List of popular essays for Class 8 students in Hindi Language! 

Contents:

  1. व्यायाम का महत्त्व पर निबन्ध | Essay on Importance of Exercise in Hindi

  2. ग्रीष्म ऋतु की दोपहर पर निबन्ध | Essay on An Afternoon in Summer in Hindi

  3. खेल-कूद का महत्त्व पर निबन्ध | Essay on Importance of Games and Sports in Hindi

  4. एक क्रिकेट मैच पर निबन्ध | Essay on A Cricket Match in Hindi

  5. लोकल ट्रेन में यात्रा पर निबन्ध |Essay on Journey in a Local Train in Hindi

  6. पहली बारिश का अनुभव पर निबन्ध | Essay on Feeling of the First Rainfall in Hindi

  7. शीत ऋतु (जाड़े की ऋतु) पर निबन्ध | Essay on Winter Season in Hindi

  8. ADVERTISEMENTS:

    शीत ऋतु की एक रात पर निबन्ध | Essay on A Winter Night in Hindi

  9. पेड़-पौधों का महत्त्व पर निबन्ध | Essay on Importance of Plants and Trees in Hindi

  10. मेरी पहली रेल यात्रा पर निबन्ध | Essay on My First Train Journey in Hindi


Hindi Nibandh for Class 8 (Essay) # 1

व्यायाम का महत्त्व पर निबन्ध | Essay on Importance of Exercise in Hindi

संसार के समस्त सुखों की प्राप्ति अच्छे स्वास्थ्य पर ही निर्भर है । साथ ही हमारा स्वास्थ्य अच्छा हो इसके लिए नियमित व्यायाम आवश्यक है । व्यायाम से शरीर सुगठित बनता है और मन प्रफुल्लित हो उठता है ।

व्यायाम शारीरिक एवं मानसिक ग्रंथियों के विसर्जन का एक बहुत उपयोगी माध्यम है । इस धरती पर विभिन्न जीव-जंतुओं का निवास है । सभी जीव-जंतु गति कर सकते हैं । यह गतिशीलता ही उन्हें स्वस्थ रखती है उनके जीवन को विकासमान बनाती है । व्यायाम इस गतिशीलता को बनाए रखने का एक साधन है ।

विभिन्न प्रकार के व्यायाम से हमारा रक्त संचार बढ़ता है, हमारी पेशियाँ मजबूत बनती हैं । साँस की गति बढ़ने से शरीर को अधिक ऑक्सीजन मिलता है रक्त शुद्ध हो जाता है । विभिन्न अंगों की निष्कियता दूर होती है तथा शरीर के अंदर एक नई स्फुर्ति एवं ताजगी आ जाती है ।

व्यायाम कई प्रकार के हैं । सुबह या शाम को तेज गति से भ्रमण करना भी एक अच्छा व्यायाम है । इस व्यायाम को सभी आयु वर्ग के व्यक्ति कर सकते हैं । बच्चे एवं युवा वर्ग के लोग विभिन्न प्रकार की खेल-कूद गतिविधियों में भाग लेकर अपना व्यायाम कर सकते हैं ।

साइक्लिंग, तैराकी, घुड़सवारी, दौड़ तथा व्यायामशाला में विभिन्न उपकरणों की सहायता से व्यायाम करने वाले अपने स्वास्थ्य को नच्छी दशा में वनाए रख सकते हैं । पुलिस तथा सेना के जवानों की नियमित कवायद होती है ताकि वे चुस्त एवं फुर्तीले बने रहें ।

ADVERTISEMENTS:

जुड़ो, कराटे आदि भी व्यायाम करने के ही ढंग हैं । विद्यालयों में बच्चों से पी.टी. कराई जाती हे ताकि उनका शारीरिक विकास हो सके । एथलेटिक्स की सभी खेल स्पर्द्धाण्यूँ व्यायाम के उद्देश्य से परिपूर्ण होती हैं । यदि शरीर अच्छा है तो संसार के सभी सुख और समस्त वैभव हमारे काम के हैं ।

‘शरीर माद्यै खलु धर्मसाधनम्’ जिससे यह ज्ञात होता है कि शरीर रूपी साधन की अवहेलना नहीं की जानी चाहिए । यदि हम दिन-रात बैठे-बैठे ही अपना कार्य करते हैं तो इसका कुप्रभाव हमारे स्वास्थ्य पर अवश्य पड़ेगा । मोटापा उच्च रक्तचाप मधुमेह शारीरिक दुर्बलता मानसिक शिथिलता पेट संबंधी बीमारियाँ शीघ्र थकावट आदि व्यायाम से दूर रहने के परिणाम हो सकते हैं ।

व्यायाम का महत्त्व न समझने वाले अनेक प्रकार की बीमारियों से युक्त हो सकते हैं । अत: हमारी काया निरोगी हो इसके लिए व्यायाम बहुत जरूरी है । आजकल युवाओं तथा बच्चों में व्यायाम के प्रति दिलचस्पी बढ़ रही है । पहले अखाड़े में कुश्ती खेलकर व्यायाम किया जाता था जिसमें ग्रामीण युवा बड़ी संख्या में भाग लेते थे ।

आजकल इन अखाड़ों का स्थान जिमखाने ने ले लिया है । यहाँ व्यायाम करने के अनेक साधन उपलब्ध होते हैं । इससे भी एक कदम आगे बढ़कर लोग योगासन की तरफ अधिक प्रवृत्त हुए हैं जिससे व्यक्ति का शरीर तो बलिष्ठ बनता ही है साथ-साथ उसका आत्मिक विकास भी होता है । चाहे किसी भी प्रकार का व्यायाम किया जाए इसमें नियमितता अवश्य होनी चाहिए । अनियमित व्यायाम से कुछ खास लाभ नहीं मिल पाता है ।


Hindi Nibandh for Class 8 (Essay) # 2

ग्रीष्म ऋतु की दोपहर पर निबन्ध | Essay on An Afternoon in Summer in Hindi

ADVERTISEMENTS:

