Here is a compilation of Essays on ‘Diwali’ for students of the class 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 and 12  as well as for teachers. Find paragraphs, long and short essays on ‘Diwali’ (Hindu Festival) especially written for Teachers and School Students in Hindi Language.

List of Essays on Diwali


Essay Contents:

  1. दीपावली दीपों का त्यौहार । Essay on Diwali – Festival of Lights in Hindi Language (Hindu Festival)
  2. दीपावली-प्रकाश उत्सव । Essay on Diwali for Teachers in Hindi Language (Hindu Festival)
  3. दीपावली | Essay on Diwali for School Students in Hindi Language (Hindu Festival)
  4. दीपावली | Paragraph on Diwali for School Students in Hindi Language  (Hindu Festival)
  5. दीपावली । Essay on Diwali for Students of Class-5 in Hindi Language (Hindu Festival)
  6. दीपावली का त्योहार । Essay on the Festival of Diwali for Teachers in Hindi Language (Hindu Festival)
  7. दीपावली । Essay on Diwali for Students of Classes: 8, 9 and 10 in Hindi Language (Hindu Festival)
  8. दीपों का त्योहार ‘दीपावली’  | Essay on the Festival of Lights ‘Diwali’ for Teachers in Hindi Language (Hindu Festival)

1. दीपावली दीपों का त्यौहार । Essay on Diwali – Festival of Lights in Hindi Language (Hindu Festival)

भारत त्यौहारों का देश है, यहाँ समय-समय पर विभिन्न जातियों समुदायों द्वारा अपने-अपने त्यौहार मनाये जाते हैं सभी त्यौहारों में दीपावली सर्वाधिक प्रिय है । दीपों का त्यौहार दीपावली दीवाली जैसे अनेक नामों से पुकारा जाने वाला आनन्द और प्रकाश का त्यौहार है ।

यह त्यौहार भारतीय सभ्यता-संस्कृति का एक सर्वप्रमुख त्यौहार है । यह ऋतु परिवर्तन का सूचक है । इसके साथ अनेक धार्मिक मान्यताएँ भी जुड़ी हैं यह उत्साह, उल्लास, भाईचारे, साफ-सफाई तथा पूजा-अर्चना का त्यौहार है । यह त्यौहार प्रतिवर्ष कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है ।

दीपावली का त्यौहार मनाने की परंपरा कब और क्यों आरंभ हुई कहते हैं: इस दिन अयोध्या के राजा रामचंद्र लंका के अत्याचारी राजा रावण का नाश कर और चौदह वर्ष का वनवास काटकर अयो ध्या वापस लोटे थे । उनकी विजय और आगमन की खुशी के प्रतीक रूप में अयोध्यावासियों ने नगर को घी के दीपों से प्रकाशित किया था ।

प्रसन्नता के सूचक पटाखे और आतिशबाजी का प्रदर्शन कर परस्पर मिठाईयां बांटी थी । उसी दिन का स्मरण करने तथा अज्ञान-अंधकार एवं अन्याय- अत्याचार के विरूद्ध हमेशा संघर्ष करते रहने की चेतना उजागर किए रहने के लिए ही उस दिन से प्रत्येक वर्ष भारतवासी इस दिन दीप जलाकर हार्दिक हर्षोउल्लास प्रकट करते और मिठाईया खिलाकर अपनी प्रसन्नता का आदान प्रदान करते हैं ।

इस दिन जैन तीर्थकर भगवान महावीर ने जैतन्य की प्राण प्रतिष्ठा करते हुए महानिर्वाण प्राप्त किया था । स्वामी दयानंद ने भी इस दिन निर्वाण प्राप्त किया था । सिख संप्रदाय के छठे गुरू हरगोविंदजी को बंदीग्रह से छोड़ा गया था इसलिए लोगों ने दीपमाला सजाई थी ।

दीपावली आने तक ऋतु के प्रभाव से वर्षा ऋतु प्राय: समाप्त हो चुकी होती है । मौसम में गुलाबी ठंडक घुलने लगती है आकाश पर खजन पक्षियों की पंक्तिबद्ध टोलिया उड़कर उसकी नील नीरवता को चार चाद लगा दिया करती हैं । राजहंस मानसरोवर में लोट आते हैं नदियों-सरोवरों का जल इस समय तक स्वच्छ और निर्मल हो चुका होता है ।

ADVERTISEMENTS:

प्रकृति में नया निखार और खुमार आने लगता है । इन सबसे प्रेरणा लेकर लोग-बाग भी अपने-अपने घर साफ बनाकर रंग-रोगन करवाने लगते हैं इस प्रकार प्रकृति उगैर मानव समाज दोनों ही जैसे गंदगी के अंधकार को दूर भगा प्रकाश का पर्व दीपावली मनाने की तैयारी करने लगते हैं यह तैयारी दुकानों-बाजारों की सजावट और रौनक दिखाई देने लगती है ।

दीपावली को धूम-धाम से मनाने के लिए हफ्तों पहले तैयारी आरंभ हो जाती है । पांच-छ: दिन पहले फल-मेवों और मिठाइयों की दुकाने सज-धज कर खरीददारों का आकर्षण बन जाती है । मिट्टी के खिलौने दीपक अन्य प्रकार की मूर्तियाँ चित्र बनाने वाले बाजारों में आ जाते हैं ।

पटाखे, आतिशबाजी के स्टालों पर खरीददारों की भीड़ लग जाती है । खील, बताशे खिलौने मिठाईयां बनाई व खरीदी जाती हैं इन्हें बेचने के लिए बाजारों को दुल्हन की तरह सजाया जाता है । दीपावली की रात दीपकों और बिजली के छोटे-बड़े बच्चों से घरों-दुकानों का वातावरण पूरी तरह से जगमगा उठता है ।

