डा. राजेंद्र प्रसाद पर निबन्ध | Essay on Dr. Rajendra Prasad in Hindi!

1. भूमिका:

अपनी सादगी औरसरलता से किसी को भी प्रभावित कर देने वाले विद्वान थे डॉ राजेन्द्र प्रसाद । इन्हें हम आदर से राजेन्द्र बाबू कहते हैं । स्वाधीन भारत के सर्वप्रथम राष्ट्रपति के पद पर रहते हुए भी अहंकार (Ego) से पूरी तरह मुका रहने वाले और किसान जैसी वेशभूषा में रहने वाले व्यक्ति थे राजेन्द्र बाबू ।

2. जन्म और शिक्षा:

राजेन्द्र बाबू का जन्म 3 दिसंबर, 1884 ई. को बिहार के सारण जिला स्थित जीरादेई नामक गाँव में हुआ था । उनके पिता का नाम महादेव सहाय था । माता और दादी से इन्हें बहुत प्यार मिला ।

3. कार्यकलाप:

राजेन्द्र बाबू की आरम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई । घर पर मौलवी साहब से फारसी पढ़ने के बाद छपरा के एक स्कूल में उन्हें प्रवेश दिलाया गया, जहाँ उन्हें अन्य विषयों के साथ हिन्दी और अंग्रेजी का अच्छा ज्ञान मिला ।

एंटरेन्स (Now-a-days higher secondary) की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास करने के बाद उन्होंने कलकत्ता (कोलकाता) के प्रेसिडेंसी कॉलेज में प्रवेश लिया, जहाँ से उन्होंने एफ.ए की परीक्षा भी प्रथम श्रेणी में पास की । इसके बाद उन्हें 50 रुपये मासिक छात्रवृत्ति मिलने लगी । वहीं उन्होंने दो विषयों में बीए, ऑनर्स की परीक्षा उत्तीर्ण की । सन् 1904 में आपने एमए की परीक्षा पास की ।

कलकत्ता में ही राजेन्द्र बाबू वकालत करने लगे । वकालत खूब चली लेकिन ‘सर्वेन्ट्स ऑफ इण्डिया’ सोसाइटी की स्थापना करने वाले देशभक्त गोपाल कृष्ण गोखले जी के कहने पर वे वकालत के साथ-साथ अंग्रेजों के खिलाफ आन्दोलनों में भाग लेने लगे ।

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सतीशचन्द्र मुखर्जी की ‘डॉनसोसाइटी’ में शामिल होने पर उनकी मुलाकात देश के बड़े-बड़े नेताओं से हुई । सन् 1911 में जब अलग बिहार प्रात बना तो वे पटना आ गये । वहीं चम्पारण आन्दोलन के दौरान उनकी भेंट गाँधीजी से हुई ।

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हिन्दी, हरिजन और भूकप पीड़ितों की उन्होंने जो सेवा की, उससे वे बिहार के गाँधी बन गए । इसी दौरान उन्होंने यूरोप की यात्रा भी की । बाद में वे कांग्रेस के अध्यक्ष भी बनाये गये किन्तु अधिक श्रम के कारण वे दमा (Ashthma) के शिकार हो गये ।

फिर भी वे समाज सेवा से अलग नहीं हुए । सन् 1946 में जब देश का संविधान (Constitution Assembly) बनना आरम्भ हुआ, तो वे संविधान सभा (Constitution Assembly) के अध्यक्ष (President) चुने गये और सन् 1950 में देश के गणतंत्र (Republic) घोषित होने पर देश के प्रथम राष्ट्रपति चुने गए ।

1957 में दूसरी बार भी राष्ट्रपति (President) बने और कुल मिलाकर 12 वर्षों तकउन्होंने राष्ट्रपति पद को सुशोभित किया । देश के इस महान सपूत का निधन (Demise) पटना के सदाकत आश्रम में 28 फरवरी 1963 को हो गया ।

4. उपसंहार:

डा. राजेन्द्र प्रसाद जी को सन् 1962 में भारत-रत्न की उपाधि से विभूषित किया गया, किन्तु इससे पहले देश की जनता ने उन्हें देश-रत्न कहना आरम्भ कर दिया था । उनके कार्यों और व्यवहार से प्रभावित होकर सरोजिनी नायडू ने कहा था कि उनके जीवन की कहानी सोने की कलम मधु में डूबा कर लिखनी होगी ।

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