महाकवि जयशंकर प्रसाद पर निबन्ध | Essay on Great Poet Jay Sankar Prasad in Hindi!

1. भूमिका:

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के बाद हिन्दी कविता और नाटक का साथ-साथ विकास करने वाले और इन दोनों क्षेत्रों में समान रूप से अपनी लेखन-क्षमता से यश पाने वाले साहित्यकार का नाम है जयशंकर प्रसाद ।

इन्हें केवल महाकवि ही नहीं बल्कि नाटक-सम्राट् भी कहा जाता है । लोकप्रियता (popularity) की दृष्टि से गम्हें तुलसीदास के बाद दूसरा कवि भी कहा जाता है ।

खइ प्रसादजी का जन्म काशी (वाराणसी) के सुंघनी साहू के परिवार में सन् 1889 ई. में हुआ था । पिता देवी प्रसाद वाराणसी के एक प्रसिद्ध व्यापारी थे, लेकिन उनकी रुचि हिन्दी साहित्य में भी होने के कारण अनेक कवि और कलाकार उनके घर अक्सर आया करते थे । इसी कारण जयशंकर प्रसाद में भी बचपन से ही कविता के प्रति रुचि जाग उठी थी ।

2. जन्म और शिक्षा:

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प्रसादजी की शिक्षा-दीक्षा घर पर ही हुई । अधिक समय तक वे विद्यालय की शिक्षा नहीं पा सके थे । पिता और बड़े भाई की मृत्यु के कारण बचपन में ही पूरे परिवार का बोझ उन पर आ पड़ा किन्तु तब तक वे अंग्रेजी, हिन्दी और संस्कृत तथा दर्शन (Philosophy) का काफी ज्ञान पा चुके थे ।

3. कार्यकलाप:

जयशंकर प्रसाद आरम्भ में ब्रजभाषा में कविता लिखा करते थे, किन्तु बाद में वे खड़ी बोली में कविता लिखने लगे । उनकी प्रमुख काव्य-रचनाएँ हैं चित्राधार, कानन कुसुम, महाराणा का महत्त्व, करुणालय, प्रेम-पथिक, झरना, आँसू और महाकाव्य कामायनी ।

इनमें ‘कामायनी’ को सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य माना गया है । इसके अतिरिक्त प्रसाद जी ने सज्जन, परिणय, एक घूँट, प्रायश्चित, कामना, जनमेजय का नागयज्ञ, स्कंदगुप्त, चन्द्रगुप्त, ध्रुवस्वामिनी आदि प्रसिद्ध नाटकों की रचना भी की ।

प्रसादजी की कविताएँ हों या नाटक, प्रत्येक रचना में अपने देश की कोई न कोई ऐतिहासिक कहानी होती है जिसमें अपनी पुरानी संस्कृति (Culture) और सभ्यता (Civilization) की प्रशंसा अवश्य होती है । उनकी रचनाएँ पढ़ने से हमें ऐतिहासिक भारत की सच्ची झलक मिलती है और देशभक्ति की भावना भी बढ़ती है ।

4. उपसंहार:

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जयशंकर प्रसाद एक सच्चे और महान कवि तथा नाटककार तो थे ही, वे एक सरल मन वाले व्यक्ति भी थे । उनकी रचनाओं में सच्ची घटनाओं के साथ-साथ भावना और कल्पना भी थी । उनकी रचनाओं से हिन्दी साहित्य को बडा बल मिला । उनका नाम साहित्यकारों में सदा गर्व से लिया जाता है ।

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