दीपावली के लिए नए-नए कपड़े सिलाए जाते हैं मिठाई पकवान बनते हैं घर-घर में लक्ष्मी का पूजन शुभ कामनाओं का आदान-प्रदान और मुंह मीठा किया कराया जाता है । व्यापारी लक्ष्मी पूजन के साथ नए बही खाते आरम्भ करते हैं इस प्रकार दीपावली प्रसन्नता और प्रकाश का त्यौहार है । जुआ खेलना, शराब पीना जैसी कुछ कुरीतियाँ भी स्वार्थी लोगों ने इस पवित्र त्यौहार के साथ  जोड़ रखी हैं उनमें होने वाले दीवाले से सजग सावधान ही त्यौहार को आनंदपूर्ण बना सकते हैं ।


2. दीपावली-प्रकाश उत्सव । Essay on Diwali for Teachers in Hindi Language (Hindu Festival)

हिन्दू धर्म में यों तो रोजाना कोई न कोई पर्व होता है लेकिन इन पर्वों में मुख्य त्यौहार होली, दशहरा और दीपावली ही हैं । हमारे जीवन में प्रकाश फैलाने वाला दीपावली का त्यौहार कार्तिक मास की अमावस्या के दिन मनाया जाता है । इसे ज्योति पर्व या प्रकाश उत्सव भी कहा जाता है ।

इस दिन अमावस्या की अंधेरी रात दीपकों व मोमबत्तियों के प्रकाश से जगमगा उठती है । वर्षा ऋतु की समाप्ति के साथ-साथ खेतों में खड़ी धान की फसल भी तैयार हो जाती है । दीपावली का त्यौहार कार्तिक मास की अमावस्या को आता है । इस पर्व की विशेषता यह है कि जिस सप्ताह में यह त्यौहार आता है उसमें पांच त्यौहार होते हैं ।

इसी वजह से सप्ताह भर लोगों में उल्लास व उत्साह बना रहता है । दीपावली से पहले धन तेरस पर्व आता है । मान्यता है कि इस दिन कोई-न-कोई नया बर्तन अवश्य खरीदना चाहिए । इस दिन नया बर्तन खरीदना शुभ माना जाता है । इसके बाद आती है छोटी दीपावली, फिर आती है दीपावली । इसके अगले दिन गोवर्द्धन पूजा तथा अन्त में आता है भैयादूज का त्यौहार ।

अन्य त्यौहारों की तरह दीपावली के साथ भी कई धार्मिक तथा ऐतिहासिक घटनाएं जुड़ी हुई हैं । समुद्र-मंथन करने से प्राप्त चौदह रत्नों में से एक लक्ष्मी भी इसी दिन प्रकट हुई थी । इसके अलावा जैन मत के अनुसार तीर्थंकर महावीर का महानिर्वाण भी इसी दिन हुआ था ।

भारतीय संस्कृति के आदर्श पुरुष श्री राम लंका नरेश रावण पर विजय प्राप्त कर सीता लक्ष्मण सहित अयोध्या लौटे थे उनके अयोध्या आगमन पर अयोध्यावासियों ने भगवान श्रीराम के स्वागत के लिए घरों को सजाया व रात्रि में दीपमालिका की ।

ADVERTISEMENTS:

ऐतिहासिक दृष्टि से इस दिन से जुड़ी महत्वपूर्ण घटनाओं में सिक्खों के छठे गुरु हरगोविन्दसिंह मुगल शासक औरंगजेब की कारागार से मुक्त हुए थे । राजा विक्रमादित्य इसी दिन सिंहासन पर बैठे थे । सर्वोदयी नेता आचार्य विनोबा भावे दीपावली के दिन ही स्वर्ग सिधारे थे । आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द तथा प्रसिद्ध वेदान्ती स्वामी रामतीर्थ जैसे महापुरुषों ने इसी दिन मोक्ष प्राप्त किया था ।

यह त्यौहार बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है । इस दिन लोगों द्वारा दीपों व मोमबत्तियाँ जलाने से हुए प्रकाश से कार्तिक मास की अमावस्या की रात पूर्णिमा की रात में बदल जाती है । इस त्यौहार के आगमन की प्रतीक्षा हर किसी को होती है ।

सामान्यजन जहां इस पर्व के आने से माह भर पहले ही घरों की साफ-सफाई, रंग-पुताई में जुट जाते हैं । वहीं व्यापारी तथा दुकानदार भी अपनी-अपनी दुकानें सजाने लगते हैं । इसी त्यौहार से व्यापारी लोग अपने बही-खाते शुरू किया करते हैं । इस दिन बाजार में मेले जैसा माहौल होता है ।

बाजार तोरणद्वारों  तथा रंग-बिरंगी पताकाओं से सजाये जाते हैं । मिठाई तथा पटाखों की दुकानें खूब सजी होती हैं । इस दिन खील-बताशों तथा मिठाइयों की खूब बिक्री होती है । बच्चे अपनी इच्छानुसार बम, फुलझड़ियां तथा अन्य आतिशबाजी खरीदते हैं ।

ADVERTISEMENTS:

इस दिन रात्रि के समय लक्ष्मी पूजन होता है । माना जाता है कि इस दिन रात को लक्ष्मी का आगमन होता है । लोग अपने इष्ट-मित्रों के यहां मिठाई का आदान-प्रदान करके दीपावली की शुभकानाएँ लेते-देते हैं । वैज्ञानिक दृष्टि से भी इस त्यौहार का अपना एक अलग महत्व है ।

इस दिन छोड़ी जाने वाली आतिशबाजी व घरों में की जाने वाली सफाई से वातावरण में व्याप्त कीटाणु समाप्त हो जाते हैं । मकान और दुकानों की सफाई करने से जहां वातावरण शुद्ध हो जाता है वहीं वह स्वास्थ्यवर्द्धक भी हो जाता है ।

