List of popular essays for Class 9 Students in Hindi Language!

Contents:

  1. वन महोत्सव पर निबन्ध | Essay on Forest Festival in Hindi

  2. अच्छा पड़ोसी पर निबन्ध | Essay on Good Neighbour in Hindi

  3. हरित क्रांति पर निबन्ध | Essay on Green Revolution in Hindi

  4. महँगाई पर निबन्ध | Essay on Inflation in Hindi

  5. पदयात्रा पर निबन्ध | Essay on Walking Journey in Hindi

  6. दहेज प्रथा पर निबन्ध | Essay on Dowry System in Hindi

  7. आतंकवाद: एक अंतर्राष्ट्रीय समस्या पर निबन्ध | Essay on Terrorism : An International Problem in Hindi

  8. ADVERTISEMENTS:

    जनसंख्या: समस्या और समाधान पर निबन्ध | Essay on Population : Problem and Solution in Hindi

  9. स्वाध्याय का आनँद पर निबन्ध | Essay on Pleasure of Self Reading in Hindi

  10. पालतू पशु पर निबन्ध | Essay on Domestic Animals in Hindi


Hindi Nibandh for Class 9 Students (Essay) # 1

वन महोत्सव पर निबन्ध | Essay on Forest Festival in Hindi

हम लोग अपने जीवन में कई प्रकार से उत्सव मनाते हैं । पारिवारिक सामाजिक धार्मिक एवं राष्ट्रीय उत्सवों में लोग बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं । परंतु वन महोत्सव इस सबसे बढ़कर ऐसा उत्सव है जो हमारे जीवन को सच्चा सुख प्रदान करता है ।

यह महोत्सव हमें प्रकृति से जोड़ता है । यह हमें याद दिलाता है कि हे मानव, वनों के बिना तेरा कल्याण नहीं है । वन समस्त प्राणी जगत् के उत्तम साथी हैं । वृक्षों का समूह जो कि वन कहलाता है हमारे जीवन के आधार हैं । वृक्षों के बदौलत ही हमारी धरती हरी-भरी है । वन, उपवन, बाग-बगीचे पृथ्वी पर जीवन और सौंदर्य के साकार रूप हैं ।

इनकी रक्षा के लिए प्रयत्न करना आवश्यक है । नए-नए वृक्षों को लगाकर वनों को घना करना वन क्षेत्र बढ़ाना वन महोत्सव का एक अंग है । जब हम वनस्पतियों के अस्तित्व के बारे में सोचते हैं तो असल में हम अपने अस्तित्व के लिए ही सोचते हैं ।

वृक्ष हमें फल-फूल छाया लकड़ी आदि देते हैं । ये हमें प्राणवायु और जीवनदायी शक्ति देकर हमें उपकृत करते हैं । हमारे देश में वनों के पेड़ों की बेहिसाब कटाई हुई है । वन अपनी प्राकृतिक शोभा खोते जा रहे हैं । यहाँ के कटे पेड़ चीख-चीखकर अपनी दर्दभरी दास्तान बता रहे हैं ।

वन्य पशु-पक्षी भी आहत हैं क्योंकि उनका प्राकृतिक आवास विकास की भेंट चढ़ चुका है । वनों को काटकर कृषि भूमि की तलाश की जाती है । झूम खेती इसी का एक वीभत्स रूप है । इतना ही नहीं जहाँ कभी घने वन थे वहाँ आज अट्टालिकाएँ हैं, कल-कारखाने हैं ।

ADVERTISEMENTS:

यदि ऐसा ही होता रहा तो एक दिन स्थिति बहुत गंभीर हो जाएगी । धरती पर गरमी बढ़ेगी ऊँचे पहाड़ों के बरफ पिघलेंगे बाढ़ और सूखे की जटिल स्थितियों से हमें निरंतर जूझना पड़ेगा । वनों के अभाव में हमें अधिक प्रदूषित वायु में साँस लेना पड़ेगा ।

वर्षा का कारण भी ये वन-वृक्ष ही हैं । ये रेगिस्तानों का विस्तार रोकते हैं । वन महोत्सव एक युक्ति है प्राकृतिक सतुलन को बनाए रखने की । इसीलिए पर्यावरण प्रेमियों ने वृक्षारोपण को एक उत्सव का एक महोत्सव का नाम दिया ।

सामूहिक रूप से पेड़-पौधे लगाना वन महोत्सव का हिस्सा है । इस महोत्सव में आम लोगों की भागीदारी आवश्यक है । इस कार्य में उन लोगों का सहयोग भी अपेक्षित है जो वन क्षेत्र के आस-पास रहते हैं । ये लोग ही वनों की रक्षा मे सबसे अधिक सहयोग दे सकते हैं ।

हमारे देश में वन महोत्सव मनाया जाने लगा क्योंकि हमें पेड़-पौधों के महत्त्व का पता चल गया वन महोत्सव के माध्यम से वृक्षारोपण का नेक संदेश आम नागरिकों नक आसानी से पहुँचाया जा सकता है । वृक्ष लगाने की प्रक्रिया वन महान्मत्र क रूप में आरंभ की जा सकती है ।

ADVERTISEMENTS:

हमारी आज की आवश्यकताएँ ही कुछ ऐसी है कि वन-वृक्षों की कटाई के बिना काम नहीं चल सकता । साथ-साथ हमारा यह कर्त्तव्य बनता है कि एक कटे पेड़ के स्थान पर दो पेड़ लगाए जाएँ, उनकी उचित देखभाल भी की जाए । अधिकांश रोपित पौधे जल के अभाव में सूख जाते हैं अथवा उन्हें पशु चर जाते हैं ।

ऐसे में पेड़ लगाने का लाभ भी समाप्त हो जाता है । इस पूरे घटनाक्रम को समझते हुए हमें वृक्षों के संरक्षण एव संवर्धन का दायित्व निभाना होगा । यदि हम अपना भविष्य सँवारना चाहते हैं और यदि भविष्य में भी आनंद-उत्सव मनाने की कामना करते हैं तो आज से ही वृक्षारोपण की प्रक्रिया आरंभ करनी होगी ।