ग्रीष्म ऋतु की दोपहर सूर्यदेव के प्रचंड रूप का प्रतीक है । प्राणियों का कंठ सूखा जाता है पेड़-पौधे झुलस जाते हैं । आलस्य थकावट और उदासीनता सर्वत्र दिखाई देती है । मच्छर, मक्खी और क्षुद्र जीव-जंतु भी किसी कोने में किसी शीतल स्थान में आश्रय ग्रहण करने लगते हैं ।

ग्रीष्म ऋतु वैसे ही कष्टदायक है । उस पर ग्रीष्म की दुपहरी का तो कहना ही क्या ! भगवान् भास्कर आकाश के मध्य में स्थित होकर अपनी तीक्षा किरणें रूपी बाणों से सबको आहत कर देते हैं । धरती की तपन बढ़ रही है उसमें दरारें आ गई हैं । तारकोल की सड़कें पिघल रही हैं ।

धरती का जल पाताल की गहराई तक पहुँच गया है । घर के फर्श भी गरम हो गए हैं । खिड़की से गरम वायु का आता झोंका त्वचा को झुलसा रहा है । गरम हवा लू का रूप धारण कर न जाने कब किसे अपनी चपेट में ले ले ! छाया को भी छाया की आवश्यकता है ।

ADVERTISEMENTS:

कवि बिहारीलाल कहते हैं:

“बैठि रही अति सघन बन पैठि सदन तन माँह । देखि दुपहरी जेठ की छाँहौं चाहति छाँह ।।”

मानव और पशु-पक्षी तो व्याकुल हैं ही, छाया भी आहत और दु:खी है । छाया को भी आश्रय चाहिए । पथिक भी जब जेठ की दुपहरी में पेड़ की छाया में कुछ देर विश्राम करते हैं तो उन्हें पूरा आराम नहीं मिल पाता । गरमी की दोपहर में एक ही माँग है – ठंडे पानी की ।

जल जितना शीतल हो उतना अच्छा । पानी कितना भी पीया जाय, संतुष्टि नहीं होती । सारा पानी पसीने के रूप में निकल जाता है । ऐसे में मजदूरों की क्या हालत होती होगी वर्णन नहीं किया जा सकता । पर उन्हें तो काम करना ही है । कच्ची ईंटें बनानी हैं भवन निर्माण करना है, रिकशा चलाना है आदि-आदि कितने ही काम करने हैं ।

ADVERTISEMENTS:

पसीने से लथपथ प्यास से व्याकुल मजदूर पत्थर तोड़ ही रहा है । पेट की ज्वाला उसे दुपहरी में भी आराम नहीं करने दे रही । गरमी की दोपहर को तो झेलना ही है । पर कैसे बिजली के पंखे भी तो गरम हवा ही छोड़ रहे हैं । फिर भी पंखे से पसीने से रक्षा तो हो ही जाती है । शहरों के लोगों ने अपने घर कूलर लगा रखे हैं ।

अमीरों के घर पर ए.सी. लगे हुए हैं । महानगरों की भीषण गरमी से छुटकारा पाने के लिए परिवार सहित लोग पर्वतीय स्थलों में चले जाते हैं । मगर समर्थ नागरिक ही ऐसा कर सकते हैं । आम नागरिकों के लिए तो बरफू ही मिल जाय तो बहुत है ।

खीरा, ककड़ी, पुदीने का शरबत बेल का शरबत आदि ग्रीष्मकालीन दुपहरी के लिए किसी वरदान से कम नहीं । दोपहर की गरमी से बचने के लिए आम नागरिक अपना अधिकांश कार्य प्रात: या सायं ही निबटाते हैं । शिक्षा संस्थानों में अवकाश घोषित कर दिया जाता है ।

बहुत से कार्यालय भी सुबह से लेकर मध्याह्न तक खुले रहते हैं । यदि दोपहर में निकलना ही पड़े तो छाता लेकर या सिर पर तौलिया, टोपी या पगड़ी बाँधकर निकलते हैं । ग्रीष्म की दुपहरी कई दृष्टि से लाभप्रद भी है । खेतों में लगी फसलें पकती हैं ।

ककड़ी, खीरा, खरबूजा, तरबूज, आडू, आलूबुखारे आदि के अधिक उत्पादन के लिए दोपहर की कड़ी धूप लाभप्रद है । पेड़ों में लगे आमों को भी पकने का अवसर मिलता है । दोपहर की गरमी पर्वतों के हिम को पिघलाकर बहुत सी नदियों को सदानीरा बनाती है ।

समुद्र का जल वाष्पित होकर ऊपर उठता है जो कालांतर में मानसून का रूप धारण कर लेता है । मच्छरों एवं हानिकारक कीटाणुओं का सफाया हो जाता है । ग्रीष्म की दुपहरी प्रकृति का ही एक रूप है । हमें उसके इस भीषण रूप का भी स्वागत करना चाहिए ।


Hindi Nibandh for Class 8 (Essay) # 3

खेल-कूद का महत्त्व पर निबन्ध | Essay on Importance of Games and Sports in Hindi

हमारे जीवन में खेल-कूद का अत्यधिक महत्त्व है । इससे हमारा शारीरिक एवं मानसिक विकास होता है । यही कारण है कि सभी विद्यालयों में पढ़ाई के साथ-साथ खेल-कूद के कार्यक्रमों को भी प्रधानता दी जाती है ।

वास्तव में मूल-कूद के बिना प्राप्त शिक्षा अधूरी ही है । हम लोग विभिन्न प्रकार के खेल खेलते हैं । कुछ खेल घर में या किसी कक्ष में खेले जा सकते हैं । शतरंज, वीडियो गेम्स, लूडो, कैरम आदि खेलों से हमारा मनोरंजन तो अवश्य होता है परंतु उचित व्यायाम नहीं हो पाता ।

अत: हमें इनडोर गेम्स के साथ-साथ कुछ आउटडोर गेम्स भी अवश्य खेलने चाहिए । क्रिकेट, हॉकी, फुटबाल, बॉलीबाल, बैडमिंटन, लॉन टेनिस, कबट्टी आदि अनेक ऐसे खेल हैं जिनसे भरपूर व्यायाम होता है । मैदानों में खेले जाने वाले सभी खेल हमारे भीतर नया उत्साह एवं उमंग भर देते हैं ।