कुछ लोग इस दिन जुआ खेलते हैं व शराब पीते हैं, जोकि मंगलकामना के इस पर्व पर एक तरह का कलंक है । इसके अलावा आतिशबाजी छोड़ने के दौरान हुए हादसों के कारण दुर्घटनाएं हो जाती हैं जिससे धन-जन की हानि होती है । इन बुराइयों पर अंकुश लगाने की आवश्यकता है ।


3. दीपावली | Essay on Diwali for School Students in Hindi Language (Hindu Festival)

भूमिका:

‘तमसो माँ ज्योतिर्गमय’ की वेदोक्ति हमें अन्धकार को छोड़ प्रकाश की ओर बढ़ने की विमल प्रेरणा देती है । अन्धकार अज्ञान तथा प्रकाश ज्ञान का प्रतीक होता है । जब हम अपने अज्ञान रूपी अन्धकार को हटाकर ज्ञान रूपी प्रकाश को प्रज्जलित करते हैं, तो हमे एक असीम व अलौकिक आनन्द की अनुभूति होती है ।

ADVERTISEMENTS:

दीपावली भी हमारे ज्ञान रूपी प्रकाश का प्रतीक है । अज्ञान रूपी अमावस्या में हम ज्ञान रूपी दीपक जलाकर ससार की सुख व शान्ति की कामना करते हैं । दीपावली का त्यौहार मनाने के पीछे यही आध्यात्मिक रहस्य निहित है ।

तात्पर्य व स्वरूप:

दीप+अवलि से दीपावली शब्द की व्यत्पत्ति होती है । इस त्यौहार के दिन दीपो की अवलि पक्ति बनाकर हम अन्धकार को मिटा देने में जुट जाते हैं । दीपावली का यह पावन पर्व कार्तिक मास की अमावस्या के दिन मनाया जाता है ।

गर्मी व वर्षा को विदा कर शरद के स्वागत में यह पर्व मनाया जाता है । उसके बाद शरद चन्द्र की कमनीय कलाएँ सबके चित्त-चकोर को हर्ष विभोर कर देती हैं । शरद पूर्णिमा को ही भगवान् कृष्ण ने महारास लीला का आयोजन किया था ।

महालक्ष्मी पूजा:

यह पर्व प्रारम्भ में महालक्ष्मी पूजा के नाम से मनाया जाता था । कार्तिक अमावस्या के दिन समुद्र मथन   में महालक्ष्मी का जन्म हुआ । लक्ष्मी धन की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण धन के प्रतीक स्वरूप इसको महालक्ष्मी पूजा के रूप में मनाते आये । आज भी इस दिन घर में महालक्ष्मी की पूजा होती है ।

ज्योति पर्व दीपावली के रूप में:

ADVERTISEMENTS:

भगवान् राम ने अपने चौदह वर्ष का वनवास समाप्त कर, पापी राबण का वध करके महालक्ष्मी के पुण्य अवसर पर अयोध्या पहुंचने का निश्चय किया, जिसकी सूचना हनुमान द्वारा पहले ही पहुँचा दी गयी ।

इसी प्रसन्नता में अयोध्यावासियो ने राम के स्वागतार्थ घर-घर में दीप मालाएँ प्रज्ज्वलित कर दी । महालक्ष्मी की पूजा का यह पर्व तब से राम के अयोध्या आने की खुशी में दीप जलाकर मनाया जाने लगा और यह त्यौहार दीपावली के ही नाम से प्रख्यात हो गया ।

स्वच्छता का प्रतीक:

दीपावली जहाँ अन्त:  करण के ज्ञान का प्रतीक है वही बाह्य स्वच्छता का प्रतीक भी है । घरों में मच्छर, खटमल, पिम्स आदि विषैले किटाणु धीरे-धीरे अपना घर बना लेते हैं । मकड़ी के जाले लग जाते हैं, इसलिये दीपावली से कई दिन पहले से ही घरो की लिपाई-पोताई-सफेदी हो जाती है । सारे घर को चमका कर स्वच्छ किया जाता है । लोग अपनी परिस्थिति के अनुकूल घरों को विभिन्न प्रकारेण सजाते हैं ।

दीपावली को मनाने की परम्परा:

दीपावली जैसा कि उसके नाम से ही ज्ञात होता है, घरो  में दीपों की पंक्ति बना कर जलाने की परम्परा है । वास्तव में प्राचीन काल से इस त्यौहार को इसी तरह मनाते आये हैं । लोग अपने मकानों की मुण्डेरो में, प्रागण की दीवालों में, दीपो की पंक्ति बनाकर जलाते हैं । मिट्टी के छोटे-छोटे दीपो में तेल, बाती, रख कर उन्हें पहले से पंक्तिबद्ध रखा जाता है ।

आजकल मोमबत्तियाँ लाईन बनाकर जलाई जाती हैं । दीपावली के दिन नवीन व स्वच्छ वस्त्र पहनने की परम्परा भी है । लोग दिन भर बाजार से नवीन वस्त्र, बर्तन, मिठाई, फल आदि खरीदते हैं । दुकाने  बड़े आकर्षक ढंग से सजी रहती हैं ।

बाजारो, दुकानो की सजावट तो देखते ही बनती है । लोग घर पर मिठाई लाते हैं और उसे अपने मित्रो व सगे-सम्बन्धियों  में वितरित करते हैं । घर में भी विविध प्रकार के पकवान पकाये जाते हैं ।

त्यौहार में विकार:

किसी अच्छे उद्देश्य को लेकर बने त्यौहारो में भी कालान्तर में विकार पैदा हो जाते हैं । जिस लक्ष्मी की पूजा लोग धन-धान्य प्राप्ति हेतू बड़ी श्रद्धा से करते थे, उसकी पूजा कई लोग अज्ञानतावश रुपयों का खेल खेलने के लिये जुए के द्वारा भी करते हैं ।