Hindi Nibandh for Class 9 Students (Essay) # 2

अच्छा पड़ोसी पर निबन्ध | Essay on Good Neighbour in Hindi

अच्छा पड़ोसी होने का अर्थ है वह पड़ोस के लोगों के साथ मधुर व्यवहार करे । जिनके पड़ोसी अच्छे होते हैं उनका जीवन अपेक्षाकृत सरल एवं आनंदित हो जाता है ।

ADVERTISEMENTS:

अच्छे पड़ोसी अपने अन्य पड़ोसियों से मिल-जुलकर रहते हैं हर स्थिति में उनकी मदद के लिए उपस्थित रहते हैं । जिनके पड़ोसी अच्छे हैं वे सचमुच बड़े भाग्यवान् होते हैं । मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है । वह समाज में घुल-मिल कर एवं एक-दूसरे से सामंजस्य बिठाकर रहता है ।

वह आस-पड़ोस के लोगों पर भरोसा करके ही अपने विभिन्न कार्यो को संपादित कर सकता है । पड़ोस के बच्चे आपस में खेलते हैं वे पड़ोसियों क घर आते-जाते हैं वे आपसी व्यवहार में अच्छी या बुरी बातें सीखते हैं । यदि पड़ोस के कुछ बच्चे संस्कारों से युक्त न हों तो वे अन्य बच्चों का भी बुरे संस्कारों से युक्त कर सकते हैं ।

यह ध्यान देने योग्य तथ्य हें कि चाहे पड़ोसी कैसा भी क्यों न हो उसके साथ कुछ न कुछ संबंध बनाए रखना अनिवार्य हो जाता है । इसलिए आवश्यक है कि हमारे पड़ोसी अच्छे हों । इससे हमें कई प्रकार की सहूलियतें प्राप्त हो जाती हैं ।

एक अच्छा पड़ोसी कई प्रकार के मानवीय गुणों से युक्त होता है । वह अपने सभी पड़ोसियों से मित्रतापूर्ण सबध बनाए रखता है । वह पड़ोस के लोगों की विभिन्न प्रकार से सहायता करता है । यदि कोई पड़ोसी मुसीबत में होता है तो वह यथासंभव उसकी मदद करता है । उसे पड़ोसियों की उन्नति से जलन नहीं होती अपितु वह इनकी तरक्की से खुश होता है । वह पड़ोस में होने वाली विभिन्न सामूहिक गतिविधियों में तत्परतापूर्वक भाग लेता है ।

ADVERTISEMENTS:

वह पड़ोस में फैली गंदगी और अव्यवस्था को दूर करने का प्रयास करता है । एक अच्छा पड़ोसी आत्मिक गुणों द्वारा अपने पड़ोस के लोगों की चारित्रिक उन्नति के प्रति सचेष्ट रहता है । वह अपने झगड़ालू पड़ोसियों से भी मित्रवत् व्यवहार करता है तथा उसके अंदर किसी भी प्रकार के बदले की भावना नहीं होती ।

अपने अच्छे पड़ोसी का सभी आदर करते हैं । वे कभी भी उन्हें नुकसान पहुँचाने की चेष्टा नहीं करते हैं । कहा भी गया है कि अच्छे व्यक्तियों की मदद करने के लिए सभी तैयार रहते हैं क्योंकि इस संसार में जैसे को तैसा प्राप्त होता है ।

एक अच्छा पड़ोसी अपने कार्यों से जिन-जिन व्यक्तियों को प्रभावित करता है वे सभी आपातकालीन स्थितियों में उसके काम आते हैं । परतु अच्छा पड़ोसी होने का यह अर्थ नहीं है कि लोग उसके भलेपन का गलत लाभ उठाएँ । यदि हमारे पड़ोस में कुछ गलत हो रहा हो तो हमें उसका विरोध करना चाहिए ।

यदि कोई पड़ोसी अपने पड़ोस के लोगों को अपने कार्यों से परेशान कर रहा है तो हमें ऐसे पड़ोसी के साथ सावधानीपूर्वक व्यवहार करना चाहिए । अच्छे पड़ोसी अपने पड़ोस में चल रही नकारात्मक गतिविधियों पर भी पूरी नजर रखते हैं ।


Hindi Nibandh for Class 9 Students (Essay) # 3

हरित क्रांति पर निबन्ध | Essay on Green Revolution in Hindi

हरित क्रांति हमारे देश की एक महान घटना है । यह सभी प्रकार के फसलों के अधिकाधिक उत्पादन की कारीगरी हैं । यह हमारे देश के किसानों के अटूट श्रम का प्रतिफल है ।

यह वह रक्तहीन क्रांति है जिसने हमारे देश की काया पलट दी है । यह कृषि के क्षेत्र में विज्ञान की सशक्त पहुँच का प्रमाण है । कभी अकाल तो कभी बाढ़, कभी चक्रवात तो कभी मानसून की कुदृष्टि । इस दुश्चक्र में हमारे किसान तबाह हो जाते थे । अगर प्रकृति ने साथ दे भी दिया तो हानिकारक कीटों ने धावा बोल दिया ।

ऊपर से सड़कें इतनी खराब कि खाद्यान्नों को बाजार तक पहुँचाना कठिन ! क्या करे किसान, कैसे वह अन्नदाता कहलाने का फर्ज पूरा करे ! कैसे वह साहूकारों का कर्ज उतारे, कैसे वह अपना पेट भरे ! कुछ दशकों पूर्व तक हमारे किसानों की यही दशा थी । हमारे किसान श्रम तो बहुत करते थे परंतु इसका प्रतिफल उन्हें नहीं मिलता था ।

समय ने करवट ली । कृषि के क्षेत्र में नए प्रयोग और अनुसंधान हुए । मिट्टी की जाँच कर उसके मुताबिक फसलें लगाने का कार्यक्रम शुरू हुआ । ऐसे सकर बीजों को अपनाया गया जो विषम परिस्थितियों में भी अधिक उत्पादन दे सकते थे ।

ऊसर भूमि में ऐसे बीज बोए गए जो किसानों के हित में थे । कृषि कार्य जो पहले केवल हल-बैलों से होता था अब ट्रैक्टरों से भी होने लगा । फसल बोने, रोपाई करने, फसल तैयार करने तथा उनसे अखाद्य अलग करने के लिए तरह-तरह की मशीनों का प्रयोग होने लगा ।