शरीर का रक्त-संचार तेज होता है जिससे हमें स्कूर्ति का अनुभव होता है । कई टीम आधारित खेल बच्चों तथा युवाओं में ‘समूह भावना’ या ‘टीम स्पीरिट’ का विकास करते हैं । इससे हमें पता चलता है कि यदि सामूहिक प्रयास किए जाएँ तो किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त हो सकती है ।

यदि मिलकर कोशिश की जाए तो राष्ट्र की उन्नति का मार्ग प्रशस्त हो जाता है । खेल-कूद न केवल टीम भावना जगाते हैं अपितु आपसी प्रेम और भाईचारा भी बढ़ाते हैं । विभिन्न राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं के माध्यम से हम अलग-अलग क्षेत्रों एवं देशों के व्यक्तियों से परिचय प्राप्त करते हैं । हमारा संपर्क बढ़ता है हम नई-नई बातों की जानकारी प्राप्त करते हैं ।

खेल-कूद के बिना जीवन जड़ हो जाता है । गतिशीलता के अभाव में तरह-तरह की छटाएं एवं ग्रंथियाँ जन्म लेती हैं । व्यक्ति की प्रतिभा का समुचित विकास नहीं हो पाता । हम वीरता साहस धैर्य सहयोग अनुशासन जैसे जीवन-मूल्यों से अपरिचित रह जाते हैं ।

खेल के विभिन्न नियमों के पालन के माध्यम से बच्चों को आरंभ से ही अनुशासन की शिक्षा मिलती रहती है । निशानेबाजी, घूँसेबाजी, साइक्लिंग, अश्वारोहण तथा एथलेटिक्स के खेलों के माध्यम से हमारे अंदर साहस वीरता तथा तन्मयता आती है ।

हम अपनी शक्ति का विकास कर उसका उचित उपयोग करना सीखते हैं । खेल-कूद एक ऐसा-क्षेत्र बनता जा रहा है जहाँ आजकल धन और यश दोनों का मिलन है । खिलाड़ी न केवल अपना अपितु अपने देश और समाज का भी नाम रोशन करते हैं ।

सचिन तेंदुलकर, कपिलदेव, ध्यानचंद, विश्वनाथन आनंद, सानिया मिर्जा, महेश भूपति जैसे भारतीय खिलाड़ियों ने दुनिया में भारत का नाम ऊँचा किया है । खेल हमारे आत्मविश्वास को बढ़ाने में सहायक होते हैं । बच्चा खेल-खेल में ही बहुत कुछ सीख लेता है । खेल-कूद हमारे सर्वांगीण विकास का एक मजबूत आधार स्तंभ है ।


Hindi Nibandh for Class 8 (Essay) # 4

एक क्रिकेट मैच पर निबन्ध | Essay on A Cricket Match in Hindi

पिछले माह मैं भारत और पाकिस्तान के मध्य कोलकाता के ईडन गार्डन में हो रहे तृतीय एकदिवसीय मैच देखने गया । बड़ा ही अविस्मरणीय दृश्य था । खचाखच भरे स्टेडियम में दर्शकों का उत्साह देखते ही बनता था ।

स्टेडियम में लगभग नब्बे हजार दर्शक थे । दिन-रात का मैच अपराह्न दो बजकर पंद्रह मिनट पर आरंभ हुआ । टॉस भारतीय कप्तान राहुल द्रविड ने जीता और पहले बल्लेबाजी करने का निश्चय किया । मैच का आरंभ हुआ ।

पारी की शुरुआत सचिन तेंदुलकर और उपकप्तान वीरेंद्र सहवाग ने की । सहवाग ने पहली ही गेंद पर चौका जड़कर अपने मंसूबे साफ कर दिए । सहवाग और तेंदुलकर ने मिलकर पारी की अच्छी शुरुआत की और भारत के स्कोर को बिना कोई विकेट खोए पचपन तक पहुँचा दिया ।

परंतु शोएब अख्तर की एक खतरनाक गेंद को उठाकर मारने के चक्कर में सहवाग लॉग ऑन बाउंड्री पर लपक लिए गए । इसके बाद सचिन भी पैंतीस रन बनाकर रन आउट हो गए । बाद में राहुल द्रविड़ और महेंद्र सिंह धोनी ने अच्छी साझेदारी की और भारतीय स्कोर को दो विकेट पर एक सौ पचहत्तर तक पहुँचा दिया ।

धोनी शानदार अर्द्धशतक बनाकर जमे हुए थे परंतु राहुल स्लिप पर लपक लिए गए । धोनी भी इकसठ रन बनाकर क्लीन बोल्ड हो गए । आगामी बल्लेबाजों युवराज और इरफान पठान ने भी कुछ अच्छे शॉट लगाए । रही-सही कसर हरभजन सिंह ने एक ही ओवर में दो छक्के और दो चौके लगाकर पूरी कर दी ।

भारत की पारी पचास ओवर समाप्त होने पर सात विकेट पर 305 रन तक पहुँच गई । इस प्रकार भारत ने एक विशाल स्कोर खड़ा कर दिया था । जब पाकिस्तान की पारी आरंभ हुई तो भारत की ओर से जहीर खान और अगरकर ने गेंदबाजी की कमान सँभाली ।

जहीर खान को अपने दूसरे ओवर में पहली सफलता मिली तो भारतीय खिलाड़ी उछल पड़े । परंतु शाहिद अफरीदी और युसुफ योहाना ने पाकिस्तानी बल्लेबाजी को मजबूत आधार प्रदान किया । अफरीदी ने सत्तर रन बनाए जिसमें पाँच चौके और छह छक्के थे ।

ऐसा लग रहा था कि पाकिस्तानी टीम मजबूत स्थिति में पहुँच गई है परंतु अगरकर ने दो लगातार ओवरों में दो विकेट चटकाकर सनसनी फैला दी । पाकिस्तानी टीम के कप्तान इंजमाम कुछ खास न कर सके और मात्र नौ रन बनाकर पैवेलियन लौट गए ।

