दीपावली पर निबंध | Essay on Dipawali!

दीपावली का अर्थ है दीपों की पंक्ति । दीपावली शब्द ‘दीप’ एवं ‘आवली’ की संधि से बना है । आवली अर्थात पंक्ति, इस प्रकार दीपावली शब्द का अर्थ है, दीपों की पंक्ति । भारतवर्ष में मनाए जानेवाले सभी त्यौहारों में दीपावली का सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्व है । इसे दीपोत्सव भी कहते हैं । ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात् ‘अंधेरे से ज्योति अर्थात प्रकाश की ओर जाइए’ यह उपनिषदोंकी आज्ञा है । इसे सिख, बौद्ध तथा जैन धर्म के लोग भी मनाते हैं ।

माना जाता है कि दीपावली के दिन अयोध्या के राजा श्री रामचंद्र अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात लौटे थे । अयोध्यावासियों का हृदय अपने परम प्रिय राजा के आगमन से उल्लसित था । श्री राम के स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीए जलाए । कार्तिक मास की सघन काली अमावस्या की वह रात्रि दीयों की रोशनी से जगमगा उठी । तब से आज तक भारतीय प्रति वर्ष यह प्रकाश-पर्व हर्ष व उल्लास से मनाते हैं।

यह पर्व अधिकतर ग्रिगेरियन कैलण्डर के अनुसार अक्तूबर या नवंबर महीने में पड़ता है । दीपावली दीपों का त्योहार है । इसे दीवाली या दीपावली भी कहते हैं । दीवाली अँधेरे से रोशनी में जाने का प्रतीक है । भारतियों का विश्वास है कि सत्य की सदा जीत होती है झूठ का नाश होता है । दीपावली स्वच्छता व प्रकाश का पर्व है ।

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कई सप्ताह पूर्व ही दीपावली की तैयारियाँ आरंभ हो जाती है । लोग अपने घरों, दुकानों आदि की सफाई का कार्य आरंभ कर देते हैं । घरों में मरम्मत, रंग-रोगन, सफेदी आदि का कार्य होने लगता हैं । लोग दुकानों को भी साफ सुथरा कर सजाते हैं । बाजारों में गलियों को भी सुनहरी झंडियों से सजाया जाता है । दीपावली से पहले ही घर-मोहल्ले, बाजार सब साफ-सुधरे व सजे-धजे नजर आते हैं ।

दीप जलाने की प्रथा के पीछे अलग-अलग कारण या कहानियाँ हैं । राम भक्तों के अनुसार दीवाली वाले दिन अयोध्या के राजा राम लंका के अत्याचारी राजा रावण का वध करके अयोध्या लौटे थे । उनके लौटने कि खुशी मे आज भी लोग यह पर्व मनाते है । कृष्ण भक्तिधारा के लोगों का मत है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी राजा नरकासुर का वध किया था । इस नृशंस राक्षस के वध से जनता में अपार हर्ष फैल गया और प्रसन्नता से भरे लोगों ने घी के दीए जलाए ।

एक पौराणिक कथा के अनुसार विष्णु ने नरसिंह रुप धारणकर हिरण्यकश्यप का वध किया था, तथा इसी दिन समुद्रमंथन के पश्चात लक्ष्मी व धन्वंतरि प्रकट हुए । जैन मतावलंबियों के अनुसार चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी का निर्वाण दिवस भी दीपावली को ही है । सिक्खों के लिए भी दीवाली महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसी दिन ही अमृतसर में १५७७ में स्वर्ण मन्दिर का शिलान्यास हुआ था ।

और इसके अलावा १६१८ में दीवाली के दिन सिक्खों के छठे गुरु हरगोबिन्द सिंह जी को जेल से रिहा किया गया था । नेपालियों के लिए यह त्योहार इसलिए महान है क्योंकि इस दिन से नेपाल संवत में नया वर्ष शुरू होता है ।

दीपावली के दिन भारत में विभिन्न स्थानों पर मेले लगते हैं । दीपावली एक दिन का पर्व नहीं अपितु पवों का समूह है । दशहरे के पश्चात ही दीपावली की तैयरीयाँ आरंभ हो जाती है । लोग नए-नए वस्त्र सिलवाते हैं । दीपावली से दो दिन पूर्व धनतेरस का त्योहार आता है । इस दिन बाजारों में चारों तरफ जनसमूह उमड़ पड़ता है । बरतनों की दुकानों पर विशेष साज-सज्जा व भीड़ दिखाई देती है ।

