क्या माताओं को नौकरी करनी चाहिए? (निबन्ध) | Essay on Should Mothers Go Out to Work? in Hindi!

आज के आधुनिक नारी मुक्ति प्रधान युग में जहाँ महिलाएं जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफल हो रही हैं, यह प्रश्न अटपटा लगेगा । प्रत्येक स्त्री का अपना एक अलग व्यक्तित्व होता है, उसमें भी पुरुष के समान योग्यताएँ होती हैं । यदि पुरुष यानि पिता काम के लिए घर से बाहर जा सकते हैं, तो स्त्री यानि माताएँ क्यों नहीं?

दूसरी ओर, कुछ रूढ़िवादी व्यक्तियों और मध्यवर्गीय आदर्शो के अनुसार मातृत्व ही स्त्री को पूर्ण स्त्री बनाता है । स्त्री की जिन्दगी और अस्तित्व का एकमात्र उद्देश्य मातृधर्म है । मां बनने पर एक स्त्री का संसार उसका बच्चा बन जाता है । उसे अपना सारा समय उनके पालन-पोषण और आदर्श नागरिक के रूप में विकसित करने में लगाना चाहिए । यही उसके अस्तित्व का उद्देश्य है ।

यदि किसी स्त्री के जीवन में आने वाला पुरुष, उसका स्वामी, उसका मालिक कमाता है, तो उस स्त्री को बाहर काम करने की क्या आवश्यकता है? यह विचार ही अत्यंत संकुचित है । आज विश्व की अधिकांश माताएँ काम पर जाती हैं । आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति ही उनकी नौकरी करने का कारण हैं । यदि आर्थिक परिस्थितियाँ ठीक हों तो वे भी घर की देखभाल में समय बिताना अधिक पसंद करेगी ।

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कई ग्रामीण स्त्रियाँ दो प्रकार की जिम्मेदारियाँ निभाती हैं – जीविका निर्वाह तथा घर की देखभाल । ग्रामीण स्त्रियाँ अपने नवजात बच्चों सहित खेतों में पूरा दिन काम करती हैं और शाम को घर का काम करती हैं । इस स्थिति में यह प्रश्न ही निरर्थक लगता हैं ।

नगरों एवं शहरों में मध्य तथा निम्न वर्ग की शिक्षित एवं अशिक्षित स्त्रियाँ काम पर जाती है । उनके लिए यह जीवन निर्वाह का साधन है । नियोक्ता तथा सरकार का यह कर्तव्य है कि वे इस बात का ध्यान रखें कि गर्भवती स्त्री या छोटे बच्चे की मां को अधिकतम सुविधाओं के लाभ प्राप्त हों ।

कुछ ऐसी महिलाएं भी होती हैं, जिनके लिए कार्य का अर्थ व्यक्तित्व का विकास होता है । उनके लिए काम उनकी आन्तरिक आवश्यकता होती है । वे प्रत्येक क्षेत्र में पुरुषों के साथ प्रतियोगी रूप में खड़ी होती हैं । कार्य उनकी जीविका निर्वाह का साधन नहीं होता, फिर भी वे नाना कष्टों को सहन करती हैं ।

मातृत्व प्राप्त करने के बाद भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लगाना अनुचित है । आज हमारे समाज में कई ऐसी महत्वाकांक्षी महिलाओं के उदाहरण हैं, जिन्हें कार्य करने में रुचि है तथा कोई उनकी राह में बाधा उत्पन्न करने में सफल नहीं हो सका है ।

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अत: यह स्पष्ट है कि प्रश्न माताओं के नौकरी करने या न करने का नहीं है । हमारे उद्देश्य कामकाजी महिलाओं को राहत पहुँचाना होना चाहिए । यह पुरुषों की मनोवृत्ति में उपयुक्त परिवर्तन से ही किया जा सकता है । पुरुषों को रोजमर्रा के घरेलू कामों में अपनी अर्द्धांगिनी की सहायता करनी चाहिए ।

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