पंपसैटों और ट्‌यूब वेलों से फसलों की सिंचाई होने लगी । सिंचाई कार्य को विस्तार देने के लिए बड़े-बड़े बाँधों का निर्माण किया गया । बहुउद्देश्यीय नदी घाटी परियोजनाओं ने तो किसानों की दशा और दिशा ही बदल दी । अब वे केवल वर्षा जल पर तथा तालाबों में संग्रहीत जल पर ही निर्भर नहीं थे ।

हरित क्रांति को संभव बनाने में आधुनिक यातायात व्यवस्था और ग्रामीण सड़कों का भी बड़ा योगदान है । पक्की सड़कों ने गाँवों को निकटवर्ती शहरों से जोड़ दिया । किसानों को रासायनिक उर्वरक, उपचारित अच्छे बीज, कृषि उपकरण आदि खरीदने में सहूलियत हो गई ।

वे अपनी उपजों को खराब होने से पूर्व ही बाजार तक पहुँचाने लगे । उचित मूल्य पर खद्यान्नों, कपास, गन्ना आदि की सरकारी खरीद शुरू होने से भी उनका उत्साह बढ़ा । बैंकों के दरवाजे भी किसानों के लिए खोल दिए गए । किसान साहूकारों के ऋणजाल से किसी हद तक मुक्त होकर लाभकारी कृषि की ओर उम्मुख हुए ।

सरकार की मदद से पातालतोड़ कुओं का निर्माण किया गया । परंतु इन सब कार्यो में कृषि वैज्ञानिकों का बहुत बड़ा योगदान था जिन्होंने आकाशवाणी और दूरदर्शन के माध्यम से किसानों को खेती-बारी के बारे में सही-सही जानकारी उपलब्ध कराई ।

कृषि वैज्ञानिकों ने अपने शोध कार्यो से किसानों के लिए हरित क्रांति के द्वार खोल दिए । यह हरित क्रांति का ही प्रभाव है कि आज हमारे देश में खाद्यान्नों की पर्याप्त उपलब्धता है । हालाँकि हरित क्रांति सत्तर के दशक से ही आरंभ हो गई थी परंतु अस्सी के दशक में पहुँचकर ही हम आत्म-निर्भर हो सके ।

हरित क्रांति का प्रभाव धान गेहूँ, ज्वार, मक्का जैसे मुख्य अनाजों तक ही सीमित नहीं रहा अपितु दलहनों और तिलहनों के उत्पादन में भी खासी वृद्धि हुई । पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र जैसे राज्यों ने हरित क्रांति को उसके अंजाम तक पहुँचाने में सर्वाधिक योगदान दिया ।

अब हमारे देश में दूसरी हरित क्रांति का दौर चल रहा है । इक्कीसवीं सदी के मध्य तक हमें कृषि उत्पादन लगभग दुगना करना होगा क्योंकि हमारी जनसंख्या का आकार निरंतर बढ़ रहा है । हमारे किसानों में पूरा उत्साह है, वे किसी भी स्थिति का सामना करने के लिए पूरी तरह सक्षम हैं ।


Hindi Nibandh for Class 9 Students (Essay) # 4

महँगाई पर निबन्ध | Essay on Inflation in Hindi

कीमतों में तीव्र गति से वृद्धि को महँगाई के नाम से जाना जाता है । महँगाई की स्थिति में प्रचलित मुद्रा का मूल्य घट जाता है । लोगों को किसी वस्तु को खरीदने के बदले में अधिक मूल्य चुकाना पड़ता है ।

यह स्थिति कुछ लोगों के लिए सुखद परंतु अधिकांश लोगों के लिए दुखद होती है । महँगाई दुनिया के लोगों की आम समस्या है । हमारे देश में तो महँगाई तेज गति से बड़ी है । उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतों में निरंतर इजाफा होता रहा है ।

मुद्रास्फीति की दर जितनी अधिक होती है, महँगाई उसी अनुपात में बढ़ती जाती है । वस्तुओं के महँगा होने से कम कमाई वाले नागरिकों को भारी मुसीबतों का सामना करना पड़ता है । महँगाई की सबसे अधिक मार गरीबों और मजदूरों पर पड़ती है । कीमतों में वृद्धि के कई कारण होते हैं ।

जब बाजार में किसी उपभोक्ता वस्तु का अभाव होता है तो वह वस्तु महँगी हो जाती है । यह माँग का प्रसिद्ध नियम है कि जब वस्तुएँ महँगी होती हैं तो माँग कम हो जाती है । परंतु माँग का यह नियम अत्यावश्यक वस्तुओं पर लागू नहीं होता है ।

अनाज, फल, सब्जियाँ, रसोई, गैस, पैट्रोल, डीजल, बिजली आदि अनेक वस्तुएँ ऐसी हैं जिन्हें लोगों को बड़ी हुई कीमतों पर भी खरीदना पड़ता है । यही कारण है कि महँगाई उन व्यक्तियों के लिए अधिक कष्टकारक होती है, जिनकी आमदनी कम होती है । जब महँगाई के अनुसार आमदनी में वृद्धि नहीं होती है, तब स्थिति और भी जटिल हो जाती है ।

मूल्य-वृद्धि का एक अन्य प्रमुख कारण कालाबाजारी भी है । कुछ लोग वस्तुओं का सग्रह कर बाजार में कृत्रिम अभाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं । हालाकिं बाजारीकरण और सभी प्रकार के एकाधिकार को समाप्त करने के प्रयत्नों के चलते अब काले मन वालों की उतनी नहीं चलती पर कभी-कभी तो उनकी बन ही आती है ।

महँगाई बढ़ाने में पैट्रोलियम पदार्थो की निरंतर बढ़ती कीमतों का भी बड़ा योगदान है । अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में कच्चे तेल की कीमतें आसमान छू रही हैं और इसका सीधा असर इससे जुड़े उद्योग, धंधों, यातायात एवं परिवहन व्यवस्था पर पड़ता है ।