इसके बाद हरभजन की घूमती गेंदों ने कमाल दिखाना शुरू किया । पाकिस्तान की पूरी टीम चौवालीस ओवर में दो सौ छप्पन रन बनाकर पैवेलियन लौट गई । सभी भारतीय खिलाड़ियों के चेहरों पर जीत की खुशी स्पष्ट दिखाई दे रही थी ।

दर्शकों का उत्साह भी चरम सीमा पर था । दर्शक मैच के दौरान तिरंगा लहराकर तथा तालियाँ बजाकर अपनी सार्थक भूमिका निभा रहे थे । मैन ऑफ द मैच का पुरस्कार हरभजन सिंह को प्रदान किया गया जिन्होंने तीन विकेट लिए थे तथा तीस रन भी बनाए थे ।

यह पुरस्कार पं. बंगाल के मुख्यमंत्री के करकमलों द्वारा अन्य विशिष्ट अतिथियों की उपस्थिति में प्रदान किया गया । भारतीय कप्तान ने इस जीत का श्रेय अपनी टीम के सभी खिलाड़ियों को दिया । मैच समाप्त होने पर हम लोग खुशी-खुशी घर लौट आए । यह मैच मुझे लंबे समय तक याद रहेगा ।


Hindi Nibandh for Class 8 (Essay) # 5

लोकल ट्रेन में यात्रा पर निबन्ध |Essay on Journey in a Local Train in Hindi

भारत के नगरीय क्षेत्रों में लोकल ट्रेनों के चलने से स्थानीय निवासियों को काम-काज के स्थानों तक आने-जाने में बहुत मदद मिलती है । लोकल ट्रेन देश के प्राय: सभी भागों में स्थानीय यात्रियों की सुविधा के लिए चलाए जाते हैं ।

इनका किराया प्राय: कम होता है जिससे मध्यवर्गीय तथा निर्धन वर्ग के यात्रियों को राहत मिलती है । जिन क्षेत्रों से होकर रेलमार्ग गुजरता है वहाँ के लोग स्थानीय रेल सेवाओं का भरपूर लाभ उठाते हैं ।परंतु लोकल ट्रेन की यात्रा हमेशा सुखदायी नहीं होती है ।

खासकर सुबह और शाम के समय इनमें अत्यधिक भीड़ होती है । यात्रियों से खचाखच भरी बोगियों में अच्छी तरह पैर रखने की जगह नहीं होती । विभिन्न कार्यालयों के कर्मचारी छात्र-छात्राएँ दूधवाले फेरीवाले सब्जीवाले आदि विभिन्न वर्गों के व्यक्ति अपने-अपने गंतव्य तक जाने के लिए सुबह के समय इन लोकल ट्रेनों की यात्रा करते हैं ।

इन दैनिक यात्रियों को लोकल ट्रेन में चढ़ने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ता है । ऐसी हालत में वृद्धों, महिलाओं और बच्चों के लिए इनमें यात्रा करना अत्यंत कठिन होता है । मुझे लोकल टेरन से यात्रा करने के कई अवसर प्राप्त हुए हैं । परंतु एक बार मुझे अत्यंत कष्टकारक अनुभव से गुजरना पड़ा ।

ट्रेन पर किसी तरह चढ़ तो गया परंतु कई मिनटों तक दरवाजे से ही लटकी हुई दशा में रहना पड़ा । आगे खड़े यात्री सरकने के लिए तैयार ही नहीं थे । किसी तरह बोगी में दाखिल हो गया परंतु एक पैर ही बोगी पर टिका था । यात्रियों का दवाब सभी ओर से था ।

कुछ यात्री मेरे पैर पर ही अपना पैर रखकर आगे बढ़ जाते थे । ऊपर से भयंकर गरमी और फव्वारे की तरह शरीर से छूटता पसीना । हमारी ट्रेन प्रत्येक पाँच-दस मिनट चलकर फिर से रुक जाती थी । छोटे से छोटे हाल एवं स्टेशन पर भी दस मिनट तक रुककर चलना इस टेरन की नियति बन गई थी ।

ट्रेन जब भी रुकती बोगी के अंदर बाहरी हवा का प्रवेश कम हो जाता था । सभी यात्रियों का गरमी के कारण बुरा हाल था । टेरन की रफ्तार अत्यंत धीमी थी । किसी तरह मैं डब्बे के मध्य भाग तक पहुँच गया । मुझे यहाँ तक पहुँचाने में पीछे खड़े यात्रियों के लगातार दिए जाने वाले धक्के का बहुत बड़ा योगदान था ।

परंतु यहाँ भी राहत नहीं थी । मूँगफली, चाय, पान-बीड़ी-सिगरेट, मसालेदार चने, ककड़ी, खीरा आदि बेचने वाले अपनी आक्रामक शैली में जब आगे बढ़ते तो खड़े हुए यात्रियों को हर बार अपनी पोजीशन बदलनी पड़ती थी । इस भयंकर गरमी में खीरा, ककड़ी तथा शीतल पेय खरीदने वाले यात्रियों की संख्या अधिक थी ।

इस यात्रा के दौरान मैंने कई बार खाली हुई सीट पर बैठने की चेष्टा की परंतु असफल ही रहा । मेरी तरह कई अन्य इस सीट के दावेदार थे । कई बार मुझे ‘लेडीज फर्स्ट’ के सिद्धांत के आधार पर खाली हुई सीट पर बैठने के स्वाभाविक अधिकार से वंचित होना पड़ा ।

कुछ दूरी पर खड़ा एक वृद्ध बार-बार बगल की सीट पर बैठे यात्रियों की ओर करुण नेत्रों से देख रहा था । परंतु उसके नेत्रों की भाषा समझकर किसी ने भी उसे नहीं बिठाया । कुछ यात्री सीट हथियाने की चेष्टा में बीच-बीच में आपस में लड़ भी बैठते थे ।

मैंने ‘संतोषम् परमं सुखम्’ वाले नीति वाक्य को ध्यान में रखकर खड़े रहकर ही लोकल टेरन की यह यात्रा पूरी करने का मन ही मन संकल्प ले लिया । लगभग अस्सी किलोमीटर की दूरी चार घंटे में तय करने के बाद ट्रेन ने मुझे मेरे गंतव्य स्टेशन तक पहुँचा दिया । इक्कीसवीं सदी की इस तेज रफ्तार ट्रेन को धन्यवाद देकर मैं धक्का-मुक्की करते हुए ट्रेन से उतर गया ।