जुआ खेलना एक प्रथा है जो समाज व पावन पर्सों के लिये  कलंक है । इसके अतिरिक्त आधुनिक युग में बम पटाखों के प्रयोग से भी कई दुष्परिणाम सामने आते हैं । निबन्ध ।

उपसंहार:

दीपावली का पर्व सभी पर्वो में एक विशिष्ट स्थान रखता है । हमे अपने पवाँ की परम्पराओ को हर स्थिति में सुरक्षित रखना चाहिए । परम्पराएँ हमे उसके प्रारम्भ व उद्देश्य की याद दिलाती हैं । परम्पराएँ  हमें उस पर्व के आदि काल में पहुँचा देती हैं, जहाँ हमे अपनी आदिकालीन सस्कृति का ज्ञान होता है ।

आज हम अपने  त्यौहारों को भी आधुनिक सभ्यता का रग देकर मनाते हैं, परन्तु इससे हमे उसके आदि स्वरूप को बिगाड़ना  नहीं चाहिए । हम सबका कर्त्तव्य है कि हम अपने पवाँ की पवित्रता को बनाये रखे ।


4.  दीपावली | Paragraph on Diwali for School Students in Hindi Language (Hindu Festival)

दीपावली हिन्दुओं का महत्वपूर्ण त्यौहार है । सम्पूर्ण भारत में यह अति उत्साह के साथ मनाया जाता है । इस त्यौहार के साथ बहुत-सी जनश्रुतियाँ एवं दंत कथायें जुड़ी हैं । यह भगवान राम की रावण पर विजय की प्रतीक है । वस्तुत: यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की विजय को प्रमाणित करता है ।

दीपावली के दिन पूरे देश में उत्तेजना का वातावरण होता है । लोग अपने सगे सम्बन्धियों को आमन्त्रित करते है । इस त्यौहार पर मिठाइयाँ बनाई जाती हैं एवं मित्रों व रिश्तेदारों में उनका आदान-प्रदान किया जाता है । लोग दीपावली के दिन आमोद-प्रमोद में व्यस्त रहते  हैं ।

अमीर-गरीब बाल-वृद्ध सभी नये कपड़े पहनते हैं । बच्चे और वृद्ध अपनी सबसे अच्छी चमकीली पोशाक धारण करते हैं । इसी तरह रात को पटाखे और आतिशबाजी की जाती है । मधेरी रात में आतिशबाजी एक मनोहर दृश्य बनाती है ।

चारों ओर बहुत खूबसूरत नजारा होता है । सभी अच्छे कपड़ों में उल्लास में व्यस्त रहते हैं । कुछ लोग त्यौहार को बहुत उमग और उत्साह से मनाते हैं तो कुछ लोग जुआ खेलते हैं । जुआरियों के लिये जुआ दीपावली का एक हिस्सा है और उनके अनुसार जो भी इस दिन जुआ नहीं खेलता अगले जन्म में गधा बनता है ।

रात्रि में लोग अपने घरों को सजाते हैं । तरह-तरह से रोशनी करते हैं, मोमबत्तियाँ जलाते हैं, दिये जलाते हैं एवं लड़ियाँ लगाते हैं । वह खाते-पीते मौज मनाते हैं व पटाखे जलाते हैं । सारा शहर रोशनी और पटाखों की आवाज में डूब जाता है ।

घरों के अतिरिक्त सार्वजनिक इमारतें एवं सरकारी कार्यालयों पर भी रोशनी की जाती है । उस साय का दृश्य बहुत मनोहर होता है । बहुत से हिन्दु दीपावली मनाने से पूर्व गणपति सरस्वती व लक्ष्मी की पूजा करते हैं । हिन्दु इस दिन धन की देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं । वह धन की देवी से प्रार्थना करते हैं वह उनके घर पर कृपा करे ।

दीपावली सम्पूर्ण देश का त्यौहार है । यह देश के प्रत्येक हिस्से में मनाया जाता है । इस तरह यह लोगों में एकता की भावना को बलवती करता है । भारत में यह त्यौहार हजारों वर्षों से मनाया जा रहा है एवं आज भी उतने धूमधाम से मनाया जाता है । सभी भारतीयों का यह प्रिय त्यौहार है ।


5. दीपावली । Essay on Diwali for Students of Class-5 in Hindi Language (Hindu Festival)

दीपावली अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक-पर्व है । यह हिन्दुओं का एक प्रमुख त्यौहार है । इसे प्रतिवर्ष कार्तिक कृष्ण अमावस्या को मनाया जाता है । दीपावली एक ऐसा पर्व है जिसके आगे-पीछे कई पर्व मनाए जाते हैं । धनतेरस से इस पर्व का आरंभ होता है और लोग लक्ष्मी, गणेश, बरतन तथा पूजा की सामग्री खरीदते हैं ।

धनतेरस को धन्वन्तरि जयन्ती के रूप में भी मनाया जाता है । धन्वन्तरि वैद्यों के शिरोमणि थे ।  धनतेरस के दूसरे दिन नरक चतुर्दशी होती है । इस दिन व्यापक रूप से सफाई की जाती है तथा भगवती लक्ष्मी के आगमन के लिए घर-बाहर काफी सजावट की जाती है । इसे छोटी दीपावली कहने का भी गौरव प्राप्त है ।

इस दिन घर में आसपास सरसों के तेल के दीये जलाकर रखे जाते हैं तथा दूसरे दिन भगवती लक्ष्मी के आह्वान के लिए स्तुति व पूजन किया जाता है । धनतेरस, नरक चतुर्दशी के पश्चात् चिर प्रतीक्षित दीपावली का महापर्व आता है । प्रात: काल से ही दीपावली के पूजन तथा घरों को सजाने-संवारने का काम शुरू होता है । कुछ लोग दीपावली के दिन रात 12 बजे भी भगवती लक्ष्मी की पूजा करते हैं ।