सरकारें विकास के नाम पर भी महँगाई को प्रश्रय देती हैं । हर बजट में नए-नए कर लगाकर सरकार अपने बढ़ते व्यय को पूरा करना चाहती है । जिस वस्तुओं की करों में वृद्धि की जाती है वे महँगी हो जाती हैं । हालाँकि दूरसंचार सेवाएँ एवं कंप्यूटर सस्ते हो रहे हैं परंतु अनाज पैट्रोलियम पदार्थ फल सब्जियाँ एवं आम उपभोक्ता वस्तुएँ निरंतर महँगी होती जा रही हैं ।

खासकर त्योहारों के अवसर पर तो कीमतों में अचानक उछाल आ जाता है । ऐसे में निर्धन वर्ग महँगाई के बोझ तले पिसकर रह जाता है । इस अर्थप्रधान युग में हर कोई कम समय में अधिक से अधिक धन बटोर लेना चाहता है । भ्रष्टाचार रिश्वतखोरी मुनाफाखोरी इतनी बढ़ गई है कि मध्य वर्ग और निम्न वर्ग के लिए अपनी मूलभूत जिम्मेदारियाँ निभाना भी एक कठिन कार्य हो गया है ।

जिन वस्तुओं की लागत दस रुपए होती है उसे बाजार में चालीस-पचास रुपए में बेचा जाता है । दूसरी ओर किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य भी नहीं मिल पाता है । कृषि कार्य में लागत दिनों-दिन बढ़ रही है; खाद बीज कृषि उपकरण आदि महँगे हो रहे हैं ।

व्यापारी वर्ग तो अपनी वस्तु का दाम बढ़ाकर अपनी कभी पूरी कर लेता है परंतु असंगठित क्षेत्र के श्रमिक रिकशाचालक किसान और गरीब महँगाई के चक्र से सदा भयभीत रहते हैं । महँगाई पर लगाम लगाने के लिए कई स्तरों पर प्रयास आवश्यक हैं । सरकार को ऐसी आर्थिक नीति अपनानी चाहिए जिससे मुद्रास्फीति अधिक न हो ।

कृत्रिम अभाव उत्पन्न करके लाभ कमाने वालों पर नियंत्रण आवश्यक है । सबसे बढ़कर गरीबी को समाप्त करने की आवश्यकता है ताकि लोग महँगाई के दुष्प्रभावों को झेल सकें । आर्थिक असमानता घटाकर तथा बाजार प्रणाली को मजबूत बनाकर हम महँगाई पर लगाम लगा सकते हैं ।


Hindi Nibandh for Class 9 Students (Essay) # 5

पदयात्रा पर निबन्ध | Essay on Walking Journey in Hindi

आधुनिक युग में यात्रा करने के कई साधन हैं । बस कार मोटरसाइकिल, साइकिल, स्कूटर, आटो रिकशा, रेलगाड़ी, हवाई जहाज, जलयान आदि यात्रा करने के आधुनिक साधन हैं । ये सभी तेज गति से चलने वाली सवारियाँ हैं जो हमारी यात्रा को सुगम बनाती हैं ।

जिस समय यात्रा की आधुनिक सुविधाएँ नहीं थीं; लोग घोड़ा, ऊँट, हाथी, खच्चर, गदहा आदि जानवरों की पीठ पर बैठकर यात्रा करते थे । कुछ लोग टमटम, ताँगा, बैलगाड़ी आदि से यात्रा करते थे । बहुत से लोग पैदल ही यात्रा करते थे ।

पैदल चलकर जो यात्रा की जाती है, उसे पदयात्रा कहते हैं । पदयात्रा आज भी की जाती है । हालाकि पदयात्रा में समय अधिक लगता है परंतु यह कई रूपों में लाभदायक भी है । स्वतंत्रता आदोलन के समय गाँधी जी ने कई पदयात्राएं कीं जिनमें से दांडी यात्रा सर्वाधिक प्रसिद्ध है ।

नेहरू जी गाँवों की हालत देखने तथा ग्रामीणों में सामाजिक एवं राष्ट्रीय चेतना फैलाने पदयात्राएं किया करते थे । बिनोवा भावे का भूदान आंदोलन पदयात्रा के माध्यम से ही होता था । वे एक गाँव से दूसरे गाँव पैदल चलते थे । इस प्रकार की पदयात्रा सामाजिक जागृति फैलाने का कार्य करती है ।

नेतागण पदयात्रा के माध्यम से जनता से सीधा संपर्क साधते हैं । उनके साथ अनुयायी भी बड़ी संख्या में चला करते हैं । पदयात्रा का अपना अलग आनंद है । इससे निकट की परिस्थितियों का गहनता से अवलोकन करने का अवसर मिलता है ।

खेतों, पगडंडियों, नदी-नालों, बाग-बगीचों, सरोवरों वनों आदि से होकर पैदल गुजरना प्रकृति का साक्षात्कार करते हुए चलने जैसा है । इससे शरीर का भी पूरा व्यायाम होता है । तेज चाल से मीलों चलना अपने आप में ही संपूर्ण व्यायाम है । फेफड़ों में अधिक वायु आती है पसीने के रूप में शरीर के विकार बाहर निकल आते हैं ।

आज भी गाँवों के लोग खूब पैदल चलते है । गाँव से खेतों तक हाट-बाजार तक वे अधिकतर पैदल ही जाना पसंद करते हैं । गड़ेरिए भेड़ों को लेकर दूर मैदानों तक निकल पड़ते हैं । ग्वाले गाय, भैंसों को चराने, नहलाने निकल पड़ते हैं । खेतिहर मजदूर फसलों के बंडलों को सिर पर उठाए पैदल खलिहानों तक आते हैं । किसान सुबह-शाम खेतों का चक्कर लगा आते हैं ।

पर जैसे-जैसे आरामतलबी बड़ी है पदयात्रा भी कम होती चली जा रही है । घर से निकले तो कार या मोटरसाइकिल पर बैठ गए । कार्यालय से निकले तो वाहन पर फिर से सवार हो गए । तभी तो जरा सा पैदल चलने में ही वे हाँफने लगते हैं ।

वस्तुत: पदयात्रा अब लाचारी बन गई है र साधन विहीन लोगों को ही अब पदयात्रा में दिलचस्पी रह गई है । महानगरों में तो पदयात्रा करना वैसे भी एक समस्या है क्योंकि एक तो लोगों के पास समय का अभाव है दूसरे सड़कें इतनी व्यस्त हैं कि यहाँ पदयात्रियों के लिए अधिक गुँजाइश नहीं । तेज-रफ्तार जिंदगी में पदयात्रा का महत्त्व कहाँ !