Hindi Nibandh for Class 8 (Essay) # 6

पहली बारिश का अनुभव पर निबन्ध | Essay on Feeling of the First Rainfall in Hindi

जून का आखिरी सप्ताह था । गरमी की छुट्टियाँ अब अपने अंतिम चरण में थीं । सूर्यदेव का कहर जारी था । लंबे पहाड़ से दिन काटे नहीं कट रहे थे । इस पर विद्युत विभाग की अनुकंपा थी कि बार-बार बिजली गुल हो रही थी ।

फ्रिज में रखा पानी ठंडा होने का नाम ही नहीं ले रहा था क्योंकि बिजली उससे रूठी हुई थी । बरफ बेचने वालों की बन आई थी । घरवालों के आदेश पर मैं साइकिल पर सवार होकर डाकखाने की ओर चल पड़ा । दिन के ग्यारह बजे थे । कोलतार की सड़कें आग उगल रही थीं । शरीर से पसीने छूट रहे थे ।

जैसे-तैसे डाकघर पहुँचा । अभी मैं डाकखाने में ही था कि अचानक आँधी चलने लगी । धूल भरी हवाएँ आसमान में कुछ हल्के पदार्थों को भी उड़ाने लगीं । आसमान में अचानक बादल घिर आए । थोड़ी देर में पवन शांत हो गया तो मैं पोस्टकार्ड और लिफाफा जेब में रखकर साइकिल पर वापस घर लौटने के लिए सवार हो गया ।

अभी मैं बाजार में ही था कि मोटी-मोटी बूँदें तीव्र गति से बरसने लगीं । इस सुहाने मौसम ने मेरा मन आह्वादित कर दिया । यह मौसम की पहली बारिश थी । मैं भीगने लगा । वर्षा के थपेड़े सहते हुए साइकिल चलाना कठिन हो रहा था । मेरे कपड़े पूरी तरह भीग चुके थे । मैंने साइकिल रोक दी । एक दुकान के सामने साइकिल खड़ी कर मैंने दुकान के द्वार पर शरण ली ।

सड़कों पर भीड़ कम हो गई थी फिर भी कुछ लोग पहली बारिश का आनंद उठाते हुए भीगते चल रहे थे । सड़क पर पानी तेजी से बहने लगा । जब बौछारें कुछ कम हुईं तो मैंने साइकिल फिर से सँभाल ली । वहाँ रुकने से भी अधिक लाभ न था क्योंकि मेरे कपड़े पूरी तरह भीग रहे थे । डाकखाने से खरीदा हुआ पत्र भी लगभग तर हो चुका था ।

मैंने साइकिल की गति थोड़ी बढ़ा दी । मैं शीघ्र घर पहुँचकर कपड़े बदलना चाहता था । भयंकर गरमी की स्थिति से अचानक सरदी की स्थिति में आने वाले खतरे का भी मुझे आभास था । मुख्य सड़क से गली में अपनी साइकिल को मोड़ा तो देखा गली में अचानक काफी पानी भर आया है । जैसे-तैसे घर पहुँचा । कपड़े बदले । कपड़ों व पत्रों को सुखाने के लिए टेबल पर फैला दिया ।

बारिश अभी भी हो रही थी । कभी तेज तो कभी धीमी । मेढक अचानक टर्राने लगे । छत से पानी की मोटी धार गिर रही थी जिसने आँगन में गट्टा बना दिया था । मेरे छोटे भाई ने झटपट कागज की नाव बना ली और उसे पानी में छोड़ दिया । सब कुछ जो अभी सूखा-सूखा सा था अचानक गीला हो गया ।

मैंने सोचा अब बिजली रहे या जाए कोई परवाह नहीं पानी और मौसम तो तत्काल ठडा हो ही जाएगा । वर्षा थम गई । शीघ्र ही आसमान साफ हो गया परंतु कुछ बादल अभी भी सूरज से अठखेलियाँ खेल रहे थे । मेरे आँगन में अंगूर की लताएँ और कुछ पौधे थे । सब इस पहली वर्षा में नहाकर हरे-भरे प्रतीत हो रहे थे ।

आँगन के एक कोने में छोटे-छोटे मेढक उछल-कूद कर रहे थे । थोड़ी देर में मेरे कुछ मित्र आ गए । उन्होंने फुटबाल खेलने का आग्रह किया तो मैं झट तैयार हो गया । सुहावने मौसम में फुटबाल खेलना बहुत अच्छा लग रहा था । इस पहली बारिश के बाद सभी राहत की साँस ले रहे थे ।


Hindi Nibandh for Class 8 (Essay) # 7

शीत ऋतु (जाड़े की ऋतु) पर निबन्ध | Essay on Winter Season in Hindi

उष्ण कटिबंधीय जलवायु वाले देश भारत में शीत ऋतु की अलग पहचान है । तापमान में गिरावट सर्द हवा और बरफीला मौसम इस ऋतु को अन्य ऋतुओं से अलग कर देता है ।

कुहरा कुहासा हिमपात और कंपित कर देने वाली सरदी की इस ऋतु में दिन की लंबाई काफी घट जाती है । शीत ऋतु में आनंदित होने से कई अवसर हैं । गरम भोजन का स्वाद खुली मंद धूप का आनंद, वस्त्र-परिधानों को धारण करने का सुख, बरफ के खेलों का लुत्फ और गरम जल से स्नान करने का आनंद उठाने के लिए यह ऋतु उत्तम ऋतु है ।

वर्षा की किचकिच अब नहीं । खलिहानों में खरीफ की पकी फसल को देखकर किसान खुश हो जाते हैं । काले मेघों की जगह रूई से सफेद मेघों और सूरज के बीच लुका-छिपी का खेल मन को भाता है । सरिता का जल इस ऋतु में निर्मल हो जाता है ।