दीपावली के पर्व की शुरुआत कब से हुई इसके विषय में अनेक कथाएं हैं जिनमें सबसे ज्यादा प्रचलित तथा मानने योग्य कथा यह है कि रावण का वध करने के उपरान्त जब भगवान राम अयोध्या वापस आए थे तो लोगों ने उनके स्वागत के लिए घर-बाहर सभी जगह दीपक जलाए थे ।

दीपक जलाने का रिवाज तभी से चला आ रहा है । इस अवसर पर श्रीराम की पूजा करने का विधान होना चाहिए था लेकिन आजकल लोग लक्ष्मी, गणेश की पूजा करते हैं । हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार लक्ष्मी समृद्धि तथा धन-सम्पत्ति की देवी हैं । भगवान गणेश की भी यही विशेषता है ।

दीपावली के त्योहार में जहां अनेक गुण हैं वहीं इस त्योहार के कुछ दुर्गुण भी हैं दीपावली खर्चीला त्योहार है । कुछ लोग कर्ज लेकर भी इस त्योहार को धूमधाम से मनाते हैं । नए कपड़े पहनते हैं, कार्ड भेजते हैं तथा डटकर मिठाई छकते हैं । नतीजा यह होता है कि यदि त्योहार महीने के बीच या महीने के शुरू में पड़ता है तो आम नागरिक को पूरा महीना आर्थिक दिक्कतों से काटना पड़ता है ।

इस प्रकार यह त्योहार आम लोगों के लिए सुखकारी होने की जगह दु:ख (ऋण) कारी सिद्ध होता है । दीपावली पर्व के विषय में एक आम धारणा यह भी है कि इस त्योहार के लिए जुआ खेलने से लक्ष्मीजी प्रसन्न होती हैं तथा वर्ष-भर धन आता रहता है ।

कितना बड़ा अंधविश्वास लागों के मन में समाया हुआ है । इस अंधविश्वास के कारण लक्ष्मी और गणेश पूजन का यह महापर्व लोगों के आकस्मिक संकट का कारण बन जाता है । कुछ लोग जुए में अपना सर्वस्व एक ही रात में गंवा बैठते हैं ।

समय तथा परिस्थितियों के कारण इस पर्व के मनाने में जो तमाम पैसा पटाखों, फुलझड़ियों में बरबाद किया जाता है, वह रोका जाना चाहिए । इससे हमारा पैसा तो आग के सुपुर्द होता ही है, इसके साथ-साथ

कभी-कभी ऐसी दुर्घटनाएं भी हो जाती हैं जो जीवनभर के लिए व्यक्ति को अपंग बना देती हैं ।


6. दीपावली का त्योहार । Essay on the Festival of Diwali for Teachers in Hindi Language (Hindu Festival)

1. भूमिका

2. दीपावली का सन्देश ।

3. दीपावली का प्रतीकात्मक महत्त्व ।

4. दीपावली क्यों मनाई जाती है?

5. दीपावली का महत्त्व ।

1. भूमिका:

कार्तिक अमावस्या की रात में जब हजारों लाखों दीपक एक साथ जल उठते हैं और एक ज्योति से सहस्त्रों को ज्योर्तिमय बना देने वाले ये दीपक मानो कह उठते हैं: जलो और प्रखरता से जलो, जलते रहो, स्नेह इसमें अभी भरा हुआ है । बाती बहुत लम्बी है ।

झरोखे, मुंडेरों और घर के प्रत्येक द्वार पर सजे ये दीपक प्रकाश माला से अभिनन्दन करते हैं, उन सभी स्नेहीजनों और शुभचिन्तकों का, जिनके प्रति हमारे हृदय में शुभकामनाएं हैं, जिनकी अभिव्यक्ति, अपने प्रकाश और उसके भाव तरंगों से करते हुए ये दीपक आलोक पर्व दीपावली की सार्थकता को सिद्ध करते हैं ।

2. दीपावली का सन्देश:

‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ का सन्देश देता अमावस्या की रात्रि में जलता हुआ, टिमटिमाता हुआ दीपक अन्धकार से संघर्ष करता है । उसे यह ख्याल नहीं आता कि पृथ्वी पर इतना गहन अन्धकार है, मैं अकेला इसे कैसे दूर भगाऊंगा ।

वह जलता रहता है, इसी आत्मप्रेरणा से । जलना उसका जीवन है, जलकर प्रकाश देना, बड़ी उसका प्रयोजन है । उसका जीवन मूल्य भी । मानव मन को प्रेरणा देता वह दीपक अज्ञान तिमिर का नाश करके ज्ञान के ज्योतिर्मय प्रकाश को सर्वत्र आलोकित करने का सन्देश भरता है । काली कलूटी अमावस्या की रात प्रकाश में नहाकर शुचिता का सन्देश लाती है । ऐसी शुचिता या स्वच्छता, जो केवल वातावरण की नहीं, शरीर-मन और आचरण से भी जुड़ी हुई है ।

बरसात के चार महीनों में धीरे-धीरे जमी हुई गन्दगी, जो दीपावली के दिनों में ही साफ होती है, घरों के आसपास बरसाती पानी और कीचड़ से इकट्‌ठी हुई गन्दगी, जब लिपाई-पोताई से बाहर आ जाती है और जब सभी प्रकार की आन्तरिक कलुषताओं का निष्कासन होता है, तो उस साफ, सुन्दर, स्वच्छ स्थान पर विराजमान होती हैं लक्ष्मी देवी ।

3. दीपावली का प्रतीकात्मक महत्त्व:

कहा भी जाता रहा है कि लक्ष्मी देवी इस दिन भ्रमण करते हुए जिस भी स्थान को स्वच्छ, सुन्दर व आकर्षक देखती हैं, वहीं निवास करती हैं । गन्दे, मलिन स्थानों की ओर वह ताकती भी नहीं । यह सत्य है कि समृद्धि और सम्पन्नता का वास स्वच्छ स्थानों पर होता है । प्रतीकात्मक रूप से हमारे देश में समाज में व्याप्त दरिद्रता का कारण बाहरी वातावरण में व्याप्त वह गन्दगी है, जो घुस आयी है हमारे शरीर में ।