पदयात्रा का धार्मिक दृष्टि से भी काफी महत्त्व है । श्रद्धालु आज भी अमरनाथ यात्रा, वैष्णो देवी की यात्रा, कैलाश मानसरोवर यात्रा आदि विभिन्न यात्राएँ प्राय: पैदल चलकर ही पूर्ण करते हैं । विभिन्न शुभ अवसरों पर गंगा स्नान श्रावण मास में गंगा आदि पवित्र नदियों से जल भरकर भगवान शिव को अर्पित करना जैसे उद्देश्यों के लिए भक्तगण पदयात्रा करते हैं ।

इन पदयात्राओं की थकान नहीं अखरती क्योंकि उद्देश्य शुभ होता है । आधुनिक युग में पदयात्रा को फिर से प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है । यह आरामतलब जिंदगी से उपजी परेशानियों एवं बीमारियों से दूर रखता है । ईश्वर ने हमें दो पैर इसीलिए दिए हैं कि हम उनका अच्छा उपयोग कर सकें ।


Hindi Nibandh for Class 9 Students (Essay) # 6

दहेज प्रथा पर निबन्ध | Essay on Dowry System in Hindi

कोई प्रथा या रिवाज उसी समय तक उपयोगी है जबकि उससे कोई सामाजिक उद्देश्य पूरा होता हो । जब किसी प्रथा से जनसमूह आहत होता हो, नागरिकों को दु:ख उठाना पड़ता हो तो वह त्याज्य है ।

दहेज प्रथा भी अगज समाज पर एक बोझ बन गई है इसलिए इस बोझ को उतारकर फेंक देना ही श्रेयस्कर है । दहेज प्रथा अपने आरंभिक काल में कतिपय शुभ उद्देश्यों को ध्यान में रखकर प्रचलित की गई थी । परिवार वाले विवाह के पश्चात् अपनी कन्या को कुछ जीवनोपयोगी वस्तुएँ देकर विदा करते थे ।

इसका उद्देश्य कन्या के वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाना था । परंतु कन्या को कुछ वस्तुएँ भेंट कर विदा करना कोई बाध्यता नहीं थी कन्या पक्ष वाले स्वैच्छिक रूप से जो चाहते देते थे । उस समय इसे ही दहेज का नाम दिया गया । बाद में दहेज प्रथा का स्वरूप बदल गया ।

दहेज के माध्यम से वर खरीदे जाने लगे । प्रत्येक वर बिकाऊ हो गया । कन्या पक्ष वालों के लिए दहेज देना एक बाध्यता हो गई । लड़कों का जितना ऊँचा कुल जितनी ऊँची शिक्षा, जितना अच्छा व्यवसाय या पेशा, जितनी ऊँची नौकरी या पद, उसी अनुपात में दहेज की रकम निर्धारित की जाने लगी ।

कन्या चाहे कितने ही ऊँचे कुल की हो, कितनी ही शिक्षित, गुणवान्, चरित्रवान् क्यों न हों, मोटी रकम दहेज के रूप में दिए बिना उसका विवाह संभव नहीं । दहेज प्रथा निरंतर विकराल रूप धारण कर कन्या के माता-पिता के लिए एक गंभीर समस्या बनती जा रही है ।

दहेज के रूप में उन्हें न केवल लाखों रुपए देने पड़ते हैं, अपितु कार, मोटरसाइकिल, कलर टी.वी., फ्रिज, फर्नीचर, गहने आदि कीमती वस्तुएँ भी देनी पड़ती हैं । ऊपर से शादी में होने वाला सारा खर्च भी कन्या पक्ष वालों को ही वहन करना पड़ता है । ऐसे में उनकी कमर टूट जाती है । इतने से भी वर-पक्ष संतुष्ट नहीं होता विवाह के बाद वधू को ससुराल वालों के ताने सुनने पड़ते हैं ।

वधू को मारा-पीटा जाता है कभी-कभी दहेज के लोभी उसे जला भी डालते हैं । यदि किसी प्रकार वधू अपनी जान बचाने में सफल हो जाती है तो उसे भागकर अपने माता-पिता के घर शरण लेनी पड़ती है । उसकी स्थिति धोबी के उस कुले जैसी हो जाती है, जो न घर का न घाट का होता है ।

यद्यपि दहेज प्रथा के विरुद्ध कानून हैं परंतु व्यवहार में इसे लागू कर पाना अत्यंत कठिन है । कानून तभी अपना काम कर पाता है जब कोई उसके पास शिकायत लेकर जाता है । जबकि दहेज संबंधी अधिकांश लेनदेन गुपचुप और आपसी सहमति से होते हैं ।

कन्या पक्ष वाले भी अपनी पुत्री के भविष्य की चिंता में तुरंत कोई कठोर कदम नहीं उठाना चाहते हैं । जब पानी सिर से ऊपर आ जाता है तभी वे कानून से गुहार लगाते हैं । इसलिए यदि इस गलत प्रथा से सचमुच पीछा छुड़ाना है तो समाज को अपनी सोच में बदलाव लाना होगा ।

कुछ दहेज विरोधी दोहरी नीति अपनाते हैं । जब उन्हें अपनी कन्या का विवाह करना होता है तो वे दहेज विरोधी बन जाते हैं । परतु जब उन्हें अपने पुत्र का विवाह कराना होता है तो वे दहेज के पक्षधर बन जाते हैं । हमें अपनी इस दुरंगी सोच को बदलना होगा ।

दहेज का लेन-देन एक सामाजिक समस्या है । अत: दहेज के विरुद्ध कानूनी सुरक्षा से बेहतर है सामाजिक सुरक्षा उपलब्ध कराई जाए । इस प्रथा की समाप्ति से हमारे समाज का एक बड़ा कलंक मिट सकेगा ।