मासों में प्रसिद्ध मास मार्गशीर्ष भी इसी ऋतु में आता है । फिर अत्यधिक सरदी वाला मास पौष और माघ आता है । फालुन में जाड़े का प्रकोप शांत होने लगता है । जाड़े की ऋतु में आग बड़ी प्रिय होती है । सूरज जब आग बरसाना कम कर देता है तो चूल्हे की आग का महत्त्व बढ़ जाता है ।

लोग सुबह-शाम अग्नि के पास बैठना पसंद करते हैं । लकड़ी, घास-फूस, पुआल, उपला आदि जलाकर गाँवों और शहरों में आग तापने वालों की कमी नहीं होती । आँख में धुआँ लगने के बावजूद हम लोग अग्नि के पास ही रहते हैं । आजकल बिजली है, हीटर है, वातानुकूलित यत्र भी हैं ।

रजाई, कंबल, ऊनी कपड़े, शाल कोट आदि निकाल लिए जाते हैं । फिर भी शीतलहरी कुछ वृद्धों एवं बीमारों के लिए यमदूत बन कर आ ही जाती है । सरदी में पर्वतीय क्षेत्रों की ठंड और शोभा बढ़ जाती है । पहले हिमपात की प्रतीक्षा में पर्यटक यहाँ इकट्ठा होने लगते हैं । बरफू पर फिसलने वालों की होड़ लग जाती है ।

ऊँची-नीची धरती पर पहाड़ों पर बरफू की चादर बिछ जाती है । तापमान शून्य से भी कई डिग्री नीचे चला जाता है । कई प्रसिद्ध मार्ग बरफ के जमाव के कारण बद हो जाते हैं । मैदानी क्षेत्रों में भी जाड़े का कहर कम नहीं होता । कोहरा छाता है तो दिन में भी अँधेरा सा हो जाता है ।

सूर्यदेव निस्तेज से हो जाते हैं । वाहनों से होने वाली दुर्घटनाएँ बढ़ जाती हैं । रेलों, वायुयानों के चलने के समय में परिवर्तन करना पड़ता है । कई उड़ानें रह कर दी जाती हैं । फसलों पर पाला पड़ता है तो काफी क्षति होती है । जाड़े की ऋतु में शाम होते ही लोग घर में कंबल-चादर ओढ़कर बैठ जाते हैं ।

पक्षी अपने घोंसलों में दुबके रहते हैं । कुत्ते ठंड के मारे विचित्र आवाजें देने लगते हैं । घरेलू पशुओं को भी ठंड लगती है, उन्हें भी अपने आश्रय-स्थल में रहना अच्छा लगता है । शीत ऋतु आलस्य की ऋतु है । प्रात: जल्दी उठना कठिन लगता है ।

शीत ऋतु में खाने-पीने का बड़ा आनंद है । जो खाया सो पच गया बदहजमी नहीं हुई । गरम-गरम रोटी, पराँठा, आलू-गोभी की गरम सब्जी आदि कितने ही पदार्थ जीभ को भाते हैं । इस ऋतु में सेब, संतरा, केला, चीकू आदि फल तथा टमाटर, मटर, गोभी, चुकंदर, मूली, सेम, आलू आदि सब्जियाँ खूब होती हैं ।

काजू बादाम मूँगफली अखरोट आदि मेवे इसी ऋतु में होते हैं । गाजर का हलवा काजू की बरफी, रेवड़ी, तिल के लट्टू, गुड़ आदि का स्वाद बहुत भाता है । किसान खरीफ की फसल काटकर खेतों में रबी की फसलें लगाते हैं । गेहूँ गन्ना चना मूँग मटर अरहर आदि की फसल खेतों में लहलहा उठती है ।

शीत ऋतु स्वास्थ्यप्रद ऋतु है । आयुर्वेद में वर्णित है कि शीत ऋतु में शरीर में भोजन का संचय होता है रक्त-बल बढ़ता है । शीत ऋतु में संचित पदार्थों का उपयोग शरीर पूरे वर्ष करता है । दीपावली छठ और मकर संक्रांति के त्योहार जाड़े की ऋतु की खुशी को कई गुणा बढ़ा देते हैं ।


Hindi Nibandh for Class 8 (Essay) # 8

शीत ऋतु की एक रात पर निबन्ध | Essay on A Winter Night in Hindi

दिसंबर का आखिरी सप्ताह था । इन दिनों सरदी काफी बढ़ गई थी । कश्मीर में भारी हिमपात हुआ था इस कारण उत्तर भारत के मैदानी भागों में भी काफी सरदी हो गई थी ।

न्यूनतम तापमान दो डिग्री सेल्सियस के आस-पास आ गया था । मेरे शहर के लोग शाम होते ही अपने-अपने घरों में घुस जाते थे । इन्हीं दिनों की एक रात हम सबके लिए बहुत ही कष्टदायक थी । सुबह से ही हल्की बूँदा-बाँदी हो रही थी । सूर्यदेव के दर्शन दिन भर नहीं हुए ।

अपराह्न चार बजे बारिश तो थम गई परंतु हवा में ठंडक काफी बढ़ गई थी । नियमानुसार मैं मैदान में क्रिकेट खेलने चला गया । ठंड के कारण बैट ठीक से नहीं पकड़ा जा रहा था । खेल में भाग-दौड़ के कारण हल्की गरमाहट आई लेकिन वापस घर पहुँचते ही फिर से सरदी हावी होने लगी ।

रास्ते में भी इक्का-दुक्का लोग ही नजर आए थे । कई परिवारों के सदस्य मिलकर आग ताप रहे थें । सभी आपस में भीषण ठंड की चर्चा कर रहे थे । आज की स्थिति देखकर मैंने भी कुछ बेकार पड़ी लकड़ियाँ ढूँढ निकाली । इनमें फिाई का तेल डालकर अग्नि प्रज्वलित की ।

माँ-पिताजी दादा जी और हम भाई-बहन भी गोलाकार बैठकर आग तापने लगे । आखिर कब तक आग के निकट बैठा जा सकता था, हमने सभी खिड़कियों और दरवाजों को बंद कर दिया और चादर-कंबल ओढ़ लिया । रात्रि के आठ बज गए थे हमें भूख भी लग रही थी ।