मानस में विकृतियों के रूप में, असत्य कपटाचरण, भ्रष्टाचार की वह गन्दगी, जो हमें श्रीहीनअकर्मण्य बना रही है । यदि हमारा शरीर स्वच्छ नहीं, तो स्वास्थ्य पर कुप्रभाव पड़ेगा ही, रोग उत्पन्न होंगे, शरीर आलस्य व प्रमाद से भरा होगा, क्रियाशीलता का अभाव होगा, कुछ मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी होंगे । दीपावली में की जाने वाली स्वच्छता का महत्त्व आन्तरिक एवं बाह्य दोनों प्रकार से है । नरकासुर के मारे जाने का अर्थ गन्दगी के असुर के मारे जाने से है ।

4. दीपावली क्यों मनाई जाती है:

दीपावली पर्व का सम्बन्ध कई पौराणिक, ऐतिहासिक गाथाओं से है । पौराणिक कथा के अनुसार जब राजा बलि ने अन्य देवताओं के साथ-साथ लक्ष्मीजी को भी बंदी बना लिया था, तब भगवान् विष्णु ने वामन का रूप धारण कर इसी दिन लक्ष्मीजी को छुड़वाया था । नरकासुर इसी दिन मारा गया था ।

लंकापति रावण को मारकर जब भगवान् राम 14 वर्षों के वनवास की अवधि पूरी कर लक्ष्मणजी, सीताजी सहित अयोध्यापुरी पहुंचे थे, तब अयोध्यावासियों ने घी के दीपक जलाकर उनका स्वागत किया था । इसी दिन राज्याभिषेक होने पर अयोध्यावासियों ने दीपकोत्सव मनाकर रामजी का अभिनन्दन किया था ।

सरस्वती और स्वामी रामतीर्थ ने अपने पवित्र शरीर का त्याग किया और सहस्त्रों मनुष्यों को ज्ञान का प्रकाश दिया । आज से लगभग ढाई हजार पूर्व में पावापुरी कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को महावीर ने निर्वाण प्राप्त किया था ।

उस अंधेरी रात में सुर, मनुष्य, नाग, गन्धर्व ने रत्नों के दीपक जलाये । इस दिन ब्रह्ममुहूर्त में बुद्ध के प्रमुख शिष्य इन्द्राभूति गौतम ने ज्ञान लक्ष्मी प्राप्त की थी । दीपावली पर्व वैज्ञानिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है; क्योंकि दीपक के प्रकाश से वातावरण की वायु शुद्ध हो जाती है, वर्षा के प्रभाव से बीमारी फैलाने वाले कीटाणु कीट-पतंगे जलकर मर जाते हैं ।

5. दीपावली का महत्त्व:

दीपावली हमारे लिए कर्मठता और जागरूकता का सन्देश भी लाती है । शास्त्रों के अनुसार-जो व्यक्ति लक्ष्मीजी का पूजन नहीं करता, आलस्य व प्रमाद में रमा रहता है, उसके घर लक्ष्मी नहीं आतीं । लक्ष्मी के वास के लिए जहां आन्तरिक, बाह्य शुद्धता का महत्त्व है. वहीं लक्ष्मी प्राप्त करने के लिए न्याय एवं श्रमपूर्वक उसकी उपासना भी करनी होती है ।

पूजा-पाठ की स्वच्छता के साथ नित्यापयोगी वस्तुओं की शुद्धता का ध्यान रखना, मन को छल-कपट, द्वेष-दम्भ, मिथ्या एवं घूर्णित प्रवृतियों से दूर रखना, यह सब आवश्यक है । जब समुद्र मन्धन से लक्ष्मीजी प्रकट हुई थीं, तब उनके साथ कुछ बुराइयों का समावेश भी था ।

जैसे-चन्द्रमा के साथ टेढ़ापन, उच्चैश्रवा: घोड़े के साथ चंचलता, कालकूट के साथ मोहनी शक्ति । मदिरा से मद और कौस्तुभ मणि के साथ निघूरता थी । अत: लक्ष्मी के आगमन के साथ-साथ मानव चित्त में यह बुराइयां समाविष्ट हो सकती हैं, अत: ऋषियों ने लक्ष्मीजी के साथ शुद्धता का दृष्टिकोण रखा ।

हमें अपने घर के साथ-साथ गली, मुहल्ले और सार्वजनिक स्थानों की स्वच्छता पर भी ध्यान देना चाहिए, जो समाज व राष्ट्र के लिए भी उपयोगी होगी; क्योंकि समृद्धि और सम्पन्नता शुचिपूर्ण, स्निग्ध वातावरण में ही फैलती है ।

हमारे देश में दीनता, दरिद्रता का जो वास है, उसका कारण पूर्णरूपेण आन्तरिक एवं बाह्य अस्वच्छता से है, गन्दगी से है । जनमानस में फैली हुई अनैतिकता व धूल-कचरे क्ते हटाना होगा । दीपावली का त्योहार आर्थिक उत्थान का सामूहिक प्रयत्न भी है । इस दिन सभी व्यापारी साल-भर में होने वाले लाभ-हानि का विचार करते हैं । लाभकारी योजनाएं बनाते हैं । धन समाज व राष्ट्र का मेरुदण्ड है ।

अत: इसे प्राप्त करने के लिए कर्मठता, विवेक, ईमानदारी का होना आवश्यक है । जुआखोरी, रिश्वतखोरी के तरीके अपनाकर धन का दुरूपयोग सामाजिक अशान्ति का कारण बन सकता है । अत: हम इसके सामाजिक, मनोवैज्ञानिक, व्यावहारिक पहलू को समझें, देश के लिए स्वस्थ आर्थिक पुनरूत्थान का रास्ता ढूंढें ।