Hindi Nibandh for Class 9 Students (Essay) # 7

आतंकवाद: एक अंतर्राष्ट्रीय समस्या पर निबन्ध | Essay on Terrorism : An International Problem in Hindi

विश्व की वर्ममान समस्याओं में से आतंकवाद एक प्रमुख समस्या है । यह एक ऐसी मानव निर्मित समस्या है जिसका स्वरूप नितांत वीभत्स है । पूरी दुनिया के लाखों व्यक्ति इसकी भेंट चढ़ चुके हैं ।

बच्चे युवा वृद्ध आदि में कोई अंतर न समझने वाले आतंकवादी किसी को भी अपना निशाना बना लेते हैं । आतंकवाद का पुराना स्वरूप कुछ अलग था । पहले राजा और नवाब विजित क्षेत्र में लूटपाट मचाते थे गाँवों-कस्वों में आग लगा देते थे । स्त्रियों के साथ सामूहिक रूप से दुर्व्यवहार भी किया जाता था ।

चूंकि उस समय जिसकी लाठी उसकी भैंस वाला कानून था इसलिए आतंकवादियों का कोई कुछ न बिगाड़ पाता था । लोगों की धन-संपत्ति लूटना विधर्मियों के पूजा स्थलों को नुकसान पहुँचाना तथा बर्बरतापूर्ण कार्रवाइयों के माध्यम से अपना दबदबा स्थापित करना मध्ययुगीन आतंकवाद के प्रमुख उद्देश्य थे ।

परंतु इस तरह की घटनाएँ विश्वव्यापी नहीं थीं सुशासित क्षेत्रों एवं राष्ट्रों में आतंक मचाने का साहस कोई भी नहीं कर पाता था । आज दुनिया में आतंकवाद की जड़ें काफी गहरी हैं । विकसित व समृद्ध मुल्कों से लेकर तीसरी दुनिया के देशों में भी इसका प्रभाव समान रूप से है । भारत तो कई दशकों से आतंकवाद का दश झेल रहा है ।

भारत का जम्मू एवं कश्मीर प्रांत पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को झेलते-झेलते अपना प्राकृतिक सौंदर्य अपनी मजहबी एकता वाली संस्कृति काफी हद तक खो चुका है । हालांकि अब फिर से वहाँ की स्थिति सामान्य होती जा रही है परंतु इस प्रति को अपना पुराना गौरव प्राप्त करने में अभी लंबा समय लगेगा ।

भारत का पंजाब प्रात भी कभी मजहबी जुनून का शिकार था परतु वहाँ के नागरिकों ने साहस दिखाते हुए आतंकवादियों के नापाक मंसूबों को कामयाब नहीं होने दिया । हमारे देश के उत्तर-पूर्वी राज्य अभी भी आतंकवादियों के निशाने पर हैं ।

मुंबई बम विस्फोट, भारतीय संसद पर हमला दिल्ली, बनारस तथा अन्य स्थानों में समय-समय पर होने वाली आतंकवादी घटनाएँ इस बात की पुष्टि ऊरती हैं कि हमारा देश आतंकवादियों का गढ़ बनता जा रहा है । आतंकवाद का प्रभाव क्षेत्र विशेष तक सीमित नहीं है ।

अमेरिका ब्रिटेन अफगानिस्तान, इराक, सऊदी अरब, बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका, इजरायल आदि देश भी आतंकवाद की लपेट में हैं । आतंकवाद अब उन राष्ट्रों को भी तबाह करने पर तुला हुआ है जो राष्ट्र पहले आतंकवादियों को शह और प्रशिक्षण देते आए थे । पाकिस्तान अफगानिस्तान बांग्लादेश आदि राष्ट्रों के आतंकवादी अब अपने राष्ट्र को ही भस्मासुर की तरह जला रहे हैं ।

दुनिया के अलग-अलग क्षेत्रों में आतंक मचाने के कारण भले ही अलग-अलग रहे हों इनका परिणाम सदैव एक-सा होता है । आतंकवाद के शिकार प्राय: निर्दोष व्यक्ति ही होते हैं । आधुनिक युग में आतंकवादियों के पास बड़े घातक हथियार हैं ।

वे शक्तिशाली विस्फोटक सामग्रियों से लैस हैं । उनके पास राकेट ए.के. 47 गन, आर.डी.एक्स, रिमोट कंट्रोल एवं बारूदी सुरंगें हैं । उनके पास आत्मघाती दस्ते भी हैं जो अपनी जान गँवाने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं । कार, स्कूटर, बस आदि में बम रखकर जनसमूह को मौत की नींद सुला देना उनका प्रिय खेल है ।

धर्म भाषा और क्षेत्र के नाम पर अगड़े-पिछड़े के नाम पर तो कभी बड़ी शक्तियों के विरोध के नाम पर फै।लाया जाने वाला आतंक आज की दुनिया की एक विकट समस्या है । हमें आतंकवाद की इस अंतर्राष्ट्रीय समस्या से मिल-जुल कर निपटना होगा ।

विभिन्न राष्ट्रों को आपस में मिलकर एक ठोस रणनीति बनानी होगी । दुनिया के लोगों में चेतना फैलाने की भी आवश्यकता है । आतंकवाद को पूरी तरह समाप्त करने के लिए दुनिया से गरीबी असमानता बेकारी अशिक्षा जैसी समस्याओं को पूरी तरह खत्म करना होगा । कुछ राष्ट्र अपने यहाँ के आतंकवाद को गंभीर तथा अन्य राष्ट्रों के आतंकवाद को परिस्थितिजन्य मानते हैं । हमें ऐसे दोहरे मापदंडों से बचना होगा ।


Hindi Nibandh for Class 9 Students (Essay) # 8

जनसंख्या: समस्या और समाधान पर निबन्ध | Essay on Population : Problem and Solution in Hindi

बढ़ती हुई जनसंख्या भारत की एक बड़ी समस्या है जिस तीव्र गति से हमारी आबादी बढ़ रही है, उससे प्राकृतिक संसाधनों पर भार बढ़ रहा है । विशाल आबादी के लिए पेय जल, खाद्यान्न, आवास, वस्त्र जैसी सुविधाएँ जुटाना एक कठिन कार्य है ।