माँ खाना पकाने चली गई हालांकि आज उनका मन नहीं हो रहा था कि इतने ठंडे पानी का स्पर्श किया जाए । माँ के हाथ का गरमागरम खाना खाकर हम लोग सोने चले गए । पिताजी खाना खाकर नित्य कुछ देर टहलते थे पर आज की ठंड ने उंनकी भी हिम्मत पस्त कर दी थी । वे भी चुपचाप सो गए ।

मैं सो तो गया था पर रजाई के अंदर भी हल्की कँपकँपी हो रही थी । ठंडे हाथ-पाँव गरम होने का नाम ही नहीं ले रहे थे । मेरा पालतू कुत्ता एक कोने में बैठा ठंड से कु-कू कर रहा था । बाहर के कुत्तों के रोने की आवाजें रह-रहकर आ रही थीं ।

मनुष्य और पशु-पक्षी सरदी से ठिठुर रहे थे । उसी समय पहरे वाले ने दरवाजे पर सावधान रहने की दस्तक दी । मैंने सोचा, यह चोरों से सावधान रहने कह रहा है या सरदी से ! क्या चोरों को सरदी नहीं लगती जो वे इस कंपकंपाने वाली सरदी में चोरी करने घर से निकलेंगे !

कुछ देर बाद नींद आ गई । सुबह उठा तो देखा सूर्यदेव प्रकट हो रहे हैं । मैं मुँह-हाथ धोकर अखबार के पन्ने पलटने लगा । उसकी हेडलाइन थी – ‘तापमान शून्य से नीचे पहुँचा पाँच वर्षो का सबसे ठंडा दिन ।’ जाड़े की यह रात मेरे लिए अविस्मरणीय थी ।


Hindi Nibandh for Class 8 (Essay) # 9

पेड़-पौधों का महत्त्व पर निबन्ध | Essay on Importance of Plants and Trees in Hindi

मानव का अस्तित्व पेड़-पौधों पर ही निर्भर है । इतना ही नहीं पृथ्वी पर स्थित सभी जीवों के जीवन का आधार ये वनस्पतियाँ ही हैं । यदि पृथ्वी पर पेड़-पौधे न होते तो यह जीवन-शून्य और उजाड़ स्थान होता ।

चारों ओर एक वीरानी सी छाई होती । चाहे कोई भी युग हो, मानव सभ्यता के विकास में पेडू-पौधों का पर्याप्त महत्त्व रहा है । एक समय था जब मानव जंगलों में निवास करता था । फल-मूल खाकर अपना गुजारा करता था । पेड़ों के तले विश्राम करता था ।

पेड़ों की शाखाओं पर सोता था । बाद में उसने पेड़ों की लकड़ी से चाक बनाकर मिट्टी के बरतनों का निर्माण किया । उसने लकड़ी की ही गाड़ी स्लेज बनाई । भारतीय ग्रामीण जीवन का सदियों तक आधार बनी बैलगाड़ी लकड़ी की ही बनी थी । भारत के चिकित्सकों ने पेड़-पौधों पर आधारित चिकित्सा-विधि आयुर्वेद की खोज की ।

पेड़-पौधों से प्राप्त घास-फूस और लकड़ी से हमने घर बनाए इन्हें जलाकर खाना पकाया । वनस्पतियाँ कदम-कदम पर मानव को सहयोग देती रहीं । यहाँ तक कि मृत्यु के बाद जिस चिता पर मनुष्यों को जलाया जाता रहा है वह भी लकड़ी की ही निर्मित होती है ।

पेड़-पौधे वायु को प्रदूषण मुक्त रखने में बड़ी भूमिका निभाते हैं । जिस प्रकार महादेव गरल पीकर पचा गए उसी तरह वनस्पतियाँ कार्बन डाइऑक्साइड रूपी गरल पीकर जीव-जंतुओं को ऑक्सीजन रूपी प्राणदायी गैस भेंट करते हैं ।

भीषण गरमी में जबकि भयानक लू चलती है, पेड़-पौधे वातावरण को ठंडा रखने में तथा अपने आश्रित को ठंडी छाँव देने में बहुत मदद करते हैं । तरह-तरह के स्वादिष्ट फल जड़ी-बूटियाँ इमारती लकड़ी कपास गोंद रबड़ आदि भेंट कर ये हमारे जीवन को सुखमय बनाते हैं ।

कई पेड़-पौधों के पत्ते भी उपयोग में लाए जाते हैं । आम और केले के पत्ते पूजा-पाठ में काम आते हैं । तेंदू के पत्ते से बीड़ी तैयार की जाती है । खजूर, नारियल,ताड़ आदि के पत्तों से टोकरी, चटाई आदि वस्तुएँ बनाई जाती हैं ।

सोफा, झाड़ू, कागज, दियासलाई आदि विभिन्न वस्तुओं के निर्माण में पेड़-पौधों का सर्वत्र उपयोग किया जाता है । पेड़-पौधों की उपयोगिता की गणना करना कठिन है । हमारा भोजन प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से वनस्पतियों पर ही निर्भर है ।

अधिकांश जीवों का भोजन वनस्पतियों से प्राप्त विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थ ही हैं । विभिन्न प्रकार के फूलों के पौधों से सुसज्जित फुलवारी किसे आकर्षित नहीं करती । वन्य जीवों, कीटों, भँवरों, तितलियों, पक्षियों तथा सरीसृप जीवों का निवास-स्थान पेड़-पौधों के इर्द-गिर्द ही है ।

कलात्मक पौधे गहवाटिका की शोभा बढ़ाते हैं । बसंत पेड़-पौधों के बिना ऋतुराज नहीं कहलाता तथा वनस्पतियों के बगैर मयूरों का नृत्य भी फीका-फीका सा लगता । कोयल की कुक तथा भौंरों का गुंजार हरितिमा रहित वातावरण में बिलकुल अशोभनीय लगता ।

पेड़ न केवल पृथ्वी को हरा-भरा रखते हैं अपितु मेघों को आकर्षित कर वर्षा भी कराते हैं । ये बाढ़ तथा सूखे की स्थितियों को रोकने में भी योगदान देते हैं । अपनी जड़ों की मिट्टी को सख्ती से पकड़कर ये उपरिमृदा के संरक्षण मिट्टी के कटाव तथा भूस्फलन को रोकने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं ।