दीपावली पर्व है भीतर और बाहर के अन्धकार को नष्ट कर समूचे वातावरण को प्रकाशमय बनाने का । आर्थिक वैभव और मानसिक उल्लास का, गन्दगी और समृद्धि में परस्पर विरोध का, भीतर और बाहर की स्वच्छता का, ज्योत से ज्योत जलाकर नवप्रकाश से ज्ञानालोक को आलोकित करने का, सदगुणों एवं समृद्धि का, निराशा को ज्ञान के आलोक से आशा में परिवर्तित करने का, सबके प्रति स्नेही शुभकामनाओं का ।


7. दीपावली । Essay on Diwali for Students of Classes: 8, 9 and 10 in Hindi Language (Hindu Festival)

दीपावली हिंदुओं का प्रमुख पर्व है । यह पर्व समूचे भारत में उत्साह के साथ मनाया जाता है । वर्षा और शरद् ऋतू के संधिकाल का यह मंगलमय पर्व है । यह कृषि से भी संबंधित है । ज्वार, बाजरा, मक्का, धान, कपास आदि इसी ऋतु की देन हैं । इन फसलों को ‘खरीफ’ की फसल कहते हैं ।

इस त्योहार के पीछे भी अनेक कथाएँ हैं । कहा जाता है कि जब श्रीरामचंद्र रावण का वध करके अयोध्या लौटे, तब उस खुशी में उस दिन घर-घर एवं नगर-नगर में दीप जलाकर यह उत्सव मनाया गया । उसी समय से दीपावली की शुरुआत हुई ।

यह भी कहा जाता है कि श्रीकृष्ण ने नरकासुर का इसी दिन संहार किया था । यह भी कहा जाता है कि वामन का रूप धारण कर भगवान् विष्णु ने दैत्यराज बलि की दानशीलता की परीक्षा लेकर उसके अहंकार को मिटाया था । तभी तो विष्णु भगवान् की स्मृति में यह पर्व मनाया जाता है ।

जैन धर्म के अनुसार, चौबीसवें तीर्थंकर भगवान् महावीर ने इसी दिन पृथ्वी पर अपनी अंतिम ज्योति फैलाई थी और वे मृत्यु को प्राप्त हो गए थे । आर्यसमाज के प्रवर्तक स्वामी दयानंद सरस्वती की मृत्यु भी इसी अवसर पर हुई थी । इस प्रकार इन महापुरुषों की स्मृतियों को अमर बनाने के लिए भी यह त्योहार बहुत उल्लास के साथ मनाया जाता है ।

यह त्योहार पाँच दिनों तक चलता रहता है । त्रयोदशी के दिन ‘धनतेरस’ मनाया जाता है । उस दिन नए-नए बरतन खरीदना बहुत शुभ माना जाता है । एक कथा प्रचलित है कि समुद्र-मंथन से इसी दिन देवताओं के वैद्य ‘धन्वंतरि’ निकले थे ।  इस कारण इस दिन ‘धन्वंतरि जयंती’ भी मनाई जाती है ।

दूसरे दिन कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को ‘नरक चतुर्दशी’ अथवा ‘छोटी दीपावली’ का उत्सव मनाया जाता है । श्रीकृष्ण द्वारा नरकासुर के वध के कारण यह दिवस ‘नरक चतुर्दशी’ के नाम से जाना जाता है । अपने-अपने घरों से गंदगी दूर कर देना ही एक प्रकार से नरकासुर के वध को प्रतीक रूप में मान लिया जाता है ।

तीसरे दिन अमावस्या होती है । दीपावली उत्सव का यह प्रधान दिन है । रात्रि के समय लक्ष्मी-पूजन होता है । उसके बाद लोग अपने घरों को दीप-मालाओं से सजाते हैं । बच्चे-बूढ़े फुलझड़ी और पटाखे छोड़ते हैं । सारा वातावरण धूम-धड़ाके से गुंजायमान हो जाता है । इस प्रकार अमावस्या की रात रोशनी की रात में बदल जाती है ।

चौथे दिन ‘गोवर्द्धन-पूजा’ होती है । यह पूजा श्रीकृष्ण के गोवर्द्धन धारण करने की स्मृति में की जाती है । स्त्रियाँ गोबर से गोवर्द्धन की प्रतिमा बनाती हैं । रात्रि को उनकी पूजा होती है । किसान अपने-अपने बैलों को नहलाते हैं और उनके शरीर पर मेहँदी एवं रंग लगाते हैं ।

इस दिन ‘अन्नकूट’ भी मनाया जाता है । पाँचवें दिन ‘भैयादूज’ का त्योहार होता है । इस दिन बहनें अपने-अपने भाइयों को तिलक लगाकर उनके लिए मंगल-कामना करती हैं । कहा जाता है कि इसी दिन यमुना ने अपने भाई यमराज के लिए कामना की थी ।

तभी से यह पूजा चली आ रही है । इसीलिए इस पर्व को ‘यम द्वितीया’ भी कहते हैं । दरअसल दीपावली का पर्व कई रूपों में उपयोगी है । इसी बहाने टूटे-फूटे घरों, दूकान, फैक्टरी आदि की सफाई-पुताई हो जाती    है । वर्षा ऋतु में जितने कीट-पतंगे उत्पन्न हो जाते हैं, सबके सब मिट्‌टी के दीये पर मँडराकर नष्ट हो जाते हैं ।