भूमि के टुकड़े छोटे-छोटे होते जा रहे हैं लोगों के पास प्राकृतिक संपत्ति नाममात्र ही रह गई है । एक अरब से कहीं अधिक जनसंख्या वाला देश भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है । दूसरी ओर आकार की दृष्टि से पूरी दुनिया में हमारा स्थान सातवाँ है ।

प्रश्न है कि यदि इसी गति से हमारे लोगों की संख्या बढ़ती रही तो विकास के सभी मानवीय प्रयास विफल हो जाएँगे । आज तो हम वैज्ञानिक कृषि के बलबूते बड़ी हुई आबादी का पेट भर पाने में सक्षम हैं लेकिन कल क्या होगा ! आखिर कृषि उपज की एक सीमा है क्योंकि भूमि सीमित है ।

पृथ्वी पर उपयोगी जल की मात्रा बहुत कम है । कोयला, पैट्रोलियम, लौह अयस्क, ताँबा आदि खनिजों के भंडार भी सीमित हैं । बढ़ती हुई आबादी की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वन काटे जा रहे हैं । वन विनाश पर्यावरण संकट का प्रमुख कारण है ।

जितने लोग होंगे खपत उतनी ही बढ़ेगी । उतने ही कल-कारखानों की जरूरत होगी क्योंकि सबके लिए कुछ न कुछ रोजगार की व्यवस्था करनी ही है । कल-कारखानों से ही हमारी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति होती है । दूसरी ओर ये कारखाने जल-प्रदूषण और वायु प्रदूषण फैलाते हैं । जिस स्थान पर जनसख्या का दबाव अधिक होता है वहाँ गंदगी और प्रदूषण भी अधिक होता है ।

वहाँ ध्वनि प्रदूषण की समस्या भी बढ़ती जाती है । हमारे देश की प्रमुख समस्याएँ जनसंख्या वृद्धि से संबंधित हैं । अशिक्षा बेकारी स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव विकास की धीमी गति, निर्धनता भीड़-भाड़, कानून और व्यवस्था की समस्या मूलभूत, सुविधाओं का अभाव, कुपोषण जैसी कितनी ही समस्याओं का सीधा संबंध जनसंख्या की तीव्र वृद्धि से है ।

आज यदि भारत की जनसंख्या पचास करोड़ के आस-पास होती तो हम विकसित देशों की पंक्ति में खड़े होते । जनसंख्या वृद्धि एक समस्या है तो उसका समाधान भी है । सबसे पहले तो हमें शिक्षा के प्रसार पर ध्यान केंद्रित करना होगा ।

लोगों को साक्षर बनाना ही हमारा उद्देश्य नहीं होना चाहिए बल्कि सभी लोगों को शिक्षित बनाना होगा । शिक्षित नागरिक ही देश की बढ़ती हुई आबादी के बारे में चिंता कर सकते हैं । ऐसे लोग ही अपने परिवार को छोटा रखने का सकल्प पूरा कर सकते हैं । दूसरी ओर सामाजिक सुरक्षा की दिशा में भी काम करने की जरूरत है ।

स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार कर बाल मृत्यु दर रोककर तथा स्त्रियों की शिक्षा पर खास ध्यान देकर इस समस्या का मुकाबला किया जा सकता है । हमें लोगों को गर्भ निरोधक उपायों को अपनाने के बारे में जागरूक करना होगा । छोटे परिवार वालों को प्रोत्साहित कर उनकी संतानों के भविष्य को किसी हद तक सुरक्षित बनाकर हम जनसंख्या वृद्धि का समाधान ढूँढ सकते हैं ।

पंचायतों में ग्राम सभाओं में सरकारी नौकरियों में विधानसभाओं तथा ससद में एक संतान वालों के प्रवेश को सुविधाजनक बनाकर हम जनसंख्या पर लगाम लगा सकते हैं । कई अन्य उपाय भी कारगर हो सकते हैं । लड़कियों का विवाह 18 वर्ष की उम्र से पहले नहीं कराया जाना चाहिए । लड़की का विवाह भी 21 वर्ष या उससे अधिक उम्र में होना चाहिए ।

छोटे परिवार की खूबियों को भी लोगों तक पहुँचाने की आवश्यकता है । ‘लड़का-लड़की एक समान’ के सिद्धांत को भी प्रचारित किया जाना चाहिए । हमें एक सुस्पष्ट जनसंख्या नीति बनाकर उस पर ईमानदारी से अमल करना चाहिए ।


Hindi Nibandh for Class 9 Students (Essay) # 9

स्वाध्याय का आनँद पर निबन्ध | Essay on Pleasure of Self Reading in Hindi

हमारे अनेक कार्य ऐसे हैं जिनसे हमें असीम सुख की प्राप्ति होती है । जिन लोगों को पुस्तकों से प्रेम है उन्हें आनंदित होने के लिए अन्य किसी वस्तु की आवश्यकता नहीं होती । स्वाध्याय के आनंद का अपना अलग महत्त्व है ।

स्वाध्याय का अर्थ है स्वयं पढ़ना-लिखना । बच्चे स्वाध्याय के माध्यम से अपने ज्ञान में भारी वृद्धि कर सकते हैं । विद्यालय में जो पढ़ाया जाता है उसे यदि स्वाध्याय के माध्यम से दोहराया जाए तो विषय-वस्तु पर स्थाई पकड़ बन जाती है ।

जब हम स्वाध्याय के द्वारा किसी विषय को ग्रहण करते हैं तो उस समय हमारा मस्तिष्क उस विषय के विभिन्न पहलुओं को सरलता से आत्मसात् कर लेता है । स्वाध्याय के लिए उपयोगी पुस्तकों के चयन का खास महत्त्व है ।

कई पुस्तकों में अनावश्यक बातें लिखी होती हैं जिसका अध्ययन हमारे लिए फिजूल है । अश्लील पुस्तकें भड़काऊ पुस्तकें घृणा फैलाने वाली पाठ्‌य सामग्री तथा सस्ती लोकप्रियता अर्जित करने वाली पुस्तकों के पाठन से हमें कोई लाभ नहीं होता ।

