हिंदी-काव्य में राष्ट्रीय विचारधारा पर निबन्ध |Essay on National Ideology in Hindi Poetry in Hindi!

राष्ट्रीय काव्य-रचना के लिए वातावरण का प्रक्षुब्ध होना तथा समाज का संघर्षरत होना अपेक्षित है । हिंदी साहित्य के आधुनिक काल के प्रारंभ से देश में आजादी की लड़ाई का वातावरण तैयार हो गया था ।

इसी तरह वीरगाथा काल से ही राष्ट्रीय भावना और प्रभुब्ध वातावरण के भिन्न-भिन्न रूप मिलते हैं, जिनका प्रभाव तत्कालीन कवियों की रचना पर पड़ा था । वीरगाथा काल की राष्ट्रीयता राजाओं के व्यक्तिगत मानापमान, शौर्य-प्रदर्शन तथा अपने राज्य की रक्षा तक ही सीमित था ।

उस समय कवियों को राज्याश्रय प्राप्त था, जो अपने आश्रय-दाताओं पर वीर रस प्रधान कविताएँ रचते थे । वीरगाथा काल के ‘रासो’ काव्य इसके प्रमाण हैं । भक्तिकाल के भक्त-कवियों ने तत्कालीन हिंदू जनता की युद्धजन्य पराजित दैन्य को राम-कृष्ण गाथाओं द्वारा दूर करने की कोशिश अवश्य की थी, किंतु उनके काव्यों को राष्ट्रीय काव्य नहीं कहा जा सकता ।

रीतिकाल में मुगल शासन के विरुद्ध छिटपुट राजाओं का व्यक्तिगत मुक्ति-संग्राम तथा उनके दरबारी कवियों द्वारा रचित वीरकाव्य द्रष्टव्य हैं । अकबर के विरुद्ध राणाप्रताप और औरंगजेब के विरुद्ध शिवाजी का युद्ध-प्रयास हिंदू राष्ट्रीयता तक सीमित था ।

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अत: भूषण, सूदन और लाल की वीर रचनाएँ आश्रयदाता से हटकर साधारण जनता की नहीं बन पाई थीं । सन् १८५७ के बाद भारत में सामंतवादी राष्ट्रीयता के बदले जनतांत्रिक राष्ट्रीयता का श्रीगणेश होता है । अंग्रेजों की दमन नीति और अर्थशोषण के विरुद्ध पहला स्वर भारतेंदु की रचना ‘भारत दुर्दशा’ में फूट पड़ा ।

द्विवेदी-युग में राष्ट्र के गौरवशाली अतीत के परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रगीतों में मुक्ति-संग्राम के अभियान-गीतों का स्वर विशेष उच्चारित हुआ । क्रांग्रेस का नेतृत्व महात्मा गांधी के हाथों में आया । उन्होंने सत्य, अहिंसा, सविनय अवज्ञा, असहयोग आदोलन का राजनीति में प्रयोग किया, जिसके समांतर सामाजिक, धार्मिक तथा शैक्षिक सुधार-आंदोलन भी जोर पकड़ता गया ।

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यह संपूर्ण आंदोलन हिंदी कविता में प्रतिबिंबित हुआ । गुप्त, दिनकर, पंत, निराला, नवीन, सोहनलाल द्विवेदी, रामनरेश त्रिपाठी, श्याम नारायण पांडे आदि सभी कवियों ने देश के लिए त्याग-बलिदान से ओत-प्रोत मुक्तक गीत और खंडकाव्य रचे । राष्ट्रीयता के प्रतीक के रूप में ‘वंदे मातरम्’, ‘जन गण मन अधिकनायक’ जैसे गीतों तथा राष्ट्रीय पताका का गौरव बढ़ा ।

इस राष्ट्रीय विचारधारा से जनता की भावना जाति और धर्म की संकीर्णता से उठकर राष्ट्रीय एकता के पक्ष में व्यापक बनी; आत्मगौरव बढ़ा, अपनी संस्कृति के प्रति आस्था का प्रत्यावर्तन हुआ । इस तरह जन-जागरण का काम राष्ट्रीय कविताएँ सफलतापूर्वक करती रहीं । राष्ट्रीय विचारधारा के कारण आधुनिक हिंदी कविता-विधा की प्रतिष्ठा बड़ी । इतना ही नहीं, हिंदी स्वयं राष्ट्रभाषा कहलाई ।

साहित्य समाज का दर्पण होने के कारण समाज में व्याप्त विचारधारा साहित्य की काव्य-विधा में भाव-प्रवणता के साथ व्यक्त होती है । हिंदी सदा देशकाल के अनुसार जन- भावना को व्यक्त करती रही है । जीवन में राष्ट्रीय भावनाओं का बड़ा महत्त्व है । हिंदी कविता ने इस दायित्व का पूरी तरह से निर्वाह किया है और देश को जाग्रत् किया । कहा जा सकता है कि आधुनिक भारतीय भाषाओं में राष्ट्रीय भावनाएं हिंदी कविता में सर्वाधिक व्यक्त हुई हैं ।

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