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धनतेरस के दिन बरतन खरीदना शुभ माना जाता है अत: प्रत्येक परिवार अपनी-अपनी आवश्यकता अनुसार कुछ न कुछ खरीदारी करता है । इस दिन तुलसी या घर के द्वार पर एक दीपक जलाया जाता है । इससे अगले दिन नरक चतुर्दशी या छोटी दीपावली होती है । इस दिन यम पूजा हेतु दीपक जलाए जाते हैं । अगले दिन दीपावली आती है । इस दिन घरों में सुबह से ही तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं । बाजारों में खील-बताशे, मिठाइयाँ, खांडू के खिलौने, लक्ष्मी-गणेश आदि की मूर्तियाँ बिकने लगती हैं ।

स्थान-स्थान पर आतिशबाजी और पटाखों की दूकानें सजी होती हैं । सुबह से ही लोग रिश्तेदारों, मित्रों, सगे-संबंधियों के घर मिठाइयाँ व उपहार बाँटने लगते हैं । दीपावली की शाम लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा की जाती है । पूजा के बाद लोग अपने-अपने घरों के बाहर दीपक व मोमबत्तियाँ जलाकर रखते है । चारों ओर चमकते दीपक अत्यंत सुंदर दिखाई देते हैं । रंग-बिरंगे बिजली के बल्बों से बाजार व गलियाँ जगमगा उठते हैं । बच्चे तरह-तरह के पटाखों व आतिशबाजियों का आनंद लेते हैं । रंग-बिरंगी फुलझडियाँ आतिशबाजियाँ व अनारों के जलने का आनंद प्रत्येक आयु के लोग लेते हैं । देर रात तक कार्तिक की अँधेरी रात पूर्णिमा से भी अधिक प्रकाशयुक्त दिखाई पड़ती है ।

दीपावली से अगले दिन गोवर्धन पर्वत अपनी अँगुली पर उठाकर इद्र के कोप से डूबते ब्रजवासियों को बचाया था । इसी दिन लोग अपने गाय-बैलों को सजाते हैं तथा गोबर का पर्वत बनाकर पूजा करते हैं । अगले दिन भाई दूज का पर्व होता है ।

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दीपावली के दूसरे दिन व्यापारी अपने पुराने बहीखाते बदल देते हैं । वे दूकानों पर लक्ष्मी पूजन करतै हैं । उनका मानना है कि ऐसा करने से धन की देवी लक्ष्मी की उन पर विशेष अनुकंपा रहेगी । कृषक वर्ग के लिये इस पर्व का विशेष महत्व है । खरीफ की फसल पक कर तैयार हो जाने से कृषकों के खलिहान समृद्ध हो जाते हैं । कृषक समाज अपनी समृद्धि का यह पर्व उल्लासपूर्वक मनाता हैं ।

परंपरा:

अंधकार पर प्रकाश की विजय का यह पर्व समाज में उल्लास, भाई-चारे व प्रेम का संदेश फैलाता है । यह पर्व सामूहिक व व्यक्तिगत दोनों तरह से मनाए जाने वाला ऐसा विशिष्ट पर्व है जो धार्मिक, सांस्कृतिक व सामाजिक विशिष्टता रखता है । हर प्रांत या क्षेत्र में दीवाली मनाने के कारण एवं तरीके अलग हैं पर सभी जगह कई पीढियों से यह त्योहार चला आ रहा है । लोगों मेँ दीवाली की बहुत उमंग होती है ।

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लोग अपने घरों का कोना-कोना साफ करते हैं, नये कपड़े पहनते है । मिठाइयों के उपहार एक दूसरे को बाँटते हे, एक दूसरे से मिलते हैं । घर-घर में सुन्दर रंगोली बनायी जाती है, दिये जलाए जाते हैं और आतिशबाजी की जाती है । बड़े छोटे सभी इस त्योहार में भाग लेते हैं । अंधकार पर प्रकाश की विजय का यह पर्व समाज में उल्लास, भाई-चारे व प्रेम का संदेश फैलाता है । हर प्रांत या क्षेत्र में दीवाली मनाने के कारण एवं तरीके अलग हैं पर सभी जगह कई पीढियों से यह त्योहार चला आ रहा है । लोगों में दीवाली की बहुत उमंग होती है ।

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