हमें स्वाध्याय के लिए केवल ऐसी पुस्तकों का चुनाव करना चाहिए जो हमारे जीवन के लिए प्रेरणादायक हों । महापुरुषों की जीवनियाँ महान साहित्यकारों की रचनाएँ ज्ञान-विज्ञान से संबद्ध रचनाएँ हमें सचमुच किसी आनंदलोक में पहुँचा सकती हैं ।

शिक्षाप्रद कहानियों उपन्यासों कविताओं लेखों नाटकों आदि का पाठन हमारे मन को आंदोलित कर सकता है । अच्छा साहित्य पढ़कर हम अपने जीवन को अधिक उपयोगी बना सकते हैं । स्वाध्याय के लिए समय के चुनाव का कोई प्रतिबंध नहीं है परंतु इस कार्य हेतु स्थान के चयन का खास महत्त्व है ।

स्वाध्याय के लिए कोलाहल से दूर एक शांत वातावरण चाहिए । भीड़-भाड़ और अशांत वातावरण में स्वाध्याय का पूरा आनद नहीं उठाया जा सकता । घर के एक कोने में, शांत छत पर, किसी नदी के तट पर स्वाध्याय करने से हमारे चित्त पर इसका अच्छा असर पड़ता है । स्वाध्याय करने वाला व्यक्ति अपने आप को कभी अकेला और असहाय महसूस नहीं करता है ।

इससे हमारे चित्त की अज्ञानता दूर होती है तथा मन में प्रेम का प्रकाश फैलता है । यह हमारे विवेक को जागृत करता है । हमारा अनुभव दिनों-दिन बढ़ता जाता है । ज्ञान और अनुभव ऐसी वस्तुएँ हैं जिन्हें हमसे कोई नहीं छीन सकता । यह भटके हुए मनुष्यों का पथ-प्रदर्शन करता है ।

स्वाध्याय हमें सभ्य एवं संस्कारयुक्त बनाता है । स्वाध्याय के आनद का वर्णन किसी लेख आदि के माध्यम से नहीं किया जा सकता यह स्वयं अनुभव करने की वस्तु है । स्वाध्याय केवल पढ़ना ही नहीं है परतु पड़े हुए को समझना एवं उसके अनुसार कार्य करना भी है ।

जो अध्ययन हमारा मार्गदर्शन नहीं कर सकता हमें असत् से सत् की ओर नहीं ले जा सकता वह किसी काम का नहीं है । स्वाध्याय के लिए जिस उमंग और उत्साह की आवश्यकता होती है । वह प्राय: कम ही देखने को मिलता है । इसलिए स्वाध्याय का आनंद कुछ विरले ही उठा पाते हैं ।


Hindi Nibandh for Class 9 Students (Essay) # 10

पालतू पशु पर निबन्ध | Essay on Domestic Animals in Hindi

जिन पशुओं को हम लोग पालते हैं उन्हें पालतू पशु कहा जाता है । पशुओं को पालने के कई प्रकार के लाभ हैं । गाय, भैंस, बैल, बकरी, ऊँट, घोड़ा, कुत्ता आदि प्रमुख पालतू पशु हैं । इन्हें विभिन्न प्रकार से उपयोग में लाया जाता है ।

समझा जाता है कि कुत्ता मनुष्य का सबसे पहला साथी बना होगा । वह आदि मानव को खतरनाक जंगली पशुओं से सावधान करता होगा । बदले में वह अपने मालिक के फेंके गए मास एवं हड्डियों के टुकड़ों को प्राप्त करता होगा ।

ADVERTISEMENTS:

आजकल कुत्ता पालना एक सम्मान का प्रतीक बन गया है । वह अपने स्वामी के घर की रखवाली करता है । पुलिस वाले अच्छी नस्ल के कुत्तों को प्रशिक्षित कर अपराधियों का पता लगाते हैं । कुछ पशुओं को हम लोग दूध और मांस के लिए पालते हैं ।

गाय भैंस और बकरी हमें मीठा दूध देती है । बकरा, सूअर, मुरगा आदि मांस के लिए पाले जाते हैं । मुरगी अंडे देती है । बैल, भैंसा जैसे पशु हल में जोते जाते हैं । ये गाड़ी खींचने के काम में भी आते हैं । गदहे की पीठ पर धोबी कपड़े ढोता है । गदहे और खच्चर की पीठ पर अन्य वस्तुएँ भी लादी जाती हैं ।

घोड़ा आधुनिक युग में भी काफी लोकप्रिय है । यह ताँगा खींचता है । घुड़सवार सैनिक आज भी देखे जाते हैं । घोड़े पर सवारी भी की जाती है । ऊँट रेगिस्तान की एकमात्र भरोसेमंद सवारी है । भेड़ पालन का भी अपना महत्व है । इससे ऊन प्राप्त होता है, जिससे ऊनी कपड़े बनाए जाते हैं ।

कुछ पालतु पशुओं का मल-मूत्र भी हमार लिए उपयोगी होता है । गाय बैल भैंस आदि का गोबर सर्वोत्तम खाद माना जाता है । बायोगैस संयंत्रों में गोबर का ही उपयोग किया जाता है । कुछ लोग गोबर के उपले बनाकर इसे जलावन के रूप में प्रयोग करत हैं । ग्रामीण क्षेत्रों के घर-आँगन गोबर से लीपे-पोते जाते है । कुछ लोग गौ-मूत्र को औषधि के रूप में प्रयोग करते हैं ।

अनेक पालतू पशुओं की खाल से चमड़े की विभिन्न वस्तुएँ तैयार की जाती हैं । चमड़ा उद्योग पूर्णतया पालतू पशुओं पर निर्भर है । इस प्रकार पालतू पशु हमारे लिए अत्यंत उपयोगी हैं । इनकी भली-भांति देखभाल की जानी चाहिए । इन्हें अच्छा भोजन तथा स्वास्थ्यप्रद आवास उपलब्ध कराकर इनकी सेवाओं का अधिक लाभ उठाया जा सकता है ।

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