पेड़-पौधों के महत्त्व को देखते हुए इनके संरक्षण का उपाय करना चाहिए । हमें इन्हें अधिक से अधिक संख्या में लगातार धरती के प्राकृतिक सौंदर्य को बनाए रखना चाहिए । वनों के निरंतर हो रहे कटाव को रोककर दुर्लभ होते जा रहे वन्य जीवों के प्राकृतिक आवास को सुरक्षित रखा जा सकता है ।

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इस समय जबकि दुनिया के लोग विकास की दौड़ में अपने पर्यावरण के प्रति उपेक्षा का भाव प्रदर्शित कर रहे हैं, पेड़-पौधों को लगाकर पृथ्वी के पर्यावरण को बचाने की जिम्मेदारी हम सब की है ।


Hindi Nibandh for Class 8 (Essay) # 10

मेरी पहली रेल यात्रा पर निबन्ध | Essay on My First Train Journey in Hindi

मेरी पहली रेल यात्रा एक छोटे से स्टेशन जसीडीह से आरंभ होकर स्टील नगरी टाटा तक हुई थी । हम अपने निवास स्थान से बस द्वारा स्टेशन पहुँचे । मेरे साथ मेरे बड़े भाई एवं भाभी थीं ।

मेरे भाई साहब टाटा स्टील कंपनी में एकाउंटेंट थे । मैं उनके साथ टाटा भ्रमण पर जा रहा था । स्टेशन के बाहर यात्रियों की अच्छी-खासी संख्या थी । ऑटो रिकशा वाले स्टेशन से बाहर निकल रहे यात्रियों को अपनी ऑटो में बैठने का आग्रह कर रहे थे ।

कुली वर्ग के लोग यात्रियों का सामान सिर पर उठाए स्टेशन से बाहर निकल रहे थे या अंदर आ रहे थे । स्टेशन से बाहर खाने-पीने की कई दुकानें लगी हुई थीं । भाई साहब ने टाटा-पटना एक्सप्रेस के स्टेशन पहुँचने के समय की जानकारी ली । अभी हमारी ट्रेन आने में एक घंटे का समय था ।

हम अपने सामान के साथ टिकट बिक्री केंद्र की ओर बढ़ गए । वहाँ लोग टिकट खिड़कियों पर पंक्तिबद्ध खड़े थे । मैं भी भाई साहब के निर्देश पर यथेष्ट रकम लेकर पंक्ति में खड़ा हो गया । दस मिनट में टिकट खरीदने का कार्यक्रम पूरा हो गया ।

हम लोग जलपान गृह में हल्का नाश्ता कर प्लेटफॉर्म पर चले गए । प्लेटफॉर्म पर कोई ट्रेन आकर रुकी थी इसलिए यहाँ यात्रियों के आने-जाने का ताँता लगा हुआ था । कुछ यात्रियों के पास इतना सामान था कि मानो वे पूरा घर ही उठाकर चले आए थे ।

प्लेटफॉर्म पर खाने-पीने की हलकी-फुलकी वस्तुएँ बिक रही थीं । कई टिकट संग्राहक काला कोट पहने यहाँ विचरण कर रहे थे । रेलवे सुरक्षा बल के जवान भी इधर-उधर चहलकदमी कर रहे थे । सफाई कर्मचारी प्लेटफॉर्म की सफाई कर रहे थे ।

शीघ्र ही हमारी ट्रेन के आने की सूचना प्रसारित कर दी गई । कुछ मिनटों में ट्रेन धड़धड़ाती हुई आ धमकी । हम लोग शीघ्रता से सामान्य श्रेणी के डब्बे में सवार हो गए । डब्बे में कुछ सीटें खाली थीं इसलिए हम लोग आराम से बैठ गए । टेरन चली और शीघ्र ही उसने रफ्तार पकड़ ली ।

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मेरी खुशी का ठिकाना न रहा । मैं खिड़की के किनारे बैठकर निरंतर ओझल होते जा रहे दृश्यों का आनंद उठाने लगा । हरे-भरे खेतों, पहाड़ियों, नदियों आदि के दृश्य मुझे अत्यंत आकर्षित कर रहे थे । पल-पल नवीन दृश्यों को देखते हवा के ठंडे झोंके खाते हुए रेल से यात्रा करने का यह अनुभव अत्यंत सुखदायी प्रतीत हो रहा था ।

अब मेरा ध्यान डब्बे के अंदर गया । टिकट संग्राहक बारी-बारी से यात्रियों से टिकट माँग रहे थे । हमने भी अपना टिकट दिखाया । एक यात्री बिना टिकट ही यात्रा कर रहा था । उसे जुर्माना भरना पड़ा । हम लोग आपस में हलकी-फुलकी बातचीत करते, मूँगफली, कच्चा चना, फल आदि खाते-पीते यात्रा का आनंद उठा रहे थे ।

डब्बे में यात्रियों का आना-जाना लगा ही रहता था । जिस स्टेशन पर टेरन रुकती तरह-तरह की वस्तुएँ बेचने वाले प्लेटफार्म से ही यात्रियों को आकर्षित करते थे । कुछ भिखारी भी यात्रियों के सामने हाथ फैलाकर रुपया-पैसा माँग रहे थे ।

एक विकलांग भिखारी के कटोरे में सिक्का डालकर मैंने उसे सतुष्ट किया । अब हमारी यात्रा की मंजिल आने वाली थी । हम लोग अपना सामान उठाकर दरवाजे तक आ गए । टेरन रुकते ही हम बारी-बारी से उतर गए । यहाँ के स्टेशन पर भी खासी भीड़ थी ।

मैं इस नवीन स्थान का अवलोकन करता हुआ जा रहा था । स्टेशन से बाहर निकलकर भाई साहब ने ऑटो रिकशा किराए पर लिया और हम लोग अपने गंतव्य की ओर चल पड़े । मेरी पहली रेल यात्रा कई नवीन अनुभवों से परिपूर्ण थी ।

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