जहाँ दीपावली का त्योहार हमारे लिए इतना लाभप्रद है, वहीं इस त्योहार के कुछ दोष भी हैं । कुछ लोग आज के दिन जुआ आदि खेलकर अपना धन बरबाद करते हैं । उनका विश्वास है कि यदि जुए में जीत गए तो लक्ष्मी वर्ष भर प्रसन्न रहेंगी । इस प्रकार से भाग्य आजमाना कई बुराइयों को जन्म देता है, एक बात और, दीपावली पर अधिक आतिशबाजी से बचना चाहिए, क्योंकि इसका धुआँ हमारे पर्यावरण के लिए हानिकारक है ।


8.  दीपों का त्योहार दीपावली  | Essay on the Festival of Lights ‘Diwali’ for Teachers in Hindi Language (Hindu Festival)

हिन्दुओं के मुख्य त्योहार होली, दशहरा और दीपावली ही हैं । दीपावली का त्योहार प्रति वर्ष कार्तिक मास की अमावस्या को देश के एक कोने से दूसरे कोने तक बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है । वैसे इस त्योहार की धूम-धाम कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से कार्तिक शुक्ल द्वितीय अर्थात् पाँच दिनों तक रहती है ।

दीपावली का त्योहार कार्तिक मास की अमावस्या को आता है । दीवाली के पर्व की यह विशेषता है कि इसके साथ चार त्योहार और मनाये जाते हैं । दीपावली का उत्साह एक दिन नहीं, अपितु पूरे सप्ताह भर रहता है । दीपावली से पहले धन तेरस का पर्व आता है ।

सभी हिन्दू इस दिन कोई-न-कोई नया बर्तन अवश्य खरीदते हैं । धन तरस के बाद छोटी दीपावली; आगे दिन दीपावली, उसके अगले दिन गोवर्द्धन-पूजा तथा इस कड़ी में अंतिम त्योहार भैयादूज का होता है । प्रत्येक त्योहार किसी-न-किसी महत्त्वपूर्ण घटना से जुड़ा रहता है ।

दीपावली के साथ भी कई धार्मिक तथा ऐतिहासिक घटनाएँ जुड़ी हुई हैं । इसी दिन विष्णु ने नृसिंह का अवतार लेकर प्रह्लाद की रक्षा की थी । समुद्र-मंथन करने से लक्ष्मी भी इसी दिन प्रकट हुई थीं । जैन मत के अनुसार तीर्थकर महावीर का महानिर्वाण इसी दिन हुआ था ।

रामाश्रयी सम्प्रदाय वालों के अनुसार चौदह वर्ष का वनवास व्यतीत कर राम इसी दिन अयोध्या लौटे थे । उनके आगमन की प्रसन्नता में नगरवासियों ने दीपमालाएँ सजाई थीं । इसे प्रत्येक वर्ष इसी उत्सव के रूप में मनाया जाता है । इसी दिन सिक्खों के छठे गुरु हरगोविन्दसिंह औरंगजेब जेल से मुक्त हुए थे ।

आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द तथा प्रसिद्ध वेदान्ती स्वामी रामतीर्थ ने इसी दिन मोक्ष प्राप्त किया था । इस त्योहार का संबंध ऋतु परिवर्तन से भी है । इसी समय शरद ऋतु का आगमन लगभग हो जाता है । इससे लोगों के खान-पान, पहनावे और सोने आदि की आदतों में भी परिवर्तन आने लगता है ।

नवीन कामनाओं से भरपूर यह त्योहार बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है । कार्तिक मास की अमावस्या की रात पूर्णिमा की रात बन जाती है । इस त्योहार की प्रतीक्षा बहुत पहले से की जाती है । लोग अपने-अपने घरों की सफाई करते हैं । व्यापारी तथा दुकानदार अपनी-अपनी दुकानें सजाते हैं तथा लीपते-पोतते हैं । इसी त्योहार से दुकानदार लोग अपने बही-खाते शुरू करते हैं ।

ADVERTISEMENTS:

दीपावली के दिन घरों में दिए, दुकानों तथा प्रतिष्ठानों पर सजावट तथा रोशनी की जाती है । बाजारों में खूब चहल-पहल होती है । मिठाई तथा पटाखों की दुकानें खूब सजी होती हैं । इस दिन खलि-बताशों तथा मिठाइयों की खूब बिक्री होती है । बच्चे अपनी इच्छानुसार बम, फुलझड़ियां तथा अन्य पटाखे खरीदते हैं ।

रात्रि के समय लक्ष्मी-गणेश का पूजन होता है । ऐसी किंवदन्ती है कि दीवाली की रात को लक्ष्मी का आगमन होता है । लोग अपने इष्ट-मित्रों के यहाँ मिठाई का आदान-प्रदान करके दीपावली की शुभकामनाएं लेते-देते हैं । दीपावली त्योहार का बड़ा महत्त्व है ।

इस त्योहार के गौरवशाली अतीत पुन: जाग्रत हो उठता है । पारस्परिक सम्पर्क, सौहार्द तथा हेल-मेल बढ़ाने में यह त्योहार बड़ा महत्त्वपूर्ण है । वैज्ञानिक दृष्टि से भी यह त्योहार कीटाणुनाशक है । मकान और दुकानों की सफाई करने से तरह-तरह के कीटाणु मर जाते हैं ।

वातावरण शुद्ध तथा स्वास्थ्यवर्द्धक हो जरता है । दीपावली के दिन कुछ लोग जुआ खेलते हैं, शराब पीते हैं तथा पटाखों में धन की अनावश्यक बरबादी करते हैं । इससे हर वर्ष अनेक दुर्घटनाएँ हो जाती हैं तथा धन-जन की हानि होती है । इन बुराइयों को रोकने की चेष्टा की जानी चाहिए ।

दीपावली प्रकाश का त्योहार है । इस दिन हमें अपने दिलों से भी अन्धविश्वासों तथा संकीर्णताओं के अँधेरे को दूर करने का संकल्प लेना चाहिए । हमें दीपक जलाते समय कवि की इन पंक्तियों पर ध्यान देना चाहिए: जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना, अँधेरा धरा पर कहीं रह जाए


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