्होंने कहा था कि ब्रह्माण्ड की रचना स्वाभाविक ही शुरू नहीं हुई थी, बल्कि ईश्वर ने इसको गीत प्रदान की ।

अपनी पुस्तक ‘द ग्राण्ड डिजाइन’ में हॉकिंग ने लिखा है- ”नीले प्रकाश को जलाने हेतु और ब्रह्माण्ड को चलाने हेतु ईश्वर के स्पर्श की आवश्यकता नहीं है ।” ‘ए ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ टाइम’ नामक पुस्तक में भी इन्होंने सृष्टि की रचना में ईश्वर के हाथ को सिरे से नकार दिया है ।

स्टीफन हॉकिंग को विज्ञान जगत् में इनके अनोखे योगदान हेतु छोटे-बड़े 12 पुरस्कारों से नवाजा गया है, जिनमें अल्बर्ट आइंस्टाइन पुरस्कार (1978), वॉल्फ प्राइज (1988), प्रिंस ऑफ ऑस्टुरियस अवाडर्स (1989), कोप्ले मेडल (2006), प्रेसिडेंशियल मेडल ऑफ फ्रीडम (2009), विशिष्ट मूलभूत भौतिकी पुरस्कार (2012) प्रमुख हैं ।

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शारीरिक रूप से एकदम अक्षम होने के पश्चात् सिर्फ अपनी इच्छा शक्ति के बल पर इतनी महान उपलब्धियाँ हासिल करना स्टीफन हॉकिंग जैसे व्यक्ति के लिए ही सम्भव है ।  वे आज भी विज्ञान के क्षेत्र में दिन-रात अध्ययनरत हैं और दुनिया को नित नई-नई बातें बता रहे हैं । हाल के दिनों में हॉकिंग सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक पर भी आ गए हैं ।

अपनी पहली पोस्ट में ही इन्होंने लोगों को जिज्ञासु बनने की सलाह देते हुए लिखा है- ”एक-दूसरे के साथ सम्बन्ध आज असीमित विस्तार ले चुके हैं, जब मेरे पास यह मौका है तो मैं आपके साथ अपनी यात्रा को साझा करने के लिए उत्सुक हूँ । जिज्ञासु बने रहें मुझे मालूम है कि मैं हमेशा जिज्ञासु बना रहूँगा ।”  ऐसे प्रतिभाशाली व प्रेरणादायक व्यक्ति के लिए हम यही दुआ करते हैं कि वे हमेशा इसी तरह नित नई-नई खोजों से सम्पूर्ण मानव जगत् को समृद्ध करते रहें ।

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